Qabr ki chitthiyan [part 59]

 अचानक हवा रुक गई ,जैसे किसी ने पूरी सृष्टि की साँस ही रोक दी हो ,तिनका भी नहीं हिल रहा था। अनाया की परछाई—जो अब परछाई नहीं रही थी—सीधे कबीर की ओर बढ़ रही थी, देखने पर उसके इरादे ठीक नहीं लग रहे थे। 

यह देखकर रिद्धिमा चीखी—“कबीर, पीछे हटो!!”

लेकिन कबीर के पैर जैसे ज़मीन से चिपक गए थे,उसकी आँखों के सामने अब सिर्फ वही गाढ़ी, चिपचिपी,जीवित महसूस होती धुंध थी और उसी धुंध के बीच से एक आवाज़ उसके भीतर गूँजी—“देख रहा है ?यही वह शक्ति है…जिसे तूने जला दिया,और जिसने अब तुझे ही चुन लिया है।”


कबीर के होंठ काँप उठे और घबराकर पूछा -“तू… अब भी ज़िंदा है…?”

वह आवाज़ फुसफुसाई—“मैं मरा नहीं…मैं बँट गया हूँ,थोड़ा-सा अनाया में,और थोड़ा-सा तुम में।”

अनाया के कदम ज़मीन पर पड़े—लेकिन उसकी आवाज़ इंसानी नहीं थी,वह आवाज़ ऐसी थी जैसे पत्थर पर नाख़ून घसीटे जा रहे हों।उसकी आँखों की पुतलियाँ पूरी तरह काली थीं।पलक झपकते ही उसका चेहरा पुराना सड़ा एक पल को बदला हुआ सभी ने देखा ,जैसे किसी और चेहरे की परत उस पर चढ़ी हो।

गौरांश चीख पड़ा—“ये वो अनाया ! नहीं है…ये हवेली की शक्ति है…जो इतने वर्षों से बलिदान ले रही थी !!”

अनाया का सिर एकदम से थोड़ा टेढ़ा हो गया,जैसे वह इस नाम को चख रही हो।“हवेली ?”वह हँसी—लेकिन हँसी में कोई इंसानी खुशी नहीं थी।तब उसकी आवाज गूंजी “हवेली तो सिर्फ एक पिंजरा थी…अब मैं आकाश हूँ। ”

रिद्धिमा डर के मारे पीछे हट चुकी थी,“अनाया… यह मज़ाक बंद करो…तुम बीमार हो… हमें अस्पताल जाना चाहिए…”

अनाया ने उसकी ओर देखा—और पहली बार उसकी आवाज़ में सीधी धमकी उतरी-“जो मुझे बीमार कहे…वह सबसे पहले गिरेगा।”तभी रिद्धिमा को हवा में एक झटका लगा और रिद्धिमा अचानक पीछे जा गिरी—बिना किसी चीज के छुए,कबीर का खून जम गया।

कबीर के सीने में, एक अजीब सा दर्द उठा,ऐसा जैसे दिल के साथ कोई और चीज़ भी धड़क रही हो।“धक… धक… धक…”लेकिन यह उसकी धड़कन नहीं थी,उसने अपना हाथ, अपनी छाती पर रखा—तो उसे अंदर कुछ हिलता महसूस हुआ।“यह मैं हूँ…तेरे भीतर ”वह आवाज़ फिर गूँजी -''अब मैं अधूरा नहीं हूँ।”कबीर की साँसें तेज़ हो गईं।उसकी आँखों के सामने पुराने दृश्य घूम गए—हवेली के गलियारे…खून से लिखी चिट्ठियाँ…और साया की अधूरी आत्मा…उसका सिर दर्द से फटने लगा।

गौरांश भागकर उसके पास आया—“कबीर! अपनी आँखें देख !ये तुझे क्या हो रहा है ?”

