घर में दीदी आईं ,चहल -पहल हो गई। मेरी मौसी की लड़की थी ,जीजाजी के साथ आई थी। सब उनकी ख़ातिरदारी में लग गए ,मैं मोेहल्ले में भाजी बाँटने गई सब अपने ही कुनबे के लोग थे। भाजी का तो बहाना होता था, इससे सबको पता चल जाता था कि उनके घर बेटी' पाहुने 'के साथ ससुराल से आई है। कुनबे की सारी महिलाएँ इकट्ठा हो जाती ,कोई तो मेहमान की आवभगत में लग जाती ,कोई दूसरे चूल्हे पर बेटी के जाने की तैयारी में मावा निकल रही होती। एक उसके ले जाने के लिए संदूक खोलकर साड़ी निकाल रही थी दूसरी उन पर चिट लगा रही थी ये सास की ,ये जेठानी की आदि तैयारी में जुटी थीं ।
पाहुने घर में खाना खाने आये। सब औरतें उन्हें घेर कर बैठ गईं ,खाना खाने के बाद बातें करने लगीं। बातों ही बातों में एक ने मेरी तरफ इशारा करके कहा -अब इसका विवाह करना है ,कोई लड़का निग़ाह में हो, तो बताओ ,सत्रह साल की हो गई ,अगले साल ही इसका विवाह कर देंगे। मैं अपनी बात सुनकर वहाँ से भाग गई। दीदी एक दिन हमारे साथ रहकर अपनी ससुराल चली गईं ।
चार -पांच महीने बाद दीदी की चिट्ठी आई ,उसमें लिखा था -सबको प्रणाम ,कुसुम का अभी कहीं विवाह तय तो नहीं किया ,नहीं किया होगा तो मेरा देवर है, उसकी अभी नौकरी लगी है। आप लोग कहें ,तो उसकी बात चलाऊँ। ये भी बताना ,कि कुसुम कितनी पढ़ी है ?साथ में उसका फोटो भी भेज देना ,मैं भी अपने देवर का फोटो भेज रही हूँ। पत्र द्वारा जल्दी सूचित करना ,आपकी अपनी रानी। सबने पत्र के साथ जो फोटो आया था उस पर टूट पड़े फिर अपनी -अपनी राय देने लगे। मैं भी फोटो के इंतजार में एक कोने में खड़ी हो गई। जब सबने फोटो देख लिया तब मेरा नंबर आया ,तब तक वहाँ से भीड़ हट चुकी थी। मैंने एक नजर उस फोटो पर डाली ,फोटो छोटा सा था लेकिन उसमे जो भी लड़का था मुझे पसंद आ गया। सबकी राय लेकर ,सबसे सलाह करके घर वालों ने उन्हें भी पत्र लिख दिया। प्रिय बेटी रानी ,खुश रहो ,हमें तुम्हारा पत्र मिला ,फोटो भी। फोटो हम सबको पसंद आया। हम भी कुसुम का फोटो भेज रहे हैं ,कुसुम ने छटवीं क्लास पास की है क्योंकि यहाँ तो आठवीं तक के स्कूल हैं। आगे हमने पढाया नहीं ,तुम गांव का माहौल तो समझती ही हो चिट्ठी -पत्री लिख -पढ़ लेती है। फोटो भेज रहे हैं ,तुम्हारे देवर को बात पसंद आये तो आगे बात चलाना। अगली सर्दियों में इसका विवाह कर देंगे पत्र का उत्तर देना ,खुश रहो तुम्हारी मौसी चम्पा।
इस तरह मेरा विवाह अपनी मौसेरी बहन के देवर से तय हो गया। मैं भी सपने सजाने लगी कि अपने पति के साथ शहर में रहूँगी ,खुश हाल जीवन व्यतीत करुँगी ,ग्रामीण जीवन मुझे पहले से ही पसंद नहीं था। अब मेरे जीवन में बदलाव के मौक़े आ रहे थे। मेरी इच्छाएं उड़ान भर रही थी। फिल्में देखकर मैं भी ऐसा ही स्वतंत्र जीवन की तमन्ना कर बैठी। पति के साथ घूमना ,फिल्में देखना ,शहरी जीवन व्यतीत करना ,मात्र ये ही तो इच्छायें थीं मेरी। मेरी सहेलियों को तो मुझसे जलन होने लगी कि लड़का शहर में रहता है, नौकरी वाला है, तेरी किस्मत तो अच्छी निकली। इन्ही कल्पनाओँ के साथ मैं इनके घर में आ गई। सब सराह रहे थे कि जोड़ी बड़ी अच्छी है। मन ही मन मुझे अपनी किस्मत पर गर्व हो रहा था।
