गांव घूमने के बहाने से, पारो और रूही'' खेड़ा ''गांव में पहुंच जाती हैं ,तभी सरला जी, रूही को देखकर भावुक हो जाती हैं और तब अपनी बेटी को याद करते हुए ,उन्हें बताती हैं - कि मेरी बेटी शिखा भी तुम जैसी ही लगती थी ,अब अपनी ससुराल में है किन्तु उसकी ससुराल वाले हमें ,उससे मिलने नहीं देते थे। जब सरपंच जी अपनी बेटी से मिलने हवेली गए तो उन्होंने जो कहा ,उसके कारण हम बहुत परेशान हुए ,हमारी अपनी बेटी, हमारे साथ ऐसा करेगी ,ये तो हमने सपने में भी नहीं सोचा था। ''इससे पहले कि सरला जी अपनी बात पूरी कर पातीं ,उससे पहले ही सरपंच जी आ गए और उन्हें समझाकर चले भी गए।
उनके जाने के पश्चात ,सरला जी बोलीं -कुछ खाओगी !मैं तो अपनी परेशानी में तुम लोगों से खाने के लिए पूछा ही नहीं।
नहीं ,हमें भूख नहीं है ,हम थोड़ी देर में चले जायेंगे ,आप बताइये !आप अपनी बेटी के विषय में हमें कुछ बता रहीं थीं ,रूही ने कहा।
किन्तु सरला जी ने तो जैसे उसकी बात पर ध्यान ही नहीं दिया किन्तु रूही जानना चाहती थी कि शिखा की ससुरालवालों ने उन्हें क्या जबाब दिया ? सरला जी, उनके करीब आकर बोलीं -साग और मकई की रोटी बनाई है ,खा लोगी।
पार्वती ने पहले कभी साग और मकई की रोटी नहीं खाई थी, तब वो बोली -ये कौन सी सब्जी है ?
पार्वती की बात सुनकर वो हंसी और बोली -इसे सब्ज़ी नही' साग 'कहते हैं, कहते हुए ,काजल को अपने साथ रसोईघर में ले गई और दो थालियों में भोजन परोस दिया।
रूही और पारो दोनों भोजन करने लगीं किन्तु रूही के मन में तो अभी भी वही परेशानी चल रही थी। शिखा की बातों को दुबारा कैसे शुरू किया जाये ? यदि सीधे -सीधे पूछा तो इन्हें हम पर कोई शक न हो जाये या पूछने लगें -'तुम मेरी बेटी के जीवन में इतनी दिलचस्पी क्यों दिखला रही हो '?ऐसे अच्छा भी नहीं लगता। उसे लेकर इन्हे दुःख ही है ,किन्तु उसकी ससुराल वालों ने , इनसे क्या कहा ? वो तो जानना ही होगा। तभी रूही बोली -इनके साथ 'सिरके के चंदे'और साथ में थोड़ा गुड़ भी दीजिये, अच्छे लगते हैं। क्या आपने डाले हैं ?
रूही की बात सुनकर वो तो जैसे एकदम से सदमे में आ गयीं और रूही को ध्यान से देखने लगीं ,जैसे अपनी बेटी शिखा को वे रूही के अंदर ढूंढ़ रहीं हैं ,तब वो बोलीं -हाँ -हाँ क्यों नहीं ?हमारी शिखा को भी 'मूली के चंदे ''बहुत पसंद थे ,वो भी सिरके वाले...... कहते हुए उठीं और एक कटोरी में रखकर ले आईं। इससे पहले की वो चुपचाप बैठतीं, तब रूही बोली -अब खाने का स्वाद बढ़ गया।
रूही को ऐसे खुश देखकर वो बोलीं - तुम्हें देखकर तो मुझे ,मेरी शिखा याद आ गई ,वो सच में ऐसे ही खाती थी।
तब उसे कुछ दिनों के लिए अपने घर बुला लीजिये !बात की शुरुआत करने के उद्देश्य से रूही ने कहा।
कैसे बुलवा लूँ ?कहाँ से बुलवा लूँ ?अब तो न जाने वो कहाँ होगी ? वो गयी तो गयी ,साथ ही, 'हमारी नाक भी कटवा गयी' उस समय उनके चेहरे पर क्रोध और घृणा के मिश्रित भाव आये और जैसे रूही ने फिर से उनके दर्द को कुरेद दिया ,वे बोलीं - '' हमारी बेटी ने हमारी नाक कटवा दी।''
मतलब ,अचम्भित होते हुए रूही ने पूछा -''उसने कैसे नाक कटवा दी ?''