रिद्धिमा काँपती आवाज़ में बोली—“उसकी आँखों में…रोशनी और अंधेरा एक साथ दिख रहे हैं…”

कबीर की एक आँख सामान्य थी,दूसरी पूरी तरह काली हो चुकी थी ,वह अब' दो सचों' का इंसान बन चुका था।

अनाया धीरे-धीरे हवा में ऊपर उठने लगी,उसके पैर ज़मीन से कई इंच ऊपर थे,उसकी परछाई अब उसके नीचे नहीं थी—बल्कि दीवारों पर चल रही थी।हँसते हुए उसने कहा—“कबीर…! तू ,मेरा अधूरा हिस्सा है और मैं तेरा।”

कबीर दर्द में कराह उठा—“मुझे छोड़ दे ! तूने पहले ही मुझसे बहुत कुछ छीन लिया है!”

अनाया की आँखों से काली धार गिरने लगी—जैसे आँसू नहीं…साया टपक रहा हो।

“छीन लिया?”वह दहकी हुई, आवाज़ में बोली—“तूने, मुझे जला दिया ,तूने मेरे घर को राख बना दिया।
अब बारी मेरी है…”

रिद्धिमा ने साहस जुटाया—“अनाया… तुम्हें यह सब नहीं करना पड़ेगा, हम तुम्हारी मदद कर सकते हैं।

 अनाया ने उसकी ओर देखा—कुछ क्षण के लिए उसकी आँखों में वही पुरानी अनाया कमज़ोर डरी ,सहमी सी ,अनाया झलकने लगी।“मदद !”वह फुसफुसाई और एकदम से उसका चेहरा क्रूर हो गया —“मदद ,मुझे तब चाहिए थी…जब मैं उस कमरे में बंद थी…जब मेरी यादें मुझसे छीनी जा रही थीं…”उसका चेहरा फिर कठोर हो गया।“अब मुझे कुछ नहीं चाहिए—सिवाय तुम्हारी दुनिया के पतन के।” हवा में अचानक एक तेज़ झटका आया ,पास खड़ी एक कार ज़ोर से पलटकर दूसरी कार पर जा गिरी और ज़ोरदार धमाका हुआ। 

रिद्धिमा चीख पड़ी,गौरांश भी अनाया की ओर देखते हुए चिल्लाया—“रुक जा!अगर तूने आगे बढ़ना जारी रखा—तो सब मर जाएँगे!”

अनाया मुस्कुराई -“यही तो मेरा उद्देश्य है।”उसने अपना हाथ उठाया,काले धुएँ की एक लकीर सीधे गौरांश की ओर लपकी।

कबीर पूरी ताक़त से उसके आगे कूदा—और गौरांश को धक्का देकर किनारे कर दिया ,धुआँ सीधे कबीर के सीने में घुस गया,वह हवा में उछलकर दूर जा गिरा।

रिद्धिमा चीखते हुए उसके पास पहुँची—“कबीर!!”उसका शरीर ठंडा पड़ने लगा था ,साँसें  बहुत धीमी हो गयी थीं। उसके कानों में वही आवाज़ गूँजी —“देखा ?मैं तुझे बचा भी सकता हूँ…और मार भी…”

कबीर की उँगलियाँ काँप उठीं,उसकी आँखों से हल्की-सी रोशनी निकली। अचानक कबीर का शरीर धीरे-धीरे ज़मीन से ऊपर उठने लगा।

रिद्धिमा घबरा गई—“कबीर! यह क्या हो रहा है!?”उसके चारों ओर हल्की नीली रोशनी फैल गई।काली धुंध और नीली रोशनी आपस में टकरा रही थीं ,दो शक्तियाँ—एक ही शरीर के लिए लड़ रही थीं।

अनाया की आँखें फैल गईं,पहली बार—उसके चेहरे पर हैरानी आई।“यह… यह कैसे संभव है…?”

कबीर की आवाज़ गहरी और भारी बदली हुई लग रही थी—“ तुम अकेली नहीं हो,जिसे हवेली ने छुआ है।उसने हवा में हाथ उठाया ,काली धुंध पर नीली रोशनी का प्रहार हुआ—और धुंध पीछे हट गई।

रिद्धिमा चकित—“वह… वह उसे रोक पा रहा है…!”

