Kanglon ki diwali [part 1]

त्यौहार आ रहे है ,कीर्ति ने इस बार दीपावली  पर कुछ अच्छा और बढ़िया करने का सोचा है। दीवाली बड़े धूमधाम से मनानी है। घर के लिए ,सभी नए पर्दे लायी है ,धनतेरस पर नए बर्तन और अपने लिए सोने का नया हार भी खरीदा है। बच्चों के लिए नये कपड़े और ढेर सारे पटाखे भी ,अपने पसंद की हर एक चीज नई ली है। अभी कुछ दिन पहले ही तो ,दोनों पति -पत्नी विदेश होकर आये हैं ,वहां से भी कुछ खरीददारी की थी ,वो सामान भी सजाया है ,यही मौका तो है ,पड़ोसियों और जानने वालों पर रौब दिखाने का। जब सम्पूर्ण घर सज गया, तो निहारती है और मन ही मन प्रसन्न होती है, अपने घर की  सजावट और सामान को देखकर।

कीर्ति एक बड़ी कम्पनी में कार्यरत है ,उसका पति निखिल भी ,कोई बाहर की कम्पनी में अभियंता है ,दोनों ही अच्छे पैसे कमा लेते हैं ,अपना फ्लैट ,गाड़ी और दो प्यारे -प्यारे बच्चे हैं , और जीवन में खुश रहने के लिए चाहिए भी क्या ?खाना बनाने के लिए पूजा आती है ,आते ही बोली -दीदी आज क्या बनेगा ?कीर्ति बोली -खाना आज मैं बनाऊँगी ,तू बस मेरी मदद करना। आज वो इतनी प्रसन्न है कि खाना बनाने के लिए रसोईघर में घुस जाती है और खाने में खीर -पूड़ी ,सब्जी ,रायता कई चीजें बना देती है।खाना खाकर सभी अभी उठे ही थे, कि थोड़ा विश्राम कर लें किन्तु ,तभी कीर्ति के फ़ोन का संगीत बज उठता है और वो फ़ोन उठाती है ,हैलो -उधर से आवाज़ आती है -हैलो ,मैं पलक बोल रही हूँ ,आज शाम को मेरे घर दीपावली का उत्सव है ,तुम सपरिवार आमंत्रित हो। ठीक है, कीर्ति जबाब देती है। निखिल बोला -कौन है ?कीर्ति कहती है -हमारी किट्टी की एक दोस्त है,उसने अपने यहां बुलाया है। तुम्हारी कौन सी दोस्त है ?जिसे मैं नहीं जानता। दूसरी बिल्डिंग में रहती है ,समाज -सेविका भी है ,मेरे यहां उसका अभी आना नहीं हुआ कीर्ति ने जबाब दिया फिर बोली -तुम क्यों पूछ रहे हो ?तुम्हें  मेरी सभी सहेलियों को जानना क्यों जरूरी है ?कीर्ति आँखें तरेरते हुए बोली। निखिल हँसा और बोला -मैं तो ऐसे ही जानना चाहता था ,हमारे घर भी तो त्यौहार है ,हम दूसरे के घर क्यों जायेंगे ?आज के दिन तो मना कर देना था। शाम को पूजा भी होगी ,कीर्ति बोली -हम पूजा करके चले जायेंगे ,यही तो समय होता  है ,एक -दूसरे से मिलने का ,जान -पहचान बढ़ाने का। एक मिठाई का डिब्बा लेकर चले जायेंगे। 
                 दोपहर के खाने के पश्चात ,आराम करके फिर से काम में जुट गयी ,बड़े प्रेम से रंगोली बनाई ,अपने घर के जितने भी पुराने  बर्तन ,पर्दे इत्यादि सामान निकला था वो सब अपने यहां काम करने वाली को दे दिया ,उसके यहां भी अच्छे से दीवाली मन गयी। जब वो  कीर्ति की प्रशंसा कर रही थी तब कीर्ति भी अपने को धन्ना सेठ से कम नहीं आंक रही थी। शाम का खाना तो पलक के यहाँ था, सो सबने नए कपड़े पहन ,''लक्ष्मी जी ''की पूजा की और पलक के यहां जाने के लिए तैयार हो ही रहे थे कि तभी निखिल के लिए किसी का फोन आ गया। तब निखिल कीर्ति से बोला -तुम बच्चों को लेकर चलो ,मुझे अभी कुछ काम आ गया है ,मैं सीधे वहीं पहुंचता हूँ। कीर्ति मुँह बनाते हुए बोली -तुम्हें कैसे पता चलेगा ?अरे भई !मेरे पास फोन है ,मैं तुम्हें फोन कर लूंगा। पलक बड़े जोश में उससे मिली ,बच्चे तो बच्चो के साथ खेलने लगे। पलक कीर्ति से बोली -तुम्हारे पतिदेव कहाँ रह गए ?कीर्ति मुँह बनाते हुए बोली -पता नहीं, किन चक्करों में लगे रहते हैं ?होगा कोई ,जरूरतमंद।ये तो अच्छी बात है ,जो तुम्हारे पति किसी की परेशानी में तो काम आये  पलक बोली। कीर्ति ने बात को बदलते हुए पूछा -और कोई नहीं आया ?नहीं ,तुम लोगों को ही बुलवाया है। क्यों ,हम तो वैसे ही मिठाई लेकर ,आने वाले थे कीर्ति बोली। पलक मुस्कुराकर बोली -तुम विशेष हो ,इसीलिए बुलाया। आज अकेले में अच्छे से जान -पहचान कर लेते हैं और बताओ !तुम्हारा मायका और ससुराल कहाँ हैं ?कीर्ति बड़े उत्साह से बोली -मेरा मायका तो ,बेंगलुरु में है ,अभी मम्मी -पापा एक सप्ताह रहकर गए। और ससुराल ,पलक ने पूछा ?चाय की चुस्की लेते हुए कीर्ति ने ऐसे मुँह बनाया जैसे चाय नहीं कोई कड़वी दवाई पी  रही हो ,बोली - ससुराल का क्या है ?जहां रहने लग जाओ ,वहीं अपना घर हो जाता है।क्यों ,निखिल के मदर -फादर नहीं हैं ?पलक ने पूछा। कीर्ति बोली -अब छोडो ,इन बातों को। क्यों ,जब  जान -पहचान कर रहे हैं तो पूछने में क्या परेशानी है ?हम दोनों तो वैसे भी एक ही बिरादरी से हैं ,क्या पता कोई रिश्तेदारी ही निकल आये पलक मुस्कुराती हुई बोली। 

