Mysterious nights [part 138]

गर्वित को ,रूही का हाथ मांगने के लिए उसे कोठी पर बुलाया जाता है और गर्वित जब डॉक्टर अनंत से रूही से रिश्ते की बात कहता है ,तब डॉक्टर साहब ,उससे रिश्ते के लिए मान तो जाते हैं किन्तु उसे अपनी शर्त बता देते हैं। शर्त को सुनकर वो थोड़ा परेशान हो जाता है ,तब वह उनसे पूछता है - क्या मैं, रूही से कुछ देर के लिए बातें कर सकता हूं। 

हां हां क्यों नहीं ? डॉक्टर अनंत ने कहते हुए रूही को आवाज लगाइ। सहमी हुई सी रूही ने अतिथि कक्ष में प्रवेश किया और जाकर चुपचाप बैठ गई ,पारो ने कितना समझाया था ? उसके सामने बिल्कुल भी घबराना मत, किंतु गर्वित को देखते ही, उसे वहीं रात्रि याद आने लगी। 


डॉक्टर साहब ने उसकी तरफ देखा और उसका ध्यान भटकाने के लिए उससे पूछा -रूही !क्या तुम इस लड़के को जानती हो ? रूही ने एक नजर गर्वित की तरफ देखा और उसने कुछ देर के लिए अपने नेत्र बंद कर लिए और सोचने लगी, जो शब्द उसे पारो ने कहे थे -शिखा ,अब तुझे मजबूत बनना होगा ,तुझे अपनी लड़ाई स्वयं लड़नी होगी ,तुझे दिखा देना होगा कि एक औरत यदि ठान ले तो....  क्या नहीं कर सकती है ?तुझे ,अपने दुश्मनों को उनके कर्मों की सजा देनी है ,तुझे, उनसे अपना बदला लेना है ,ये मत भूल ,तू आज इसीलिए जिन्दा है क्योंकि तुझे उन पापियों का अंत करना है। बेटा !क्या सोच रही हो ? क्या तुम इसे जानती हो ?डॉक्टर अनंत ने अपने शब्द दोहराये !

 अपने पापा की तरफ देख शिखा ने 'हाँ 'में गर्दन हिलाई,  यह लड़का तुमसे प्यार करता है, क्या तुम्हें यह पसंद है, क्या तुम भी इसे प्यार करती हो ? रूही का मन किया कि वह कह दे !वह इसकी शक्ल भी नहीं देखना चाहती किंतु चुप बैठी रही। मुझे लगता है, मेरे सामने यह कुछ नहीं बोलेगी, हमसे बिछड़ने के नाम से ही परेशान हो जाती है। तुम दोनों बैठकर बातें करो !मैं अभी जाता हूँ ,कहकर वो वहां से जानबूझकर  बाहर आ गए। बाहर आकर पारो से बोले -मुझे तो तुम्हारा खेल कुछ समझ नहीं आ रहा ,यदि ये बेचारी बच्ची फिर से इन राक्षसों के मध्य फंस गयी तो..... 

तो क्या ? कुछ नहीं होगा,मौसाजी ! आप ही इस तरह कहेंगे तो वो लड़की साहस नहीं कर पायेगी आपसे पहले वो हथियार डाल देगी ,उसकी ज़िंदगी तो पहले ही बिगड़ चुकी है ,वो लोग ,अब और क्या बिगाड़ पाएंगे ?अब तो उसे अपनी ज़िंदगी को संवारना है ,उनको सजा देकर ,अन्य लड़कियों को बचाएगी। हर कोई इसी तरह डरने लगे तो बुराई बढ़ती जाएगी ,तब तो बुराई का अंत ही नहीं होगा। कोई तो बुराई का अंत करने के लिए आगे आएगा ? आना ही होगा वरना इसके काले पंजे न जाने कितनी मासूम लड़कियों की जाने ले चुके होंगे और लेते रहेंगे। ये तो हमारे लिए अच्छा ही हुआ ,रूही उस हवेली से ,उस हवेली के  लोगों से पूर्व परिचित है। इसे ज्यादा दिक्क्त नहीं होगी और वे इससे अनजान हैं। कहते हुए आगे बढ़ी और अतिथि कक्ष में घुस गयी और बताओ !मेरे होने वाले जीजू कैसे हैं ?

