Khoobsurat [part 91]

नित्या, वैसे तो सभी रिश्तों को संभालने में लगी हुई थी, किंतु वह यह कतई नहीं चाहती थी कि किसी भी तरह से प्रमोद को,उसके लिए, रंजन की सोच के विषय में पता चले, हालांकि उनके रिश्ते में ऐसा कुछ नहीं था, लेकिन एक बार' शक का बीज' जम गया, तो उसे बढ़ने में देर नहीं लगेगी इसीलिए जब प्रमोद, कल्याणी जी से पूछ रहा था -कि क्या दोनों पति-पत्नी में किसी बात को लेकर झगड़ा था। 

न जाने क्यों ?अनजाने ही नित्या घबरा गयी और कहा - बुआजी ! कैसे जानेंगी ? वह दोनों तो इनसे अलग रहते थे। उस समय प्रमोद को भी कुछ सूझा नहीं और वह नित्या को लेकर घर आ गया। घर आकर कपड़े बदलते हुए , प्रमोद बोला -क्या तुम्हें यह अजीब नहीं लगता , तुम्हारी बुआ की इतनी बड़ी कोठी है, और वे  लोग इसी शहर में ,अलग रह रहे थे। ऐसी क्या बात हुई होगी ? जबकि रंजन पहले भी तो अलग ही रह रहा था तब शिल्पा उसे लेकर, अपने घर लेकर गई थी। 


अब उन दोनों में आपस में, क्या बात हुई होगी, यह मैं नहीं जानती किंतु हां इतना तो समझ सकती हूं दोनों की विचारधाराएं एक दूसरे के विपरीत थीं। उनमें आपस में क्या बात हुई ? न ही मुझे शिल्पा ने कभी कुछ बताया और न ही बुआ जी ने..... अब न जाने शिल्पा भी कहां पर होगी ?

कहीं यह बात सच न हो जाए, शिल्पा ने ही रंजन को मारा हो , पुलिस यूं ही शक नहीं करेगी ,अवश्य ही उन्हें कुछ सबूत तो मिला होगा , जिसके कारण वे  लोग, उस पर शक कर रहे हैं। एक बार शिल्पा मिल जाए तो शायद यह गुत्थी भी सुलझ जाएगी। तुम्हारी बुआ बड़ी परेशान थी, कभी-कभार  उनसे उनका हाल चाल पूछती  रहना, उन्हें लगेगा , उनकी बेटी गायब हुई है ,तो हम लोग, उनसे रिश्ता ही नहीं रखना चाहते। ''विपदा में तो दुश्मन भी साथ निभा जाते हैं फिर हम तो उनके रिश्तेदार हैं।'' 

 हमम्म्म मैं उनका ख्याल रखूंगी और बीच-बीच में बुआ जी से उनका हाल-चाल भी पूछती रहूंगी, नित्या  ने प्रमोद को आश्वासन दिया, किंतु वह मन ही मन  जानती थी कि बुआ जी , नहीं चाहती हैं, कि वह उनसे कोई भी संबंध रखें। यह बात तो वह अपने पिता से भी नहीं बता सकी। 

दिन, महीने, साल बिताते से गए किंतु शिल्पा का किसी को कोई पता नहीं चला और न हीं रंजन के कातिल का पता चला। पुलिस को शक था-शिल्पा ने ही, रंजन की हत्या की है और भाग गयी है किंतु बिना सबूत मिले और बिना शिल्पा के मिले, वह केस में आगे नहीं बढ़ सकते थे। 

लोग इस हादसे को भूलने लगे , प्रतिदिन की तरह जीवन अपने ढर्रे पर चल रहा था। कुमार आज भी कलाकृतियों का प्रेमी है , सुंदर कलाकृतियों को जहां भी देखता है, खरीद भी लेता है और जहां कहीं भी कला प्रदर्शनी लगती है, वहीं पहुंच जाता है। 

आज भी वह एक पांच सितारा होटल में, प्रदर्शनी देखने के लिए आया था, एक से एक खूबसूरत कलाकृतियां थी , इतनी सुंदर कलाकृतियां देखकर अचानक ही उसे' तमन्ना' का स्मरण हो आया, फिर अपनी ही सोच पर मुस्कुरा दिया ,उसने कलाकार का नाम जानना चाहा -कोई'' यामिनी ''थी।' यामिनी' नाम कितना सुंदर है ? एक बार तो इस कलाकार से मिलना चाहिए वह यामिनी से मिलने के लिए, होटल के मैनेजर से पूछता है -यामिनी जी कहाँ मिलेंगी ,मैं उनसे मिलना चाहता हूँ। 

