Qabr ki chitthiyan [part 60]

हवेली के बाहर, रात फिर से “सामान्य” हो चुकी थी ,लेकिन जो अंदर टूट चुका था-वह अब पहले जैसा कभी नहीं हो सकता था।हवा चल रही थी,पेड़ों की पत्तियाँ की सरसराहट ऐसी लग रही थीं,जैसे कोई बहुत धीमी आवाज़ में चेतावनी दे रहा हो।

रिद्धिमा अब भी कबीर को थामे बैठी थी - उसके हाथ काँप रहे थे, लेकिन पकड़ मज़बूत थी।“तुम्हारे शरीर का तापमान बहुत गिर गया है…”उसने चिंतित होकर कबीर से कहा।


कबीर की साँसें अब भी असंतुलित थीं ,उसने धीमे और टूटे स्वर में कहा -“क्योंकि वह… अभी भी मेरे अंदर है।

 ”गौरांश पास खड़ा, अँधेरे में अभी भी उसी दिशा में घूर रहा था,जहाँ से अनाया ग़ायब हुई थी। “वह वहां से भागी नहीं है…”उसने भारी आवाज़ में कहा—“वह किसी का शिकार करने गई है।”अचानक कबीर के  शरीर झटका खाया और वो सीधा उठकर बैठ गया।उसके मुँह से अनायास ही निकला - ''उसे मिल गया।'' 

रिद्धिमा घबरा गई—“किसे मिल गया है? कौन मिल गया !?”

कबीर की आँखों के सामने धुंधले दृश्य चलने लगे—एक पुराना कमरा…उस कमरे की दीवारों पर टँगी क्रॉस की मुरझाई हुई आकृति…मोमबत्ती की कांपती लौ…और बीच में—दीप्ति ,दीप्ती की आँखों पर कपड़ा बँधा हुआ था।हाथ पीछे बंधे हुए थे ,उसके मुँह से बस हल्की-हल्की सिसकियाँ निकल रही थीं।

कबीर चीखा—“दीप्ति!!!”

रिद्धिमा और गौरांश दोनों चौंक गए ,घबराकर उन्होंने पूछा -“तुम्हें क्या दिखा!?”

गौरांश ने उसका कंधा पकड़ लिया,कबीर का चेहरा सफ़ेद पड़ चुका था—“अनाया… उसे ले गई है…दीप्ती उसका पहला बलिदान बनने वाली है…” हमें उसे बचाना होगा ,कहते हुए कबीर तेजी से कार की ओर बढ़ा ,वे दोनों भी [गौरांश और रिद्धिमा ] उसके पीछे थे, तीनों कार में तूफ़ान की गति से बाहर निकले।इस समय तीनों एकदम चुप थे ,उस वातावरण में चुप्पी इतनी भारी लग रही थी कि इंजन की आवाज़ भी डरावनी लग रही थी। हवेली से कुछ ही दूरी पर एक पुराना चर्च था—जो दशकों पहले बंद हो चुका था।

कबीर के भीतर से वही आवाज़ फुसफुसाई—“वह वहीं है…”

रिद्धिमा का दिल डूब गया ,“प्लीज़…भगवान ! इस बार देर मत होने देना …” वे तेजी से चर्च के अंदर घुसे ,दरवाज़ा अपने आप चरमराकर खुल गया।अंदर इतनी ठंड थी ,कि साँस लेते समय उनके मुँह से भाप उठने लगी। मोमबत्तियाँ पहले से जली हुई थीं और उनके बीचों-बीच—दीप्ती बंधी खड़ी थी ,दीप्ति की आँखें बँधी थीं लेकिन उसके आँसुओं से पट्टी गीली हो चुकी थी ।उसे जैसे किसी के आने का आभास हुआ और वो बोली -“कोई है…?क… कबीर…?”उसकी आवाज़ काँप रही थी।

रिद्धिमा उसे खोलने के लिए जैसे ही आगे बढ़ी— उसके कदम अचानक वहीं रुक गए। जब उसने देखा ,दीप्ति के पीछे—उसने छत पर अनाया की उल्टी लटकती, एक परछाईं को देखा ,इस समय अनाया का इंसानी रूप कहीं नजर नहीं आ रहा था।उसकी रीढ़ असामान्य तरीके से मुड़ी हुई थी ,उसके हाथ बहुत लंबे थे। उसकी आँखों की पुतली और सफेदी गायब थी ,आँखें पूरी काली हो चुकी थीं। उसने दीप्ति के बाल पकड़े और बोली -“पहला खून…”वो खुश नजर आ रही थी ,जैसे कोई बड़ा कार्य करने जा रही हो ,उसकी आवाज गहरी और चटकी हुई सी लग रही थी -“इस युद्ध की असली शुरुआत।”

कबीर, दीप्ती को बचाने के लिए दौड़ पड़ा -“अनाया! उसे छोड़ दे!!!”लेकिन तब तक देर हो चुकी थी।

अनाया ने दीप्ति का सिर पीछे खींचा और उसके कान के पास फुसफुसाई—“हवेली तुझे स्वीकार करती है।”और फिर—खचाक!! एक तेज़ झटके की गूँज।दीप्ति का शरीर बेजान होकर नीचे लटक गया।

रिद्धिमा के मुँह से चीख तक नहीं निकली—उसकी आवाज़ गले में ही टूट गई और आँखें फटी सी उस बेजान दीप्ती के तन को देख रहीं थीं ,सिर्फ उनसे आंसूं बह रहे थे। 