गौरांश फुसफुसाया—“शायद… उसने साया को मुक्त नहीं किया…बल्कि अपने भीतर बाँध लिया है…”

कबीर ज़मीन पर वापस उतरा।उसकी आँखें अब दोनों सामान्य नहीं थीं—एक नीली रोशनी से चमक रही थी,दूसरी काली से..... अंधेरा और प्रकाश — एक ही शरीर में स्थान बना चुके थे। 

अनाया ने गुस्से में चीखी ,उसके चारों ओर धुऐं का तूफ़ान बन गया।“तू मेरे खिलाफ खड़ा होगा!?”उसकी आवाज़ आसमान तक गूँजी।

कबीर धीमे, लेकिन दृढ़ कदमों से आगे बढ़ा “तूने हवेली की शक्ति को अपनाया है…और मैंने उसकी क़ैद को..... ”

गौरांश और रिद्धिमा पीछे हट गए ,वे जानते थे—यह लड़ाई अब इंसानों के बीच की नहीं।

अनाया ने दोनों हाथ फैलाए—'काली लपटें' हवा में तैरने लगीं।

कबीर के चारों ओर नीली रोशनी आश्चर्यजनक रूप से दीवार की तरह खड़ी हो गई ,दोनों के मध्य टकराव हुआ।धमाक—!!!!पूरा मैदान काँप उठा। पेड़ झुक गए,सड़क में दरारें आ गई।धुआँ और रोशनी टकराकर विस्फोट में बदल गए।जब धुआँ छँटा—अनाया कुछ कदम पीछे जा चुकी थी और कबीर—घुटनों के बल बैठा था किन्तु वह हारा नहीं था।

अनाया ने पहली बार दर्द भरी आवाज़ में कहा—“तू सोचता है,तू मुझे रोक सकता है?”

कबीर ने सिर उठाया,उसकी आँख में आँसू थे…और आग भी।“मैं तुझे बचाने आया था, अनाया…लेकिन अब…अगर ज़रूरत पड़ी…तो तुझे रोकने के लिए मैं, तुझसे लडूंगा।”कुछ क्षण—सिर्फ सन्नाटा !रहा फिर अनाया मुस्कुराई।

“तो यह युद्ध है, कबीर !”उसने पीछे हटते हुए कहा—“अगली बार…मैं सिर्फ ताकत नहीं दिखाऊँगी…मैं तुम्हारे अपनों को छीनूँगी।”और वह काली धुंध में घुलती चली गई। वह रात फिर अचानक सब कुछ सामान्य हो गया ,जैसे कुछ हुआ ही न हो।

कबीर लड़खड़ाकर ज़मीन पर बैठ गया ,उसकी शक्तियाँ धीमी पड़ रही थीं।

रिद्धिमा दौड़कर उसके पास आई—उसने ,कबीर को थाम लिया और उससे पूछा -“तुम ठीक हो?”घबराहट से उसकी आवाज़ काँप रही थी।

कबीर ने धीमे से जवाब दिया—“नहीं…लेकिन अब पीछे हटने का रास्ता भी नहीं है।”

गौरांश ने क्षितिज की ओर देखा—जहाँ अनाया गायब हुई थी।

“अब हवेली बाहर आ चुकी है, कबीर…अब यह लड़ाई सिर्फ एक जगह की नहीं—पूरी दुनिया की होगी।”कबीर ने आँखें बंद कीं ,उसके भीतर वह आवाज़ अब शांत थी—लेकिन उसे पल -पल महसूस हो रहा था कोई उसके भीतर कोई जीवित है ,तब वो बोला -“यह सिर्फ शुरुआत है…”

अब कहानी एक नए चरण में प्रवेश कर चुकी है:अनाया — हवेली की नई धारक बन चुकी है ,कबीर — प्रकाश और अंधकार का संगम और रिद्धिमा — वह बंधन, जो कबीर को इंसान बनाए रखता है। गौरांश — वह जो सब कुछ खो चुका है, पर लड़ने को बचा है


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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