अब तुम्हें क्या बताएं ? हमारी बेटी मिलती तो हम उसी से पूछ लेते , कि तूने ऐसा क्यों किया ?सारी बिरादरी में हमारी थू -थू करवा दी।
उसने कैसे थू -थू करवा दी ?जरा विस्तार से बताइये ! ऐसा उसकी ससुराल वालों ने क्या बताया ? रूही ने पूछा।
तुम काहे इस चक्कर में पड़ती हो , हमारे घर की बात है ,वह तो इस बिटिया को देखकर मैं, भावुक हो गई, और जबान फिसल गई।
रूही की बेचैनी बढ़ने लगी और सोचने लगी -उन लोगों ने इनसे, ऐसा क्या कह दिया ?जो ये लोग, अपनी बेटी से ही नफ़रत पाले बैठे हैं ,तब वो बोली - आप हमें बताइए तो सही ,क्या मालूम हम आपकी कुछ मदद कर सकें ।
तुम, हमारी क्या मदद करोगी ? जब हमारी बेटी ने ही हमें, अपना नहीं समझा , कम से कम अपनी मां को तो बता ही देती।
पर, हुआ क्या ? बेचैनी से रूही ने पूछा।
होना क्या था ? जब उन्होंने शिखा को अपने मायके नहीं भेजा, तब सरपंच जी उसकी ससुराल मिलने चले गए और बिटिया से मिलने के लिए कहा -तब वे लोग एकदम भड़क गए और बोले -'' हमें मालूम नहीं था ,आपकी बिटिया ऐसी निकलेगी। ''
सरपंच जी ने कहा - मेरी बिटिया ने ऐसा क्या किया ?जो आप इतना भड़क रहे हैं ,आप एक बार मुझे उससे मिलवा दीजिये !उसने कोई गलती की होगी ,तो मैं उसे समझाऊंगा ,हमारी बिटिया बहुत समझदार है ,अपने पिता का सिर कभी नीचा नहीं होने देगी। आप उसे बुलाइये ,तो सही।
तब उसके ससुर ने कहा -कहाँ से बुलवाएं ?वो यहाँ हो तो बुलवाएं ,हम तो किसी से कुछ कह भी नहीं सकते ,हमने न जाने कितने दिनों से इस बात को छुपाकर रखा हुआ है ,किन्तु आज जब आप यहां आकर उससे मिलने की ज़िद कर ही रहे हैं ,तो आपको बता देते हैं -आपकी वो लाड़ली ,आज्ञाकारी बिटिया, हम सभी के मुख पर कालिख़ पोतकर ,किसी लड़के के संग भाग गई है।
ऐसा सुनकर सरपंच जी तो जैसे सदमे में आ गए और बोले - यह आप क्या कह रहे हैं ? अभी कुछ दिन पहले तो आप लोगों ने बताया था कि वो अपने पति के साथ विदेश घूमने गयी है और आज कह रहे हैं.....
और क्या कहते ?क्या इसमें हमारे घर की बदनामी नहीं होती ,अब क्या इस बात का' ढिंढोरा पीटते'हमारे घर की बहु किसी से साथ छिः हमें तो कहते हुए भी शर्म आ रही है। वो तो हमने दोनों परिवारों का मान रखने के लिए ऐसे ही कह दिया था किन्तु आप हैं कि ''बेटी के मोह में ,अंधे हो'' उससे मिलने यहीं चले आये ऐसा कहकर उन हवेली वालों ने सरपंच जी को बहुत सुनाया। उस दिन जब सरपंच जी उनकी हवेली से आये थे तो कई बरस बूढ़े लग रहे थे। पता नहीं ,हमारी ज़िंदगी में क्या लिखा है ? एक बेटी दी,उसने ही हमारे मान -सम्मान को'' ताक पर रख दिया'',कहते हुए रोने लगीं।
क्या आपको अपनी बेटी पर विश्वास है या नहीं ,आपको लगता है ,क्या वो ऐसा कर सकती है ,पारो ने उनसे पूछा।
हमें विश्वास तो नहीं होता, वह तो ऐसी लड़की थी ही नहीं । उसे भागना ही होता, तो विवाह से पहले ही भाग जाती विधवा होने के बाद, क्यों भागेगी ? हमारी नजर में तो कोई ऐसा लड़का ही नहीं है ,जो हमारी बिटिया को इतना चाहता था कि उसे भगा ले गया हो।
हो सकता है, उसकी ससुराल वाले झूठ बोल रहे हों , बात कुछ और ही हो ,उन्होंने आपसे झूठ बोला हो ,जब तक आप अपनी बेटी न मिल लें ,उससे पूछ न लें, आपको अपनी बेटी पर विश्वास बनाये रखना चाहिए ,पारो ने जवाब दिया।
क्या, सच में ऐसा हो सकता है, एक उम्मीद से सरला ने उन दोनों लड़कियों की तरफ देखा। वही तो मैं कह रही थी, मेरी बेटी तो तुम्हारी तरह ही बड़ी प्यारी और भोली थी, जहां हमने विवाह करने के लिए कहा। वहीं विवाह कर लिया।बिटिया ! ये बात तो हमने सोची भी नहीं।
