साया जो इतने दिनों से सच्चाई छुपाये बैठा था ,अब उसने सम्पूर्ण सच्चाई स्वीकार की जिसके कारण उसको सुकून मिला और तब वो अपनी कब्र की ओर मुड़ा और बोला -“मैंने चिट्ठियाँ इसलिए लिखीं,”“ताकि कोई तो इस सच्चाई पढ़े।”“मैं ज़िंदा रहकर भी मरा हुआ था क्योंकि मैं सही- ग़लत के फेर में पड़कर डर गया था किन्तु अब मरने के पश्चात, मुझे सच्चाई कहने का साहस मिला,”यदि मैं जीते जी इस सच्चाई को स्वीकार कर लेता तो मेरी आत्मा इस तरह न भटकती और न ही इन चिट्ठियों को लिखकर लोगों को सच्चाई से अवगत न कराना पड़ता किन्तु मैं सच्चाई को छुपाकर इस बेचैनी में मुक्त भी नहीं हो पा रहा था और इसी कारण मेरी ये कहानी बनती चली गयी।
उसने कबीर की ओर देखा और बोला -“अब यह कहानी तुम्हारी नहीं है,”“इसे अब यहीं ख़त्म होने दो !” अब साया की मुक्ति का समय आ गया था ,जाते -जाते बोला -''हर इंसान की एक कहानी होती है ,और कुछ कहानियाँ ऐसी होती हैं ,जिन्हें वह छुपाना चाहकर भी छुपा नहीं पाता और तब क़ब्र से चिट्ठियां लिखकर उस सच्चाई को स्वीकारना चाहता है ,ताकि उसकी आत्मा को सुकून मिल सके'' कहते हुए , साया की आकृति धीरे-धीरे हल्की होने लगी।“जब इंसान सच स्वीकार कर ले—तो कोई आत्मा भटकती नहीं ,” उसकी आवाज़ गूँजी और फिर—वो कब्र हमेशा के लिए शांत हो गई।
अभी सुबह नहीं हुई थी,लेकिन रात भी नहीं रही थी ,दिन और रात्रि के अंतिम पहर का मिलन ,कब्रिस्तान पर फैली वह रोशनी—न सूरज की थी, न चाँद की ,बस समझ की थी ,उस क़ब्रिस्तान में कबीर अकेला खड़ा था, रिद्धिमा कुछ कदम पीछे थी ,दोनों के बीच—एक कब्र ! जिस पर अब कोई नाम नहीं था।हवा ने जैसे आख़िरी बार सरसराकर पूछा—“क्या अब यह सच काफ़ी है?”
अचानक उन्होंने देखा - उस मिट्टी की क़ब्र के ऊपर एक सादा,बिना किसी निशान के लिफ़ाफ़ा रखा था।कबीर ने उसे उठाया,यह वही लिखावट थी—जिसने उसे बरसों पहले डराया था,और अब…शांत कर रही थी,उसने चिट्ठी पढ़ना शुरू किया।**“अगर तुम यह पढ़ रहे हो,तो समझ लो—डर खत्म हो चुका है ,राक्षस कभी हवेली में नहीं रहते। वे इंसानी दिलों में पलते हैं—जब हम सच से भागते हैं, तो आत्मा बेचैन होती है। अनाया को दोष मत देना,उसे ज़बरन राक्षस बनाया गया था। मुझे भी मत कोसना ,मैं भी डर गया था और सच्चाई स्वीकार न कर सका, अगर कोई चुनाव बचा है—तो वह तुम्हारा निर्णय होगा -'' कहानी को जिंदा रखना या सच को आज़ाद करना।”**काग़ज़ कबीर के हाथ में काँपा।
तभी कबीर को हवा का एक ठंडा झोंका महसूस हुआ। उसे क़ब्र के पास एक परिचित सी उपस्थिति महसूस हुई ,ऐसा लगा जैसे -अनाया !ने उस हवा द्वारा अपना एहसास कराया किन्तु वह एक ठंडा और शांत एहसास था ,उस एहसास से न ही कोई ड़र लगा ,न ही अनाया के उस राक्षसी रूप की अनुभूति हुईं। एक पल के लिए उसका साया दिखा ,उसे देखकर लग रहा था -वह एक थकी हुई आत्मा है, जिसने बहुत देर तक किसी और का पाप ढोया था।उस साये से एक स्वर गूंजा “अगर मैं चली जाऊँ,“तो क्या मुझे माफ़ किया जाएगा? उसने प्रश्न किया
कबीर ने सिर उठाया और बोला -“माफी तभी मिलती है ,“जब उसे दोषी माना जाए ,हमारी नजर में तुम दोषी नहीं हो ”
अनाया की आँखें भर आईं और पूछा -“तब मैं क्या हूँ?”
