सरपंच की पत्नी अपने घर आती हुई, उन दो लड़कियों को पहचानने का प्रयास कर रही थी , आखिर ये दोनों कौन हैं और इधर क्यों आ रही है ?वो यही सोच रही थी। तभी उनमें से एक लड़की ने कहा - नमस्ते, मां जी !
नमस्ते , तुम कौन हो ? किस से मिलना है ? मैं तो तुम्हें पहचान नहीं पाई।
हम शहर में रहते हैं , गांव देखने के लिए आए थे , आपका घर थोड़ा अच्छा लगा इसीलिए सोचा- आप लोगों से मिल लेते हैं। गांव के लोगों ने बताया -' यह सरपंच जी का घर है , इसलिए यहाँ चले आए।
अच्छा, तुम लोग शहर से हो , सरला जी ने, सपाट से शब्दों में कहा, उन्हें जैसे हमें देखकर कोई खुशी नहीं हुई थी, फिर भी बोली - आओ बैठो !
आपका घर तो बहुत बड़ा है, साफ- सुथरा भी है, पारो ने कहा।
धन्यवाद ! छाछ पियोगी या फिर चाय पियोगी, गांव के लोग तो छाछ ही पीते हैं, पर तुम तो शहरी हो ,चाय ही पियोगी।
हम कुछ नहीं लेंगे, क्या सरपंच जी यहां पर नहीं है ? तब तक जैसे रूही ने भी समझ लिया था कि मुझे कैसे बात करनी है, इसीलिए रूही ने, सरपंच जी के लिए पूछा।
वो तो किसी काम के सिलसिले में गांव से बाहर गए हैं, आते ही होंगे। कहकर वो अपने काम में व्यस्त हो गयीं। घर सूना सा लग रहा था और सरला जी भी शांत थी, न ही उनके चेहरे पर कोई खुशी थी, न ही कोई परेशानी !
क्या घर में और कोई नहीं है ,आपके गांव के लोग बहुत अच्छे हैं, बातचीत का सिलसिला आरम्भ करते हुए, पारो ने पूछा।
हां सभी लोग बहुत अच्छे हैं, एक दूसरे की सहायता के लिए खड़े रहते हैं। वैसे तुम किस शहर से हो ? आपके गांव से दो-तीन घंटे का रास्ता है। मेरा नाम पार्वती है, और इसका नाम रुही !
तभी उस घर में एक लड़की ने प्रवेश किया और बोली -चाची जी ,क्या घर में मेहमान आये हैं ?मां ने कहा -जाकर देख आ ! तेरी चाची को किसी चीज़ की जरूरत तो नहीं।
उसे देखकर सरला जी थोड़ा मुस्कुराईं और बोली -काजल ! तू आ गयी,अच्छा किया ,स्कूल से तेरी छुट्टी हो गयी। जा इन दोनों के लिए चाय बना ला !उस लड़की ने उन दोनों को देखा मुस्कुराई और अंदर की तरह चल दी ।
मैं छाछ लूंगी ,रूही ने कहा।
सरला जी ने वहीं से बैठे -बैठे काजल से कहा -काजल बेटा.... ! तू एक ही कप चाय बनाइये !
ये कौन है ?अचानक रूही पूछ बैठी।
ये हमारे जेठ की लड़की काजल है ,आठवीं में पढ़ती है,बड़ी होशियार है,कभी -कभी मेरी सहायता के लिए आ जाती है।
काजल !ये इतनी बड़ी हो गयी ,अचानक रूही के मुँह से निकला।
पारो ने, रूही की तरफ देखा और बोली -इसके कहने का मतलब है ,अभी आठवीं में ही है और इसकी लम्बाई अच्छी है।
हम्म्म्म रूही की तरफ उन्होंने देखा, और उसे छाछ पकड़ा दी और बोलीं - इस लड़की की आवाज ,चाल -ढाल मेरी बेटी के जैसी ही है , इसे देखकर मुझे उसकी याद आ गई , कहते हुए उनकी आंखों में आंसू आ गए।
अच्छा ! अब, आपकी बेटी कहां है ?
