Khoobsurat [part 96]

कुमार के मन में, जो हलचल और बेचैनी चल रही थी, वही हलचल यामिनी के मन में भी हो रही थी किंतु कुमार ने, उसे बाहर आने नहीं दिया। अपने होटल के कमरे में वह बेचैन सा घूम रहा था। तभी यामिनी का फोन आता है और वह उससे बातें करने लगती है और उससे पूछना चाहती है - क्या उसने भी, यामिनी के लिए वही महसूस किया जो यामिनी, कुमार के लिए महसूस कर रही है। 

 सिगरेट का आख़िरी कश लेते हुए ,अपने मन के गुब्बार को उसने उस धुएं में उड़ाना चाहा और बोला -न जाने क्यों? तुममें ऐसी कौन सी कशिश है जो मुझे, तुम्हारी ओर खींचे लिए जा रही है।जी चाहता है ,तुम पर अपना सम्पूर्ण प्यार उड़ेल दूँ किन्तु मैं चाह कर भी, तुम्हें भुला नहीं पा रहा हूँ।  


 ऐसा ही महसूस कर रहे हो तो तुमने इसी होटल में, अपना कमरा क्यों नहीं ले लिया ?

तब तक मैं, तुमसे मिला नहीं था, ऐसा लग रहा था जैसे मेरे बरसों की प्यास अब पूर्ण हो जाएगी। कुमार शांत मन से उसकी बातें सुन रहा था कुछ ही देर में, यामिनी के दरवाजे पर दस्तक हुई। बात करते हुए यामिनी ने दरवाजा खोला, सामने कुमार खड़ा था , यह देखकर वह आश्चर्यचकित रह गई , खुशी के कारण उसने कुमार को अपनी बाहों में भर लिया और बोली - तुम यहां आ रहे थे तुमने मुझे बताया क्यों नहीं ? 

बता देता ,तो तुम्हारे चेहरे की इस ख़ुशी को कैसे देख पाता ?अंदर आकर बोला - मैं अजीब सी कशमकश में पड़ गया था, मनःस्थिति  तो मेरी भी ऐसी ही थी , किंतु जब तक तुम्हारी स्वीकृति न हो तो मैं, कैसे पहल कर सकता था ? जो तुमने कहा -वह मैंने भी महसूस किया , तुमसे  फोन पर तुम्हारी बातें सुनते-सुनते, मैं तैयार हो रहा था, मुझसे रुका नहीं गया और मैं अपना होटल छोड़कर यहां आ गया दोनों एक दूसरे को देर तक निहारते रहे।

 भावुक होकर, कुमार ने यामिनी को अपनी बाँहों में खींच लिया और पूछा -आखिर तुमने ऐसा क्या जादू किया है ? जो मुझे, तुम्हारी ओर खींच रहा है। यह एहसास तो मुझे अपनी पत्नी के साथ भी नहीं हुआ जबकि मैं बरसों से उसके साथ रह रहा हूं लेकिन आज भी लगता है जैसे मैं उससे  अनजान हूं और हमारी एक ही मुलाकात में ऐसा लगता है,जैसे हम एक -दूसरे को बरसों से जानते हैं। 

 मुझे भी ऐसा ही लगता है किन्तु मैं चाहती थी ,तुम मुझे समझो और पहल करो ! 

माना कि तुम्हारा विवाह नहीं हुआ है, किंतु मैं तुमसे झूठ नहीं बोलूंगा, और न ही मैंने पहले कभी बोला है मेरी पत्नी है, क्या तब भी तुम! मुझसे संबंध बनाना चाहोगी। 

मुझे कोई परेशानी नहीं है, मुझे तुम्हारी पत्नी नहीं बनना है, मुझे सिर्फ़ तुम्हारा प्यार चाहिए ,प्रेयसी  तो बना कर रख सकते हो। कहते हुए ,वह कुमार से लिपट गई, ऐसा लग रहा था, जैसे आज वह अपनी बरसों की प्यास बुझायेगी। जब यामिनी को ही कोई आपत्ति नहीं थी, तो फिर कुमार अपने को कब तक संभालता ? वह भी, अपने वैवाहिक रिश्ते को भुला , दुनिया की मर्यादाओं से परे , प्रेम की एक अलग ही दुनिया में खो गया ,जहां इस संसार के लोगों का, कोई संबंध नहीं था,जहाँ सिर्फ यामिनी और कुमार थे। 