“एक शिकार,”कबीर ने शांत स्वर में कहा “और अब—तुम मुक्त होने का हक़ रखती हो।”
अनाया ने आसमान की ओर देखा ,“अगर मैं रुकना चाहूँ ?”उसने पूछा।
“तो तुम एक डरावनी कहानी बन जाओगी,”कबीर बोला -“जिसे लोग डर की तरह दोहराएँगे।”
“और अगर तुम जाती हो ?“तो तुम एक सच्चाई बन जाओगी। ”
उसने कहा -“जिसे लोग कभी याद नहीं करेंगे—लेकिन महसूस करेंगे।”अनाया मुस्कुराई किन्तु आज पहली बार,उसके मन में कोई पीड़ा नहीं थी।
जैसे ही सूरज ने आकाश की यात्रा के लिए, अपने रथ की लगाम थामी ,अनाया का शरीर उस रोशनी में बदलने लगा किन्तु ,अब उसका मन शांत था -उसने उसी रूप में रहने के लिए न कोई संघर्ष किया और न ही कोई चीख थी ,बस एक लंबी साँस—जैसे उसके मन से कोई बोझ उतर गया हो और फिर—प्रकृति में विलीन होती चली गयी ,हवा में घुल गयी ,उसने आकाश में देखा और मुक्त हो गयी थी।
रिद्धिमा आगे आई ,“अब इन चिट्ठियों का क्या करना है ?”उसने पूछा।
कबीर ने चिट्ठियों के उस बंडल को देखा—ये वही चिट्ठियाँ हैं, जिन्होंने ये सब शुरू किया था।“तब,”उसने कहा -“या तो हम इन्हें जला दें…”उसने कब्र की ओर देखते हुए कहा —“…या फिर यहीं दफना दें।”
रिद्धिमा ने पूछा—इन दोनों में क्या अंतर है ?”
कबीर बोला,-“जलाने से डर खत्म हो जाएगा,“दफनाने से—सच सुरक्षित रहेगा।”उसने एक पल सोचा और फिर—उसी 'कब्र ' के बराबर में एक और क़ब्र खोदी गयी , कोई मंत्र नहीं ,न ही कोई रस्म ,बस मिट्टी और काग़ज़ कबीर ने चिट्ठियाँ उस कब्र में रखीं और ऊपर से मिट्टी डाल दी ।
“अब कोई इन्हें नहीं पढ़ेगा,”रिद्धिमा ने कहा।
“नहीं,”कबीर बोला“अब कोई इनकी ज़रूरत महसूस नहीं करेगा।”कब्र भर दी गई ,हवा रुक गई ,क़ब्र की एक कहानी और चिट्ठी वहीं दफ़्न कर दी गयीं थीं।
हवेली दूर खड़ी सच्चाई को दफ़न होते देख रही थी ,किन्तु अब वह इतनी डरावनी नहीं लग रही थी।हवेली के अंदर का ड़र जैसे उन्हीं चिट्ठियों में समा गया था। एक ऐसी जगह ,जहाँ कभी इंसान अपना ड़र छोड़ गए थे ,अब वो ख़ाली और पुरानी हवेली लग रही थी।
कबीर ने आगे बढ़ने से पहले एक बार भी पीछे मुड़कर नहीं देखा ,उसने रिद्धिमा का हाथ थामा और बोला -“चलो,”“अब कोई कहानी बाकी नहीं है।” उस रात के बाद—हवेली में कोई नहीं गया।कब्रिस्तान से कोई आवाज़ नहीं आई और कभी—कोई चिट्ठी नहीं मिली क्योंकि जब सच स्वीकार कर लिया जाए—तो डर को लिखने की ज़रूरत नहीं रहती।
किन्तु इंसान भूल जाता है ,कहानी कभी ख़त्म नहीं होती ,बस लेखक और पात्र बदल जाते हैं कहानी फिर किरदार गढ़ती है और एक नई कहानी का रूपांतर तैयार होता है। हवेली का किस्सा समाप्त हुआ किन्तु कहानी कहीं न कहीं जन्म तो ले ही रही है। चिट्ठियां कभी कागज पर तो कभी टाइपराइटर पर लिखी जाती हैं ,वे आत्माएं ,साये बन हमारे ही इर्द -गिर्द घूमते रहते हैं कभी -कभी वो बेचेंन हो,'अपनी क़ब्र से ही चिट्ठी 'भेजती है , किसी के दुष्कर्म उसे सोने नहीं देते ,पिशाच बन जाने के पश्चात उसके कर्म उसे रुलाते हैं ,उसे मुक्ति नहीं मिल पा रही थी ,किसी और की करनी भी उसके कर्मों में शामिल हो जाती है। अपने ही घर में कैद वो सहायता के लिए पुकारता है किन्तु उसका रोना किसी को समझ नहीं आता वरन लोग उससे डरते हैं ,बचकर निकल जाना चाहते हैं।
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