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पिया खुशमिज़ाज ख्यालों में खोई रहने वाली लड़की थी ,वो एक आलीशान जिंदगी जीने की इच्छा रखती थी। जब भी वो मेरे पास आती ,तभी ऐसे व्यवहार करती जैसे किसी बड़े घराने की लड़की हो। वो कहती -'राधा मेरा जन्म कुछ अलग करने के लिए हुआ है ,ओर लोगों से हटकर ,कुछ स्पेशल। वो कहती -मेरी शादी के बाद देखना मेरे ठाठ ,बिल्कुल ऐसे रहूँगी ,जैसे मेरी बुआ जी रहती हैं। खूब सारे गहने, हाथों में बड़ी -बड़ी अंगूठियां ,बड़ा सा रानीहार और महगें -मंहगें कपड़े ,तब देखना मेरे ठाठ ,और कहते -कहते ख्यालों में खो जाती।
                     लेकिन ये सिर्फ़ उसकी एक सोच थी ,जो वास्तविकता से परे थी। जब वो छोटी थी ,तो उस पर अपनी बुआओँ के रहन -सहन का काफी प्रभाव पड़ा। लेकिन ये बीते जमाने की बात हो गई ,अब तो वो भी नहीं पहनतीं। समय बदल गया ,लेकिन पिया पर उस समय का प्रभाव इतना अधिक था कि वो उस समय को आज में जी रही थी। इन इच्छाओं के बीच ,उसने अपने माता -पिता को दो -जून रोटी के लिए संघर्ष करते देखा। घर खर्चों के लिये विचार -विमर्श करते देखा ,एक खर्चे की पूर्ति के लिये अन्य ख़र्चों से समझौता करते देखा। उधारचुकाने के लिए माँ के गहनों को गिरवी रखते देखा। 
                                                 ऐसी परिस्थिति में उसकी इच्छाओं का कोई मूल्य नहीं था। अपनी इच्छाओ को कभी उभरने नहीं दिया। समय और अर्थ दोनों से समझौता किया। घरवालों को कभी उसने अपनी सोच का या विचारो कभी पता नहीं लगने दिया। आभूषण के नाम पर उसने पाँच या दस रुपए के प्लास्टिक के टॉप्स खरीदकर पहने ,लेकिन उसने अपनी कुलबुलाती इच्छाओँ को मरने  दिया उसे लगता था ,कि  अच्छा समय आएगा और जितनी भी उसकी हसरतें है ,पूरी होंगी। इस उम्मीद के साथ वो अपने माता- पिता के संघर्ष में सहयोग देने लगी। दिन ,महीनें ,साल गुज़रते गए ,लेकिन संघर्ष ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था। उसे अपने ख़्वाब जिंदगी के धरातल पर धूल -धूसरित नज़र आ रहे थे। मन में जो एक 'सम स्पेशल 'भाव थे वे न जाने कहाँ ग़ुम होते जा रहे थे ?अक़सर सोचा करती कि पैसा कहाँ से आये ? इतने साल हो गये कमाते- कमाते लेकिन इतनी कम आमदनी में सिर्फ़ घर में थोड़ा सहयोग ही हो पाता है।
                       मेरे पास आकर वो कहा करती -राधा ये अमीर लोग कहाँ से इतना पैसा लाते हैं ? कैसे कमाते हैं ?यहाँ तो पैसा कमाते -कमाते लगता है ,उमर ही निकल जाएगी। हसरतें यूँ ही दम तोड़ देंगी। जिंदगी शायद यूँ ही निकल जाएगी। अपनी बेबसी पर सोचकर वो यूँ ही शांत बैठी रहती ,फिर अचानक कुछ सोचकर चल देती। एक दिन उसने बताया -कि उसके रिश्ते की कहीं बात चल रही है। मेरे पूछने पर ,कहाँ और कैसे ?उसने बताया -कि रिश्ता लड़के वालों की तरफ से ही आया है ,उनकी कोई माँग भी नहीं है। अमीर नहीं ,भले लोग है। देखा है न लड़की कमाती है। यहॉँ कमाती हूँ ,वहाँ भी कमाऊंगी। बैठा कर कोई नहीं खिलाता ,सोचती हूँ ,मना कर दूँ। फिर सोचती हूँ - कि शादी कर ही लूँ ,जिंदगी में कुछ तो बदलाव आएगा ,यहाँ तो लगता है कुछ होने वाला नहीं। शायद वहाँ ही मेरी जिंदगी बदल जाए।
