अपने मन की व्यथा, रूही अपने, माता-पिता यानी तारा जी और डॉक्टर अनंत से कहती है। रूही की कहानी सुनकर, सभी बहुत परेशान हो जाते हैं, उसके दर्द को महसूस कर, कोई भी बात करना नहीं चाहता शब्द जैसे कुंठित हो गए हैं ,उसकी कहानी सुनकर ह्रदय वैसे ही दुखी था ,तभी पार्वती घर में आ जाती है। तारा जी सोचती हैं -हमें ये सब बातें, पार्वती को नहीं बतानी चाहिए इसलिए पार्वती के आने पर सभी अपने को व्यस्त रखने का प्रयास करते हैं।
किंतु उनके व्यवहार से पार्वती को लगता है, मेरा आना शायद ,अब इन्हें अच्छा नहीं लगता है। रूही भी मेरे आने पर नीचे नहीं रुकी और ऊपर अपने कमरे में चली गई। पार्वती इस बात को तो महसूस करती है कि जब से, रूही इस घर में आई है, उसका महत्व थोड़ा कम हो गया है हालांकि इस बात को वह जतलाना नहीं चाहती है लेकिन मन ही मन वह भी नहीं चाह रही थी, कि रूही यहां रहे,इसी के कारण तो वह कभी हॉस्टल में, कभी किसी सहेली के ,ऐसे ही दिन व्यतीत कर रही है वरना मौसी ही उसे बाहर इस तरह रहने नहीं देतीं। मानव मन ऐसा ही तो है ,कुछ गलत लगे तो नकारात्मक विचार स्वतः ही आने लगते हैं फिर चाहे स्थिति कैसी भी रही हो। अभी वो नहीं जानती है ,कि घर के अंदर क्या माहौल चल रहा है ?
आज जब वह घर के अंदर आई तो उसके मौसा जी 'समाचार- पत्र' पढ़ रहे थे,एक बार भी उन्होंने ,उसकी तरफ नहीं देखा और मौसीजी ने उसे देखकर पहले तो नजरें नीची कर लीं फिर न जाने क्या सोचकर ,उससे पूछा -कॉफी पिएगी, उसके जवाब देने से पहले ही,वे उठकर रसोई घर की तरफ चली गईं । वहां का वातावरण उसे बड़ा अजीब लग रहा था , तभी उसके विचारों ने पलटा खाया और सोचा -घर में ही कोई परेशानी तो नहीं ,जो ये लोग मुझे बताना नहीं चाहते ,आज अवश्य ही, कुछ तो बात हुई है ,यह सोचकर वह मौसी के पीछे-पीछे ही रसोई घर में पहुंच गई और उनसे जाकर बोली -मौसीजी ! एक बात पूछूं ,मुझे सच-सच बताना ! आप मुझसे कुछ छुपा तो नहीं रही हो।
नहीं, ऐसी तो कोई बात नहीं है, कॉफी फेंटते हुए तारा जी ने जवाब दिया।
तो क्या आप लोगों को मेरा यहां आना अच्छा नहीं लगा ?
तू ,ये सब क्यों सोच रही है ? ऐसा कुछ भी नहीं है।
अपनी आदत के मुताबिक़ घर के उस बोझिल वातावरण को सामान्य बनाने के लिए पारो बोली - मुझे तो ऐसा नहीं लगता,घर में अवश्य ही कुछ तो हुआ है। क्या मौसा जी से आपका झगड़ा हुआ है ? या फिर कुछ और बात है, देखो ! आपको मेरी कसम है , मुझसे कोई बात मत छुपाना , यह भी हो सकता है, शायद मैं आपकी कोई सहायता कर सकूं।
तारा जी का, रूही की कहानी सुनकर, वैसे ही हृदय द्रवित को उठा था, पार्वती की बात सुनकर, एकदम से उनकी आंखों से आंसू बहने लगे और बोलीं - तू ,इसमें क्या मदद करेगी ?अब कुछ नहीं हो सकता उन्होंने निराशा से कहा और बाहर आकर सोफे पर बैठ गयीं। हम अपने घरों में बैठे रहते हैं , और मन में अनेक विचार बनाते रहते हैं ,कौन अच्छा है, कौन बुरा है ? किंतु किसी की सच्चाई का तो हमें ,उसके व्यवहार को बरतकर का ही पता चलता है।
आप ऐसा क्यों कह रही हैं ? क्या किसी ने कुछ कहा है।
