सरस्वती से, उसके माता-पिता मिलने के लिए शहर में आए हैं, उसके पिता को कोई जानकारी नहीं है ,कि यहाँ क्या चल रहा है ?किंतु उसकी मां 'अंगूरी' को उसके भाई 'प्रेम' ने सब कुछ बता दिया है। मां मामले की नाजुकता को समझते हुए, समझदारी से कार्य ले रही थी, उसे लग रहा था मैं अपने व्यवहार से, बेटी को समझा दूंगी। यह मामले कुछ ज्यादा ही नाजुक होते हैं, बच्चों की उम्र भी, ऐसी ही होती है। प्यार से उन्हें एहसास कराना पड़ता है कि वो कहाँ गलत हैं ?
रामखिलावन को तो इस विषय में कुछ भी मालूम नहीं है, किंतु एक पिता होने के नाते, वह बेटी से पूछना चाहता था, कि आखिर उसका, इस रिश्ते को इनकार करने के पीछे क्या उद्देश्य था ?
तब सरस्वती अपने पिता से कहती है -उनको बुलाने से पहले,सबसे पहले आपको मुझसे पूछना चाहिए था। मेरे जीवन का फैसला करने चले हैं, और मुझे पता ही नहीं।
इसमें क्या पता करना था ? अब तक तो तुम्हारी जिंदगी के फैसले हम ही लेते हुए आए हैं, अब यह जिंदगी तुम्हारी अपनी कब से हो गई ? तुम्हें पैदा करने से लेकर, तुम्हारी परवरिश, तुम्हारी शिक्षा, सबके निर्णय हमने ही लिए हैं गांव में रहकर तुम्हें शहर में पढ़ाने का निर्णय भी, हमारा ही था, तो फिर इस निर्णय से तुम्हें क्या आपत्ति हो सकती है ?
तब मैं समझदार नहीं थी किंतु अब मैं समझदार हो गई हूं, बालिग़ हूँ ,अपने निर्णय स्वयं ले सकती हूं।
इसका अर्थ तो वही हुआ, जब तक तुम्हें हमारी जरूरत थी, तुम हमारे कहे पर चलती रहीं किंतु अब तुम्हें लगता है- तुम नौकरी करने लगी हो, अपने में सक्षम हो ,अब तुम्हें हमारी कोई आवश्यकता नहीं।
मैंने ऐसा तो नहीं कहा।
और कैसा कहा ?हम तो स्वयं ही,तुम्हें तुम्हारे घर भेजने की तैयारी कर रहे हैं, तब क्या अड़चन है ? अंगूरी ने, जानबूझकर प्रश्न किया।
मुझे कोई आपत्ति नहीं है किंतु मैं अभी विवाह नहीं करना चाहती हूं।
तो कब करना है ? रामखिलावन ने तुरंत ही प्रश्न किया। सरस्वती ने कोई जवाब नहीं दिया, अरे! कोई जवाब तो तुम्हारे पास होगा या नहीं एक महीने में, दो महीने में, कब तक प्रतीक्षा करनी होगी ?
आपको प्रतीक्षा की कोई आवश्यकता नहीं है।
मतलब !! तुम विवाह ही नहीं करना चाहती हो, कभी भी विवाह नहीं करोगी।
मैंने ऐसा तो नहीं कहा।
इतनी देर से' प्रेम 'उनकी बातें सुन रहा था, और उन गोलमोल बातों को सुन- सुन कर, वह पक चुका था, तब क्रोधित होते हुए बोला - पापा !इसे विवाह करना है किंतु अपनी पसंद का, कहते हुए उसने सरस्वती की तरफ घूरकर देखा।
जो लड़का हमने ही दिखलाया था वह भी तो, इसी की पसंद का होता, हम जबरदस्ती विवाह नहीं कर रहे थे।
वही तो मैं कह रही थी, मुझे वह पसंद नहीं आया , इससे पहले की प्रेम कुछ बोले, सरस्वती बोल पड़ी।
चलो तो! कोई और लड़का ढूंढ लेंगे, रामखिलावन आश्वस्त होते हुए और गहरी सांस लेकर बिस्तर पर लेटते हुए बोला -कोई बात नहीं, कभी-कभी किसी से हमारा संजोग नहीं होता है, कोई और अच्छा सा लड़का ढूंढ लेंगे,वैसे उसमें भी कोई कमी नहीं थी। हमने, तुममें और प्रेम में कभी भी भेदभाव नहीं किया ,न ही ,कभी अपने विचारों को तुम पर थोपा। हमारी जो भी जिम्मेदारियां हैं ,उन्हें पूर्ण करके अब हम मुक्त होना चाहते हैं। अब तुम बताओ! तुम्हें कैसा लड़का पसंद है ?
