Qabr ki chitthiyan [part 61]

अनाया का अगला शिकार ,गौरांश था और वो, जैसे ही, उसको मारने के लिए अपनी शक्ति का प्रयोग करती है ,तभी उनके बीच में कबीर आ जाता है ,अनाया की उन शैतानी काली लपटों के असर से कबीर की पीठ जलने लगी और वह दर्द से कराह उठा ,उसकी हालत देखकर , रिद्धिमा चीख पड़ी—“नहीं!!!”

अनाया ने ठंडी मुस्कान दी और डरावना कहकहा लगाया —“अब एक साथ दो…!तभी कबीर उठ खड़ा हुआ। अब उसकी आँखों में  सिर्फ नीली ही नहीं—सफेद रोशनी भी चमक रही थी, वह घूमा और बोला -“नहीं, अनाया !“आज कोई नहीं मरेगा।”उसकी आवाज में ढृढ़ विश्वास था। उसने, अपनी शक्ति से ,अपने दोनों हाथ फैलाए और हवा स्थिर हो गई ,अनाया द्वारा भेजी ,काली लपटें भी हवा में स्थिर रह गईं—जैसे किसी ने समय को ही रोक दिया हो ,इस समय अनाया पहली बार डरती हुई दिखाई दी।


कबीर भारी कदमों से उसकी ओर बढ़ा और उसे एहसास दिलाते हुए बोला -“तूने पहला खून कर दिया है…”“अब इस खेल को खत्म होना ही पड़ेगा।”

अनाया पीछे हटते हुए बोली -“कबीर !!!तुम अभी मेरी पूरी शक्ति को नहीं जानते हो । ”

कबीर ने उत्तर दिया—“और तुम भी अभी पूरी इंसानियत नहीं भूली हो,”दोनों आमने-सामने खड़े थे।

एक तरफ़' हवेली की रानी' ,दूसरी तरफ़ उसका कैदी—जो अब उसका सबसे बड़ा शत्रु बन चुका था, दीप्ति मर चुकी है — पहला वास्तविक बलिदान ! गौरांश, अगला निशाना बन चुका है।कबीर की शक्तियाँ एक नए स्तर पर पहुँच रही हैं। अनाया अब कबीर से डरने लगी है… किन्तु  वह इतनी जल्दी हार मानने वाली नहीं है और भी खतरनाक होने वाली है।

सड़क के बीचों-बीच स्थिर हुआ समय फिर अचानक टूट गया।काली लपटें फिर से थरथराईं।  हवा में किसी चीख का एहसास हुआ और अनाया की आँखों में पहली बार, डर स्पष्ट नजर आ रहा था । कबीर उसके सामने खड़ा था—  सीधा, स्थिर, और असाधारण रूप से शांत।उसके भीतर अब दो शक्तियाँ धड़क रही थीं—  एक हवेली की,  और एक… **उसकी अपनी।**

अनाया ने फुसफुसाकर कहा—  “तुम नहीं जानते, तुम क्या बनने जा रहे हो ?

 कबीर…”कबीर ने बिना पलक झपकाए उत्तर दिया—  “और तुम नहीं जानती…  तुमने किसे जगा दिया है ? यह  अनाया की पहली हार थी  लेकिन अंत नहीं**कबीर ने एक कदम आगे बढ़ाया। उसके पैरों के नीचे की ज़मीन दरकने लगी।  नीली और सफ़ेद रोशनियाँ आपस में उलझकर भयानक चक्र बनाने लगीं।

अनाया ने कबीर पर हमला किया,काली लपटें उसकी हथेलियों से निकलीं और  सीधे कबीर की छाती की ओर बढ़ चलीं।

 रिद्धिमा की चीख हवा में तैर गई—  “कबी——र !”लेकिन कबीर हिला तक नहीं।वे लपटें , जैसे उसके सीने में समाती चली  गईं …  और अगले ही पल—**भयंकर विस्फोट हुआ **अनाया कई फीट पीछे जा गिरी।  उसका शरीर ज़मीन पर घिसटता हुआ रुका।पहली बार—  हवेली की रानी घायल पड़ी थी।

गौरांश स्तब्ध होकर बुदबुदाया—  “यह… यह कैसे संभव है…?”

कबीर धीरे-धीरे अनाया की ओर बढ़ा और बोला -“ अब मैं सिर्फ वारिस नहीं हूँ, अनाया…!” “अब मैं तुम्हारा अंत भी हूँ।”

अनाया ने क्रोध से अपने दाँत पीसे,  उसका शरीर धुएँ में बदलने लगा “नहीं…”  वह खाँसते  हुई बोली—  “अभी नहीं… यह खेल अभी लंबा चलेगा …”और  वह फिर से गायब हो गई। 

उस स्थान पर एकदम खामोशी छा गयी ,जो मौत से भी भारी थी**सड़क एक बार फिर से सामान्य दिखने लगी, लेकिन वे सब जानते थे—  यह शांति नक़ली और कुछ देर की है। रिद्धिमा दौड़कर कबीर के पास पहुँची। उसके हाथ काँप रहे थे, जब उसने, उसका चेहरा थामा।“तुम… तुम ठीक हो न?”