विवाह की रस्मों के बाद मैं इंतजार में थी कि ये कब कहें ?कि नौकरी पर चलने की तैयारी कर लो। धीरे -धीरे कई दिन बीत जाने पर मैंने पूछ ही लिया कि अपनी नौकरी पर कब जायेंगे ?इन्होंने बताया कि मैंने एक माह की छुट्टी ली है। मैं मन मसोसकर रह गई ,किसी से कुछ भी नहीं कहा।
इस बीच मेरी चाहले [पग फेरे ]की रस्म के लिए मैं अपने पीहर गई। सब पूछ रहे थे कि कब नौकरी पर जाओगे ?मैंने कहा -कि अगले महिने हम चले जायेंगे। सब खुश थे ,दस दिन बाद ये मुझे लेने आये, सब तैयारियों के साथ मैं फिर से अपनी ससुराल आ गई। जब इनके जाने का समय हुआ तो बोले -मैं अभी जाता हूँ वहाँ रहने का प्रबंध करके तुम्हें ले जाऊंगा ,उनकी बात सुनकर मेरे ऊपर जैसे बिजली गिर पड़ी। इतने दिनों से फिर क्यों मुझे उम्मीद दे रखी थी ?पहले भी तो ये बात बता सकते थे।उस दिन मैं कमरे में बंद रोती रही। दूसरा झटका इन्होंने मुझे जब दिया ,मेरे पास खर्चे के लिए भी पैसे नहीं थे तब मैंने इन्हें चिट्ठी लिखी। तब इन्होंने बताया कि पेेसे तो भिजवा दिए,भाई -भाभी से माँग लेना। मुझे बहुत गुस्सा आया कि मेरे बारे में सोचा ही नहीं। पैसे माँगूगी तो चार सवाल पूछते कि क्यों चाहिए ?मैंने पत्र लिखा ,तब तुम आये, अलग से पैसे भी दिए लेकिन साथ चलने को नहीं कहा। मैंने सोचा, कि चार महीने में भी इंतजाम नहीं कर पाए या करना नहीं चाहते। मुझे गुस्सा था कि झूठ बोलकर मुझे यहीं रखना चाह रहे थे।
मैं अपने तरीक़े से रहती थी जैसे शहर में महिलायें रहतीं। सजना -संवरना ,साफ -सुथरे रहना ,गाँव में तो महिलाओं के माथे पर बिंदी भी नहीं होती ,मुझे देखकर कहतीं -पति तो है भी नहीं यहाँ ,फिर किस लिए सजती हो ?क्यों मैं शादी -शुदा हूँ तुम्हारे बेटे नहीं ले गए तो इसमें मेरी क्या गलती ?मैं ठीक -ठाक भी न रहुँ। एक दिन पता चला कि पास के शहर में बड़ी अच्छी फ़िल्म लगी है, मैं अपने भतीजे के साथ जो उम्र में मेरे ही साथ का था ,उसके साथ चली गई, सबने मुँह बनाया पर मैंने किसी की परवाह नहीं की। जब मुझे गांव में रहते छः माह हो गए तब ये मुझे लेने आये लेकिन अब वो ख़ुशी नहीं थी। ये सुबह से शाम तक बाहर रहते ,इस बीच मैं गर्भवती हो गई न कहीं घूमना न ही कहीं जाना। सोचा इस बच्चे को जन्म देकर तब आराम से रहूँगी अभी बच्चे सालभर का भी नहीं हुआ और मैं दुबारा गर्भवती हो गई। एक बच्चा गोद में दूसरा पेट में तब मैंने कहा -कि मेरी तबियत भी ठीक नहीं रहती ,अकेली बच्चों को संभाल भी नहीं पाऊंगी ,मुझे गांव भेज दो। बाईस साल की उम्र में मैं दो बच्चों की माँ बन गई। जिम्मेदारी भी बढ़ गई।
