kya karti ho ?

रोज़ाना की तरह ,दिन निकला ,
मुझे भी  उठना है। 
मन कहता -अभी मुझे सोना है। 
फिर भी मुझे उठना है। 

क्यों ?
घर की सफाई करनी है ,
पति को चाय देनी है ,
बच्चों के लिए ,
नाश्ता बनाना है। 
सोचा ,देर से उठूँ। 
किन्तु सोने ही नहीं दिया ,
इन जिम्मेदारियों ने ,
उठा ही दिया। 
तन सुस्ता रहा ,
मन भाग रहा। 
ये कश्मकश ,
कब तक सताती रहेगी ?
शरीर हूँ ,मशीन नहीं ,
थोड़ा सुस्ता भी ले ,
तू भी थोड़ा आराम कर ले। 
मन को समझाया ,
बच्चों और पति के जाने के बाद ,
आराम ही करना है। 
उनके जाने के बाद ,
पूछा ,इस दिल ने ,
किसका इंतजार है ?
जूठे बर्तन मुँह चिढ़ा रहे ,
कपड़ों की मशीन बुला रही ,
इधर -उधर पड़े तौलिये मुस्कुरा रहे। 
चल खड़ी हो जा !
ये भी तो निपटाना है  
दोपहर का खाना भी पकाना है। 
धुले वस्त्र उतार ,
उनकी सिलवटों को स्त्री से साफ किया। 
मेरी ज़िंदगी की सिलवटें ,
कौन खोलेगा ?क्या फ़र्क पड़ता है ?
पति ने घर साफ़ नहीं देखा ,
मेरा दुखता मन नहीं देखा। 
तुमने किया ही क्या ?
बिन कुटे मसाले अभी भी रखे हैं। 
घर को संवारने में ,जिंदगी गुजार दी। 
फिर भी वही प्रश्न ,
एहसास दिला जाता ,मूल्यहीन काम का। 
दौड़ते कदम पूछते हैं ?
हमारी मंज़िल है ,कहाँ ?
फिर एक नई अलसाई सुबह ,
नया  दिन ,
मुझे उठना है। 
मैं थकती नहीं। 
मैं अनेक रिश्तों से जुडी ,
एक कविता ,
एक कहानी हूँ।
जिसका हर दिन नया पेज़ खुलता है।  
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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