Khoobsurat [part 83]

शिल्पा ये समझ ही नहीं पा रही थी कि उसकी लापरवाही रंजन को, उससे और दूर कर रही थी। कभी-कभी तो रंजन को लगता, शिल्पा उसे पसंद करती भी है या नहीं, पसंद न करने का तो प्रश्न ही नहीं उठता  बल्कि उसकी मम्मी तो स्वयं मेरे पीछे लगी थीं, वे चाहती थीं,कि मैं उनकी बेटी को स्वीकार कर विवाह करूं।  फिर इसने मुझसे विवाह क्यों किया था ? एक वो [नित्या ]है ,जो विवाह करके सुकून से ज़िंदगी बसर कर रही है और एक ये है,आज तक मैं इसे समझ ही नहीं पाया, ये चाहती क्या है ?

 जब से नित्या ने रंजन से कहा है -हमें अब अपनी -अपनी ज़िंदगी में व्यस्त रहना चाहिए ,'' रंजन दिल से तो इस बात को मान नहीं पाया, किन्तु नित्या की बातों का मान रखने के लिए उसे जितना भुलाने का प्रयास करता ,उतना ही देर -सवेर वो उसकी बातों में ,यादों में ,तुलना में ,व्यवहार में आ ही जाती।


 

एक बारगी तो उसे लगा, शिल्पा की उसमें कोई दिलचस्पी है भी या नहीं.... कई बार ऐसा होता है, कि जिसके पास जो चीज नहीं होती है उसके लिए वह जिद करता है , और जब उसे वह चीज मिल जाती है तो उसकी कद्र खो देता है। यही बात कुछ शिल्पा के साथ हो रही थी। वह यह नहीं समझ पा रही थी, कि ''विवाह होते ही सम्पूर्ण उत्तरदायित्वों की पूर्ति नहीं हो जाती, कुछ उत्तरदायित्व निभाने भी पड़ते हैं।'' उसकी इस बेरूखी के कारण, रंजन उससे दूर होता जा रहा था और नित्या के करीब अपने को महसूस करता था।नित्या के लिए तो उसका ह्रदय पहले से ही धड़कता था ,अब उसका सामीप्य भी चाहता है।  

नित्या भी, उसकी समस्याओं का समाधान करने के लिए ही, उससे बात करती थी, क्योंकि नित्या भी नहीं चाहती थी, मेरे और रंजन के रिश्ते को लेकर प्रमोद में, किसी भी प्रकार की गलतफहमी हो। अब तक शिल्पा ने बहुत सारी पेंटिंग्स का संग्रह बना लिया था और उसने एक प्रदर्शनी का आयोजन भी किया। उसकी पेंटिंग्स को लोगों की बहुत सराहना मिली, अपनी पेंटिंग्स लेकर वो विदेशों में भी गई , ऐसे समय में शिल्पा ने, रंजन को नहीं छोड़ा, रंजन हमेशा उसके साथ रहता था। शिल्पा की पेंटिंग्स खरीदी गई और उसको नाम भी मिला। शिल्पा का काम चल निकला और बढ़ भी गया , जिसके कारण अब उसके पास समय ही नहीं था।

अब शिल्पा ने रंजन से कहा -अब तुम्हें नौकरी छोड़ देनी चाहिए। 

रंजन ने उसकी तरफ देखा, और पूछा-आखिर तुम चाहती क्या हो ? मैं नौकरी छोड़ दूंगा तो करूंगा क्या ?

मेरा काम इतना बढ़ चुका है, मैं अकेले नहीं संभाल पाऊंगी, तुम्हें बाहर भी जाना होगा, मेरी पेंटिंग्स को भेजना होगा, जो भी काम हमें मिल रहा है ,उसमें मुझे तुम्हारी सहायता की आवश्यकता है। 

तुम चाहती हो, मैं, अब तुम्हारे लिए काम करूं ,तुम्हारा नौकर बन कर रहूं। 

इसमें नौकर कैसा बनना ? क्या हम दोनों एक नहीं है ? मेरा काम बढ़ता है, तो तुम्हारा भी तो बढ़ेगा, यह काम सिर्फ मेरा ही नहीं, तुम्हारा भी है। इतने दिनों से जो मैं परिश्रम कर रही थी ,हमारे लिए ही तो कर रही थी। अब मैं यह नहीं चाहती, कि तुम उस दफ्तर में काम करो ! हमारा अपना बड़ा व्यापार होगा, देश -विदेशों में काम बढ़ेगा ,अच्छे स्तर पर कार्य करेंगे ,उसके साथ ही कुछ अन्य व्यापार भी कर लेंगे। मैं जानती हूँ ,इस बीच मैं तुम्हें समय नहीं दे पाई ,जो साथ और समय एक पत्नी को देना चाहिए ,क्योंकि मैं तुम्हारे लिए ,हम दोनों के लिए ,कुछ बड़ा ही सोच रही थी ,मधुर स्वर में शिल्पा बोली। 

