गर्वित, रूही को समझाने के लिए , उसे एक पार्क में मिलने के लिए बुलाता है , दोनों वहां मिलकर, आपस में बातचीत कर रहे हैं। बातचीत का विषय ,मुहब्बत ही नहीं वरन 'गर्वित का 'घर जमाई ' बनना या फिर रूही को उसके घर दुल्हन बनकर जाना है। गर्वित अपने तरीके से रूही को समझाने का प्रयास कर रहा है। उसे अपने प्यार की दुहाई दे रहा है और उससे जानना चाहता है -क्या तुम मेरे प्यार के लिए अपना घर छोड़ सकती हो ? क्या वो मेरे प्यार के लिए त्याग करेगी ?
रूही ,सोच रही थी ,यह तो समाज ने रीत ही ऐसी बनाई गयी है ,बेटी को ही, अपना घर अपनी मिटटी छोडकर जाना होता है ,वो तो किसी भी आंगन में जाएगी , वहीं अपनी महक बिखरा देगी किन्तु वो मिटटी भी तो ऐसी होनी चाहिए ,जहाँ उस पौधे को अपनापन लगे। न जाने ये कैसी रीत है ?अपनी जड़ें छोड़कर उसे दूसरी जगह अपनी जड़ें जमानी होती हैं फिर भी लोग, उस मिटटी में ,उसको अपनी जगह बनाने में सहायता करने के बदले ,उसकी परीक्षा लेने लग जाते हैं। शायद एक नारी में ही इतनी शक्ति होती है ,जो दूसरी जगह जाकर भी ,वहां अपने लिए एक कोना तलाश ही लेती है ,और उसी कोने से उस घर को महकाने लगती है।
किन्तु कुछ लोग, उसे ऐसे मिलते हैं ,वे पहले उसके पत्ते नोचते हैं ,फिर उसकी टहनियां और फिर उसे जड़ से ही उखाड़ फेंकते हैं ,जैसे मुझे इन लोगों ने कहीं का नहीं छोड़ा, सोचते हुए ,उसकी आँखों से दो बूँद आंसू टपककर पास खड़े नन्हें से पौधे पर जा गिरी। उसको देखकर रूही के चेहरे पर एकदम से मुस्कुराहट आई ,छोटा सा है किन्तु खुले आसमान के नीचे आजादी से खड़ा है किन्तु हम नारियों को इस घर से ला, दूसरे घर में कैद करना चाहते हैं।'' मायके के लिए ','पराया धन'' तो ससुराल वालों के लिए पराये घर से आई है। ''हमारा घर कहाँ होता है ?''हम तो जहाँ भी रहते हैं ,खुशियां बिखेरने का ही प्रयास करते हैं। ''सिर्फ एक अपनेपन और सम्मान के लिए..... ''
किन्तु ये लोग नहीं सोचते ,हम कोई जानवर नहीं ,हम भी इंसान हैं ,अब ये भी[गर्वित ] मुझे उसी नर्क में ले जाने के लिए मनाने आया है ,सोचते हुए ,उसने नजर उठाकर एक बार गर्वित की तरफ देखा ,उस समय वो रूही को, वो इंसानी रूप में 'शैतान' नजर आ रहा था जो अपने स्वार्थ के लिए केेसा भी रूप ले सकता है।
क्या सोच रही हो ? गर्वित के शब्द उसके कानों में पड़े।
वो जैसे ,किसी और लोक से आई हो , उसके जवाब में तब रूही कहती है -ये तुम कैसी बातें कर रहे हो ? पापा ने तो ,पहले ही सोच लिया था, उन्हें, मुझसे बहुत उम्मीदें हैं, ऐसा करके मैं उनका दिल नहीं तोड़ सकती। कुछ सोचते हुए बोली -तुम कुछ दिन हमारे साथ रहो !फिर घूमने जाने के बहाने हम हवेली में आ जाएंगे।
हाँ, इसके लिए सोच सकता हूँ किन्तु तुम तो मेरे साथ हो।
हाँ ,मैं हमेशा से ही तुम्हारे साथ हूँ ,उसे घूरते हुए बोली ,मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहना चाहती हूँ ,तुम्हारे अंतिम समय तक मैं, तुम्हारे साथ रहना चाहती हूँ ,अब जैसे उसे डर नहीं लग रहा था। मैं तुम्हारे साथ रहने के लिए अपने घर वालों को छोड़ दूंगी। मैं तुमसे बहुत प्रेम करती हूं, रूही ने प्रेम करने का अभिनय किया किंतु मम्मी- पापा को कैसे समझाऊंगी ?उसने अपनी मजबूरी जतलाते हुए चिंता व्यक्त की ।
