Mysterious nights [part 139]

गर्वित ने, रूही को एकांत में मिलने के लिए बुलाया था। रूही जाना तो नहीं चाहती थी किंतु पारो ने जबरन ही उसे भेज दिया। तू जाना क्यों नहीं चाहती है ? जब वह, तुझे बुला रहा है। इस तरह डरेंगी, तो कोई काम नहीं कर पाएगी , तुझे समझा -समझा कर मैं तो थक गई , तुझे मजबूत बनना पड़ेगा। तभी तो तू। उन हैवानों से अपना बदला ले पाएगी, अब तुझे डर किस बात का है ? मरने का, मर तो, तू पहले ही चुकी है। इज्जत का, वह भी पहले ही जा चुकी है। अब बस तेरा एक ही लक्ष्य होना चाहिए -बदला सिर्फ बदला ! तू जा ! उससे मिल, पता तो चले, कि वह क्या चाहता है ? किसी पार्क में मिल ले, दिन में तो कुछ नहीं कहेगा। क्यों मौसी जी आपका क्या विचार है ?


मैं क्या कर या कह सकती हूं ?जब तक हमें, सामने वाले की, इच्छा -अनिच्छा का पता नहीं चलेगा। उसको जानने के लिए तो फिर तुम्हें उससे मिलना ही होगा। 

उसकी इच्छा का क्या अचार डालना है ? इतना तो हम जानते ही हैं ,वो हमारी रूही को प्रेम के झांसे में ला कर ,उससे विवाह की औपचारिकता पूर्ण करके अपनी उसी हवेली में ले जाना चाहता है ,ताकि फिर से  एक औरत को कई मर्दों के सामने परोसा जा सके ,विवाह एक से और फिर रस्म के नाम पर वही षड्यंत्र हो ,जैसा शिल्पा के साथ हुआ था। 

ऐसा मत कह !पारो !अब मेरी रूही वो सब नहीं सहेगी ,उसकी बात सुनकर तारा जी का दिल जैसे टुकड़े -टुकड़े हुआ जा रहा था। 

तभी तो कह रही हूँ ,दुश्मन के पास जा और पता लगा, उसकी क्या योजना है ?यह लड़ाई तेरी है और तू जितना दुश्मन के करीब रहेगी ,उतना ही उसे अच्छे से समझ पायेगी। 

रूही , गर्वित से मिलने के लिए, एक बगीचे में जाती है। उसे देखकर गर्वित, मुस्कुराता है और कहता है -मेरे प्यार में लगता है, तुम कमजोर होती जा रही हो। 

क्यों, तुम्हें ऐसा क्यों लगता है ? जैसे पहले खिली -खिली सी रहती थीं,  अब न जाने , तुम्हें क्या हो गया है ? कुछ मुरझाई सी लग रही हो।तुम ठीक तो हो या फिर मेरे बिना दिल नहीं लगता ,कहकर वो मुस्कुरा दिया। 

सच कह रहे हो , अभी मुझे घबराहट होती है ,हवेली में जाकर मैं, किसी को खुश कर भी पाऊंगी या नहीं तुम्हारा इतना बड़ा परिवार है ,सबकी अलग -अलग पसंद होगी ,न जाने कैसा स्वभाव होगा ? किन्तु तभी मुझमें थोड़ी हिम्मत सी आती है ,तुम जो, मेरे साथ हो कहते हुए उसका हाथ पकड़ती है और पूछती है -कभी मुझे परेशानी महसूस हुई ,तब तुम तो मेरे साथ रहोगे ,न.... 

हाँ -हाँ क्यों नहीं ? आखिर तुम मेरी अर्धांगनी जो बनने वाली हो ,मैं तुम्हारे साथ नहीं होऊंगा तो फिर किसके साथ होऊंगा ? तुम्हें वहां किस बात का डर होगा ?वहां सभी अपने ही तो हैं। तुम उस खानदान की बहू बनोगी, इसमें घबराने की क्या बात है ?