कहां होगी ? अपनी ससुराल में ही होगी,उसका एक बड़े खानदान में विवाह जो हो गया है।
क्या आपकी बेटी कभी आपसे मिलने नहीं आती, पारो ने पूछा।
गहरी स्वांस लेते हुए ,उनके चेहरे पर दुःख की घनी छाया उमड़ आई और वो बोलीं उसकी ससुराल वाले ऐसे ही हैं, उसे भेजते ही नहीं हैं , जब से विवाह हुआ है ,एक बार भी नहीं भेजा ,छह महीने पहले सरपंच जी, अपनी बेटी से मिलने के लिए गए थे , तब उन्होंने बताया -कि हमारी बेटी, अपने पति के साथ विदेश में घूमने गई है,अबकि बार सोचा था -उसे सावन पर बुला लेंगे किन्तु जब उसे बुलावा भेजा गया तो...... कहते हुए थोड़ा रुक गयीं ,जैसे शब्द उनके गले में अटक गए हों ,उन्होंने कहा - कुछ दिन बाद आ जाएगी।
तब सरपंच जी ने सोचा -मैं ही,अपनी बेटी से मिलकर आता हूँ।
तो क्या आपकी बेटी उनसे मिली ?रूही ने पूछा।
जब सरपंच जी उससे मिलने के लिए गए , तो उन लोगों ने सीधे मुँह बात ही नहीं की।
क्यों, क्या हुआ, क्यों बात नहीं की ? रूही ने पूछा।
कह रहे थे -कहते हुए रोने लगीं और बोलीं -मेरी बेटी, ऐसा कुछ भी नहीं कर सकती ,वो तो बड़ी भोली है ,नादान है, रोते हुए उन्होंने कहा।
तभी बाहर से किसी के कदमों की आहट सुनाई दी ,सभी शांत हो गए ,तब एक मर्दाना स्वर सुनाई दिया -शिखा की माँ ,कहाँ हो ?क्या हमारे घर कोई आया है ?
सरला जी ने ,तुरंत ही अपने आँचल से अपने आंसू पोंछे और वहां से उठ खड़ी हुईं क्योंकि वो जानती थीं ,कि यदि किसी बाहर वाले के सामने ,सरपंच जी ने उन्हें रोते देख लिया तो नाराज़ होगें और डांटने लगेंगे -जब देखो !किसी भी बाहर वाले के सामने, अपना दुखड़ा लेकर बैठ जाती है। '' तभी वहां पर लगभग एक छह फुट के व्यक्ति ने प्रवेश किया ,जिसके सिर पर पगड़ी बंधी थी, हाथों में बड़ा सा डंडा ,श्वेत वर्ण के धोती ,कुरता और उस पर काली जैकेट थी। उनके रुआब को देखकर लग रहा था ,हाँ ये' सरपंच' ही होंगे।
पारो ने रूही की तरफ देखा ,रूही ने इशारे से हाँ में गर्दन हिलाई,रूही अपने पिता को देख रही थी ,उसका दिल किया, जाकर अपने पिता से लिपट जाये और अपने पिता से कहे -आपने मुझे किन दरिंदों में भेज दिया ,आपने मेरी एक बार भी सुध नहीं ली ,उसकी आँखों की नमी देखकर पारो ने उसके हाथ पर हाथ मारा।
उन दोनों को वहां देखकर वे बोले -बेटी !कहाँ से आई हो ?गांव के लोग कह रहे थे -हमसे मिलने आई हो। क्या बात है ?किस सिलसिले में मिलना चाहती थीं ?
अंकल जी, नमस्ते !दरअसल बात यह है ,हम लोग शहर में रहते हैं ,हमने कभी गांव नहीं देखा ,ये गांव रास्ते में पड़ रहा था ,तब हमने सोचा -गांव में घूम आते हैं, किन्तु यहां लोगों की भीड़ देखकर हम ड़र गए और गांववालों से कह दिया- आपसे मिलने आये हैं।
उनकी बातें सुनकर वे बड़े जोर से हँसे और बोले -बेटा !गांव में देखने को ऐसा क्या है ? हम गांव के सीधे -साधे लोग हैं ,खेत -खलिहान हैं ,यही हमारी रोजी -रोटी है ,सुख -दुःख में एक -दूसरे के साथ खड़े रहते हैं। हमारे गांव वालों के लिए तो तुम ही देखने वाली चीज बन गयीं, क्योंकि शहर के लोग घूमने के लिए पहाड़ों पर जाते हैं ,विदेश जाते हैं किन्तु गांव घूमने कोई नहीं आता वरना धीरे -धीरे यहाँ भी तरक्की हो जाये। तुम ही आज पहली बार यहां आई हो ,क्या तुम्हारे घरवाले साथ में नहीं हैं ,जो इस तरह स्यानी लड़कियों को यहाँ भेज दिया।
जी !अंकल जी उन्हें तो मालूम ही नहीं है ,हम यहाँ आये हैं ,थोड़ी देर यहां ठहरेंगे और चले जायेंगे ,हमारा ड्राइवर हमारे साथ है।
हाँ बेटा !साँझ ढलने से पहले यहां से चली जाना , इस तरह तुम्हारा किसी भी अनजान जगह घूमना ठीक नहीं है। शिखा की माँ ! मैं खेतों की तरफ जा रहा हूँ ,इन लालियों को कुछ खिला -पिला देना और काजल से कहना, इन्हें गांव दिखा देगी ,कहते हुए वे घर से बाहर आ गए।
रूही जानना चाहती थी ,आखिर मेरे पिता से मेरे ससुराल वालों ने क्या कहा ?