बच्चों के साथ मैं फिर से तुम्हारे पास आई लेकिन तुमने मुझे समझा ही नहीं ,मैं फिर से गर्भवती हो गई अब मुझे बहुत गुस्सा आया कि इन्होंने मुझे मशीन समझ रखा है मैंने अपने गर्भपात के लिए देशी नुस्खे अपनाये जिससे मेरी तबियत बिगड़ गई और मैं गाँव आ गई। अब मैंने अपने बच्चों के भविष्य के बारे में सोचना शुरू किया। मैंने तुम्हारे दादा से कहा -बच्चे अब बड़े हो रहे हैं ,इनकी पढ़ाई पर भी ध्यान देना है। तुम्हारे दादा ने कहा -यहीं पढ़ लेंगे। तब मैंने कहा -गाँव में तो नहीं पढ़ाऊंगी ,मैं अपने बच्चों को। आप मुझे शहर में एक मकान लेकर दे दीजिये या पैसे दे दो ,मैं अपने -आप इंतजाम कर लूँगी। तुम्हारे दादा ने न ही मकान का इंतजाम किया , पैसे भी नहीं दिए वो गाँव के लोगों के लिए ही करना चाहते थे ,मुझे भी इसलिए गाँव में छोड़ा था ,कि मैं गाँव में रहकर उन लोगों की सेवा करती रहुँ। बाद में मुझे पता चला तो मुझे उन पर गुस्सा तो था ही लेकिन उनके धोखे से नफ़रत हो गई। प्यार तो हुआ ही नहीं था ,प्यार तो तब होता न जब हम एक दूसरे को समय देते ,एक दूसरे को समझते। मुझे लगता कि उन्होंने मुझे छला। अब मुझे उनसे कोई उम्मीद ही नहीं रही और मैंने अपने गहने बेचकर किस्तों पर मकान लिया ,अपने बच्चों को लेकर शहर में रही, खर्चे के लिए मैंने सिलाई भी की और अब मेरा रवैया तुम्हारे दादा के प्रति सख़्त हो गया। घर में कोई चीज देखते तो गांव में ले जाने का प्रयत्न करते।
सेवा निवृत होकर आये तो मैंने सोचा जब उम्र थी तब ही नहीं रहे साथ तो अब क्या करना ?गांव में ही रहो , अपने लोगों के साथ। जब गाँव के ही उन लोगों ने बेइज्जती करके भेजा तब यहाँ आये क्योंकि अब वो बीमार रहने लगे थे ,काम नहीं कर पाते थे। वो नाम के पति थे जिन्होंने कभी मुझे समझने की कोशिश ही नहीं की ,न ही मेरी भावनाओँ को ही कभी महत्व दिया। बस मेरी नजर में वो मेरे बच्चों के पिता थे और उनकी पेंशन और खेती की आमदनी में मैं अपने बच्चों का अधिकार समझती थी। अपने खर्च लायक तो मैं अब भी कमा लेती हूँ। तुम्हारे दादा बीमार थे तो उनके बच्चे संभालते मैं क्या करती इसमे? बहुयें आ गईं, पोते -पोती हो गए तो वे सेवा करेंगे ,मेरे करने से क्या ठीक हो जाते ?बस यही कहानी है तुम्हारे दादा -दादी की बताओ इसमें मेरी क्या गलती है क्या मैंने इच्छाएं कीं गलत थी ?मेरी उम्र में तो सभी सोचते हैं कि जिंदगी में मजे करें घूमे -फिरें या अपने बेहतरीन भविष्य के लिए सोचें। तुमने अपने दादा का पत्र पढ़ा मेरी भी कहानी सुनी। अब तुम्ही फैसला करो कौन सही था ?कौन गलत।
प्रिय पाठकों ,ये कहानी 'तुम कभी साथ नहीं थे 'और इससे पहली कहानी 'तुम कब ?मेरे साथ थीं 'इनमें पति -पत्नी की मनोदशा उनकी सोच उनकी परिस्थितियों का वर्णन किया गया है। अब फैसला आपको करना है कि दोनों में कौन सही है ?हमें भी बतायें। धन्यवाद !
