Jadui sher

 जंगल के शेर की क्या औकात ?जो शेर हमने मारे हैं ?

देख अपनी माशूका को, कलम ले कागज़ पर उतारे हैं। 

हमारे शेरों को सुनकर माशूका हमारी  घायल हो गई। 

कसम से कहते हैं, हम उसके और वो हमारी  हो गई।


 

 एक- एक शेर हमने, उसके'' सज़दे'' में पढ़ा था।

 लगता ,कुदरत ने उसको हमारे लिए ही गढ़ा था। 

देखते ही उसकी सूरत, हम उसके दीवाने हो गए थे। 

इसकी शान में हमने भी न जाने कितने शेर ग़ढ़े  थे ?


उसकी शान में हमने ,अल्फाजों का गुलदस्ता सजाया था। 

एक -एक शेर हमने भी,माशूक़ के लिए दिल से बनाया था।  

सोचा था , जैसे भी हैं 'जादू शेरों 'का उस पर चल जायेगा। 

हमारी मुहब्बत का असर उन शेरों में, उसे समझ आएगा।

 

मुस्कुराती, बलखाती वो मंज़िल की ओर बढ़ रही थी। 

खट -खट करती हिल से, हमारे दिल में उतर रही थी।

उसकी आंखों में, अपने लिए देखा,इक तूफां बसा था। 

उस बेरहम क़ातिल संग देखा ,हमारा ही मित्र खड़ा था।


देख उनको,दिल पर छुरियां चलीं , हमारे लफ्ज़ लड़खड़ा गए। 

सुनाने चले थे ,शेर !हकलाकर कुछ और ही क़िस्सा सुना गये।

''शेरों का जादू''धरा का धरा रह गया ,जब वो बोली -भाईजान !

क्या शेर सुनाया है ?आपके शेरों के क़ायल हैं मेरे भी अब्बूजान !'    

 


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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