कबीर ने सिर हिलाया—  लेकिन अब उसकी आँखें बदल चुकी थीं  ,उसकी आँखें देखने में बड़ी गहरी और डरावनी लग रहीं थीं।

गौरांश अभी भी सड़क के किनारे खड़ा था—  साँस लेते हुए,वह महसूस कर रहा था, जैसे उसकी हर साँस उधार की हो। 

उसे बार -बार दीप्ति का स्मरण हो रहा था ,उसकी आँखों के सामने वही दृश्य बार -बार आ रहा था ,जब अनाया ने उसकी बलि ली “दीप्ति…”  वह बुदबुदाया—  “हम उसे बचा नहीं सके…पछतावे से उसकी आँखों में आंसू आ गए। ”

रिद्धिमा की आँखें भर आईं , उसकी आवाज़ भर्रा गई—  “उसकी तो कोई गलती भी नहीं थी। 

तब कबीर ने भी यह पहली बार स्वीकार किया,“यह युद्ध अब सिर्फ हमारे लिए नहीं रहा…”  “अब यह उन सब के लिए भी है…  जो हमने खो दिए।”

अचानक हवा, बहुत ठंडी हो गयी ,कबीर के भीतर फिर वही परिचित खिंचाव उठा—  जैसे किसी ने उसकी आत्मा को छू लिया हो,उसे वही पूर्वाभास हुआ,तब उसने बताया - “वह… पूरी तरह से नहीं गई है।”  उसने धीमे कहा।

“क्या मतलब?”  गौरांश ने घबराकर पूछा।

कबीर ने चारों ओर देखा, उसकी आँखों में हल्की-सी नीली चमक लौट आई थी ,तब वह बोला -“वह अब शरीर से नहीं—  किसी और रूप से हमला करेगी।”

रिद्धिमा का दिल बैठ चुका था।  “कौन-सा रूप…?”

कबीर की आवाज़ बेहद भारी हो गई थी —**“मासूमियत का !”** वह बच्चा —! अभी कबीर ठीक से अपनी बात समझा नहीं पाया था**ठीक उसी क्षण, सड़क के उस पार…एक छोटा-सा साया उभरा। एक **आठ-नौ साल का फटे हाल ,गंदा सा बच्चा !उसकी आँखों में डर था ,वह लड़खड़ाते हुए उनकी ओर बढ़ा ,  उसने रिद्धिमा की ओर देखकर कहा— द..... दीदी ! “मेरी मम्मी… कहीं खो गई हैं। 

रिद्धिमा का दिल पिघल गया, वह तुरंत उसकी ओर बढ़ी और पूछा —“अरे, तुम यहाँ कैसे आ गए…?”

जब कबीर ने, रिद्धिमा को उस बच्चे की तरफ बढ़ते हुए देखा,तब कबीर अचानक चीखा—**“रिद्धिमा, रुको!!!”**

लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। बच्चे ने सिर उठाया और उसकी आँखों में डर नहीं था।**उसकी आँखें सिर्फ काली थीं, अथाह ख़ालीपन था।**उसका मुँह अस्वाभाविक रूप से फैल गया।**तभी अनाया की आवाज़ उसके गले से निकली —**“मैंने कहा था,न …  तुम्हें बहुत कुछ खोना है, कबीर !”

रिद्धिमा पीछे हटने ही वाली थी—लेकिन बच्चे का हाथ किसी बिजली की तरह सीधा उसके दिल की ओर।बढ़ा। कबीर एक झटके में उनके बीच में आ खड़ा हुआ **छुरा जैसा काला पंजा—  सीधा कबीर के सीने में घुस गया।**रिद्धिमा की चीख निकल गयी —**“कबी———र !!!”**कबीर के सीने  से खून की फुहार बह निकली ,उसके रक़्त के छींटे सड़क पर गिर पड़े ,कबीर घुटनों के बल जमीन पर बैठ गया। बच्चे के चेहरे पर क्रूर मुस्कान फैल गई “मासूम लहू सबसे शक्तिशाली होता है…”  

तब अनाया बोली—  “आज मैं नया जन्म लूँगी'',तभी बच्चे का शरीर काँपने लगा,उसकी आँखों से काली लकीरें बहने लगीं,हड्डियों के टूटने की आवाज़ें गूँजने लगीं और अगले ही पल—**उस मासूम शरीर ने दम तोड़ दिया।**वह जमीन पर गिर पड़ा—वह बच्चा,  बेहद छोटा, बेहद शांत, और पूरी तरह मृत हो चुका था 

रिद्धिमा सन्न रह गई।“उ… उसने एक बच्चे को मार दिया…” उसके होंठ काँप रहे थे। बच्चे के शरीर से काला धुआँ उठने लगा,धीरे-धीरे  वह धुआँ लंबा ,टेढ़ा और हड्डियों जैसा नुकीला एक आकार लेने लगा। कुछ सेकंड बाद—**अनाया अपने नए रूप में उनके सामने खड़ी थी।**अब वह पहले जैसी नहीं थी।उसका चेहरा आधा इंसान, आधा राक्षसी जैसा था।  उसकी पीठ से काली हड्डियों जैसी पंखनुमा संरचनाएँ निकली हुई थीं। उसकी आँखें बिना पुतलियों के पूरी तरह सफ़ेद हो गयी थीं




laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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