शिल्पा ,रंजन के व्यवहार से परेशान थी ,तब उसकी मम्मी कल्याणी देवी जी उसे समझाने का प्रयास करती हैं ,तब उसे समझाने के उद्देश्य से, आज वो शिल्पा के सामने एक रहस्य भी खोलती हैं। वो बता देना चाहती थीं कि शिल्पा को नित्या के प्रति जो भी गलतफ़हमी है, उसे भूल जाये क्योंकि नित्या ने उसके लिए रंजन के प्रेम का त्याग किया है और अपने स्वार्थ की ख़ातिर उन्होंने भी ,अपने भाई को फोन करके उसका रिश्ता करने की बात कही।
तब वे बताती हैं - इस बीच नित्या ने ,रंजन में कोई दिलचस्पी नहीं दिखलाई ,नित्या का विवाह होने पर.... तब मुझे लगा ,अब रंजन के पास तुमसे विवाह करने के सिवा, कोई रास्ता नहीं रहेगा,उसके घरवालों को मैंने इस कोठी का, अपनी सम्पत्ति का, लालच दिया ,''हमारा जो कुछ भी है ,हमारी बेटी और दामाद का ही तो है। ''और इस तरह रंजन हमारा दामाद बन गया।वो शिल्पा को समझा देना चाहती थीं ,कि रंजन से तुम्हारा रिश्ता जोड़ना हमारे लिए आसान नहीं रहा।
किन्तु उनकी बातें सुनकर शिल्पा बोली - तब तो मैं, बिल्कुल भी गलत नहीं हूं , अब मुझे पूरा विश्वास हो गया है कि रंजन, नित्या से अभी भी, अपने प्रेम का इजहार करता होगा।'हो सकता है ,उसने नित्या के करीब रहने के लिए ही, मुझसे विवाह किया हो।' यह वाक्य कल्याणी जी के सीधे ह्रदय में उतर गया। नित्या भी ,अब उससे संबंध बनाए हुए हैं। यदि वह मेरे लिए उसे छोड़कर गई है तो.... अब उससे क्यों बातें करती है ? जिस व्यक्ति के मन में उसके प्रति पहले से ही अलग भाव रहे हैं , तो क्या ?अब वह साधु बन गया है , भाव तो उसके मन में तब भी वही रहेंगे। तभी तो मैं कह रही थी 'जीजा -साली के रिश्ते की आड़ में ,दोनों एक -दूसरे से मिलते और बातें करते हैं। ''
यह सब तुम इतने विश्वास से कैसे कह रही हो ? कल्याणी जी ने शिल्पा से पूछा।
मैं पूरे सबूत के साथ ही , किसी पर, कोई भी इल्जाम लगाती हूं, कोई यूं ही नहीं कह देता है। जब मुझे रंजन पर शक होने लगा , तब मैंने एक दिन उसके फोन की जांच की थी ,सबसे ज्यादा कॉल उसने नित्या को ही किए हैं।अब तो ये ! सोचता होगा ,हम दोनों का विवाह हो चुका है अब कोई हम पर शक़ भी नहीं करेगा।
माना कि वे लोग बातें कर भी रहे हैं, उससे तुम पर क्या फर्क पड़ता है या तुम्हारे रिश्ते पर क्या फर्क पड़ता है ?
बहुत फर्क पड़ता है, आप एक औरत होकर भी, मेरी भावनाओं को नहीं समझ पा रही हैं , मेरा पति मुझे महत्व न देकर मेरी बहन को महत्व दे रहा है। माना कि आपकी बात सही है ,यदि वो गलत नहीं है ,तब मुझसे छुपकर बातें क्यों करता है ?अब तो उसे बहन कहने का भी दिल नहीं करता , घृणा से शिल्पा ने कहा।यदि मैं उसके पति से इस तरह छुप -छुपकर बातें करूं तो....
अच्छा -अच्छा इतना मत सोच !तुम, मुझे ये बताओ ! क्या तुमने नित्या से बात की तो उसने क्या जवाब दिया ?