गौरांश की आँखें पागलपन से भर गईं—वह घुटनों पर गिर पड़ा। 

“न… नहीं…! दीप्ति…!”कबीर की आँखों से नीली रोशनी फूट पड़ी। “तुमने यह क्या किया…?”कबीर की आवाज़ अब इंसानी नहीं रही।उसके चारों ओर नीली लपटें उठने लगीं। उसकी शक्ति से चर्च की दीवारें चटकने लगीं।

अनाया ने हँसते हुए दीप्ति का शरीर नीचे छोड़ा,“यह सिर्फ शुरुआत थी, कबीर !तुम्हें अभी बहुत कुछ खोना है।”कबीर ने ज़मीन पर हाथ पटका।एक शक्तिशाली नीला झटका सीधे अनाया की ओर बढ़ा।अनाया पीछे जा टकराई—दीवार में गड्ढा हो गया।उसके मुँह से काली लहू जैसी तरल पदार्थ गिरने लगा ।कुछ क्षण के लिए—वह कमजोर पड़ी और भागने लगी। 

कबीर गरजा—“भागो मत! सामना करो!”

लेकिन अनाया मुस्कुराई -“अभी नहीं…”और वह धुएँ में बदलकर फिर गायब हो गयी। चर्च में सन्नाटा छा गया। दीप्ति का ख़ामोश और ठंडा शरीर अभी भी ज़मीन पर पड़ा था—

रिद्धिमा उसके पास बैठकर रोने लगी—“ उसने तो कुछ भी नहीं किया था …उसे ही क्यों…?”

गौरांश ने दीप्ति के माथे पर हाथ रखा—उसका चेहरा टूट चुका था।“यह सब मेरी वजह से हुआ है…”वह बुदबुदाया—“अगर मैं उस हवेली से कभी न जुड़ा होता…”

कबीर दूर खड़ा सब देख रहा था,उसकी आँखों में आँसू नहीं थे—केवल पछतावा ,अपराधबोध और आग !“यह मेरी लड़ाई है…”उसने धीमे से कहा—“लेकिन इसकी कीमत दूसरों को चुकानी पड़ रही है।

 अचानक हवा फिर से बदली ,कबीर के भीतर से वह आवाज़ फिर जागी—“वह बहुत दूर नहीं गई है…और अब वह दूसरा शिकार ढूँढ रही है।”

रिद्धिमा ने डरते हुए पूछा—“क… कौन?”

कबीर की आँखें अचानक फैल गईं -“गौरांश…”

गौरांश पीछे हटा—“क… क्या? मैं!?”

कबीर उसके सामने आया—“वह उन लोगों को चुन रही है ,जिनका हवेली से सबसे गहरा रिश्ता रहा है।”

गौरांश का चेहरा पत्थर सा कठोर हो गया—“तो वह मुझे इसलिए मारेगी क्योंकि मैंने सच्चाई देखी है ?”

कबीर ने कड़वी सच्चाई कही—“नहीं…वह तुम्हें मारेगी क्योंकि तुम उसे रोक सकते हो।”

अचानक बाहर से कारों के टकराने की ज़ोरदार आवाज़ आई— तीनों दौड़कर बाहर पहुंचे ,उन्होंने वहां देखा ,सड़क के बीचों-बीच हवा गोल-गोल घूम रही थी—जैसे कोई अदृश्य बवंडर बन रहा हो और उसी बवंडर के बीच—गौरांश का नाम गूँजने लगा—वो अनाया की आवाज़ थी -“गौ…रा…श!” ड़र से गौरांश का शरीर काँप उठा।

रिद्धिमा ने उसे पकड़ा—“तुम कहीं नहीं जाओगे!”अब अनाया की आवाज़ हर दिशा से आने लगी—“अगर वह नहीं आया…”“तो अगला निशाना…रिद्धिमा होगी।”कबीर के भीतर कुछ टूट सा गया ,उसने आगे बढ़कर गौरांश को देखा—“फैसला तुम्हारा है…लेकिन समय किसी का नहीं।”

गौरांश ने रिद्धिमा की ओर देखा,फिर कबीर की ओर..... अचानक ही उसके चेहरे पर एक अजीब शांति छा  गयी। गौरांश ने चिल्लाकर कहा -“अगर मेरी मौत से यह सब रुक सकता है “तो मैं तैयार हूँ।”

रिद्धिमा चीख पड़ी—“नहीं!! तुम ऐसा नहीं कर सकते!”

कबीर का गला भर आया—“यह बलिदान नियमों का हिस्सा है, गौरांश…!और वह नियम तोड़ना चाहती है—ताकि यह चक्र कभी खत्म न हो।”

गौरांश ने हल्की मुस्कान दी—“तो शायद…मेरा जाना ही उसे रोके।”उसने आगे कदम बढ़ाया, उसके आगे आते ही ,हवा और विकराल हो गई।अनाया ठीक उसके सामने प्रकट हुई। “बहादुर…”उसने सराहा—“लेकिन मूर्ख !”उसका हाथ उठा ,काली लपटें गौरांश की ओर बढ़ीं—उसी क्षण कबीर बीच में कूद पड़ा ,काली लपटें सीधे कबीर से जा टकराईं ,दर्द से वह ज़मीन पर गिर पड़ा ,उसकी पीठ जलने लगी ,उसके अंदर की नीली रोशनी बिखरकर बुझने लगी।




laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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