अचानक पारो को सामने देखकर ,गर्वित हड़बड़ा गया और बोला -तुम यहाँ !

हाँ..... मैं यहाँ ,क्या तुम नहीं जानते ?मैं रूही की बड़ी बहन और दोस्त दोनों ही हूँ , तुम्हारे मिलने का कारण मैं ही तो बनी थी ,मैं ही इसे लेकर' गरबा' में गयी थी।वैसे मैंने तुम दोनों के एकांत में ख़लल तो नहीं डाला। डाल भी दिया तो मुझे क्या ?मैं क्या किसी से डरती हूँ ,कहते हुए वहां रखे अंगूर उठाकर खाने लगी। 

हां हां वह तो मैं जानता हूं, किंतु यह नहीं मालूम था कि तुम यहीं पर रहती हो। 

मैं यहां रहकर भी, यहां नहीं हूं और जब मैं चली जाती हूं तब भी यहां रहती हूं। 

यह क्या पहेलियां बुझा रही हो ? अभी तो आपको बहुत सारी पहेलियों से सामना करना पड़ेगा , कहते हुए  वहां रखे बिस्किट और मिठाइयां खाने लगी और बोली -और बताओ तुमने आगे क्या सोचा है ?

रूही ,पारो को ध्यान से देख रही थी ,कि वो गर्वित से बिना डरे ,बिना झिझके किस तरह से आत्मविश्वास के साथ बातें कर रही है ?

किस विषय में , गर्वित ने पूछा। 

शादी के विषय में, अपने जीवन में,आगे की तैयारी के विषय में, क्या तुमने रूही के विषय में अपने घर वालों से बता दिया ?

हां, वे सब लोग जानते हैं, और उन्होंने रूही को देखा भी है, रूही की तरफ देखकर बोला -क्या तुमने अपनी बहन को नहीं बताया कि तुम हवेली पर गई थी। 

ओह ! हां वह तो मैं भूल गई ,इसने बताया था- किं वहां इसकी तबीयत बिगड़ गई थी।  मुझे लगता है, हवेली की हवा इसे रास नहीं आई। 

ऐसा कुछ नहीं है ,कभी -कभार किसी के साथ ऐसा हो जाता है ,हर बार नहीं। 

क्या, मैं भी हवेली देखने आ सकती हूँ ?

हाँ -हाँ क्यों नहीं ?गर्वित पारो से बात तो कर रहा था किन्तु अपने को असहज महसूस कर रहा था। तब बोला -कभी हमारी हवेली पर आइये !किन्तु उससे पहले मैं, अपने परिवार के लोगों को लेकर यहाँ आता हूँ।

हां हां क्यों नहीं ? आपका और आपके परिवार का स्वागत है ,मेरे होने वाले जीजाजी ! मुस्कुराते हुए पारो बोली। 

यह तू क्या कह रहा है ? तू होश में तो है, दमयंती ने गर्वित से पूछा। 

क्या डॉक्टर हमें नहीं जानता है ? हमारा बेटा क्या उसका 'घर जमाई' बनकर रहेगा, हवेली की औलादें घर जमाई बनने के लिए नहीं हैं , उसने हमारा घर- परिवार और हमारा रहन-सहन देखा नहीं है वरना उसकी आंखें चुँधिया जातीं।  कौन है, वो ! जो ऐसी शर्त रख रहा है, एक मामूली सा डॉक्टर ही तो है। 

नहीं, वह मामूली डॉक्टर तो नहीं है, गर्वित ने कहा उनका बहुत बड़ा हॉस्पिटल है ,बहुत बड़ी कोठी है।

 तो क्या हुआ, हम उसे डर जाएंगे ?उसकी बेटी के लिए  हम अपने सभी रीति- रिवाज त्याग देंगे, बहु तो विदा होकर इसी घर में आएगी।सुन !मेरे पास एक योजना है। 

कैसी योजना ? उत्सुकता से गर्वित ने पूछा। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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