Main anek roopon mein hun

थक जाती हूं, ठहर जाती हूं,

देखती हूं जब, चेहरे पर मुस्कान !

भोजन बना खिलाती हूं, तब सोचती हूं,

भूली मैं कैसे?अपना रूप मैं 'अन्नपूर्णा' भी तो हूं।


 

जीवन के कटु अनुभवों से ज्ञान ले,

जीवन की कठिनाइयों को पार कर ,

देती हूं संस्कार, जब अपने से छोटों को ,

समझा लेती हूं, सोचती हूं, मैं' सरस्वती' का रूप हूँ।

 

 माँ की ममता से लाचार हो,

सहन करती हूं अनेक बातें, ठहर जाते इरादे ,

ज़िंदगी की क़शमक़श में, इक रूप नजर आता, 

समझा  लेती हूं ,अपने आपको, मैं ''जन्मदात्रि'भी हूं। 

 

छुपा लेती हूं ,जीवन के पल,सिसकती हूं,तन्हाइयों में ,

कभी केंद्र बिंदु सी बन, कभी इर्द -गिर्द घूम किसी ग्रह सी,

कभी कठोर ,कभी नरम भी बन, पलों का गणित रखती हूँ। 

निभाती हूँ ,जीवन की रस्में, उत्तरदायित्व'' गृह लक्ष्मी''का है।


जीवन के कंटकों से थकी ,सुकून की तलाश में 

 कभी बन जाती कठोर, क्रोध, आवेग में भूल जाती। 

नारी का सौम्य रूप ,आँच आए जो मेरे अस्तित्व पर ,

तब याद आता है, मैं ''दुर्गा ''और'' काली'' भी हूँ। 


बढ़ाती हूं कदम, अपनी मंजिल की ओर ,

दर्दभरी राहों से सुकून मिलता, मुझे तेरी बाहों से,

चंचल ,शोख़ ,बहती धारा सी ,ठहर जाती तेरी बाँहों में 

अनेक रूपों में समाई,संग तेरे बढ़ जाती,मैं शिवा की पार्वती हूं। 


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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