              कीर्ति न चाहते हुए भी ,बोली -अब तुमसे क्या छिपाना ?ससुरालवाले तो ऐसे ही होते हैं। ऐसे -कैसे ?मैं कुछ समझी नहीं ,क्या वो लोग तुम्हें तंग अथवा किसी भी तरह से परेशान करते थे ?पलक ने उसकी तरफ देखा। नहीं ,मैंने उन्हें ऐसा मौका ही नहीं दिया ,करते भी कैसे ?मैं तो निखिल के साथ ही इधर आ गयी और अब तो इतना आना -जाना भी नहीं रहा कीर्ति अपनी बातों को बड़े आत्मविश्वास के साथ बोली। क्यों, निखिल अपने घर फोन नहीं करता ?पलक बोली। शुरू में करते थे ,अब आपको क्या बताऊँ ?बेटा कमाने लग जाये तो माता -पिता की लार टपकने लगती है ,घर के खर्चे और जिम्मेदारियों का रोना रोने लगते हैं ,जैसे सारी  ज़िंदगी का ठेका इन्होंने ही ले लिया हो।  निखिल तो हैं ही सीधे ,जब तक मैं नहीं आयी ,इन्होंने अपने घर वालों को खूब भरा किन्तु मैंने आते ही इन्हें समझा दिया ,-'मेरे और बच्चों के प्रति भी तुम्हारी कुछ जिम्मेदारियां होंगी ,जितना भरना था ,भर दिया ,अब बस।रहस्य खोलते हुए , आप जानती हैं- ,उन्होंने तो बहु भी नौकरी वाली इसीलिए ढूँढी ,दोनों आदमी कमाएंगे और वे बैठकर खाएंगे। मैं तो उन 'कँगलों 'से पीछा छुड़ाकर आ गयी। जब नई -नई बात थी ,तब मैं फोन उठा ही लेती थी किन्तु अब तो बजता रहता है ,मैं नहीं उठाती। बड़ी परेशानी महसूस करते हुए कहती है -मैं तो बस ,अब उन लोगों से मतलब रखना ही नहीं चाहती। निखिल के परिवार में और कौन -कौन है पलक ने पूछा। एक उसकी बहन भी है ,सारा दिन भाभी -भाभी कहकर कान पका देती थी ,मुझे ऐसा लगता था , वो मीठी छुरी लगती है, मुझे । कहती होगी- कि कुछ भाभी से मिल जाये। मैं तो अब साड़ी कम ही पहनती हूँ ,सो मैंने , एक -दो बार जब मिली, साड़ी देकर अपना पिंड छुड़ाया।एक बार ऐसी साड़ी, मैंने आपकी बेटी को भी पहने देखा था ,पहले तो मैं चौंक गयी कि ये साड़ी इसके पास कहाँ से आई? फिर सोचा ,वो कहाँ रहती है और ये  कहाँ रहती होगी ?पलक कीर्ति की सभी बातें घ्यान  से सुन रही थी ,बोली -कभी -कभी पास रहते भी सालों नहीं मिल पाते ,और कभी दूर रहने वाले भी मिल जाते हैं ,तब लगता है, दुनिया कितनी छोटी है ? कभी किसी से मिलकर  लगता है कि हम पहले क्यों नहीं मिले ?और किसी से मिलकर लगता है ,हम मिले  ही क्यों ?क्या मतलब ?मैं कुछ समझी नहीं ,कीर्ति उसकी बातों का भाव न समझते हुए बोली। पलक बोली -इसमें न समझने वाली बात ही क्या है ?