Mysterious nights [part 141]

पारो और रूही आपस में योजना बना रहीं थीं कि रूही किस तरह यहाँ से विदा होगी ? विदाई का नाम सुनकर रूही को अपने असली माता -पिता की याद आ गई। उसको उदास देखकर पार्वती, रूही से पूछती है -क्या हुआ ?

तब उसे रूही बताती है -आज मुझे अपने असली माता -पिता की याद आ रही है, उनसे मिले बरसों हो गए किन्तु मैं कैसी बदक़िस्मत हूँ ,अब याददाश्त वापस आई है ,तो भी मैं, उनसे नहीं मिल सकती। 


 

  ऐसा कुछ भी नहीं है , यदि तेरी, उनसे मिलने की इच्छा है तो मैं, तुझे उनसे मिलवाकर ले आती हूं, तुझे अपने गांव का नाम -पता तो मालूम ही होगा,भूल तो नहीं गयी , मुस्कुराते हुए बोली -मैंने सोचा था ,शायद अभी तेरी याददाश्त का कुछ ही हिस्सा वापस आया हो क्योंकि इससे पहले तो तूने कभी उनके विषय में ज़िक्र भी नहीं किया।  

नहीं ,ऐसा कुछ भी नहीं है , भला मैं, अपने गांव का नाम कैसे भूल सकती हूं ? 'खेड़ा 'गांव के सरपंच ''किशोरी लाल जी'' की बेटी हूं, रूही गर्व से बोली।उनके विषय में कभी जानने का प्रयास मैंने इसीलिए नहीं किया क्योंकि मुझे ड़र था ,कहीं मेरे ससुराल वालों को मेरे जिन्दा होने और घरवालों से मिलने का पता चल गया तो.... कहीं उनको परेशान न करें।  

नहीं,करेंगे ,वैसे अब तू ,डॉक्टर अनंत की बेटी है , तुझे कोई अब पहचान भी नहीं पायेगा ,यह मत भूल और इस बात को सपने में भी मत भूलना, तू सरपंच की बेटी थी, किंतु अब नहीं। 

तब मैं अपने घर वालों से कैसे मिलूँगी ? रूही ने बेचैनी से अपनी चिंता व्यक्त की। 

चल !आज खेड़ा गांव चलते हैं, कहते हुए पारो ने ड्राइवर से गाड़ी निकालने के लिए कहा। 

दीदी !कहाँ जाना है ?ड्राइवर ने पूछा। 

क्या तुम कभी '' खेड़ा गांव ''गए हो ?पार्वती ने उससे प्रश्न किया। 

नहीं ,ये नाम तो मैं पहली बार ही सुन रहा हूँ ,वहां क्या है ?हमें वहां क्यों जाना है ? 

क्यों जाना है ?इस बात से तुम्हे कोई मतलब नहीं होना चाहिए ,वहां क्या है ?वहां एक गांव है ,मुझे गांव देखने जाना है ,हम बड़े -बड़े शहरों में घूमते हैं, किन्तु कभी अपने गांव -देहातों में जाना भी पसंद नहीं करते जहाँ  हमारे देश के किसान रहते हैं और जो हमारे देश की रीढ़ हैं। तुम कैसे ड्राइवर हो ?जो आस -पास के गांवों के नाम भी नहीं जानते। अब चलो !हम तुम्हें रास्ता बताएंगे, कहते हुए दोनों गाड़ी में बैठ जाती हैं। 

धूल भरे , कच्चे रास्ते थे उन रास्तों पर उनकी गाड़ी डगर -मगर करके चल रही थी, हिचकोले हुए खाते हुए गाड़ी आगे बढ़ रही थी। झुँझला कर पारो ने कहा -कैसे लोग हैं ? दुनिया इतनी तरक्की कर गई और यह गांव के लोग आज भी वही हैं इस गांव की सड़क देखो, आज भी ऐसे ही टूटी-फूटी बनी हुई हैं , इसीलिए तो कहती हूं- गांव के लोग इतनी उन्नति नहीं कर पाते। 

ऐसा नहीं है ,गांव के लोग उन्नति नहीं करना चाहते, किन्तु जो गांव शहर की सड़क से ज्यादा अंदर को हैं , अभी उनकी उन्नति होने में समय लगेगा,जो शहरों की सड़कों से जुड़े हैं ,वे काफी उन्नति कर चुके हैं , रूही ने जवाब दिया। 

ड्राइवर को रास्ता बताते हुए, वे लोग,' खेड़ा' गांव के अंदर प्रवेश कर गए , उस गांव में इतनी बड़ी गाड़ी देखकर लोग अपने-अपने घरों से बाहर निकल आए , क्या हो रहा है, किसकी गाड़ी है? किसी से मिलने आए हैं ? कौन लोग हैं ?इस तरह के प्रश्न वहां खड़ी भीड़ में दबी आवाज में एक -दूसरे के कान में फुसफुसाए जा रहे थे। अनेक प्रश्न उनके मन में उमड़ रहे थे। तब सरपंच जी के बड़े से मकान से थोड़े पहले   वह गाड़ी रुक गई।