पाहुने घर में खाना खाने आये। सब औरतें उन्हें घेर कर बैठ गईं ,खाना खाने के बाद बातें करने लगीं। बातों ही बातों में एक ने मेरी तरफ इशारा करके कहा -अब इसका विवाह करना है ,कोई लड़का निग़ाह में हो, तो बताओ ,सत्रह साल की हो गई ,अगले साल ही इसका विवाह कर देंगे। मैं अपनी बात सुनकर वहाँ से भाग गई। दीदी एक दिन हमारे साथ रहकर अपनी ससुराल चली गईं ।
चार -पांच महीने बाद दीदी की चिट्ठी आई ,उसमें लिखा था -सबको प्रणाम ,कुसुम का अभी कहीं विवाह तय तो नहीं किया ,नहीं किया होगा तो मेरा देवर है, उसकी अभी नौकरी लगी है। आप लोग कहें ,तो उसकी बात चलाऊँ। ये भी बताना ,कि कुसुम कितनी पढ़ी है ?साथ में उसका फोटो भी भेज देना ,मैं भी अपने देवर का फोटो भेज रही हूँ। पत्र द्वारा जल्दी सूचित करना ,आपकी अपनी रानी। सबने पत्र के साथ जो फोटो आया था उस पर टूट पड़े फिर अपनी -अपनी राय देने लगे। मैं भी फोटो के इंतजार में एक कोने में खड़ी हो गई। जब सबने फोटो देख लिया तब मेरा नंबर आया ,तब तक वहाँ से भीड़ हट चुकी थी। मैंने एक नजर उस फोटो पर डाली ,फोटो छोटा सा था लेकिन उसमे जो भी लड़का था मुझे पसंद आ गया। सबकी राय लेकर ,सबसे सलाह करके घर वालों ने उन्हें भी पत्र लिख दिया। प्रिय बेटी रानी ,खुश रहो ,हमें तुम्हारा पत्र मिला ,फोटो भी। फोटो हम सबको पसंद आया। हम भी कुसुम का फोटो भेज रहे हैं ,कुसुम ने छटवीं क्लास पास की है क्योंकि यहाँ तो आठवीं तक के स्कूल हैं। आगे हमने पढाया नहीं ,तुम गांव का माहौल तो समझती ही हो चिट्ठी -पत्री लिख -पढ़ लेती है। फोटो भेज रहे हैं ,तुम्हारे देवर को बात पसंद आये तो आगे बात चलाना। अगली सर्दियों में इसका विवाह कर देंगे पत्र का उत्तर देना ,खुश रहो तुम्हारी मौसी चम्पा।
इस तरह मेरा विवाह अपनी मौसेरी बहन के देवर से तय हो गया। मैं भी सपने सजाने लगी कि अपने पति के साथ शहर में रहूँगी ,खुश हाल जीवन व्यतीत करुँगी ,ग्रामीण जीवन मुझे पहले से ही पसंद नहीं था। अब मेरे जीवन में बदलाव के मौक़े आ रहे थे। मेरी इच्छाएं उड़ान भर रही थी। फिल्में देखकर मैं भी ऐसा ही स्वतंत्र जीवन की तमन्ना कर बैठी। पति के साथ घूमना ,फिल्में देखना ,शहरी जीवन व्यतीत करना ,मात्र ये ही तो इच्छायें थीं मेरी। मेरी सहेलियों को तो मुझसे जलन होने लगी कि लड़का शहर में रहता है, नौकरी वाला है, तेरी किस्मत तो अच्छी निकली। इन्ही कल्पनाओँ के साथ मैं इनके घर में आ गई। सब सराह रहे थे कि जोड़ी बड़ी अच्छी है। मन ही मन मुझे अपनी किस्मत पर गर्व हो रहा था।