नहीं, हमसे कोई कुछ क्या कहेगा किंतु तेरी बहन..... एक क्षण उन्होंने अपने पति की तरफ देखा ,कहकर वह फिर से रोने लगी।
पार्वती समझ नहीं पाई, मेरी बहन...... ये किसकी बातें कर रहीं हैं ? उसने सोचा, मेरी बड़ी दीदी की बात कर रही होंगी किंतु शीघ्र ही उसकी यह गलतफहमी भी दूर हो गई, और तारा जी बोलीं -रूही भी तो तुम्हारी बहन जैसी ही है, मैं रूही की बात कर रही हूं ,तुम इसकी कहानी सुनोगी तो तुम भी सोचने पर मजबूर हो जाओगी ? बेचारी ने बहुत कष्ट सहे हैं , मरते-मरते बची है।
हाँ ये बात तो मैं भी जानती हूँ ,कि रूही मरते -मरते बची है और मौसाजी ने उसे बचाया है ,इसमें नया क्या है ?किन्तु आज यह बात क्यों उठ रही है ?पारो की बात सुनकर उन्हें पारो पर क्रोध आया और उसे देखने लगीं ,मन ज्यादा बातें करने का नहीं कर रहा था। तब वो बोलीं -तुम नहीं समझोगी,कहकर चुपचाप सोफे से सर टिकाकर बैठ गयीं।
हुआ क्या है ?आप मुझे कुछ बतायेंगी नहीं तो, मैं समझूंगी कैसे ? आप किस कहानी की बात कर रहीं हैं ?क्या आपको किसी ने इसकी कहानी सुनाई है ?
किसी ने नहीं ,स्वयं उसी ने.....
क्या ??क्या उसकी याददाश्त वापस आ गई ? पार्वती ने अंदाजा लगाया।
हाँ , उस दिन गरबा में जो लड़का तुम्हें मिला था, वह उसी हवेली का लड़का था, जिस हवेली की बहू बनकर हमारी रूही यानी हमसे मिलने से पहले वह शिखा थी , उस हवेली की बहु थी।
यह आप क्या बात क्या कर रही हैं ? उनकी बात सुनकर, पारो को आश्चर्य हुआ और बोलीं -क्या रूही का असली नाम 'शिखा' है।
हां, तुमने सही सुना, शिखा का कम उम्र में ही, उस हवेली के लड़के से विवाह हो गया था, और शीघ्र ही विधवा भी हो गई ,बेचारी पर उन्होंने क्या-क्या अत्याचार नहीं किए ? कहते हुए उन्होंने, सारी कहानी पार्वती को बता दी हालांकि उनका ही निर्णय था कि पार्वती को कोई बात नहीं बताई जाएगी, किन्तु अब उन्हें लग रहा था ,यदि ये बात पार्वती को नहीं बताती है, तो उन्हें घुटन होती उस बात को वह बर्दाश्त नहीं कर पातीं। उनसे ज्यादा देर तक यह बात छुपाई नहीं गई और संपूर्ण कहानी पारो को बतला दी।
कॉफी का मग हाथ में लेते हुए, पारो भी थोड़ा गंभीर हो गई थी। वह समझ गई थी कि इन लोगों के व्यवहार में क्यों परिवर्तन आया था ?उसकी कहानी सुनकर वह स्वयं ही नहीं समझ पा रही थी कि वह क्या कहे या क्या प्रतिक्रिया करें ? वह कुछ देर बैठी, कॉफी के घूंट भरती रही, किंतु अब उसके पास भी जैसे शब्द समाप्त हो गए थे। तब उसने अपनी मौसी से पूछा -अब आपने क्या सोचा है ?
मतलब ! कुछ भी ना समझते हुए उन्होंने पूछा।
मेरा मतलब है, शिखा की जिंदगी में जो यह हलचल मची थी,आज उसका दर्द महसूस हो रहा है, उसका निदान क्या सोचा है ?
अब हम कर भी क्या सकते हैं ? तारा जी ने कहा।
आप कह रही हैं, कि उनकी नजरों में, यह मर चुकी है, लेकिन एक बात मुझे समझ ही नहीं आई , यदि वह लड़का उसी हवेली का है, तो फिर वह शिखा को क्यों नहीं पहचान पाया ? जबकि रूही मेरा मतलब पहले वाली शिखा तो उनके घर की इकलौती बहू थी।