 मुझे हमें लगता है, ये सरपंच जी के कोई मेहमान हैं , लगता है ,शहर से आए हैं। 

तभी गाड़ी में से दो सुंदर लड़कियां बाहर आईं और अपने आस -पास का नजारा देखा,तब उनमें से एक बोली -क्या सरपंच जी का मकान यहीं है। 

हाँ ,उस गली में है ,एक ने जबाब दिया। 

कौन है ?ये भीड़ क्यों लगी है ?एक लड़के ने वहां आकर पूछा। 

कोई दो लड़कियां हैं ,इनको पहले यहाँ कभी नहीं देखा,रूही भी अपने गांव को देखकर भावुक हुई जा रही थी। इधर -उधर देख रही थी ,शायद कोई जाना -पहचाना चेहरा नजर आये किन्तु वे अनजाने चेहरे उस अनजान लड़की को देखने में जुटे थे ,जिसके कारण वहां भीड़ इकट्ठा हो गयी थी। 

तब एक महिला आगे आई और उसने पूछा -ऐ.... लाली !तुम कौन हो ,किसके घर आई हो ?

उस महिला को रूही पहचान गयी और बोली -ताई !तभी पारो ने उसका हाथ पकड़कर दबाया और चुप रहने का इशारा किया ,उसे ड़र था ये कहीं भावुक होकर कुछ बोल न दे। 

तब पार्वती बोली - हम लोग शहर में रहते हैं। 

इससे पहले की वो कुछ और कहती ,उससे पहले ही वो महिला बोली -वो तो हमें दिख ही रहा है ,किसके यहाँ आई हो ?ये बताओ !

वही तो बता रही हूँ ,सरपंच जी के यहाँ जाना है ,पारो को उस महिला पर गुस्सा आया। 

उनकी कोई रिश्तेदार लगती हो ,उस महिला ने फिर से प्रश्न किया। 

इससे तुम्हें क्या ?पार्वती उसे आँख दिखाते हुए बोली। 

तभी रूही बोली -ताईजी ! हम उनके दूर के रिश्तेदार हैं ,इधर आ रहे थे तो सोचा, उनसे भी मिल लें ,कहते हुए रूही ने पारो से आगे बढ़ने का इशारा किया। 

ये कौन  है ? तुम्हारी बहन या सहेली इसे तो बात करने की भी तमीज़ नहीं है ,तेरे कारण कुछ नहीं कहा ,वरना ऐसी तेवर दिखाने वाली शहर की छोरियों का हम भूत उतार देंवे ,यह कहकर वो भीड़ की तरफ देखकर हंसी। इतनी भीड़ में ,पारो के मुँह से अपने लिए ऐसे शब्द सुनकर उसे बेइज्जती लगी थी इसीलिए ऐसा कहकर अपनी झेंप उतार रही थी। 

तब तक दोनों आगे बढ़ चुकी थीं ,तब रूही बोली -जब तक आप इनसे शालीनता से बात करेंगी ,तब तक  ''सिर -माथे'' किन्तु यदि आपने इन्हें गंवार समझकर कुछ भी गलत बोला तो ये भी आपका लिहाज़ न करेंगे ।

 वैसे ये सरपंच जी की रिश्तेदार तो नहीं लग रहीं हैं ,आज तक तो नहीं देखा ,तभी एक महिला आगे आकर बोली -पीछे से देखने पर तो ये दूसरी वाली ,सरपंच जी की बेटी शिखा जैसी लग रही है। चाल -ढाल, लम्बाई बिल्कुल उसके जैसा ही है। उसके कहने पर सभी ने दुबारा उधर ही देखा, जिधर से वे जा रहीं थीं। 

हाँ सही कह रही हो चाची ! इसका चेहरा न देखो !तो पीछे से अपनी शिखा ही लग रही है। चलो !भी अपने घर चलो !कुछ काम -धाम नहीं है ,कहते हुए कुछ वहाँ से हटकर आगे बढ़ गए।  कुछ वहीं खड़े अभी बतिया रहे थे।

रूही और पारो  दोनों आगे बढ़ रहीं थीं और धीरे -धीरे चलते हुए एक घर के सामने आकर रुकीं। तभी उन्हें एक अधेड़ उम्र महिला दिखलाइ दी, उन्हें घर के अंदर आते हुए देखकर वो वहीं खड़ी हो गई। तब धीरे से, रूही ने पारो से कहा -यह मेरी मां सरला है।

 पारो ने, रूही को  फिर से समझाया  -तुम रूही हो, शिखा नहीं , यह बात ध्यान रखना। 


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post