अभी तो मैंने आप लोगों से कहा था मेरे लिए कोई लड़का नहीं ढूंढिए।
क्यों ? कुछ कारण तो होगा।
कारण ,मैं बताता हूँ ,इन्हें हमारी इज्ज़त -बेइज्जती से कोई मतलब नहीं है और इसका कारण है ,वो अरशद !इससे पहले की अंगूरी उसे रोकती उसने सब कुछ बोल दिया।
क्या!!!!! अरशद !यह नाम सुनते ही ,सुकून से लेटा रामखिलावन उठ बैठा , यह तू क्या कह रहा है ? कौन है ?यह अरशद ! रामखिलावन ने प्रेम से प्रश्न किया।
दीदी के कॉलेज में था, पता नहीं, यह बात भी कहां तक झूठ है या सच है जो इन्होंने बताया, वह मुझे पता है किंतु मैं इतना जानता हूं वह भी, नौकरी करता है ,इनके दफ्तर में नहीं है किंतु यह लोग फिर भी मिले हैं , उसी के कारण यह सब स्वांग हो रहा है, प्रेम ,सरस्वती को घूरते हुए बोला। उसे अब सरस्वती पर क्रोध आ रहा था और वह सब कुछ बतला देना चाहता था।
अरे!! चुप भी हो जाएगा , अंगूरी घबराते हुए बोली।
तुम, इसे चुप क्यों करा रही हो ? यह सब क्या कह रहा है ? क्या तुम जानती हो ? तब रामखिलावन ने, सरस्वती की तरफ देखा और उससे पूछा -यह जो कुछ भी कह रहा है, क्या ,सब सही है ? अभी तक सरस्वती चुपचाप खड़ी थी। कड़क और तेज शब्दों में, रामखिलावन ने डांटते हुए सरस्वती से पूछा -यह सब क्या कह रहा है ?सरस्वती नज़रें नीचे किए हुए खड़ी रही , बोलती क्यों नहीं ? अभी तक तो,तेरी फटाफट जबान चल रही थी, अब क्या ''सांप सूंघ गया'' कौन है? वो !
अरशद ! घबराते हुए धीमी सी आवाज में, सरस्वती बोली।
तू, उसे कब से जानती है ? तू तो विवाह ही नहीं करना चाहती थी ,फिर यह अरशद कहाँ से आ गया ?
पापा !वो मुझे कॉलिज के समय मिला था।
और तू ये बात हमें अब बतला रही है ,उसके लिए तूने इतना अच्छा रिश्ता ठुकरा दिया।
वो भी मुझे प्यार करता है और मैं भी उससे......
चुप कर ! बेशर्म ! अपने पिता का तो लिहाज़ कर ,ऐसा कुछ भी बोलते हुए तुझे शर्म नहीं आई,अंगूरी डांटते हुए बोली।
यह क्या बात हुई ? पापा पूछ रहे हैं और आप मना कर रही हो , अब आप लोग ही निर्णय लो ! बताऊं या नहीं। सच्ची बात बताती हूं, तो आप मुझे डांटती हैं, और चुप रहती हूं तो भाई को गुस्सा आता है,झल्लाते हुए सरस्वती बोली।
तूने कोई महान कार्य नहीं किया है, जो उस विषय पर चर्चा कर रही है , जो हो चुका, उसे भूल जा ! और आगे बढ़ ! बार-बार उस बात को दोहराने से कोई लाभ नहीं है। इस लड़के से तो तूने मना कर ही दिया है, किंतु जो दूसरा लड़का हम ढूंढेंगे !'' कान खोल कर सुन ले !'' अबकि बार तेरा विवाह उसी से होगा।
वही तो मैं कह रही हूं, आप दूसरा क्या तीसरा भी लड़का ढूंढेंगे, मैं उससे भी, विवाह नहीं करूंगी।बेटी की ढिटाई देखकर अंगूरी को क्रोध आ गया। क्यों नहीं करेगी? कहते हुए मां उसके करीब आई और एक जोरदार चांटा उसके गाल पर रख दिया और बोली -हमारी भलमनसाहत का तूने यही लाभ उठाया।
आगे क्या होगा ?जानने के लिए आइये !आगे बढ़ते हैं।