विवाह की रस्मों के बाद मैं इंतजार में थी कि ये कब कहें ?कि नौकरी पर चलने की तैयारी कर लो। धीरे -धीरे कई दिन बीत जाने पर मैंने पूछ ही लिया कि अपनी नौकरी पर कब जायेंगे ?इन्होंने बताया कि मैंने एक माह की छुट्टी ली है। मैं मन मसोसकर रह गई ,किसी से कुछ भी नहीं कहा।
इस बीच मेरी चाहले [पग फेरे ]की रस्म के लिए मैं अपने पीहर गई। सब पूछ रहे थे कि कब नौकरी पर जाओगे ?मैंने कहा -कि अगले महिने हम चले जायेंगे। सब खुश थे ,दस दिन बाद ये मुझे लेने आये, सब तैयारियों के साथ मैं फिर से अपनी ससुराल आ गई। जब इनके जाने का समय हुआ तो बोले -मैं अभी जाता हूँ वहाँ रहने का प्रबंध करके तुम्हें ले जाऊंगा ,उनकी बात सुनकर मेरे ऊपर जैसे बिजली गिर पड़ी। इतने दिनों से फिर क्यों मुझे उम्मीद दे रखी थी ?पहले भी तो ये बात बता सकते थे।उस दिन मैं कमरे में बंद रोती रही। दूसरा झटका इन्होंने मुझे जब दिया ,मेरे पास खर्चे के लिए भी पैसे नहीं थे तब मैंने इन्हें चिट्ठी लिखी। तब इन्होंने बताया कि पेेसे तो भिजवा दिए,भाई -भाभी से माँग लेना। मुझे बहुत गुस्सा आया कि मेरे बारे में सोचा ही नहीं। पैसे माँगूगी तो चार सवाल पूछते कि क्यों चाहिए ?मैंने पत्र लिखा ,तब तुम आये, अलग से पैसे भी दिए लेकिन साथ चलने को नहीं कहा। मैंने सोचा, कि चार महीने में भी इंतजाम नहीं कर पाए या करना नहीं चाहते। मुझे गुस्सा था कि झूठ बोलकर मुझे यहीं रखना चाह रहे थे।
मैं अपने तरीक़े से रहती थी जैसे शहर में महिलायें रहतीं। सजना -संवरना ,साफ -सुथरे रहना ,गाँव में तो महिलाओं के माथे पर बिंदी भी नहीं होती ,मुझे देखकर कहतीं -पति तो है भी नहीं यहाँ ,फिर किस लिए सजती हो ?क्यों मैं शादी -शुदा हूँ तुम्हारे बेटे नहीं ले गए तो इसमें मेरी क्या गलती ?मैं ठीक -ठाक भी न रहुँ। एक दिन पता चला कि पास के शहर में बड़ी अच्छी फ़िल्म लगी है, मैं अपने भतीजे के साथ जो उम्र में मेरे ही साथ का था ,उसके साथ चली गई, सबने मुँह बनाया पर मैंने किसी की परवाह नहीं की। जब मुझे गांव में रहते छः माह हो गए तब ये मुझे लेने आये लेकिन अब वो ख़ुशी नहीं थी। ये सुबह से शाम तक बाहर रहते ,इस बीच मैं गर्भवती हो गई न कहीं घूमना न ही कहीं जाना। सोचा इस बच्चे को जन्म देकर तब आराम से रहूँगी अभी बच्चे सालभर का भी नहीं हुआ और मैं दुबारा गर्भवती हो गई। एक बच्चा गोद में दूसरा पेट में तब मैंने कहा -कि मेरी तबियत भी ठीक नहीं रहती ,अकेली बच्चों को संभाल भी नहीं पाऊंगी ,मुझे गांव भेज दो। बाईस साल की उम्र में मैं दो बच्चों की माँ बन गई। जिम्मेदारी भी बढ़ गई।
