khoobsurat [part 86]

शिल्पा का रोना और चिल्लाना सुनकर उसकी मम्मी, उसके पास आ गई थी और जानना चाहती थीं -कि वह ऐसा व्यवहार क्यों कर रही है ? तब शिल्पा उन्हें बताती है -मेरा पति होकर भी, रंजन मुझसे खुलकर बात नहीं करता, मुझे अपने दिल की बातें नहीं बताता और नित्या से बातें करता रहता है। क्या मुझे इस बात का दुख नहीं होगा ? यह सब मैं किस लिए कर रही हूं, हमारे, अपने लिए ही तो.....  जिससे हमारा भविष्य उज्ज्वल हो, किंतु नित्या के सामने वह मुझे नीचा दिखाता है। क्या मैं, उसका ख्याल नहीं रखती हूं ?

अपनी बेटी की परेशानी सुनकर कल्याणी जी ने कहा -इसमें तुम्हारी क्या गलती है ? वह कोई दूध पीता बच्चा नहीं है, जो उसका ख्याल रखना पड़े। 


वही तो मैं, कह रही हूँ ,रंजन का ख्याल रखने में, हमने कोई कमी नहीं छोड़ी है,नौकर -चाकर उसकी हर छोटी -बड़ी जरूरतों का ख़्याल रखते हैं। भला ये बात, उसे नित्या से कहने की क्या आवश्यकता है ? किन्तु पता नहीं ,वो[नित्या ] क्या दर्शाना चाहती है ? जैसे उसे ही सब संभालना आता है और आज तो कह रही थी -'शक़्ल नहीं है, तो अक्ल से तो काम ले सकती है।'उसके दिल की बात आज उसके मुँह पर भी आ ही गयी। जबसे उसका विवाह रंजन के बॉस से हुआ है। हमें तो जैसे कुछ समझती ही नहीं है।न जाने, अपने को क्या समझे बैठी है ?कहते हुए रोने लगी ,रोते हुए माँ की गोद में लेट गयी। अब तक कल्याणी जी भी समझ गयीं थीं ,ये किसके विषय में बात कर रही है ?

 तब उन्होंने उसके बालों में अपने हाथों की अंगुलियां फिराते हुए पूछा -क्या नित्या का फोन आया था ?

नहीं ,उसे मैंने ही फोन किया था ?

क्यों ?

कई दिनों से मैं, देख रही थी, रंजन किसी से चुपचाप बातें करता है और मुझे देखकर चुप हो जाता है। 

नित्या, कल्याणीजी की भतीजी थी ,अब तक वो [नित्या ] उनके साथ रही है ,उस लड़की ने हर परेशानी में मेरी बेटी का साथ निभाया है ,उसके साथ खड़ी रही है ,मन ही मन इस बात को मानती भी हैं इसीलिए उन्हें नित्या पर इतना तो विश्वास है ,वो कोई भी गलत कदम नहीं उठाएगी ,तब उन्होंने पूछा  -रंजन के फोन करने से नित्या का क्या संबंध ?वो यदि फोन करता भी है, ये जरूरी तो नहीं कि वह नित्या से ही बातें कर रहा हो। काम के सिलसिले में किसी अन्य व्यक्ति से भी तो बात कर सकता है ।

 अब वो तुम्हारे साथ कारोबार भी करता है और तुम्हारी पेंटिग्स के लिए भी, लोगों से मिलता रहता है। हो सकता है ,तुम्हें कोई सरप्राइज देना चाहता हो। 

अपनी माँ की बातें सुनकर ,शिल्पा ने मुँह बनाया और बोली -आप समझ ही नहीं रहीं हैं ,मैं इतनी मूर्ख नहीं हूँ जो बेवज़ह ही किसी पर शक कर बैठूं। 

तुम्हारे पास ऐसा कौन सा सबूत हाथ लग गया ? जो तुम इस तरह की बातें कर रही हो। मैं मानती हूँ, कि उसका पति रंजन का बॉस है ,तब इसमें तुम्हें क्या परेशानी हो सकती है ?वो भी अपनी ही बच्ची है ,हो सकता है ,साली होने के नाते, उससे कभी हाल -चाल पूछ लेता हो ,इसका अर्थ यह तो नहीं ,कि तुम्हारा पति तुमसे कुछ छिपा रहा है। मुझे लगता है ,तुम कुछ ज्यादा ही सोचने लगी हो। 

अपनी माँ की बातें सुनकर शिल्पा, झुंझलाकर अपनी माँ की गोद से उठ बैठी और बोली -ओफ्फो मम्मी !अब मैं इतनी नादाँ भी नहीं कि आदमी के व्यवहार, उसके मन के भावो को पढ़ न सकूं ,आप भूल रहीं हैं ,मैं एक कलाकार भी हूँ, जो भावों को अच्छे से समझती है और उन्हें अपनी कला में उकेरती भी है। मैं भी कोई बच्ची नहीं हूँ जो अपने पति के बदलते व्यवहार को समझ न सकूँ। वो मुझसे ज़्यादा नित्या से बातें करता है और उसकी बातें सुनता भी है।  

ऐसा तुम कैसे कह सकती हो ?