 तब होटल का मैनेजर उसे बताता है - जिन मैडम की ये कलाकृतियां हैं वे कुछ देर पश्चात ही, आप लोगों से रूबरू होंगी। यह तो बहुत ही अच्छी बात है , बड़े महंगे दामों पर कुछ कलाकृतियां खरीद ली गईं। बस अब तो एक ही इच्छा थी उस कलाकार से मिलने की, देखें तो....  जिसके हाथों में, इतना हुनर समाया  है वे हाथ कैसे हैं ,वो स्वयं कैसी  है ? जिज्ञासावश लोग हॉल में बैठे हुए उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे। 

कुछ देर के बाद , आधुनिक वस्त्रों से सुसज्जित , एक सुंदर महिला ने वहां प्रवेश किया, उसे देखकर सब उठ खड़े हुए और सब ने ताली बजाई।'' यामिनी''ने अपना परिचय दिया उसने बताया -कि वह कई वर्षों से , विदेश में रह रही है, और वहीं पर उसने अपनी कला को निखारा है। अपने विषय में बताते -बताते उसकी नजर कुमार पर भी गई ,कुछ  पल के लिए वह रुक गई और फिर से अपनी बातों को आगे बढ़ाते हुए अपनी तरफ से उसने, सबको ड्रिंक पेश की और उसकी  प्रदर्शनी में आने के लिए ,उसकी कला की सराहना के लिए उसने सबका धन्यवाद किया और वहां से चली गई। सभी उसकी प्रशंसा कर रहे थे। 

 सुंदर होने के साथ-साथ, अच्छी कलाकार भी है, अच्छी और व्यवहार कुशल भी है। 

कुमार को उसमें ,अपने लिए एक कशिश सी महसूस हुई, उसने विशेष कर कुमार से हाथ मिलाया था। कुमार को अच्छा लगा था। तब यामिनी ने बताया था कि मेरी कुछ और पेंटिंग्स हैं जिनको मैं मांगना चाहूंगी और मेरी यह प्रदर्शनी अभी 5 दिन और लगेगी। यामिनी के हाथ मिलाने से कुमार को लग रहा था, जैसे -यामिनी की उस पर विशेष दृष्टि रही है।

 वह इस शहर में , अपने कारोबार के सिलसिले में यहाँ आया था ,काम हो जाने के पश्चात, घूमने के लिए निकला था और यहां आ गया , यामिनी से मिलकर उसे लगा, जैसे उसका यहां आना सफल रहा। हालांकि उसे अगले दिन अपने शहर लौटना था, किंतु अब उसने अपना निर्णय बदल दिया था। वह यामिनी से बात करने के लिए इच्छुक हो रहा था। उससे अकेले में मिलना चाहता था हालांकि उसका विवाह हो चुका है ,न जाने उस लड़की में कैसी कशिश थी ?जो उसे यामिनी तरफ खींच रही थी। 

सारा दिन होटल में, शाम की प्रतीक्षा में पड़ा रहा, कि शाम को वह प्रदर्शनी में जाएगा,अगले दिन भी वह प्रदर्शनी में गया और यामिनी की एक झलक पाने के लिए, आतुर रहा किंतु उस दिन यामिनी नहीं आई। उसे लग रहा था -जैसे उसका यहां आना व्यर्थ गया। कर भी क्या सकता है ? वह उससे जबरदस्ती  यह तो नहीं कह सकता कि मैं तुमसे मिलना चाहता हूं ,यदि कोई पूछे 'तुम क्यों मिलना चाहते हो ?' तो क्या जवाब देगा ? वापस अपने होटल में आ गया और इसी इंतजार में वह अपने घर नहीं गया आज नहीं तो कल मिलना ही होगा।

 उसने होटल के मैनेजर को कुछ पैसे दिए और उससे पूछना चाहा  कि यामिनी जी से कब मुलाकात हो सकती है ?

मैडम !हर किसी से अकेले में नहीं मिलती हैं, किंतु आप उनसे क्यों मिलना चाहते हैं  ?

बस ऐसे ही उनसे मिलने की जिज्ञासा हो रही है , मैं कोई ऐरा- गैरा व्यक्ति नहीं हूं, तुम मुझे गलत मत समझना , बस कुछ बातचीत करनी है। तीसरे दिन, उसी  होटल के मैनेजर ने कुमार को फोन किया और कहा -मैडम !आपको मिल सकती हैं , मैंने उनसे पूछ लिया है। शाम को 4:00 बजे होटल के कमरा नंबर 212 में पहुंच  जाना !


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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