aasan nhi !

अपने -आपको भुला ,
मुस्कुराकर देख , 
 मुस्कुराना भी यूँ ,
आसान नहीं होता।          
 अपना हर ग़म भुलाना होता है। 
दुःख की लकीरें छुपा ,
मुस्कुराना होता है। 
यूँ तो ,

कहते हैं लोग ,
मुस्कुराया कीजिये ,
  ये ग़म अपनों का ही दिया होता है।
ज़िंदगी को भुला ,
मुस्कुराना होता है ,
अपनों के ही  दिए,
 दर्द को भुलाना होता है। 
  शब्दों के चुभे  तीर ,
छुपाना होता है। 
फिर भी लोग कहते हैं ,
 मुस्कुराया कीजिये।
तब कहीं जाकर आती है ,
  इक फ़ीकी सी मुस्कान। 
दिल जब बच्चा होता है ,
 तब मुस्कुराता है ये दिल। 
खिलखिलाता है ,
 भूल जाता है ,सारे ग़म।
मुस्कुराकर तो देखिये ,
 मुस्कुराना भी आसान नहीं होता।   
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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