ahsaas

फूलों ने ही नहीं ,
  काँटों ने भी छुआ है ,मुझे। 
   सुमन की सुरभि ही नहीं ,
       काँटों की चुभन का एहसास है, मुझे। 
 मैं कोरा कागज़ ही नहीं ,
     कुछ नई- पुरानी कहानियाँ भी ,रची -बसी हैं 
                                मुझमें        
 जो मेरी ख़ुशी -ग़म का एहसास दिलाती हैं ,मुझे। 
 तुमने सोच होगा ,
           मैं भाव हीन ,शून्य हूँ। 

 कुछ राग -रागिनियाँ बसी हैं मुझमें ,
      उन्हें छेड़ न पाने का अहसास है ,मुझे। 
  कुछ उमंगें हैं मेरी ,
        उलझन सी भरी है ,जिंदगी में। 
 उठ -  उठकर गिरना 
      गिरकर फिर उठने का एहसास है ,मुझे।
तुम मेरा प्यार ,
        तुम इस जीवन की मंजिल हो।
 तुम्हारा !
 इस मंजिल पर अकेले ,
                      छोड़ जाने का एहसास है ,मुझे।
नहीं तुम स्वप्न ,हकीक़त हो जिंदगी की ,
   हकीकत से नजरें ,
                 मिलाने का एहसास है ,मुझे। 
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

2 Comments

  1. Arth- puurn kavita. Bahot achchhi lagi. Komalta va saahityikita ka purn milan hai. Baaki kavita bhi padhata hun.

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