Shaitani mann [part 85]

आज सुबह-सुबह पुलिस का डंडा, नितिन के कमरे के दरवाजे पर बजा। कौन है ? सुमित ने पूछा। 

बाहर आओ  ! बाहर से आवाज आई। दरवाजे के खोलते ही, सामने पुलिस वाला खड़ा था ,वह  बिना किसी लाग- लपेट के सुमित से बोला  -तुम्हारा दोस्त कहां है ?

कौन ?



जो कल साहब के सामने उपस्थित नहीं हुआ था, अब उसकी तबीयत कैसी है ? आज उसे वहां जाना होगा यदि वह उनके सामने नहीं उपस्थित हुआ , तो साहब  स्वयं यहां आ जाएंगे या हमें उसे ले जाना पड़ेगा। 11:00 बजे तक उसे उनके सामने उपस्थित हो जाना है। तुम कहोगे या मैं कह कर जाऊं।

नहीं , मैं कह दूंगा सुमित ने उसे टरकाना के लिए बोला। 

कौन था? नितिन ने पूछा। 

बाहर पुलिसवाला था ,तुम्हें ग्यारह बजे बुलाया है ,पहले तुम हमें बताओ !हमें यह समझ नहीं आ रहा, तुम क्या बला हो ?

क्यों क्या हुआ, मैंने क्या किया ?

क्या तुम्हें कुछ भी याद नहीं है , तुमने सुमित और मेरे ऊपर हाथ उठाया और तुम कॉलेज की दीवार फांद कर उस'' मड हाउस''में क्यों गए थे ? 

  भला मैं वहां क्यों जाने लगा ? कल से तुम्हें यही बातें समझा रहा हूँ। 

हमें क्यों समझा रहे हो ?अपने आप से पूछो !तब तुम्हारे यह चोटें कैसे आई ? क्या तुम इसका जवाब दे सकते हो ? क्या तुम पुलिस को बता सकते हो ? कि कल रात्रि तुम्हारे साथ क्या हुआ ? 

मुझे कुछ भी याद नहीं है , मुझे तो ऐसा लगता है जैसे मैंने कोई सपना देखा, उस स्वप्न में तुम दोनों मुझसे  लड़ रहे थे। 

तुझसे , हम नहीं लड़े थे तू हमसे लड़ रहा था और वह कोई सपना नहीं था हकीकत थी। तू  अर्धरात्रि में, उस जगह जा रहा था इसलिए हमने सोचा कि हम भी तेरे पीछे जाते हैं किंतु तू तो हमारे पीछे ही पड़ गया। अब तू हमें यह बता तू किससे मिलने जाता है ?

क्या तुम लोगों का दिमाग खराब है, मैं भला उधर क्यों जाऊंगा ?एक दो बार पहले गया था उसके पश्चात मैं कभी नहीं गया जब वहां मुझ पर किसी ने हमला किया। 

 क्यों तूने पहले भी तो बताया था कि तू उधर गया था।

वही तो बता रहा हूँ , वह तो बहुत दिनों की बात हो गई। 

बहुत दिन की बात नहीं, हमें तो लग रहा है -तू लगभग रोज ही जाता है ,वहां क्या करता है हम कुछ नहीं जानते लेकिन तेरे इस तरह छुपकर जाना और हमारा पता लगाने का प्रयास करने का परिणाम हमारे शरीर पर इन खरोचों के रूप में तुझे नजर आ रहा होगा। वह तो हमसे जब इन चोटों की इंस्पेक्टर साहब ने वजह पूछी ,तब हमने इंस्पेक्टर साहब से कह दिया- कि पैर फिसल गया था किन्तु अब तू हमें बताएगा ,क्या चल रहा है ?

मैं तुम लोगों से कितनी बार कह चुका हूँ ,मुझे कुछ भी मालूम नहीं है। 

अच्छा ,ये बता ! कल क्यों नहीं गया था ?

