पार्वती को, जब रूही की कहानी के विषय में पता चला ,तब वो अपने तरीक़े से उन्हें समझाना चाहती है और उससे कहती है -अब तुम रूही हो, शिखा नहीं.....उनके लिए शिखा तो मर चुकी है फिर तुम कौन हो ?तुम तो जिन्दा हो ,डॉक्टर साहब की बेटी रूही ! फिर वो शिखा के दर्द को क्यों जी रही है ?
सभी को इस समय पारो की बातें बेमतलब की नजर आईं , उन्हें लग रहा था-इसे रूही के दुख से कोई मतलब नहीं है।
पार्वती! कम से कम मौका देखकर तो बात किया करो ! उस बेचारी को अब अपनी यादें वापस आई हैं, तुम देख नहीं रही हो,वो कितनी परेशान और घबराई हुई है ?
मौसी जी ! वही तो मैं कहना चाह रही हूं , जो कुछ भी हुआ,वो शिखा के साथ हुआ था, रूही के साथ नहीं हुआ रूही एक अच्छे परिवार की लड़की है और उसे गर्वित प्यार करता है संयोग से ,वो उस हवेली का बेटा है।
पारो !!इसके सामने ऐसी बातें मत करो ! इसका दुख ही बढ़ेगा तारा जी ने पारो को डांटते हुए कहा।
आपने तो इससे तब भी कहा था- कि पिछली यादों के पीछे मत भागो !दुःख ही होगा किन्तु ये नहीं मानी ,इसको अपनी जिज्ञासा शांत करनी थी ,अब, जब ये उन यादों को जान चुकी है ,तब उनसे सीख लेकर रोना चाहिए या फिर इसे मजबूत बनना चाहिए। वही मैं कहना चाहती हूँ अब इसे दुखी नहीं होना है क्योंकि यह अब शिखा नहीं है ,यह रूही है और रूही अपने मुजरिमों को, अपने अपराधियों को सजा देगी। तीनों उसकी बात सुनकर चौंक गए।
अपनी बात जारी रखते हुए कहती है -यह तो और भी अच्छा है ,गर्वित इससे प्रेम करने लगा है ,रूही है ही इतनी प्यारी ! उसके चेहरे को प्यार से छूते हुए पारो बोली -'जब हनुमान जी ने, रावण की लंका में आग लगाई थी, तो उन्हें समुद्र पार करके वही जाना पड़ा था, लंका जलने के लिए स्वयं उनके पास नहीं आई थी।''
आखिर तुम कहना क्या चाहती हो ? ताराजी ने पारो से पूछा।
देखो ! मुझे अपने अस्पताल भी जाना है ,मेरे जाने का समय हो गया ,बातें करने के लिए सारा दिन है ,मैं तैयार होने जाता हूँ ,मेरा नाश्ता लगवा दीजिये कहकर डॉक्टर साहब, वहां से उठकर चले गए।
तब तारा जी ने ,पारो से पूछा -तुम भी नाश्ता कर लो ! बाद में बातें करेंगे। डॉक्टर अनंत नाश्ता करके चले गए ,वे सभी अभी खाने की मेज के समीप बैठी थीं। तब तारा जी ने पारो से पूछा -अब तुम बताओ !तुम क्या कहना चाहती हो ?क्या रूही ! तुम ,पारो की बात सुनना चाहोगी ?
कोई लाभ नहीं है ,इन्होंने कुछ देखा नहीं है, इसीलिए ऐसे कह रहीं हैं ,जो देखा होता तो शायद मेरी तरह कुछ भी न कह पातीं ,''जिस पर बीतती है, वही महसूस कर सकता है।''
ऐसा जरूरी नहीं ,किसी की बातों को अथवा उसके दर्द को समझने के लिए उसके साथ वो हादसा होना आवश्यक है। ठीक है ,मेरी बात सुनने में तो तुम्हारा कुछ नहीं जा रहा है ,पारो लापरवाही से बोली - अब इस हवेली के लोगों का भी समय आ गया है , जहां तक मेरा विचार है, वे लोग रूही के साथ भी ऐसा ही व्यवहार करेंगे क्योंकि ये तो उनके खानदान की रस्म जो है। शैतान, शैतान ही होता है ,उसकी प्रवृत्ति कभी नहीं बदलती।
इसलिए तो हमने सोचा है, अब हम गर्वित से इसे कभी भी मिलने नहीं देंगे ,तारा जी दृढ़ निश्चय के साथ कहती हैं।
गलत, यहाँ आप गलत हैं ,इसको, उससे मिलना होगा, और उससे प्यार भी करना होगा , तभी यह लंका में पहुंच पाएगी , रूही से बोली -शिखा को भूल जा... तुझे हिम्मत से काम लेना होगा।
लगभग एक सप्ताह पश्चात , गर्वित उनके रूही का हाथ मांगने के लिए घर आता है वह बाहर अतिथि कक्ष में बैठा हुआ था और डॉक्टर अनंत की प्रतीक्षा कर रहा था। उसे देखकर डॉक्टर अनंत को क्रोध आया किंतु पार्वती ने उन्हें अपने आपको संभालने के लिए कहा। अतिथि कक्ष में पहुंचकर, डॉ अनंत , गर्वित से पूछते हैं -कैसे आना हुआ ?