मैं कहना चाह रही थी,'' कि कभी -कभी अनजान भी अपने से लगने लगते हैं और अपने भी अनजाने नज़र आते हैं। हाँ ,ये तो तुम सही कह रही हो ,मैं अपना समझकर ही तुम्हें बातें बता रही हूँ  वरना  ऐसे ही हर किसी को कोई अपना दर्द नहीं सुनाता।उसकी बात सुनकर पलक मन ही मन मुस्कुराई और सोचने लगी -ये दर्द भी न कितना अज़ीब है ?जो दर्द में होता है ,वो कह नहीं पाता ,जो दर्द देता है ,उसे महसूस ही नहीं होता।''पलक बोली - अब तुम भी क्या कहोगी ? कि दीपावली के दिन  अपने घर बुलाकर  न जाने क्या -क्या पूछने लगी ?फिर भी एक प्रश्न मेरे मन में आ रहा है तो पूछ ही लेती हूँ ,क्या कभी उन लोगों ने तुम्हारे साथ कोई अनुचित व्यवहार किया है ?करके तो देखें ,जेल भेज देती ,कीर्ति आँखें तरेरते हुए बोली -व्यवहार तो कभी अनुचित नहीं किया ,तभी बचे हुए हैं। मीठा बोलते हैं, किन्तु उसमें मुझे उनके लालच की बू आती है ,कितना भी मीठा बोल लें किन्तु मैं उनके बहकावे में नहीं आती।
                 कीर्ति का फ़ोन बजा ,निखिल का फोन था ,वो कह रही थी -'हम आपके इंतजार में बैठे हैं ,उधर से कुछ बातें हो रही थीं जो कि पलक नहीं सुन पाई ,कीर्ति कह रही थी आपने खाना खा भी लिया और उसने उसे पलक के फ्लैट का नंबर और फ़र्स्ट फ्लोर बताया। पलक ने उसकी बातों से ही अंदाजा लगा लिया था कि निखिल खाना खा चुका है उसने भी तुरंत भोजन मेज़ पर लगा दिया। तभी कीर्ति बोली -वो तो हमें लेने आयेंगे ,खाना खा चुके हैं। मैं समझ गयी थी इसीलिए पहले ही  खाना लगा दिया। खाना खाये अभी कुछ क्षण ही बीते थे , तभी कीर्ति के फ़ोन  की घंटी फिर से बजी। कीर्ति -क्या आप नीचे ही खड़े हैं ?आप ऊपर नहीं आएंगे ,मेरी दोस्त से भी मिल लेते। फोन बंद करके बोली -अच्छा जी ,अब हम चलते हैं ,आपसे मिलकर बहुत अच्छा लगा ,एक बार फिर से दीपावली की शुभकामनायेँ ! दोनों बाहर छज्ज़े पर आती हैं ,नीचे देखती हैं ,बच्चे पहले ही दौड़कर ,अपने  पापा के पास जा चुके थे। पलक नीचे देखकर कहती है -ये है ,''कंगलों का बेटा '' कहकर हँसती है ,कीर्ति ने उसकी बात सुनकर पलक को देखा ,पलक बोली -यानि तुम्हारा पति। कीर्ति उसके इस व्यवहार को समझ नहीं पाई ,पलक उसकी हँसी उडा  रही थी ,अथवा निखिल पर व्यंग्य कर रही थी। वो अपने द्वारा बताई बातों पर मनन कर रही थी कि कहीं  मैंने उसे अपनी बातें बताकर कोई गलती तो नहीं कर दी। 