        माँ ने भी समझाया -अच्छा ससुराल हर किसी को नहीं मिलता। अच्छा समय आ जाये शायद ,तुम क्यों हमारे लिए अपनी जिंदगी बर्बाद करती हो ,हमारी किस्मत में जो लिखा ,वो भोगेंगे। पति के प्यार स्नेह से अपनी नये जीवन में प्रवेश करो। एक नई उम्मीद के साथ पिया ने हां कर दी नए जोश नई उमंग के साथ उसने ससुराल में प्रवेश किया। शुरू -शुरू में तो सब ठीक लगा ,लेकिन धीरे -धीरे वास्तविकता सामने आने लगी। वो ही खर्चे ,कम आमदनी। बढ़ती महगाई ,बढ़ते खर्चे। फिर भी वो परिवार के लोगों के साथसंघर्ष  जीवन में आगे बढ़ने लगी।
                    उन्हीं दिनों में पिया अपनी एक रिश्तेदारी में शादी में गई। वहाँ उसने अपनी एक रिश्तेदार को देखा ,जो रिश्ते में मौसी लगती थीं। उन्होंने काफी ज़ेवर पहने थे।पिया उनकी  ओर खींचती चली गई ,गहने देखकर शायद उसे अपनी बातें याद आ गई या फिर वो उन्हें नजदीक से देखना चाहती थी। बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ। वे बच्चों व  पति से मिलकर बहुत खुश हुईं। बातों ही बातों में मैंने बताया [तब तक मैं उनसे काफी घुल-मिल गई थी ] मेरे पास एक भी गहना नहीं है ,वे हँसकर बोली -  "तेरे पास तो  इतने सुन्दर व प्यारे गहनें है ,तेरे बच्चे तेरा पति ,एक औरत के लिये ये ही उसके कीमती ज़ेवर हैं। ये शब्द कहते उनकी आखें भर आई।ये जो गहने मैं  पहन रही हूँ ,ये तो मात्र दिखावा है। असली ख़ुशी तो तेरे पास है। इन गहनों की जगह तो नक़ली गहनें ले सकते हैं लेकिन तेरे पास जो गहनें उनकी जगह कोई नहीं ले सकता।  बाद में किसी ने बताया -कि  एक औलाद के लिए इन्होंने कहाँ -कहाँ धक्के नहीं खाये। सब कुछ छोड़ने को तैयार थी।पर भगवान ने इनकी नहीं सुनी। 
                                                तब मैंने सोचा -जिस चीज के लिए पूरे जीवन संघर्ष किया वो तो अपनी कभी अपनी थी ही नहीं और जो पास था उस पर कभी ध्यान ही नहीं दिया। आज उसने पहली बार नज़र भरकर अपने बच्चों व पति को देखा। अभी तक तो मात्र ज़िम्मेदारी समझकर काम करती थी ,आज उसे सब कुछ अच्छा व नया लग रहा  था उसे लग रहा था ,जैसे आज ही उसका नया जन्म हुआ है। आज उसे जीवन की नई सीख़ जो मिली थी।







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मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

1 Comments

  1. Yes.. sometimes we seek happiness in the outer world and in some far distant dreamy world of ours while actually it is just around us in the form of our beloved ones whom we take granted most of the time .. this story is a reminder of this fact!!

    Kudos to the writer !!

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