Mysterious nights [part 126]

 हैलो जी !क्या हो रहा है ? मुस्कुराते हुए गर्वित ने पूछा। 

कुछ नहीं, किसी की यादों में गुम हूँ ,शायराना अंदाज में रूही ने जबाब दिया , 

हमें भी तो पता चले ,वो ख़ुशनसीब कौन है ?

है, एक जिसने मेरी नींदें चुराई हैं ,मेरा चैन चुराया है ,फोन की स्क्रीन में गर्वित को देखते हुए रूही कह रही थी। 


फिर तो वो कोई बहुत बड़ा चोर है। 

किन्तु वो तो कहता है -ठाकुर खानदान से हैं, हमसे कोई गलत की उम्मीद मत रखना, तब उससे यह इतनी बड़ी गलती कैसे हो गई ?ओहो ! उसने तो ठाकुर खानदान को बट्टा लगा दिया, जो चोरी- चकारी पर उतर आया। 

 इससे तो ठाकुर खानदान की शान बढ़ती है और हम उसी शान को बढ़ा रहे हैं, हसीनों का दिल चुराना, उनके दिल में घर कर लेना, उनको, उन्हीं से चुरा लेना, यही तो हमारा काम है। 

तब यह ठाकुर, इस रूही को कब चुरा कर ले जाएगा ?बेचारी को कब तक उस चोर की प्रतीक्षा करनी होगी। 

इस तरह चोरी से नहीं, बड़े शान से लेकर जाएंगे, हमारा काम दिल चुराना है, किसी की बेटी को नहीं, यह कार्य हम शान से करते हैं और शान से ही डॉक्टर साहब की बेटी को लेकर जाएंगे ,समाज के सामने उन्हें अपने दिल की ही नहीं ,उस हवेली की भी रानी बनाएंगे। 

किंतु उससे पहले एक बार मुझे मेरी ससुराल तो दिखा देते, मुझे उस हवेली को देखने की बहुत इच्छा हो रही है, मुंह बनाते हुए रूही ने कहा। 

ऐसे तो हमारे घर में, बिना विवाह के कोई दुल्हन कदम नहीं रखती। 

ज़नाब !अभी आप भूल रहे हैं ,हम दोस्त हैं ,दोस्ती के नाते,  बिना विवाह के भी कोई लड़की जा सकती है।

 अच्छा ! तुम कह रही हो तो.....  एक बार तुम्हारी ससुराल तुम्हें दिखा ही देते हैं ,एहसान सा करते हुए गर्वित कहता है। 

 वही तो मैं चाहती हूं, कि जहां मुझे जाना है, उस ससुराल को नजर भर कर देखना चाहती हूँ और फिर उसके लिए तैयार भी तो होना है। 

ऐसी कोई तैयारी नहीं करनी है, जब तुम इस घर में आओगी तो तुम्हें बेटी वाला प्यार मिलेगा। एक बार इस घर में आ गई तो दोबारा जाने का नाम नहीं लोगी। बस मैं तो, इसी प्रतीक्षा में हूं , कब तुम्हारी पायल की झंकार हमारे आंगन में गूंजेगी ?

तुम सही कह रहे हो, यह पायल बजने को आतुर हो रही है ,फिर देर किस बात की है ? आकर मेरी मम्मी -पापा से बात कर लो ! अच्छा चलो, यह सब छोड़ो, पहले यह बताओ !तुम ,मुझे मेरी ससुराल कब दिखा रहे हो ? एक बार देख तो लूँ। 

क्यों, बेकरार हो रही हो ? जब यहां रहने के लिए, आ ही जाओगी और  हवेली की मालकिन भी बनोगी ''एक बार ही आना और यही कि होकर रह जाना।'' 

फिर वही बात... नहीं, मुझे अभी देखना है, मेरा मतलब है ,शादी से पहले अपनी ससुराल देखना चाहती हूं,तुम क्या दक़ियानूसी विचारों में पड़े हो ? क्या, तुम्हारे घर वालों को कोई आपत्ति होगी ?या तुम ही नहीं ले जाना चाहते, ज़िद करते हुए रूही ने पूछा ।  वैसे तो तुम कह रहे थे-' कि मेरे घरवाले बड़े नवीन विचारों के हैं तो घर की होने वाली बहू को, उस घर में पहले आने से क्या उन्हें कोई आपत्ति हो सकती है ? अभी उनसे मेरा परिचय भी नहीं हुआ है, कोई भी बहाना बना देना ,मेरी दोस्त है ,बाद में शादी की बात कर लेना। 

ओहो !अपनी ससुराल से अभी से इतना लगाव !कुछ सोचते हुए, गर्वित बोला -किंतु मैंने ,मम्मी को तो पहले ही बता दिया है। 

तो क्या हुआ ? कह देना मैं अपनी दोस्त को एक बार घर लाना चाहता हूं किंतु मेरा नाम मत बताना  !

