Lalach

मैं चाहुँ , ये'' लालच ''मेरा ,

दिन ,प्रतिदिन बढ़ता जाये। 

लूँ ,प्रभु का नाम निशदिन। 

इक पल चैन न मुझको आये। 


तुझसे मिलने की लालसा ,

मुझसे न जाने क्या -क्या करवाए ? 

मोह -माया से होऊं, विरक्त ,

प्रभु चरनन में मन रम जाये। 

भक्ति का दीजो लालच मुझको ,

 दरश की लालसा बढ़ती जाये।

मांगू मैं, वरदान यही....... 

बनी रहे , कृपा दृष्टि मुझ पर ,

न हों , कभी बुरे कर्म मुझसे ,

मन बस, तुझमें ही रम जाये। 

 जिन्दा रहूं ,जब तक....... 

मन' प्रभु भाव' में ही, रम जाये। 

जिधर देखूं ,तू ही तू नजर आये।

बात करूं जब सबमें तू ही आये।  

भक्ति का दो !लालच मुझको !

भक्ति और श्रद्धा बढ़ती  जाये। 

इक पल तुझ बिन चैन न मुझको आये।   

 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

2 Comments

  1. सुंदर भावपूर्ण भक्ति भाव व प्रेम से भरपूर 👌👌🙏🙏

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