अभी तक आपने पढ़ा -कीर्ति अपने घर में ख़ुशी- ख़ुशी दीपावली का त्यौहार मनाती है ,अपनी सहेली पलक के घर भी रात के खाने पर जाती है ,वहाँ अपने परिवार के विषय में कुछ बातें कह देती है। उसके कुछ दिनों पश्चात ,पलक अपने पति निखिल के साथ ,उसकी संस्था के कार्यक्रम में जाती है। जब कार्यक्रम अपनी चरम सीमा पर था ,तभी दोनों पति -पत्नी चौंक जाते हैं ,अब आगे -
कार्यक्रम के अंत में ,तभी एक बुजुर्ग़ पति -पत्नी आते हैं ,पलक उनका परिचय देती है ,ये बुजुर्ग कोई ग़रीब नहीं वरन'' कँगले ''हैं। ये ऐसे कँगले हैं ,जिनका बेटा'' एक बड़ी मल्टी नेशनल कम्पनी ''में कार्यरत हैं ,उसकी बहु भी अच्छी सी कम्पनी में है। उन्हें देखकर दोनों पति -पत्नी के चेहरे की हवाइयाँ उड़ने लगीं ,कीर्ति निखिल से बोली -ये लोग ,यहां कैसे आये और पलक को कैसे मिले ?निखिल झुँझलाकर बोला -मुझे क्या मालूम ?मैं भी तो तुम्हारे साथ ही हूँ। उधर पलक भाषण दे रही थी -''ये लोग ऐसे माता -पिता हैं ,जिन्होंने अपने बेटे को अच्छे से अच्छे स्कूल ,कॉलिज भेजा और बड़ी पढ़ाई के लिए बाहर भी भेजा ,उसके उन खर्चों को उठाने के लिए ,अपनी जमा -पूँजी और थोड़ा कर्ज़ा भी लिया ताकि बेटा ,आने वाले कल में उन्नति कर सके। भविष्य में सफल होगा तो ये कर्ज़ा भी उतर जायेगा। हम अपने खर्चों में कमी कर लेंगे ,बेटे के अच्छे भविष्य के लिए इतना तो कर ही सकते हैं। उसकी ज़िंदगी तो संवर जायेगी। बेटा भी सफल हुआ ,माता -पिता के सपनों को नई उड़ान मिली ,वे उसके लिए एक सुंदर और पढ़ी -लिखी लड़की तलाशने लगे जो उनके बेटे के कंधे से कन्धा मिलाकर चले, इस महंगाई में ,बेटे को ही अकेले न जूझना पड़े। उनके जीवन का स्तर भी बढ़ेगा ,इसी सोच के साथ एक सफल लड़की से विवाह करवा दिया। पलक उस महिला की तरफ देखते हुए बोली -ये तो इतनी भावुक महिला हैं ,प्रसन्नता के कारण इन्होंने अपने गहने भी तुड़वाकर अपनी बहु के लिए बनवा दिये।
किन्तु आज के समय में ये लोग'' कँगले ''हैं ,पैसों से ही नहीं ,रिश्तों से भी'' कँगले ''हैं। इनके बहु -बेटा देश -विदेशों में घूमते हैं ,नौकर हैं ,गाड़ी है किन्तु इन लोगों के लिए समय और पैसा कुछ नहीं है। तभी कीर्ति का ध्यान पलक के शब्दों पर गया ,वो बार -बार उन्हें 'कँगले 'कह रही थी। उसे ध्यान आया ,ये शब्द तो स्वयं कीर्ति ने ही पलक के सामने अपने सास -ससुर के लिए बोले थे। उसके मन में प्रश्न कौंधा -क्या ये जानती है ?कि ये लोग ही मेरे सास -ससुर हैं। क्या इसने हमें बेइज़्जत करने के लिए बुलाया है ?इसे ये लोग कैसे मिले ?इस तरह के अनेक प्रश्न उसके मष्तिष्क में कौंधने लगे। पलक अब भी लोगों को भाषण दे रही थी -ये लोग इनकी बहु को पसंद नहीं ,क्योंकि उसे लगता है कि ये लोग उसके पति के पैसों के पीछे हैं लेकिन वो ये नहीं जानती ,जिसके साथ वो रह रही है ,वो इन्हीं ''कँगलों ''की संतान है। जिसकी कमाई पर अधिकार जता रही है ,इन्हीं की मेहनत और त्याग का नतीजा है। इन्होंने तो अपने बच्चों को जीवनभर का सुख दे दिया किन्तु इन्होंने क्या पाया ?उम्र के इस पड़ाव में ,अकेलापन ,उम्र के जितने भी बरस ये रहेंगे, उन दिनों में ,अपने बच्चे से दूरी ,बहु के रूखे व्यवहार को झेलना ही इनके भाग्य में बदा है।