ओहो !वाह जी वाह ! चोरी भी कराना चाहती हो और चोर कहलाना भी नहीं चाहती हो। 

अब तुम बातें मत बनाओ ! बताओ !मुझे लेने के लिए कब आ रहे हो ?

 तुम कहो, तो कल ही बारात लेकर आ जाऊँ  !एक आँख दबाते हुए गर्वित ने शरारत से कहा। 

मैं बारात की बात नहीं कर रही हूं , हवेली में घूमने की बात कर रही हूं।

 ठीक है, मैं कोशिश करता हूं।

 कोशिश नहीं, पक्का -पक्का मुझे ले जाना है।

 मैं शाम को फोन करके तुम्हें बताता हूं, कब लेने आ रहा हूं ?

ठीक है, रूही प्रसन्न हो गई ,अपनी बात के मनते ही बोली - बाय !अब हम तभी मिलेंगे जब तुम मुझे लेने आओगे। 

क्या ?इस बीच फोन भी नहीं उठाओगी, हंसते हुए गर्वित ने पूछा। 

वह तो उठाना ही पड़ेगा, वरना मुझे पता कैसे चलेगा ?तुम , मुझे लेने आ रहे हो, अच्छे से तैयार भी तो होना है, सासू मां पहली बार देखेंगी, उन पर अपना प्रभाव भी तो जमाना है। ठीक है, अब फोन रखो !

 पहले तुम रखो ! मेरा तो तुमसे बात करते हुए दिल ही नहीं भरता। 

मैं बंद नहीं करूंगा। 

तो जाओ, मैं भी नहीं करूंगी।

 तो चलो !बातें करते रहते हैं,हंसते हुए गर्वित अपने घर के सोफे पर इत्मीनान से लेट गया। 

 तभी नीचे से, ताराजी ने आवाज लगाई -हां आई ,मम्मी !आ रही हूं , रूही ने वहीं बैठे -बैठे ही जवाब दिया।

 अब तो करोगी,मुस्कुराते हुए गर्वित ने कहा। 

 नहीं, अभी भी नहीं करूंगी, पहले तुम्हें ही फोन काटना होगा। जल्दी काटो !मुझे मम्मी बुला रहीं हैं ,उनसे मिलने भी जाना है। कहेंगीं - जब से इस फोन दिलवाया है, तब से सारा दिन फोन पर लगी रहती है।

 अच्छा बाबा ! तुम जीती मैं हारा, एक 'किस ' तो दे दो !

धत कहते हुए , कहते हुए रूही ने फोन काट दिया और दौड़कर तारा जी के पास पहुंची  और तारा जी से बोली - अच्छा हुआ ,आपने मुझे बुला लिया वरना वो अभी और बातें करने वाला था।

क्या तू उस लड़के से बातें कर रही थी ?

हाँ ,उसकी हवेली में जाने के लिए कह रही थी किन्तु बहुत चालाक है ,आसानी से कुछ भी बताने वाला नहीं है और न ही ले जाना चाह रहा था। , 

बिना कहे ही, तुमने बहुत सारी बातें कह दीं , अब क्या ?

अभी भी मंजिल दूर है। 

 वह तुम्हें कब ले जाने आएगा ?

 वह तो बारात लेकर आना चाहता है, किंतु मैंने कहा - विवाह से पहले, उस हवेली में एक बार जाकर देखना चाहती हूं। वहां अवश्य ऐसा तो कुछ हुआ था, जो मुझे स्मरण नहीं रहा किंतु कुछ बहुत ही बुरा हुआ होगा तभी तो मैं आज इस हालत में हूं। 

हवेली में जाकर ,तुम क्या करना चाहती हो ?

 मैं सोच रही हूं, वहां पहुंचकर ,शायद कुछ स्मरण हो आये।

ऐसा तुम क्यों चाहती हो ? क्या तुम जानती हो? जो भी तुम्हें स्मरण होगा वह दुख के सिवा तुम्हें कुछ नहीं देगा,उदास स्वर में तारा जी ने कहा।  

भले ही मुझे दुख मिले, किंतु सच्चाई की तह तक में पहुंचना चाहती हूं कि आखिर इन लोगों ने मेरे साथ ऐसा क्या किया होगा ?

ठीक है, जैसी तुम्हारी इच्छा !


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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