कुमार की जब प्रातः काल आंख खुली, तो कमरे में यामिनी नहीं थी, उसने अपने आसपास देखा उसका सामान भी नहीं था वह हड़बड़ा गया। अचानक यामिनी कहां गई ? उसने शीघ्र ही अपने कपड़े पहने, तभी उसे मेज पर एक कागज रखा हुआ दिखाई दिया। उस कागज में लिखा था - कुमार ! जबसे  मैंने तुम्हें देखा, न जाने कहां से मेरे प्रेम का सागर उमड़ आया, मुझे तुम अच्छे लगने लगे इतने अच्छे कि मैं तुम्हें एक पल के लिए भी छोड़ना भी नहीं चाहती। तुमने मुझे एक रात में ही वह सुख और सुकून दिया है , जो वर्षों में, न मिल सका। मैं, तुम्हें बता देना चाहती हूं , मैं एक कलाकार तो हूं ही , किंतु तुम्हारी प्रियसी भी हूं, तुमसे झूठ नहीं बोलूंगी, तुमसे प्यार जो करने लगी हूं। अचानक ही तुम्हें छोड़कर जा रही हूं , क्योंकि यदि तुम जाग गए तो मैं तुम्हें जाने नहीं दूंगी। तुम्हारी पत्नी के लिए, तुम्हें छोड़कर जा रही हूं। किस्मत में हुआ तो हम फिर मिलेंगे, तुम्हारा यह प्यार संभाल कर रखूंगी। इसी के सहारे जीती रहूंगी। ऐसा मत समझना मैंने तुम्हें छोड़ दिया किंतु तुम्हारा प्यार पाने के लिए, कभी-कभी आ जाया करूंगी। अपनी यामिनी को इस तरह अपने प्रेम से सराबोर करते रहना, और उस प्यार के सहारे मैं अपना जीवन जी जाउंगी। तुम्हारी सिर्फ तुम्हारी 'यामिनी !'💘

यामिनी का पत्र पढ़कर कुमार के अंदर जैसे कुछ टूट सा गया, अभी रात तक तो लग रहा था जैसे यह जिंदगी कितनी सुहानी है,कभी न ख़त्म होने वाली रात बन जाये  किंतु आज लग रहा है, जैसे सब कुछ बिखर सा गया है ,तुम इस तरह बिना मिले, क्यों चली गयीं ? अभी मैं तुम्हारे साथ कुछ दिन और जी लेता , उसे लगा ,जैसे वह अकेला इस दुनिया में भटक रहा है। सब लोग उसके साथ हैं, लेकिन तब भी वह अकेला महसूस कर रहा है , अचानक ही उसकी आंखों से दो बूंद आंसू गिरे , तभी वह बुदबुदाया और बोला -इतना प्यार दिखा कर तुम, अचानक कहाँ चली गईं ? इस समय उसे यह जीवन ही नश्वर नजर आ रहा था। लग रहा था, जैसे उसकी कोई कीमती चीज खो गई हो। उसने अपने कपड़े पहने, अपने आप को ठीक किया और होटल वालों से पूछा - मैडम ने, कब चेक आउट किया ?

सुबह 6:00 ही निकल गई थीं , उसकी बात सुनकर तुरंत ही कुमार बाहर की तरफ भागा किंतु काउंटर पर बैठी महिला ने पता नहीं क्या कह रही थी ,उसने उस ओर ध्यान ही नहीं दिया। वो कह रही थी  -सर !अभी उनका सामान बाकी है किंतु यह सब बातें सुनने के लिए जैसे कुमार के पास समय ही नहीं था। बदहवास  दौड़ता हुआ, वह सड़क पर आ गया , उसे ऐसा लग रहा था, जैसे वह अभी दिख जाए और वह आगे बढ़कर उसे अपनी बाहों में भर ले और कभी भी जाने ना दे !

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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