मुझे मालूम था ,आप मुझ पर विश्वास नहीं करेंगी ,आप नित्या का ही पक्ष लोगी। वो आपकी भतीजी जो है। 

तू ,ऐसा क्यों सोचती है ? कभी अच्छा भी सोच लिया कर..... यदि वो रंजन से बात करती भी है ,तो वो तेरा बुरा कभी नहीं चाहेगी,फिर भी रंजन तुम्हारा ही पति रहेगा।  

उसने ,मेरे साथ अच्छा किया ही कब है ?

तू क्या समझती है ?मैं कुछ समझती ही नहीं ,कभी मैंने, न ही तुमसे कुछ कहा ,न ही तुमसे कुछ पूछा किन्तु मेरी, तुम्हारी एक -एक हरक़त पर नजर रही है। उसने तुम्हारे लिए रंजन के प्यार को भी ठुकरा दिया ,अचानक वो इस बात को कह गयीं।

 शिल्पा ,अपनी माँ का चेहरा देखने लगी, यह आप क्या कह रहीं हैं ? उसने ऐसा कब किया ? आप यह बात कैसे जानती हैं ? मुझे ठीक से सारी बात बताइए !

तब कल्याणी जी बोलीं -एक दिन, नित्या ने, रंजन से पूछा था-' तुम यहां किस लिए आते हो ?'

 तब उसने क्या जवाब दिया ?शिल्पा ने उत्सुकता से पूछा। 

उसने कहा - मैं यहां तुम्हारे लिए आता हूं , तुम्हारे साथ व्यवहार तो ऐसे करता था जैसे वह तुम्हें पसंद करता है किंतु वह नित्या को पसंद करता था। तुम्हें याद है, तुमसे एक बार नित्या ने पूछा था -क्या तुम रंजन को पसंद करती हो ? जब तुमने' हां' कहा था। तब वह, तुम्हारे मन की बात जान गई थी, और जब रंजन ने अपने मन की बातें  उसे बताई , तब वह चुपचाप यहां से चली गयी। 

अपनी मां की बात सुनकर शिल्पा बोली -इतनी बड़ी बात आपको मालूम है और आपने एक बार भी मुझे बताना उचित नहीं समझा ,मैं तो सोच रही थी -रंजन मुझसे मिलने के लिए ही यहाँ आता है। यदि उसके मन में ऐसी भावना थी, तब मैं, उससे कभी भी विवाह नहीं करती। मैं आपसे नाराज हूँ ,आपको ये बात मालूम थी तब भी आपने मुझसे ये बात छुपाई। आपकी ऐसी कौन सी मजबूरी थी ?जो आप जानते हुए भी बातों को नजरअंदाज कर गयीं ,नाराज होते हुए शिल्पा बोली। 

तुम !! तुम थीं ,मेरी मजबूरी ! एकदम से कल्याणी जी बोलीं। शिल्पा ने उन्हें पलटकर देखा ,जैसे उसके सामने एक और नया रहस्य खुलने जा रहा हो। मैं जानती थी ,भइया नित्या की पढ़ाई पूरी होने की प्रतीक्षा कर रहे हैं और उसके लिए लड़का भी देख रहे हैं। नित्या चली जाती तो तुम अकेली रह जातीं। तुम एक भावुक लड़की हो ,तुम्हें किसी न किसी सहारे की आवश्यकता तो पड़ती ,जिससे तुम अपने दिल की बात कह सको !उसके साथ, समय व्यतीत कर सको। तब ,मुझे रंजन ही, तुम्हारा सही साथी लगा ,वो तुम्हारे साथ हँसता, बातें करता था ,मुझे भी एक गलतफ़हमी हो गयी थी कि वो तुम्हें पसंद करने लगा है। 

किन्तु जब एक दिन नित्या और रंजन बातें कर रहे थे ,तब मैंने उनकी बातें सुन ली थीं किन्तु मैंने ज़ाहिर नहीं होने दिया कि मैं सब जानती हूँ और तब मैंने नित्या को यहाँ से हटाने के लिए भइया से फोन पर कह दिया -अब उसकी पढ़ाई पूरी होने वाली है, कोई अच्छा सा लड़का देखकर ,नित्या के हाथ पीले कर दीजिये। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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