कुमार ,यामिनी को जयपुर शहर घुमाने के लिए तैयार करता है ,उस समय यामिनी ने साड़ी पहनी हुई थी ,जैसे ही वो कपड़े बदलने के लिए उठती है ,साड़ी का पल्लू उसके पैर में आ जाता है और वो लड़खड़ा जाती है ,किन्तु तभी कुमार उसे संभाल लेता है किन्तु जैसे ही दोनों एक -दूसरे का स्पर्श महसूस करते हैं ,उन्हें लगा- जैसे शांत सागर में प्रेम की लहरें उठने लगीं हैं।
शायद यामिनी ,कुमार की मनः स्थिति को समझ गई थी और जानबूझकर उससे पूछ रही थी -कपड़े बदल लेती हूँ। अब तक कुमार अपने को शांत किए हुए था किन्तु अपने चेहरे के भावों को यामिनी से छुपा न सका। वो यामिनी से सामान्य रूप से बातें कर रहा था, जैसे एक दोस्त में बातचीत होती है, किंतु अब उसके मन में एक अलग ही द्व्न्द चल रहा था। आपको जैसा उचित लगे,उसके शब्द लड़खड़ाए, हालांकि यामिनी से मिलने से पहले भी उसके इरादे सही नहीं थे, किंतु उसने ऐसा भी नहीं सोचा था ,कि यामिनी को छू पायेगा। वो सिर्फ यामिनी के करीब रहकर, उससे बातचीत करना चाहता था। अब तो लग रहा था जैसे वह अपने को संभाल नहीं पाएगा।
यामिनी अपने कपड़े बदलने चली गई और तब तक कुमार ने, गाड़ी मंगवा ली थी। कुमार को लग रहा था, शायद यामिनी जानबूझकर उस पर गिरी थी , फिर सोचा- नहीं, ऐसा कैसे हो सकता है ? मैं ही कुछ गलत सोच रहा हूं। ये विदेशी लोग तो होते ही ऐसे हैं इसलिए तो विवाह जैसी रस्मों में नहीं पड़ते हैं , लेकिन यह तो अपने को मूल रूप से भारतीय बता रही थी किंतु अब तक तो विदेशों में ही पली -बढ़ी है। जब यामिनी कपड़े बदलकर बाहर आई , उसका एक और नया रूप से देखने को मिला। उसने आते ही पूछा -इस ड्रेस में, मैं कैसी लग रही हूं ?
बेहद 'खूबसूरत' आईये , चलिए ! कुमार ने शालीनता से कहा किन्तु अब वो यामिनी से बातें करते हुए, उससे नज़रें चुराने लगा। दोनों गाड़ी में बैठे, कुमार की नजरें,रह - रहकर यामिनी की तरफ घूम जाती वह उसे समझाता, देखो ! यहां पर यह किला है, इस शहर को' पिंकसिटी' भी कहते हैं। बातें करते हुए और घूमते हुए कभी-कभी, यामिनी उसके बेहद करीब आ जाती, जिसके कारण कुमार अपने को सहज महसूस नहीं कर पा रहा था, हालांकि यामिनी से मिलने का उसका उद्देश्य उसके करीब आना ही था, उसके विषय में जानना उससे बातचीत करना, यही सब चाहता था किंतु यामिनी अब उसके कुछ ज्यादा ही करीब आ रही थी। कुमार की अजीब सी स्थिति हो गई थी ,बल्कि अब उसे ,यामिनी से ड़र सा लगने लगा था।
लगभग दो-तीन घंटे घूमने के पश्चात, उन्होंने भोजन किया और फिर कुमार ने यामिनी को उसके होटल में छोड़ा, जैसे ही यामिनी को उसके होटल में छोड़कर वह जा रहा था, तभी यामिनी ने उसको गले लगा लिया और उसके अधरों पर अपने अधर रख दिए और अलविदा कहकर, उसने अपने होटल के कमरे का दरवाजा बंद कर लिया।
कुमार उसे छोड़कर अपने होटल वापस आ रहा था किन्तु मन ही मन परेशान था ,यामिनी सुंदर थी ,उसकी सुंदरता को देखकर कोई भी उसके करीब आना, उससे बातचीत करना चाहेगा किन्तु सब कुछ इतनी आसानी से हो रहा था ,जैसे स्वयं यामिनी ही उसको निमंत्रण दे रही थी। उसको छूना चाहकर भी वो, ड़र रहा था जिसको मैं जानता तक नहीं ,वो स्वयं ही ,उसके क़रीब आना चाहती है ,कहीं ये उसकी कोई चाल न हो। कुमार के लिए, यामिनी का यह अप्रत्याशित व्यवहार, उसकी जिंदगी में हलचल मचा देने के लिए काफी था। वह अपने को समझा रहा था- इन लोगों की सभ्यता ही ऐसी है , किंतु उस स्पर्श को भूल भी नहीं पा रहा था ,बार -बार उसका हाथ पकड़ लेना ,उसका खिलखिलाकर हंसना ,उसकी बांहों का स्पर्श,और अब उसके अधरों की गर्माहट, उसके पांव लड़खड़ा से रहे थे।
