दूर एक गांव के बाहर, तुषार सड़क पर खड़ा हुआ था ,वो नहीं जानता ,वो यहां कैसे आया ?उसके चारों तरफ उसे जंगल ही जंगल नजर आ रहा था। वह अपने दोस्त यश के साथ आगे बढ़ता जा रहा था। उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या चाहता है ? और आगे क्यों जा रहा है ? तभी उसके पास एक कागज़ आकर गिरा। तुषार ने उस कागज को उठा लिया,उसने देखा -यह तो एक चिट्ठी है किन्तु किसकी है ? किसके नाम है? ऐसा कुछ भी नहीं लिखा था। उसने उसे पढ़ा - जिस पर लिखा हुआ था ''मुझे इस जगह से छुड़ा लो ! तुम ही मुझे बचा सकते हो।''इस पत्र को पढ़कर लग रहा है ,जैसे किसी को हमारी सहायता की जरूरत है और वो हमसे सहायता मांग रहा है,तुषार बोला।
पत्र कहां से उड़ता हुआ आया था ? उस पत्र को हाथ में लेकर वो उसी दिशा में आगे बढ़ता रहा ,जिधर से वो पत्र उड़ता हुआ आया था। तब कुछ देर तक चलने पर ,दूर उसे एक गांव दिखलाई दिया ,न जाने, ये कौन सा गांव है ? इस गांव को पहले तो कभी नहीं देखा ,उस गांव में जाने के लिए आगे बढ़ता है ,तो उस रास्ते पर कई पगडंडियां दिखलाई दीं। यह क्या अजब पहेली है ?सामने गांव नजर आ रहा है किन्तु उस ओर जाने के कई रास्ते नजर आ रहे हैं, उसने अंदाजा लगाया, शायद यह पत्र भी इसी गांव से, किसी का आया होगा। हवा से उड़ते हुए यहां आ गया होगा या फिर वह इंसान मुझसे ही मदद चाहता है। उसने अपने मित्र यश से कहा-चलो !कुछ आगे बढ़ते हैं ,तभी उसे लगा जैसे -दिन ढलने लगा है।
यश बहुत डर गया और बोला -वहां ,जब हम सड़क पर खड़े थे ,तो काफी दिन निकला हुआ था, और जैसे -जैसे हम गांव की ओर बढ़ रहे हैं ,शाम होने लगी है। क्या हमें चलते हुए ज्यादा समय हो गया ऐसा कैसे हो सकता है ,तब वो बोला- अब मैं, आगे नहीं जाना चाहता, न जाने, आगे क्या होगा ?यहाँ के रास्ते भी बड़े अजीब हैं ,कोई सीधा रास्ता दिख ही नहीं रहा ,कोई आता -जाता भी नजर नहीं आ रहा ,जिससे वहां जाने का रास्ता ही पूछ लें ,किन्तु तुषार को आगे बढ़ते देखकर बोला -तुषार !हमें वहां जाना ही क्यों है ?
किन्तु तुषार को तो जैसे कोई अपनी तरफ खीच रहा था ,न जाने क्यों, वो उस गांव में जाना चाहता है ?अपने को रोकना चाहकर भी रोक नहीं पा रहा था। तुषार ने कहा- तू तो बड़ा ही डरपोक है। जब तक हम आगे नहीं जाएंगे, तो कैसे पता चलेगा ? कि उस गांव में क्या है ?हो सकता है किसी को हमारी सहायता की आवश्यकता हो।
ये भी तो हो सकता है, हम किसी विपत्ति में पड़ जाएं ,यश ने जवाब दिया,अब मुझे लगता है ,हम अपने घर भी नहीं जा पाएंगे।
क्यों ,तुझे ऐसा क्यों लगता है ?आगे बढ़ते हुए तुषार ने पूछा।
क्या तुझे दिख नहीं रहा,हम एक भूल -भुलैया में फंस गए हैं ,हम किधर से आये थे ,किधर जा रहे हैं ?कुछ पता नहीं चल रहा है।
जो भी होगा, देखा जाएगा, कहते हुए तुषार आगे बढ़ने लगा,कुछ दूरी तक चलने के पश्चात ,उसे एक चिट्ठी और मिली ,इससे पहले कि वो ,उसे पढ़ पाता ,यश खुश होते हुए बोला -गांव में कुछ आदमी दिख रहे हैं।
तभी उसे एहसास हुआ वो दोनों इतनी देर से चल रहे हैं किन्तु गांव के अंदर नहीं पहुंच पा रहे थे । गांव भी ऐसे दिख रहा था ,जैसे सामने ही तो है।
