उस'' स्वर्ण नगरी'' जैसे दिखने वाले शहर में ,जिसका नाम वास्तव में ''कुलधरा ''है ,उसके रक्षक कहो या राजा'' प्रज्ञासेन ''दिव्या और ऋतू को तांत्रिक ''ज्ञानयोगी ''के विषय में बताते हैं और उन्हें ये भी बताते हैं कि उनके दोस्तों की ''प्राण रक्षा ''उन्हें ही करनी होगी क्योंकि उनके सिपाही'' पाताल नगरी'' नहीं जा सकते। वे बताते है -ज्ञानयोगी ,अपने नाम के अनुकूल नहीं वरन उसके विपरीत कार्य करता है। वो योग साधना तो जानता ही है किन्तु उससे बड़ा तांत्रिक भी है। उसके अधिकार में 'पाताल नगरी 'और अग्नि के साथ वो जंगल भी उसी की कैद है। बाहर से आये ,व्यक्तियों का ,वो अपने स्वार्थ के लिए उपयोग करता है और अपनी काली शक्तियों के बल पर उन्हें' शैतान' बना देता है।अब आगे -
ऋतू बोली -बाबा ! ऐसे शैतान तांत्रिक से हम कैसे लड़ सकते हैं ? उस पर काली ताकतें हैं ,योग भी जानता है ,अग्नि उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती।
उसकी बात सुनकर 'प्रज्ञासेन जी 'हँसे और बोले -जो कुछ नहीं कर सकते ,कभी -कभी वो बहुत कुछ कर जाते हैं। ये मत भूलो ,अनेक राक्षसों का सर्वनाश करने वाली ''माँ दुर्गा ''भी एक बालिका ही थीं।
इतनी शक्तियों के बाद आप और आपके सिपाही भी कुछ नहीं कर पाए तब हम दोनों क्या कर पायेंगी ?हमारे दोस्त भी उसकी कैद में है ,दिव्या बोली।
प्रज्ञासेन बोले -तुम्हारी सुरक्षा का सम्पूर्ण प्रबंध हमने कर दिया है ,बस अब तुम दोनों को दुर्गा रूप धारण करना होगा यानि उस राक्षस का विनाश। कहकर उन्होंने उन्हें कुछ समझाया और कुछ वस्तुयें भी दीं। अब तक वहां रहते हुए दस दिन हो चुके थे।
दूसरी तरफ राहुल और मेहुल मूर्छित होने का अभिनय कर रहे थे। जब'' ज्ञानयोगी ''मंत्र जप कर रहा था तब उनके मष्तिष्क में भयंकर पीड़ा होने लगी। तब दोनों ने ही अपनी आँखें और कान बंद कर लिए ,इससे पहले कि पूजा समाप्त होती उन्होंने मूर्छित होने का अभिनय किया। जब वो लोग उन्हें वहीं छोड़कर चले गए। दोनों उठे ,कुछ कदम आगे ही बढ़े थे ,तभी ''ज्ञानयोगी ''उनके सामने आकर खड़ा हो गया। बोला -मैं जानता था, तुम लोग मूर्छित होने का अभिनय कर रहे थे , तुमने क्या मेरी विद्या को खेल समझा है। मैं तभी समझ गया था, किन्तु मैं भी अनजान बना रहा ,तुम लोग मुझे मूर्ख बनाने का प्रयत्न कर रहे थे। ये कोई हंँसी -खेल नहीं ,मैं देखो अब तुम लोगो के साथ क्या करता हूँ ?और उसने एक मंत्र पढ़ा और उनके ऊपर फूंक मारी। देखते ही देखते दोनों आधे घोड़े और आधे मनुष्य हो गए।
पहले तो दोनों एक -दूसरे को देखकर हँसे, फिर रोने लगे ,अब हमारा क्या होगा ?कौन हमें बचाएगा ?क्या हम जीवनभर इसी तरह ''अश्वमानव ''बने रहेंगे ?बहुत देर तक इसी तरह अफ़सोस करते बैठे रहे। तभी उन्हें स्मरण हुआ , कि वो बोल भी सकते हैं और उनकी स्मृति भी सही -सलामत है। राहुल बोला -इन मुर्दों की तरह ,हम अभी उसके दास नहीं बने हैं।