मैं आप सभी से पूछना चाहती हूँ ,आप सभी लोग अपने बच्चों की अच्छे से अच्छे परवरिश करते हैं ,करना भी चाहते हैं ,क्यों ?ताकि इनका जीवन सफल हो ,इनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हैं ,ताकि ये बच्चे जब क़ामयाब हों तो हमें छोड़कर चले जायें और हमें देकर जाएँ ,सूनापन और अकेलापन।इस तरह तो कोई भी, अपने बच्चों के सफल होने की कामना न करे , किन्तु माता -पिता फिर भी इतने स्वार्थी नहीं होते ,बेटा यदि ऐसा करता है तो कहते हैं कि बहु के बहकावे में आ गया है किन्तु बहु भी तो एक औरत, एक माँ होती है फिर वो ये बात क्यों नहीं समझ पाती ?अपने माता -पिता के लिए दौड़कर अपने मायके जाती है किन्तु सास -ससुर से मतलब ही नहीं रखना चाहती।अपने मायके जाने की , उसे क्यों आवश्यकता पड़ती है? क्योंकि वहाँ भी एक बहु रहती है ,बेटी नहीं। बेटी ससुराल जाकर भी अपने माता -पिता के लिए चिंतित रहती है और बेटा क़रीब होकर भी दूर हो जाता है ,जो लड़की यहाँ बेटी है वही दूसरी जगह बहु ही बनकर रह जाती है। औरत एक और रिश्ते बदलते ही उसके रूप भी बदल जाते हैं। अब अंत में मैं यही कहना चाहूँगी -''कुछ लोग पैसे से बड़े होकर भी दिल से छोटे रहते हैं ,कुछ लोग पैसे से कमज़ोर होते हुए भी अपना दिल बड़ा कर जाते हैं। ''धन्यवाद !
धीरे -धीरे जलसा समाप्त हो जाता है ,लोगों की भीड़ भी कम होने लगती है ,कीर्ति उस भीड़ में अपने सास -ससुर को ख़ोज रही थी किन्तु वो कहीं नहीं दिखे ,न ही पलक का कोई अता -पता चल पा रहा था। कुछ समझ नहीं आया तो दोनों पति -पत्नी अपनी गाड़ी की और बढ़े ,तभी उन्हें गाड़ी में बैठते हुए निखिल को अपने माता -पिता दिखाई दिए ,उसने कीर्ति से बताया। कीर्ति ने उस तरफ देखा तो बोली -ये तो पलक की गाड़ी है। वे इससे पहले की कुछ सोच -समझ पाते, गाड़ी अपने स्थान से निकल चुकी थी। कीर्ति और निखिल भी अपने बच्चों के साथ गाड़ी में बैठ गए ,उनकी गाड़ी काली भीड़भाड़ वाली सड़क पर बचती -बचाती दौड़ रही थी उसमें बैठे बच्चे तो बाहर के दृश्यों में खो गए किन्तु उसके अंदर बैठे दो व्यक्ति ऐसे थे जो अनबूझ पहेली लिए ,अस्थिर चित्त लिए ,नई -पुरानी सभी स्मृतियों में ,अपने को ढूँढ रहे थे तभी निखिल बोला -क्या तुम जानती हो, ये पलक कौन और कहाँ से है ?कीर्ति बोली -मैं इसके विषय कोई विशेष बात नहीं जानती ,न ही मैंने इसकी कोई आवश्यकता ही समझी ,बस इतना पता है ,कि ये लोग भी हमारी ही बिरादरी के हैं। क्या ?निखिल चौंका। हाँ ,इसी कारण मैं इससे इतनी' क्लोज़' हो गयी , पर तुम चौंके क्यों ?मुझे लगता है ,जैसे मैंने पलक को कहीं देखा है, कुछ पहचाना सा चेहरा लगता है ,किन्तु कुछ भी ध्यान नहीं आ रहा। तभी कीर्ति बोली -तुम्हारा ध्यान किधर है ?हमारा घर तो पीछे रह गया। निखिल बोला -मैं सही जा रहा हूँ ,क्या तुम्हारे मन में प्रश्न नहीं उठा कि पलक का हमारे माता -पिता से क्या संबंध है ,उन्हें कैसे जानती है ?कीर्ति मन ही मन सोचने लगी -मेरे मन में तो अनेकों प्रश्न हैं किन्तु मैं अपने ही तरीक़े से उससे सब पूछना चाह रही थी। प्रत्यक्ष बोली -जानना तो चाहती थी किन्तु मैंने सोचा ,शायद कोई संयोग ही हो। वो उसे संयोगवश मिले हों। नहीं मैं ,पूरी बात जानना चाहता हूँ कहकर निखिल ने गाड़ी एक जगह रोक दी। कीर्ति ने देखा ,ये तो पलक का घर है। वो निखिल के पीछे -पीछे थी ,बच्चों को वहीं गाड़ी में बैठे रहने को कहकर वो ऊपर चले गए। ऊपर उसके माता -पिता बैठे चाय पी रहे थे ,उसने जाते ही उनके पैर छुये ,वे उन्हें देखकर फ़ीकी सी मुस्कान से मुस्कुरा दिए ,उन्होंने आशीर्वाद के लिए हाथ उठा दिए। आप लोग यहाँ कैसे ?