शिल्पा की बातों ने रंजन को, परेशान कर दिया और वह सोच रहा था - आखिर यह चाहती क्या है ? इसने मुझे अलग रहने नहीं दिया, अपने मायके में लेकर आ गई अब मैं घर- जमाई बनकर यहाँ रह रहा हूं और अब कह रही है-'' नौकरी छोड़ दूं !'' क्या मेरा अपना कोई अस्तित्व है भी या नहीं , मेरी अपनी कोई सोच नहीं है। कब तक इसकी मनमर्जियां सहता रहूंगा? अब तक जो इसने मुझसे व्यवहार किया था ,वो क्या था ?न जाने, कितने विचार आये गए ? जब इसके प्रति मेरी धारणा बदली,तब ये कह रही है कि मैं इतना परिश्रम हम दोनों के लिए कर रही थी। इसकी वो लापरवाही ,मेरे प्रति बेरुखी, वो सब क्या था ?अब इसका इतना मिठास से बोलना क्या अब अपने मतलब के लिए है ?

अनेक प्रश्न मन में उठे लेकिन वह अब इतना तो समझ आ गया था, शिल्पा जो अब तक इतनी मेहनत कर रही थी वह इसीलिए कर रही थी ताकि मैं, उस दफ्तर की नौकरी छोड़कर, उसके कार्य में हाथ बटाऊं !

 रंजन ने कुछ दिनों के लिए दफ्तर से छुट्टी ले ली। पेंटिंग्स लेकर, इधर-उधर जाता, बड़े-बड़े होटलों में ठहरता किन्तु अब उसे एहसास होने लगा। सच में ही, इस काम में पैसा भी है और मस्ती भी.... और एक दिन उसने नौकरी छोड़ दी। करना भी क्या है ?ससुर की कमाई है और पत्नी कमा रही है, जब मौज मस्ती में जीने को मिल रहा है तो फिर क्यों परेशान होना ?धीरे -धीरे उसकी सोच में बदलाव आने लगा। 

 अचानक ही रंजन के विचारों में बदलाव आया , उसका रहन-सहन का स्तर भी बदल गया। उसकी जिंदगी मौज- मस्ती से बीतने लगी किंतु अभी भी, उसने नित्या से बात करना नहीं छोड़ा था।नित्या की बातें तो जैसे उसकी डूबती नैया को पार लगा लाती थी। जीने की एक नई उमंग दे जाती थीं , कहीं अकेले में जाकर नित्या से बातें करके उसके मन को सुकून मिलता।

 ऐसे ही बगीचे में टहलते हुए एक दिन वह नित्या से बातें कर रहा था।रंजन के माध्यम से नित्या को भी पता चल जाता था ,कि उनकी ज़िंदगी में क्या चल रहा है ? अचानक ही शिल्पा भी बगीचे में आ गई और रंजन से पूछा -किससे  बातें कर रहे हो ? अब वह अधिकतर रंजन के साथ रहने लगी थी। पत्नी की तरह उसकी परवाह तो नहीं करती थी, लेकिन अब उसे लगता था, रंजन और मेरी जिंदगी बड़े ही सुकून से बीतेगी।

 फोन काटते हुए रंजन ने कहा-किसी से नहीं , ऐसे ही पेंटिंग्स के लिए किसी से बात कर रहा था , शिल्पा ने उसके चेहरे को देखा और उसे लगा -'वह उससे झूठ बोल रहा है।'' ऐसा पहली बार नहीं हुआ था, शिल्पा ने महसूस किया था, एक दो- बार पहले भी वह ऐसा कर चुका है। न जाने क्यों, अब शिल्पा को उस पर शक होने लगा था ? शिल्पा ने उसकी बातों को यूं ही जाने दिया , उसने ऐसा व्यवहार किया जैसे वह कुछ जानती ही नहीं,उसे रंजन पर पूर्ण विश्वास है लेकिन शक का बीज, उसके मन में अंकुरित हो उठा था। 

एक दिन शिल्पा ने सुना, रंजन किसी से कह रहा था - अब बीवी की कमाई हो रही है, ससुर की कमाई भी है तो मुझे कमाने की क्या आवश्यकता है ?कोई संभालने वाला भी तो चाहिए, उनकी ऐसी बेटी से मैंने शादी की है, यह क्या कम बड़ी बात है ? अब उनसे रिश्ता जोड़ा है ,उन्हें रिश्ते का,कर्ज़ तो चुकाना ही होगा। अभी तक तो शिल्पा ने, इन बातों को जाने दिया किंतु अब वह उस पर नजर रखने लगी और एक दिन उसने, चुपचाप रंजन का फोन उठाया और बाहर ले गई। 


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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