                 दो दिनों के त्योहारों के बाद ,रविवार की छुट्टी थी ,पलक ने कीर्ति को फ़ोन किया ,आज हमारी संस्था में जलसा है ,तुम भी आ जाना ,तुम देखना हमारी संस्था लोगों की किस तरह  करती है ?अपने पति और बच्चों को भी लाना। कीर्ति ने मना किया किन्तु पलक ने कहा -आज तो छुट्टी है कोई बहाना नहीं चलेगा । तीन बजे सभी तैयार होकर चल दिए ,वहां ग़रीब बच्चों ने अपने हाथ से बनाये सामानों की झांकी लगाई हुई थी।व्यर्थ , बेकार वस्तुओं से उपयोगी चीजें बनाई हुई थीं ,जो बच्चे पढ़ने में होशियार थे किन्तु पैसे की कमी के कारण, पढ़ नहीं पा  रहे थे ,पलक की संस्था ने उनकी शिक्षा में मदद की और उन बच्चों  ने भी उन्हें निराश नहीं किया अच्छे नंबरों से आगे बढ़े। ये सब देखकर कीर्ति को अच्छा लगा और अपने बच्चों को समझा रही थी। कुछ बच्चे नृत्य का कार्यक्रम प्रस्तुत कर रहे थे। अब तो कार्यक्रम का अंत होने को था तभी किसी ने घोषणा की कि हमारी संस्था गरीब बुजुर्गों की मदद के लिए भी हमेशा से ही तैयार रही है जो भी व्यक्ति यहां आये हैं और उनकी मदद करना चाहते है ,अपना सहयोग देंगे तो हमें अत्यंत प्रसन्नता होगी। कृपया सभी मंच के नजदीक आ जाएँ। कीर्ति भी चली गयी वो तो पलक की सहेली थी ,सबसे आगे उसे जगह मिली। कुछ गरीब माता -पिता जो स्वयं कमाकर खा रहे थे ,किसी के बच्चे नहीं थे किसी के बच्चों ने उन्हें छोड़ दिया था। कीर्ति ने भी अपना योगदान दिया ,उसके अंदर अहंकार घर कर गया था कि मैं भी बड़े लोगो की तरह मदद कर रही हूँ। कार्यक्रम अपनी चरम सीमा पर था तभी वो और उसका पति निखिल चौंक गए।  
















  
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

2 Comments

  1. 👌👌👏👏very truth Apne relation se bhagte dusro se friendship karate hai

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    1. thank you so much isi tarh protsahit kerte rhhiye

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