Rangeen tasvir

भानु अपने जीवन में आगे बढ़ रहा था, उसके माता-पिता का सपना था-' कि वह एक काबिल, योग्य नागरिक बने और भानू भी अपने माता-पिता के सपनों को पूरा करना चाहता था। अब जिंदगी तो सभी की परीक्षाएं लेती ही है।  शायद, भानु की भी जिंदगी की परीक्षा का समय आ गया था। जब भानु 12वीं क्लास में आया, अचानक ही उसका सामना एक सुंदर लड़की' निर्मला 'से हुआ, वह उस लड़की को देखकर जैसे सपनों में खो गया।  उसे देखकर उसके मन में एक सुंदर' रंगीन तस्वीर' उसकी आंखों के सामने घूमने लगी। वह उसके सपनों में खो गया , उससे मिलकर जैसे उसकी ज़िंदगी रंगीन हो गयी। इस उम्र में ऐसा होना स्वाभाविक है। भानु नहीं जानता था, कि वह लड़की किसी बड़े कारोबारी, की बेटी है और स्वभाव से, बड़ी जिद्दी, कठोर और खर्चीली है। 


प्यार तो प्यार है, भानु को उससे प्यार हो गया था, निर्मला को जब इस बात का पता चला, तो उसे अपने आप पर गर्व हुआ और सोचने लगी -लड़का तो बुरा नहीं है , उसकी अन्य सहेलियों ने भी उसे बतलाया-कि  भानु एक सीधा-साधा प्यारा नौजवान है, उसके जीवन के कुछ सपने हैं, उन्हें वह पूरा करना चाहता है।

 कोई बात नहीं, लापरवाही से निर्मला ने अपनी सहेलियों को जवाब दिया और बोली -'मैं भी उससे प्यार करने लगी हूं और अब मैं उसकी प्रतीक्षा करूंगी ,जब तक वह मेरे माता-पिता का दामाद बनने लायक नहीं हो जाता। निर्मला को उसकी सहेलियों के माध्यम से भानु के दिल का हाल पता चला किन्तु भानु अपने दिल की बातें  निर्मला से नहीं कहा पाया। 

 एक दिन निर्मला ने ही, उससे अपने दिल की बात कही, निर्मला से बात करके भानु को बहुत अच्छा लगा। उसे लगा- कितनी प्यारी लड़की है ? जो मैं न कह सका इसने कह दिया और उसकी नजरों में निर्मला को देखकर जो रंगीन तस्वीर छपी थी वह धीरे-धीरे स्पष्ट सी होने लगी थी। अक्सर वह निर्मला से मिलने लगा और उनके बीच बहुत सी बातें होतीं। प्रेम में निर्मला भी जैसे अपनी आदतें और व्यवहार भूल सी गयी।  

कुछ वर्षों की प्रतीक्षा के पश्चात  निर्मला और भानु का विवाह हो गया दोनों ही परिवार खुश थे, निर्मला के परिवार को एक सुंदर, पढ़ा- लिखा और योग्य दामाद मिल गया था। भानु के परिवार को भी, सुंदर, पैसे वाली पत्नी  मिल गई थी। कल्पनाओं में और वास्तविकता में बहुत अंतर होता है , इंसान कोई भी कल्पना अपनी इच्छा के अनुसार कर लेता है लेकिन जिंदगी उसे वास्तविकता का ज्ञान देती है। यही बात अब भानु और निर्मला के साथ हुई। जब निर्मला, भानु के घर आई और उसे अपने उत्तरदायित्वों  का एहसास हुआ  तब वह जैसे आसमान से नीचे आ गई।

'सपने' कितने खूबसूरत और रंगीन होते हैं ? किंतु जिंदगी उन रंगों में सच्चाई का रंग भरती है, तो कई बार वे काल्पनिक रंग फीके पड़ जाते हैं। हालांकि निर्मला ने भानु के प्यार के लिए अपने को बदलना चाहा लेकिन जिसकी जैसी फितरत होती है कभी न कभी बाहर आ ही जाती है। अब जैसे -जैसे प्यार का बुखार उतरा ,धीरे-धीरे, निर्मला का  जिंदगी के वास्तविकता से परिचय होने लगा और वह सपनों की दुनिया से जब बाहर आई तो उसका क्रोध , उसका जिद्दीपन, उसके खर्चे सब बाहर आए। 

अब निर्मला को एहसास होने लगा कि उसने भानु से विवाह करके कितनी बड़ी गलती की है ? वह तो इस घर में आकर जैसे कैद हो गई है ,क्या उसके बच्चों की मां बनना और उसके मां-बाप सेवा करना ही उसके जीवन का उद्देश्य रह गया है ? उस परिवार में, अपने को बंधन में महसूस करने लगी। धीरे-धीरे दोनों पति-पत्नी में झगड़े होने लगे, कुछ इच्छाएं, समय के साथ दम तोड़ती नजर आती, तो कुछ इच्छाएं जन्म लेतीं, उनके पूर्ण न होने पर, परिवार में फिर से झगड़े बढ़ते हालांकि भानु बहुत परिश्रम कर रहा था कि मैं अपने परिवार की हर सुख -सुविधा का ख्याल रखूँ किंतु वह किसी को खुश नहीं कर पा रहा था विशेष रूप से निर्मला को। 

निर्मला को देखकर जो उसके मन में एक'' रंगीन तस्वीर'' उभरी थी, उसी सोच को लेकर उसने, अपने परिवार की एक''रंगीन तस्वीर'' अपने घर के ड्राइंग रूम में भी रखी थी ताकि उसे स्मरण रहे यह उसके सपनों की ''तस्वीर ''है। आज निर्मला उससे लड़कर अपने घर चली गयी और भानु घर में काम करके बैठा तो उसकी नज़र उस तस्वीर पर गयी ,तो मुस्कुरा दिया। सोच रहा था -इस तस्वीर का दूसरा पहलू तो मैंने सोचा ही नहीं था,कुछ कमी तो मुझमें भी रही होगी।  मन ही मन उसने कुछ निर्णय किया और उस तस्वीर में छुपे प्यार के रंग को फिर से भरने के लिए निर्मला को लाने चला गया। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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