 पता नहीं क्यों? सर में भारीपन था, कहीं भी बाहर जाने की इच्छा नहीं थी। 

इंस्पेक्टर साहब !आज पूछेंगे, तुम कल क्यों नहीं आए? तो क्या जवाब दोगे ? जब रात भर जाग- जागकर सुनसान इलाकों में धक्के खाओगे तो तबीयत तो बिगड़ेगी ही। 

तुम लोग क्यों ?व्यर्थ में ही मेरे पीछे पड़े हुए हो। मुझे अकेला क्यों नहीं छोड देते ,झुंझलाकर नितिन बोला,मैंने तुम लोगों से कितनी बार कहा है ? मुझे कभी -कभी मेरे कानों में लगता है जैसे घंटी बज रही है ,मैं उसे नकारने का प्रयास करता भी हूँ और पता ही नहीं चलता कि मेरे साथ क्या हो रहा है ? 

 हम गलत हैं और तुम सही इसीलिए अब इंस्पेक्टर साहब के सामने अपनी उपस्थिति दर्ज करा देना वरना यहां लड़कों के सामने तुम्हें खींच कर ले जाया जाएगा तो वह तुम्हें अच्छा नहीं लगेगा।

 इंस्पेक्टर साहब ने, क्या मेरे विषय में कुछ पूछा था ? 

बहुत कुछ पूछा था, किंतु हमने कुछ भी जानने से इनकार कर दिया। कविता के केस की तहकीकात कर रहे हैं साथ ही ऋचा के केस को भी सुलझाने का प्रयास कर रहे हैं। उसे कविता के केस से जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं।  अब यह तुम्हारे ऊपर है कि तुम उन्हें जवाब देकर कैसे संतुष्ट करते हो ? जहां तक मुझे लगता है वे हमारे जवाब से संतुष्ट नहीं है। वह यह भी पूछ रहे थे कि इन पार्टियों का खर्चा कौन करता है, कौन इतने पैसे देता है ? अगर वे हमारे सवालों के जवाब से संतुष्ट नहीं हुए , तो हो सकता है वे  हमारे घरवालों को भी इस केस में घसीट लाएं इसलिए जो भी जवाब देना ,बड़े ही सोच- समझकर देना चेतावनी देते हुए रोहित बोला।  पार्टी के लिए तुमसे भी पूछेंगे ! कि  इतना पैसा कहां से आता है ? तब क्या जवाब दोगे ?

रोहित की बात सुनकर नितिन घबरा गया और बोला -यदि उन्हें हमारे ड्रग्स बेचने के धंधे के विषय में पता चल गया तब तो हम वैसे भी पकड़े जाएंगे। 

 इसीलिए तो कह रहा था कोई भी जवाब देना बहुत ही सोच समझ कर देना। ऐसा न हो कॉलेज के आखिरी साल में हवालात की हवा खानी पड़े। 

नितिन घबराकर बोला -इससे तो बेहतर है ,मैं जाता ही नहीं। 

नहीं जाएगा तो पुलिस को तुम पर और ज्यादा शक हो जाएगा इसीलिए बेहतर तो यही है कि  उनका सामना करो ! समझदारी और बुद्धिमानी से उनके सवालों के जवाब दो !

कुछ नहीं होता, सारी हेकड़ी धरी की धरी रह जाती है सुमित बोला - पुलिस ऐसे- ऐसे सवालों के जवाब पूछती है कि तुम सच्चाई बोले बगैर रह ही नहीं सकते। वैसे एक बात बताओ !क्या तुम्हें बिल्कुल भी याद नहीं है, कि तुम कहां और किससे  मिलने जा रहे थे ?

मैं कसम खाकर कहता हूं, मुझे कुछ भी मालूम नहीं है और अब तूने एक और बार भी मुझसे यह पूछने का प्रयास किया तो अवश्य ही मेरे हाथों एक खून हो जायेगा कहकर वो नहाने चला गया।  

यार! यह इसके साथ क्या हो रहा है ? क्या सच में ही इसे कोई घंटी सुनाई देती है या दे रही थी। उसके बजने के पश्चात इसे कुछ भी याद नहीं रहता। वह कहां है और क्या कर रहा है  ?इस आवाज का इसकी याददाश्त से क्या संबंध है ? हमें तो कोई आवाज सुनाई नहीं देती। कहीं ऐसा तो नहीं ,यह हमसे ये बहाने बनाकर ,अपने कार्य छुपा रहा हो ताकि हमें इस पर कोई शक न हो। 

लगता तो ऐसा ही है ,कि यह झूठ नहीं बोल रहा ,तूने देखा नहीं ,उस समय इसके सामने हम थे किन्तु यह किसी दुश्मन की तरह हमसे लड़ रहा था। 


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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