दिव्या और ऋतू दोनों अपनी आँखें बंद करती हैं और'' प्रज्ञासेन जी ''उनके सिर पर हाथ रखते हैं। जब वो आँखें खोलती हैं ,तो अपने को उसी जंगल के नज़दीक पाती हैं। दोनों ही बिना डरे उस जंगल में जैसे ही अपने कदम रखती हैं ,वैसे ही उसकी कैद में आ जाती हैं। उनके समीप ही कार्तिक भी चिल्ला रहा था -उन्हें देखकर वो अब शांत हो गया। बोला -मैं तो यहां फँसा ही हूँ ,किन्तु तुम दोनों यहां जानबूझकर मरने क्यों आ गयीं ? उन दोनों ने उसे इशारे से शांत रहने के लिए कहा। उन दोनों ने एक शीशी निकाली और उसकी कुछ बूंदें उन पेड़ों की जड़ों में डाल दीं। जिस कारण एक चमत्कार हुआ ,उन पेड़ों की जड़ों में एक तीव्र प्रकाश निकला और एक शैतानी चीख भी। कार्तिक बोला -तुम ये क्या कर रही हो ?और इससे क्या होगा ?दिव्या बोली -ये शैतानी जंगल है ,ये पेड़ भी शैतान ही हैं। इनकी एक विशेषता है ,इस जंगल में घना अंधकार होने के कारण ,ये प्रकाश के लिए अपनी जड़ों से आगे खिसकते हैं, जैसे ही तुम ,यहां से चलोगे तो तुम्हें लगेगा ,तुम वापस उसी स्थान पर आ गए हो क्योंकि ये पेड़ भी अपने स्थान से ख़िसक जाते हैं। अब तुमने इनकी जड़ों में क्या डाला है ?कार्तिक ने पूछा।
मैंने इन पेड़ों की जड़ों में बाबा का दिया ''पवित्र जल ''डाला है ,जिसके प्रकाश के कारण अब ये पेड़ नहीं खिसकेंगे और जल की पवित्रता के कारण इनकी शैतानी ऊर्जा कमजोर पड़ गयी है ,दिव्या ने बताया। इसमें से कैसे निकलेंगे ?ये तो बहुत घना है और पेड़ भी बड़े हैं कार्तिक घबराया सा बोला।ऋतू बोली -चुप रहो !हमें अपना कार्य करने दो ,यदि उस ''ज्ञानयोगी ''को हमारे विषय में पता चल गया तो ''सारे किये कराये पर पानी फिर जायेगा। ''
कार्तिक के लिए इन्होंने एक नया प्रश्न खड़ा कर दिया ,अब ये ''ज्ञानयोगी ''कौन है ?किन्तु उन दोनों की चेतावनी के कारण चुप रहा। अब दोनों एक ऊँचे मोटे पेड़ पर चढ़ने लगीं। कार्तिक बोला -अब तुम दोनों क्या कर रही हो ?मैं पूछूंगा तो डाँटोगी। बात सुनकर मुस्कुराई और बोली -सब बातें बाद में ,जैसा हम कर रहे हैं ,वैसा ही करते जाओ !थोड़ी देरी में हम उड़ेंगे। अब तो कार्तिक और भी परेशान हो गया। करे भी क्या ?बाहर निकलना है तो ,उनका कहना तो मानना ही पड़ेगा और उनके पीछे -पीछे वो भी पेड़ पर चढ़ने का प्रयास करने लगा। पहली बार तीनों पेड़ पर चढ़ रहे थे ,उन पेड़ों के तने भी कुछ चिकने थे। एक -दूसरे को सहारा देते हुए वो आगे बढ़ रहे थे। वो पेड़ भी और पेड़ों से अधिक ऊँचा था ,उन्हें उस पेड़ के शीर्ष पर पहुंचना था। पहले तो दिव्या और ऋतू को बाबा की बातें सुनकर बहुत डर लग रहा था किन्तु उन्होंने समझाया, तो उनमें अज़ीब ही ऊर्जा उत्पनन हुई और वो तो अब कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार थीं। कार्तिक अभी कुछ समझ नहीं पा रहा था, कि वो क्या करना चाहती हैं ?
जब वो तीनों उस पेड़ के शीर्ष के करीब पहुँचे ,तब दोनों ने एक -एक पंख निकाला और एक कार्तिक को भी दिया और ऋतू बोली -कार्तिक अब हम कूदेंगे ,उनकी बातें सुनकर कार्तिक हिल गया ,उसने नीचे देखा, तो वो लोग बहुत ऊपर थे। वो बोला -क्या तुम मुझे यहां आत्महत्या करने के लिए लाई हो ,इससे तो मैं नीचे ही बेहतर था ,मुझे अभी नहीं मरना। दिव्या बोली -नहीं कूदोगे तो भी मरोगे ,कहकर वो बोली -''अग्नि परे '' ''कहकर वो कूद गयी। ऋतू ने भी ऐसा ही किया। कार्तिक को ड़र लग रहा था वो कूदना नहीं चाहता था तभी नीचे से धमाके की सी आवाज़ आई ,उसने नीचे देखा ,तो सभी छोटे पेड़ अग्नि की चपेट में आ गए थे। वहां की हालत देखकर वो बुरी तरह घबरा गया और वो भी दिव्या और ऋतू की तरह कूद गया।
दिलचस्प कहानी 👌👌👌👌
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