यदि तुम तैयार हो, तो मैं कुछ भी कर सकता हूं, तुम्हारे मम्मी- पापा को भी समझा सकता हूँ कहते हुए, गर्वित ने रूही का हाथ अपने हाथ में ले लिया। मन ही मन प्रसन्न हुआ, जिस योजना के तहत वह आया था वह योजना सफल होती नजर आ रही थी।
अभी विवाह में बहुत समय है, मैं घर पर जाकर कुछ सोचती हूं , मम्मी -पापा का मन टटोलने का प्रयास करती हूं ,हो सकता है ,वे ही हमें साथ रहने की इजाजत दे दें ! मेरा मतलब है, अपनी बेटी को विदा करने के लिए तैयार हो जाएं।
यह तो और भी अच्छा रहेगा, फिर तो हमें कोई आपत्ति नहीं होगी , खुश होते हुए गर्वित ने, रूही को गाड़ी में बैठाया और उसे उसकी कोठी पर छोड़ आया। घर जाकर रूही ने सारी बातें, पारो और तारा जी को बताइ।
मुझे यही लग रहा था, एकदम से पारो बोली -मैं सोच ही रही थी, ये अवश्य ही रूही की विदाई को लेकर, उसे मनाना चाहेगा क्योंकि यदि यह यहां से विदा नहीं होगी तो उनकी रस्में कैसे पूरी होगीं ? तूने बताया था न.... कि एक ही लड़की से वह इसलिए विवाह करना चाहते हैं ताकि उनका वह घर न टूटे .... लेकिन खेल में तो अब मजा आएगा, जब वो एक ही लड़की उस घर को बर्बाद कर देगी।
तू भी न जाने क्या अनाप-शनाप बोलती रहती है ,अरे ! इतनी बड़ी हवेली है और इतने अमीर लोग हैं, उन्हें कम मत आंक , तू तो इसे'' बच्चों का खेल समझ रही है।'' अब आगे क्या करना है ?वह तो बता ! उत्साहित होते हुए रूही ने पारो से पूछा। जब से रूही, गर्वित से मिलकर आई है , अब उसका मन थोड़ा हल्का हुआ है मन पर जो दर्द था, भारीपन था, जो डर समाया हुआ था, वह अब कम हो गया था। अंदर ही अंदर वह अपने आप को, जैसे तैयार कर रही थी।
तब पारो बोली -योजना हमारी वही है , मौसा जी और मौसी जी नहीं मानेंगे।
तब क्या होगा ? फिर मैं उस हवेली में कैसे जाऊंगी ?
तुम जाओगी, अपने मां-बाप को, धोखा देकर जाओगी।
मतलब ! मैं कुछ समझी नहीं, क्या तुम फिल्में नहीं देखती हो ?
नहीं, मैंने आज तक कोई फिल्म नहीं देखी है।
तब मैं बताती हूं -एक विवाह तो माता-पिता की सहमति से होता है ,दूसरा विवाह लड़के -लड़की जब आपस में प्रेम करते हैं, जब उनमें प्रेम विवाह होता है तब वह अपने प्रेम के लिए माता-पिता को भी छोड़कर, अपनी ससुराल चली जाती है , वही तुझे करना है। माता-पिता का नाम सुनकर रूही को आज अचानक अपने असली माता-पिता का स्मरण हो आया। वो सोच रही थी -न जाने वे, कैसे होंगे ? इतने दिन हो गए, अब तक तो याददाश्त नहीं थी और जब से याददाश्त वापस आई है तब से मैंने उनके विषय में जानने का प्रयास भी नहीं किया। पता नहीं वे दोनों कैसे होंगे ?
अचानक रूही को उदास देखकर, पारो ने समझा, यह डॉक्टर साहब और तारा जी को छोड़ने की बात सुनकर उदास हो गई है। तब उसने पूछा -क्या सोच रही है ? मैं तुझसे मिलने आया करूंगी।
नहीं, मैं कुछ और ही सोच रही हूं , मैं शिखा के माता-पिता के विषय में सोच रही हूं, न जाने वे लोग कैसे होंगे उन्हें अपनी बेटी के विषय में कुछ जानकारी है भी या नहीं, कैसे पता चलेगा ?
आज तुझे अचानक उनकी याद कैसे आ गई ? पारो ने पूछा।
उनकी याद तो अक्सर आती ही रहती है किंतु सोचती हूं, यदि मैं भावुकता में अपने माता-पिता से मिलने गई और इन लोगों को पता चल गया तो क्या होगा ? ये लोग, उन्हें नहीं छोड़ेंगे।