कुछ आदमी आते जाते दिखलाई दे रहे थे। उसने इस गांव को इससे पहले कभी नहीं देखा था। गांव के बाहर ही एक बड़ा सा पीपल का पेड़ था, लोग उसे दिखाई दे रहे थे , आगे बढ़ते ही ना जाने कहां गायब हो जाते थे, वह पीछे मुड़कर देखने का प्रयास करता है तो उसे कुछ भी दिखलाई नहीं देता। बड़ा अजीब गांव है। लोग उन्हें देखते हैं ऐसा लगता है, जैसे उन लोगों की नजरें उन्हें ही घूर रही हैं।
यार !तुषार !तू यहां से चल ,मुझे बहुत डर लग रहा है।
आए हैं, तो देख कर ही जाएंगे, तुषार जिज्ञासा भरी ,लापरवाही से बोला किंतु अब अंदर ही अंदर वह भी डर रहा था। तभी उसे एक कागज और दिखाई दिया -उसमें लिखा था, ''तुम सही रास्ते पर आ रहे हो, तभी मुझे बचा सकते हो, मैं यहां से छूटना चाहता हूं ,मुझे विश्वास है , तुम ही मुझे बचा सकते हो।''
मुझे लगता है ,ये चिट्ठियां हमारे लिए ही लिखी गयीं हैं ,ऐसा लग रहा है ,जैसे कोई हमें ही देख रहा है उस चिट्ठी को पढ़कर,तुषार ने विश्वास से कहा।
यश बोला -न जाने,ये किसकी चिट्ठी है,? हो सकता है ,यह किसी और को सहायता के लिए बुला रहा हो , हमें तो यह भी मालूम नहीं है कि हमें कहां जाना है और किसकी सहायता करनी है।
मैं यहां, किसी से पूछ लेता हूं, हो सकता है वही हमें बता दे ! तुषार एक व्यक्ति को रोकता है , और उससे कहता है -न जाने ये, किसकी चिट्टियां है ? हमें उसकी सहायता करनी है ? शायद कोई हमें बुला रहा है।
उस व्यक्ति ने तुषार को घूरा और जोर-जोर से चिल्लाने लगा, किंतु तुषार को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था, वह उससे नाराज क्यों है और क्यों चिल्ला रहा है ? उसकी आवाज़ हमें सुनाई क्यों नहीं दे रही है ? उसके शब्द जैसे तुषार के ऊपर से गुजरते हुए जा रहे थे। तुषार बेहद घबरा गया, वहां पर और अन्य लोग भी आकर खड़े हो गए वे सभी कुछ ना कुछ कह रहे थे किंतु तुषार की समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था, यश उसके पीछे दुबका हुआ खड़ा था।
तुषार उन्हें, अपने बचाव के लिए वह चिट्ठी दिखा रहा था, किंतु जैसे ही उसने, उन चिट्ठियों को आगे किया वो उड़ने लगीं , यह सब मेरे साथ क्यों हो रहा है ? जैसे ही वह पीछे मुड़कर देखता है, उसकी चीख निकल जाती है ,यश तुम कहां हो ? उसके पीछे खड़ा यश गायब था और तभी उसकी आंख खुल जाती है। उसने आंख खोली तो, सामने उसकी मम्मी खड़ी थी,उन्हें देखकर जैसे वह बहुत बड़ी परेशानी से बाहर निकल आया हो।
जब शारदा जी ने तुषार को घबराकर उठते हुए देखा ,तब वो बोलीं -आज, क्या फिर से कोई डरावना सपना देखा है ? तुम आज फिर से डर गए, तुमसे कितनी बार कहा है ? डरावनी कहानियाँ मत पढ़ा करो ! किंतु मेरी बात तुम सुनते ही नहीं हो।
मम्मी मैंने कोई डरावनी कहानी नहीं पढ़ी और जब से मुझे ये सपने आने लगे हैं ,तब से तो मैंने अपनी सारी किताबें अपने दोस्त को दे दी। फिर भी न जाने मुझे, ये डरावने सपने क्यों आ रहे हैं ?
आज का सपना शारदा जी को चिंतित कर गया ,इसे ये डरावने सपने हर बार क्यों आ रहे हैं ?तब वो तुषार के डर को समझते हुए ,वे उससे पूछती हैं -तुम्हारे इन डरावने सपनों में तुम्हें क्या दिखता है ?