 उस परिवार में और कितनी  बहुएं हैं ? रूही ने जानबूझकर पूछा। 

उसकी बात सुनकर, गर्वित एकदम मौन हो गया और बोला -एक भाभी थी, वह अक्सर बीमार रहने लगी थी , हम लोगों ने उन्हें बचाने का बहुत प्रयास किया लेकिन बचा नहीं पाए। दूसरे भाई ने विवाह ही नहीं किया और तीसरा भाई विवाह होने के पश्चात, तुरंत ही मौत हो गई। अब तो विवाह के नाम से तुम्हारी तरह ही सबको डर सा लगता है। 

रूही सोच रही थी -वहां मैं ही तो थी ,तुम लोगों ने मुझे जीते जी मार दिया ,मुझसे दिखाना तो दूर, मुझे जिन्दा ही जलाने ले गए ,मेरा पति 'तेजस 'वो तो सिर्फ़ एक याद बनकर रह गया। तुम लोगों के कारण मैं उसकी यादों के सहारे भी न जी सकी। 

क्या सोच रही हो ? तुम मेरी बातें सुन भी रही हो या नहीं ,गर्वित ने रूही को हिलाते हुए पूछा। 

हाँ -हाँ सुन तो रही हूँ ,जो कुछ भी तुम कह रहे हो,समझ भी रही हूँ। 

 जब तुम उस घर में आ जाओगी तो फिर से उस हवेली में रौनक आ जाएगी सब कुछ अपने हाथों से संभाल लेना ,उस हवेली की मालकिन बन जाओगी जिसको देखने के लिए तुम इतनी परेशान हो रहीं थीं।  

किंतु मेरे पापा ने तो तुम्हें 'घर जमाई' बनाने के लिए कहा है, तुम्हारे सामने ही तो वो शर्त रखी थी।  

हाँ ,ये बात मैं, जानता हूँ , मैं तुम्हारे लिए कुछ भी करने के लिए तैयार हूं किन्तु घर वालों का क्या ? मैं घर वालों को कैसे समझाऊंगा ? मैं तो तुम्हारे साथ खुशी-खुशी रहना चाहता हूं ,वह चाहे मेरा घर हो या फिर तुम्हारा, तुमसे प्रेम जो करता हूं।''मेरे लिए तो वहीँ स्वर्ग है ,जहाँ तुम हो।''  मैंने अपनी मम्मी से कहा था -मैं रूही से बहुत प्रेम करता हूं ,उसके लिए मैं कुछ भी कर सकता हूं, अपना घर भी छोड़ सकता हूं। बस यही चिंता का विषय बन गया , घर में सभी उदास हैं , मम्मी तो बड़ी  खुशी से घर में नई आने वाली बहू की तमन्ना लिए बैठी थीं किन्तु अब यह बात  सुनकर उदास हो गई हैं ।

 कह रही थीं - बहू, घर में आएगी तो रौनक आ जाएगी , किंतु यहां तो बेटा ही उसके प्यार में जान देने के लिए पागल हो रहा है। तभी मम्मी ने कहा -'' तू, उसके लिए अपना घर छोड़ सकता है, तो क्या वह तेरे लिए अपना घर नहीं छोड़ सकती'' कहते हुए उसने, रूही की तरफ देखा , वह समझ रही थी कि यह मुझे बहला -फुसलाकर अपने घर ले जाना चाहता है। नहीं , ले जाने के लिए तैयार कर रहा है। 

तुम सही कह रहे हो ? तुम मुझसे कितना प्रेम करते हो ?मेरे लिए 'घर जमाई' बनने के लिए भी तैयार हो गए। मैं भी तुमसे बहुत प्रेम करती हूँ  किंतु मेरे माता-पिता ने मेरे जीवन को लेकर कुछ सपने देखे हैं उन्हें भी तो नजरअंदाज नहीं किया जा सकता,मैं उनकी अकेली बेटी हूँ , उदास होते हुए रूही ने कहा -तुम्हारे तो और भी भाई हैं किन्तु मैं तो अकेली हूँ , अब क्या करें ?

मैं, तुम्हारी परेशानी समझ सकता हूँ ,किन्तु तुम भी ,मेरी परेशानी समझ नहीं रही हो, मैं किसी पर निर्भर होकर नहीं बैठ सकता , मेरा व्यापार भी तो है, हमारा होटल है , खेती -बाड़ी है। हम सभी मिलकर ये सब संभालते हैं, मैं यहां रहकर क्या करूंगा ? तुम अपने मम्मी-पापा को समझाओ । मैं, उनसे इनकार करके उनका दिल भी नहीं तोड़ना चाहता। उधर अपने घर वालों के लिए भी मैं, परेशान हूं। मेरे न रहने की सुनकर मम्मी तो जैसे बीमार सी हो गयी हैं। 

कुछ तो उपाय होगा ,उसकी बातों को सुनकर रूही ने पूछा। 

क्या तुम मेरे लिए अपना घर छोड़ सकती हो ?अचानक गर्वित बोल उठा। 


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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