वैसे तो वह अपनी पत्नी 'मधुलिका' से भी बातचीत करता है, उससे मिलता है, उसके साथ सोता भी है, लेकिन यह अनुभव उसे पहली बार हो रहा था ,कुछ अलग ही एहसास था। वह समझ नहीं पा रहा था, कि मुझे क्या करना चाहिए ,क्या यामिनी मुझे अपने करीब आने का इशारा कर रही है ?उसके पूरे ज़िस्म में एक ज्वालामुखी धधक रहा था। अपने कमरे में जाकर बिस्तर पर औंधा लेट गया किंतु उसे नींद नहीं आई। नींद न जाने कहां चली गई थी ? बार-बार खिड़की के पास आता और वापस आकर सोने का प्रयास करता। सिगरेट सुलगाकर ,अपने अंदर की अग्नि को ,अशांत मन को, शांत करने का प्रयास करने लगा।
तभी उसके फोन की घंटी बजती है, और फिर से वही गाना.....''आज से तेरी, सारी खुशियां ,मेरी हो गयीं ,'उसने घड़ी में समय देखा ग्यारह बज रहे थे ,इस वक़्त किसका फोन आ गया ,हो न हो मधुलिका का फोन ही होगा। क्या कल मुझे घर चले जाना चाहिए या फिर यामिनी से मिलना चाहिए ?जाने का मन तो नहीं है किन्तु यहाँ रहा तो....' मैं ,'अचानक मन में विचार उभरा- कहीं ऐसा तो नहीं यामिनी ही मुझसे मिलना चाहती हो ,उसने फोन में देखा, सिर्फ नंबर था, उसने फोन उठाया - दूसरी तरफ से बड़ी सुरीली ,मधुर आवाज आई -क्या अभी तक जाग रहे हो ? नींद नहीं आई, वह यामिनी की आवाज थी।
आप ! क्या हुआ ?आप ठीक तो हैं ,आपको मेरा नंबर कैसे मिला ?
ये सब छोडो ! क्या कर रहे हो ?उसकी आवाज में एक गहराई थी।
क्या हुआ ? क्या आपको भी नींद नहीं आई ?
हां, पता नहीं क्यों ? अंगड़ाई लेते हुए उसने एक गहरी सांस भरते हुए जवाब दिया।
यही हालत तो कुमार की भी हो रही थी किंतु वह अपने को संभाले हुए था, अब तो जैसे सामने से ही निमंत्रण आ रहा था फिर भी उसने शालीनता का परिचय देते हुए कहा - एक गहरी सांस लीजिए और सो जाइए !
क्या आपने ऐसा किया ? तो फिर आप क्यों नहीं सोए ?कहकर हंसी ,'' कुछ अधूरा सा है, मेरे पास बहुत पैसा है, शोहरत भी है, मैं एक अच्छी कलाकार भी हूं, सुंदर भी.... फिर भी न जाने क्यों ? मेरे जीवन में एक खालीपन सा है। कोई मेरे जीवन के उस खालीपन को भरता ही नहीं या भरना ही नहीं चाहता। ऐसी मुझ में क्या कमी है ?
ऐसा कौन कह रहा है कि तुममें कमी है , तुम तो बहुत' खूबसूरत' हो, प्यार की एक 'खूबसूरत' मिसाल हो, कला की मूरत हो ,क्या अब तक तुम्हारे इस अधूरेपन को किसी ने महसूस नहीं किया ?
क्या, तुमने महसूस किया ?मैं कला की मूरत हूँ किन्तु मुझमें जान है ,जज़्बात हैं। जीवन में कई लोग आए किंतु उनसे मिलकर ऐसा एहसास नहीं हुआ, जैसा तुमसे मिलकर लगा,मुझे लगा ,तुम मुझे समझोगे ,पढ़ना चाहोगे। गहरी स्वांस भरते हुए - हमारा मिलन 18 घंटे का ही तो है, किंतु ऐसा लग रहा है, जैसे हम एक- दूसरे को बहुत पहले से जानते हैं, हमारी पहचान बरसों से है। हृदय में जो खालीपन है ,वह धीरे-धीरे भर रहा है , जिसे मैं बरसों पहले मिली हुई हूं उनसे मिलकर भी वह अनुभूति नहीं हुई जो एहसास तुमसे मिलकर हुआ है। ऐसा लग रहा है तुम ही मेरे इस खालीपन को भर सकते हो। क्या मैं ही ऐसा सोच रही हूं ,क्या तुम्हें ऐसा कुछ नहीं लगा ? जो एहसास तुम्हें तुम्हारी बीवी से भी नहीं मिला होगा वो तुम्हारे चेहरे पर मुझे आज स्पष्ट नज़र आ रहा था,सच बताना !क्या मैं गलत हूँ ? वही प्यार अनुभूति मैंने भी तुम्हारे साथ महसूस की है।