अभी वो ये ही कह पाया था तभी अंदर से पानी लेकर पलक आई और बोली -ये लोग मेरे मौसी -मौसाजी हैं ,उसकी बात सुनकर दोनों पति -पत्नी चौंक गए। निखिल ! क्या तुमने मुझे पहचाना नहीं ?पलक दीदी जब मेरी शादी हुयी थी तब तुम अपने ''बोर्ड के पेपर'' दे रहे थे ,मेरी शादी को पंद्रह -बीस बरस हो गए कभी हमारा फिर से मिलना हुआ ही नहीं ,तो पहचानते कैसे ?बीस बरस में तो इंसान और परिस्थितियाँ सब बदल जाते हैं ।
आप लोग ,अब कैसे मिले ?निखिल ने पूछा। पलक बोली -मैंने मम्मी को फोन किया था ,तब मम्मी ने इनके विषय में बताया और ये भी बताया कि इनका बेटा ,यानि निखिल अपने बीवी -बच्चों के साथ इसी शहर में रहता है। ये लोग फोन भी करते हैं किन्तु इनका फोन लगता ही नहीं। मैंने इन्हें दीपावली पर ही बुला लिया था और जब मैंने इनसे फ़ोन नंबर और नाम -पता पूछा ,तो मुझे ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी क्योंकि कीर्ति को तो मैं अच्छे से जानती थी ,तुम्हें मैंने दीपावली पर अचम्भित करने के लिए ही बुलाया था ,मेरा उद्देश्य ,माता -पिता को त्यौहार के दिन ,अपने बच्चों से मिलवाने का था किन्तु तुम तो आये नहीं और कीर्ति जो रिश्ते में मेरी भाभी लगती है ,उसकी सोच सुनकर, मैं स्वयं ही अचम्भित हो गयी। मैं एक समाज -सेविका हूँ ,जब मैं दूसरों के दुःख -दर्द बाँटने का प्रयत्न करती हूँ ,तब ये रिश्ते तो मेरे अपने थे। मैं उम्र में तुम दोनों से बड़ी हूँ किन्तु उस दिन कीर्ति के शब्द उसकी सोच सुनकर लगा ,मैं तो जैसे जीवन के विषय में कुछ जानती ही नहीं ,इतने दिनों से, मैं उससे मिलती आई हूँ किन्तु उससे परिचित नहीं हो पाई।उस दिन उससे सही मायनों में परिचय हुआ। एक बात और यदि तुमने अपनी बहन -बेटी को कुछ दिया है ,उससे उसके घर का खर्चा नहीं चलता ,इससे उसके प्रति तुम्हारे मन में जो मान -सम्म्मान है ,वो उस घर की बेटी है ,दूसरे घर जाकर भी वो उसका अपना घर है उसमें उसके भाई -भाभी रहते हैं ,वो अपनापन और सम्मान चाहती है। अपने मन में एहसास जगाये रखना चाहती है कि अब भी वो मेरा अपना घर है ,मेरे अपने रहते हैं। वो साड़ी जो तुमने देखी, वो वास्तव में तुम्हारी ही दी थी जिसे मेरी बेटी ने तुम्हारी ननद से माँगा था और उसने वो ख़ुशी -ख़ुशी दे दी किन्तु मुझे इसके पीछे की सोच का बाद में पता चला तो मुझे बहुत दुःख हुआ। निखिल कीर्ति की तरफ देख रहा था कि उसने पलक दीदी से ऐसा क्या कह दिया ?कीर्ति नजरें झुकाये बैठी थी। पलक बोली -मैं अब कुछ नहीं कहना चाहती ,जो कुछ भी मुझे कहना था ,मैंने अपने भाषण में कह दिया। कीर्ति अपने किये व्यवहार और कहे शब्दों पर शर्मिंदा थी किन्तु उसका अहंकार इतना बड़ा था कि वो झुकना नहीं चाहता था। निखिल बोला -अब आप लोग अपने घर चलिए , दीदी , क्या मैं इन्हें अपने साथ ले जा सकता हूँ ?पलक बोली -तुम्हारे माता -पिता है ,जैसा भी इनका फैसला होगा ,ये जाने !
माता -पिता ने एक बार उनकी तरफ देखा ,बोले -बच्चे कहाँ हैं ?बहुत दिनों से उन्हें नहीं देखा। निखिल ने उन्हें ऊपर से ही आवाज़ दी। वो दौड़कर चले आये और बोले -ये लोग तो वही ग़रीब हैं ,उनकी बातें सुनकर निखिल की नजरें झुक गयीं और बोला -ये तो वहाँ ग़रीब होने का अभिनय कर रहे थे ,ये आप लोगों के दादी -दादा हैं ,इनके पैर छुओ !