अरमानों की गठरी लिए ,घर से चली थी।
पुष्प पग धरती, भावी जीवन से मिलने चली थी।
कल्पनाओं का सागर सजा,धरती -गगन से मिलने चली थी।
काँपती ,इठलाती ,मुस्कान लिए अरमानों की मंजिल बसाने चली थी।
मैं, उजास लिए मन में, मधुर स्वप्न सजाने चली थी।
रातों की सुंदर यादों में ,अपनी उमंगों संग समाने चली थी।
अजनबी हम इक दूजे से ,विश्वास की कश्ती बढ़ाने चली थी।
मांग भर मोतियों संग, कंकण खनक लिए तुझे आजमाने चली थी।
अरमानों की कश्ती में बैठ ,जग के हिचकोले खाने चली थी।
इक जन्म मैके का है ,अब तुझ संग दूजा जीवन निभाने चली थी।
हम दो पंछी इक डाल के ,मुहब्बत की नई दुनिया बसाने चली थी।
तुझ संग ,आज इस नवीन धरा पर दिलों की बस्ती बसाने चली थी।
दिन -महीने, साल बीते तुझ संग,न याद रहे कुछ ' बेगाने पल'!
रखा कदम, इस विराट जीवन में, जिसको तेरे लिए अपनाने चली थी।
साल दर साल बढ़ती रही, प्रीत हमारी, मिलता रहा आशीष !
स्मरण रहा, तेरा साथ, तेरा विश्वास तुझ संग जीवन नैया तैराने चली थी।
हर वर्ष यूँ ही आता रहे,लिए उन यादों का मेला,जीवन का उल्लास !
सहारे जिनके छोड़ आई,' नेहर' अपना दिल की दुनिया बसाने चली थी।
मंज़िलें पार करते रहें ,लम्हें खूबसूरत रहें, महकती रहे बगिया हमारी।
कहते हैं ,लोग !तुम्हें सिखाती हूँ ',मैं' सीखती रही तुमसे जीवन ये नार तम्हारी।
नोट -वैवाहिक जीवन भी ,एक नारी के लिए नवजीवन की तरह ही है ,जब वो अपने मैका [नेहर ]छोड़ दूसरे के जीवन में प्रवेश करती है। अथवा कोई दूसरा उसके जीवन में प्रवेश करता है। तब वो उमंग ओेर उल्लास संग उसके जीवन में प्रवेश करती है और ईश्वर से यही दुआ करती है,-कि हर वर्ष ये दिन मेरे जीवन में आ, मेरी यादों को महकाता रहे।