डॉक्टर अंकल !आपको, रूही ने तो सब कुछ बता ही दिया होगा, मैं इसीलिए यहां पर आया था। डॉक्टर अनंत बोले - नहीं, मुझे रूही ने कुछ नहीं बताया तुम बताओ! तुम यहां किस लिए आए हो ?
उनकी बात सुनकर वो थोड़ा हड़बड़ा गया ,ऐसा कैसे हो सकता है ? उसने तो कहा था-' मैंने पापा को सब बता दिया है। '
ठीक है, तुम बता दो ! तुम यहां किस लिए आए हो ?
मैं और रुही एक दूसरे से प्यार करते हैं।
कब से ? डॉक्टर अनंत का संक्षिप्त प्रश्न था।
जब हम लोग नवरात्रों में' गरबा' पर मिले थे, तभी से मैं, उसे चाहने लगा था।
तुम उसे चाहने लगे थे, क्या वह भी तुम्हें चाहती है ? ऐसा उसने, तुमसे कहा।
जी..... इसीलिए तो बुलाया है ताकि मैं आपसे बातें कर सकूं।
हम्म्म्म ! तो तुम यहां पर रूही के लिए आए हो, क्या तुम्हारे घर में बड़े- बुजुर्ग नहीं हैं ? क्या लड़का ही रिश्ते की बात करता है ?
जी नहीं ,ऐसा नहीं है, मैं पहले आपसे इजाजत लेने आया था, उसके पश्चात तो पूरा परिवार आएगा।
क्या तुम जानते हो ?रूही हमारी इकलौती बेटी है।
जी, उसने बताया था, तब उसने यह भी बताया होगा, हम अपनी बेटी को अपने से अलग नहीं करेंगे।
क्या मतलब ?
हमारा मतलब है ,हम अपनी बेटी को अपने से जुदा नहीं करेंगे बल्कि दामाद को ही' घर जमाई' बना लेंगे।
उनकी बात सुनकर, गर्वित एकदम से उठ खड़ा हुआ और बोला -आज तक तो बेटियां विदा होकर ससुराल ही जाती हैं।
हां, यह बात हम मानते हैं, किंतु हम अपनी बेटी के बिना, नहीं रह सकते।
मन ही मन गर्वित सोच रहा था कि रूही ने मुझसे ऐसा किसी भी बात का जिक्र नहीं किया था। क्या सोच रहे हो ?डॉक्टर साहब ने पूछा -यही कि इस बात के लिए मेरे परिवार वाले रज़ामंद होंगे या नहीं।
हाँ -हाँ तुम पूछ सकते हो, बाहर खड़ी पारो सोच रही थी- मुझे लगता है ,मौसा जी सारी योजना बर्बाद कर देंगे। वह अंदर आना चाहती थी, तभी उसे ताराजी ने रोक दिया। कुछ देर पश्चात, गर्वित के लिए नाश्ता आया। गर्वित बोला -''मुझे भूख नहीं है, मैं अभी नाश्ता करके आया था।''
कोई बात नहीं, थोड़ा सा यहां भी कर लो ! डॉक्टर तो तुम्हारे सामने खड़ा ही है इलाज भी हो जाएगा कहते हुए मुस्कुरा दिए। गर्वित चाह रहा था, कि रूही भी यहां पर आए और उसके सामने ही सारी बातें हो जाएं यदि हवेली में घर वालों को यह पता चलेगा कि डॉक्टर साहब लड़की को विदा नहीं करना चाहते बल्कि उसे ही घर जमाई बनाना चाहते हैं कोई भी इस बात के लिए तैयार नहीं होगा।
तुम, कुछ ज्यादा ही सोचते हो, यदि कोई परेशानी है तो मुझे बता सकते हो।
नहीं, ऐसी तो कोई बात नहीं है वैसे आप इस विवाह के लिए तैयार हैं।
हाँ ,मुझे कोई आपत्ति नहीं है यदि तुम 'घर जमाई 'बनकर रह सकते हो तो.....