जब कल्याणी जी ने उससे पूछा ,तब शिल्पा को लगा ,अब मम्मी को मेरी बात समझ में आ रही है ,तब मासूम सी बनते हुए बोली - इतनी देर से वही तो बता रही थी,किन्तु आप मेरी बातो को समझना ही नहीं चाहती थीं। जब मैंने , उससे पूछा- तू मेरे पति को क्यों फोन करती है, तो कह रही थी -''रंजन से ही पूछ लेना।' उसने मुझे क्या-क्या नहीं कहा ? अब वह पहले वाली नित्या नहीं रही है, जो पहले बातें सुन लिया करती थी, अब तो तुरंत जवाब देती है, और वह भी ऐसे जवाब, जो दिल को चीर जाएं।
बेटी की बातों का प्रभाव कल्याणी जी पर हुआ और वो बोलीं - उसे तो मैं संभाल लूंगी, एक बार भैया से कह दूंगी कि जरा अपनी बेटी को संभाल लें , मेरा कहा नहीं टाल पाएंगे। इससे तुम्हारा ही नहीं, उसका घर भी टूटेगा यदि प्रमोद को इस बात की तनिक भी भनक लग गई कि उसके मन में, कोई भी गलत विचार है तो वह भी अपने रिश्ते पर ज्यादा विश्वास नहीं कर पाएगा।
मैं तो यह सोचती हूं, अब हमारा उनसे क्या लेना देना है ? रंजन ने नौकरी तो छोड़ ही दी है, तब हमारा उनसे क्या मतलब रह गया ? कल्याणी जी देख रही थीं -' बेटी के मन में बहुत ही नकारात्मक विचार घर कर गए हैं वह अपने इस रिश्ते के कारण अपने को असुरक्षित महसूस कर रही है, तब वो बोलीं -तुमने बहुत परिश्रम किया है, मुझे लगता है ,तुमने अपने रिश्ते को भी कम समय दिया है ,इस कारण शायद रंजन इधर -उधर भाग रहा है ,अब तुम थोड़ा अपने इस रिश्ते पर भी ध्यान दो ! अपने मन को ,अपने आप को विश्राम दो !तुम्हें भी अच्छा लगेगा।मेरा विचार है , कुछ दिनों के लिए, तुम दोनों बाहर घूम आओ ! स्थान बदलेगा ,वातावरण बदलेगा ,तो तुम्हें और तुम्हारे रिश्ते के लिए अच्छा रहेगा।
घूमने से समस्या तो हल नहीं हो जाएगी, शिल्पा ने कहा -बात तो वहीं की वहीं रहेगी।
कल्याणी जी सोच रही थी-जब यह बाहर चली जाएगी तो मैं, नित्या को अच्छे से समझा दूंगी ,बेटी के सामने नित्या का समर्थन कर तो रहीं थीं किंतु बेटी के दर्द को भी महसूस कर रही थीं ।
अगले दिन अचानक, शिल्पा, रंजन से बोली -चलो !हम कहीं पहाड़ी स्थल पर घूमने चलते हैं।
रंजन को अब उसके साथ घूमना अच्छा नहीं लगता था ,यह या तो व्यापार की बातें करती है या फिर अपनी पेंटिंग्स में, कुछ नयापन लाने की बातें करती है । तब वह बोला -हम लोग तो घूमते ही रहते हैं, वैसे तुम अब कहां घूमने जाना चाहती हो ?
तुम जाना चाहते हो या नहीं, अकड़ते हुए शिल्पा ने पूछा।
किंतु रंजन का बाहर जाने का कतई भी मन नहीं था। तब वह बोला -हमारा घूमना तो होता ही रहता है,फिर कभी देख लेंगे। धीरे-धीरे उनके रिश्ते में नहीं, जिंदगी में ही नकारात्मकता बढ़ती जा रही थी। एक खालीपन का एहसास होता था। मन दुविधाओं में फंसा रहता था। एक साथ,एक छत के नीचे रहकर भी दोनों अनजान से बने हुए थे। खुलकर कोई, किसी से बात नहीं करता था। बहुत कुछ कहना चाहकर भी ,कुछ नहीं कह पाते थे।
कुछ दिनों तक तो कल्याणी जी ने देखा ,तब उन्होंने शिल्पा से पूछा -ऐसा कब तक चलेगा ?
क्या ,कैसा ?कुछ भी न समझते हुए शिल्पा ने पूछा।
अब तुम इस घर की बेटी ही नहीं ,रंजन की पत्नी भी हो ,उसके करीब रहो !उसे जानने का प्रयास करो !कि वह क्या चाहता है ?इस तरह तो तुम्हारी दूरियां बढ़ती जाएँगी ,इससे तो शादी से पहले ही तुम अच्छे से हंस -बोल लिया करते थे।
मम्मी !मेरा अब इससे बात करने का मन नहीं करता ,जब भी मैं इससे बात करना चाहती हूँ ,तो मुझे याद आता है ,ये मेरे लिए नहीं, नित्या के लिए यहां आता था ,विवाह के पश्चात भी उससे संबंध बनाये हुए है। ये मुझे पसंद नहीं करता था। मुझसे विवाह करना तो जैसे इसकी मज़बूरी बन गयी।
मैं समझती हूँ ,कि तुम्हारे लिए यह सब आसान नहीं होगा किन्तु तुम ये भी तो समझो !उसने तुम्हारे लिए अपनी नौकरी छोड़ी ,तुम्हारी इच्छा के लिए'' घर- जमाई बना ''जबकि तुम जानती हो ,उसे इस तरह यहाँ आकर रहना अच्छा नहीं लगा था। उसने कुछ बात तुम्हारी मानी ,अब तुम्हारी बारी है ,तुम कुछ बातें उसकी मानो !किसी के प्रति तुम्हारे मन में नकारात्मक विचार आते हैं ,तब उसकी अच्छाई के विषय में सोचने लगोगी तब तुम्हे उसकी अच्छाई का पलड़ा भारी लगने लगेगा।
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