बच्चों के साथ मैं फिर से तुम्हारे पास आई लेकिन तुमने मुझे समझा ही नहीं ,मैं फिर से गर्भवती हो गई अब मुझे बहुत गुस्सा आया कि इन्होंने मुझे मशीन समझ रखा है मैंने अपने गर्भपात के लिए देशी नुस्खे अपनाये जिससे मेरी तबियत बिगड़ गई और मैं गाँव आ गई। अब मैंने अपने बच्चों के भविष्य के बारे में सोचना शुरू किया। मैंने तुम्हारे दादा से कहा -बच्चे अब बड़े हो रहे हैं ,इनकी पढ़ाई पर भी ध्यान देना है। तुम्हारे दादा ने कहा -यहीं पढ़ लेंगे। तब मैंने कहा -गाँव में तो नहीं पढ़ाऊंगी ,मैं अपने बच्चों को। आप मुझे शहर में एक मकान लेकर दे दीजिये या पैसे दे दो ,मैं अपने -आप इंतजाम कर लूँगी। तुम्हारे दादा ने न ही मकान का इंतजाम किया , पैसे भी नहीं दिए वो गाँव के लोगों के लिए ही करना चाहते थे ,मुझे भी इसलिए गाँव में छोड़ा था ,कि मैं गाँव में रहकर उन लोगों की सेवा करती रहुँ। बाद में मुझे पता चला तो मुझे उन पर गुस्सा तो था ही लेकिन उनके धोखे से नफ़रत हो गई। प्यार तो हुआ ही नहीं था ,प्यार तो तब होता न जब हम एक दूसरे को समय देते ,एक दूसरे को समझते। मुझे लगता कि उन्होंने मुझे छला। अब मुझे उनसे कोई उम्मीद ही नहीं रही और मैंने अपने गहने बेचकर किस्तों पर मकान लिया ,अपने बच्चों को लेकर शहर में रही, खर्चे के लिए मैंने सिलाई भी की और अब मेरा रवैया तुम्हारे दादा के प्रति सख़्त हो गया। घर में कोई चीज देखते तो गांव में ले जाने का प्रयत्न करते।
सेवा निवृत होकर आये तो मैंने सोचा जब उम्र थी तब ही नहीं रहे साथ तो अब क्या करना ?गांव में ही रहो , अपने लोगों के साथ। जब गाँव के ही उन लोगों ने बेइज्जती करके भेजा तब यहाँ आये क्योंकि अब वो बीमार रहने लगे थे ,काम नहीं कर पाते थे। वो नाम के पति थे जिन्होंने कभी मुझे समझने की कोशिश ही नहीं की ,न ही मेरी भावनाओँ को ही कभी महत्व दिया। बस मेरी नजर में वो मेरे बच्चों के पिता थे और उनकी पेंशन और खेती की आमदनी में मैं अपने बच्चों का अधिकार समझती थी। अपने खर्च लायक तो मैं अब भी कमा लेती हूँ। तुम्हारे दादा बीमार थे तो उनके बच्चे संभालते मैं क्या करती इसमे? बहुयें आ गईं, पोते -पोती हो गए तो वे सेवा करेंगे ,मेरे करने से क्या ठीक हो जाते ?बस यही कहानी है तुम्हारे दादा -दादी की बताओ इसमें मेरी क्या गलती है क्या मैंने इच्छाएं कीं गलत थी ?मेरी उम्र में तो सभी सोचते हैं कि जिंदगी में मजे करें घूमे -फिरें या अपने बेहतरीन भविष्य के लिए सोचें। तुमने अपने दादा का पत्र पढ़ा मेरी भी कहानी सुनी। अब तुम्ही फैसला करो कौन सही था ?कौन गलत।
प्रिय पाठकों ,ये कहानी 'तुम कभी साथ नहीं थे 'और इससे पहली कहानी 'तुम कब ?मेरे साथ थीं 'इनमें पति -पत्नी की मनोदशा उनकी सोच उनकी परिस्थितियों का वर्णन किया गया है। अब फैसला आपको करना है कि दोनों में कौन सही है ?हमें भी बतायें। धन्यवाद !



