Khoobsurat [part 89]

कल्याणी जी के समझाने पर,शिल्पा को लगता है -शायद ,कहीं न कहीं मेरी भी गलती रही होगी। तब वह अपने रिश्ते को संभालने के लिए ,अपनी मम्मी की बात को महत्व देती है किन्तु शिल्पा के व्यवहार में आये ,इस परिवर्तन को देखकर ,रंजन समझ नहीं पाता कि इसने या इसकी मम्मी ने क्या सोचा है ? अचानक शिल्पा में ये परिवर्तन क्यों ? तब इसे अपनी कोठी में आना था ,अब यह यहाँ से क्यों जाना चाहती है ? उसके मन में अनेक सवाल उठ रहे थे किन्तु शिल्पा लगातार उससे, अपने साथ चलने की बात कर रही थी। वो जानना चाहती थी ,रंजन क्या चाहता है ?


तब रंजन कहता है - जैसी, तुम्हारी इच्छा ! हां,वहां जाने से थोड़ा परिवर्तन तो आएगा, यह बात तो है , किन्तु वहां नौकर -चाकर नहीं होंगे,क्या तुम रह लोगी ?शिल्पा की तरफ देखते हुए ,रंजन ने पूछा -तुम वहां काम कर पाओगी ?वैसे अचानक तुम यहाँ से जाने के लिए तैयार कैसे हो गयीं ? तुम तो ज़िद करके यहां आईं थीं ,तब ये ह्रदयपरिवर्तन कैसे ?इतने दिनों के पश्चात भी मैं तुम्हें समझ नहीं पा रहा हूँ ,आखिर तुम चाहती क्या हो ?

शिल्पा ने ,उसकी अन्य बातों पर ध्यान न देकर कहा - काम हम दोनों मिलकर कर लिया करेंगे ,हम एक दूसरे का सहयोग करेंगे।  

हम दोनों ही, व्यंग्य से रंजन मुस्कुराया , या फिर मुझे ही..... तुम तो अपनी पेंटिंग्स लेकर बैठ जाओगी।क्या तुम्हें काम आता है ? 

 कल्याणी जी ने शिल्पा को यह बतलाया था - कि रंजन उसके लिए कितना त्याग कर रहा है और त्याग अपनों के लिए ही किया जाता है, और वे अपने ,वही होते हैं ,जिनसे हम प्यार करते हैं। ''ये बात स्वयं शिल्पा भी जानती थी किन्तु मान नहीं रही थी , कई बार हम जानते हुए भी, दूसरे के त्याग ,किसी दूसरे के कार्य को नजरअंदाज कर जाते हैं किन्तु जब उसी कार्य का कोई ओर एहसास दिलाता है ,तब हमें उसका महत्व नजर आता है। 

ऐसा ही कुछ ,शिल्पा के साथ हुआ, जब उसकी मम्मी ने रंजन के विषय में उसे बतलाया , तब से शिल्पा को भी रंजन पर प्यार आ रहा था , इसीलिए उसके करीब आकर बोली - हम दोनों का विवाह हुआ है , हम एक दूसरे के सहयोगी हैं। तुम मेरे साथ व्यापार में हाथ बटाते हो, बाहर का काम तुम, करते हो, तो क्या मेरा फर्ज नहीं बनता है ?कि मैं तुम्हारे काम में हाथ बटाऊं, अब मिलकर हम अपनी गृहस्थी को संभालेंगे, जो काम नहीं आता है ,उसे मिलकर करेंगे ,उसके बालों में उंगलियां फिराते हुए , शिल्पा ने कहा,यदि कोई परेशानी हुई भी तो..... यहाँ तो नौकर हैं,हीं .... एक वहां भी चला जायेगा ,क्या कहते हो ?

 रंजन ने एक नजर उसे देखा, और उस कोठी में जाने के लिए 'हां' में गर्दन हिलाई। 

दो दिन पश्चात, कोठी नंबर 308 में, वह दोनों आ गए थे, फिर क्या हुआ ? कोई नहीं जानता, उन दोनों के बीच क्या हुआ, क्या नहीं ? रंजन को किसने मारा ? कोई नहीं जानता, हालांकि पुलिस का शक उसकी पत्नी शिल्पा पर ही है किंतु शिल्पा भी तो गायब है। इन दोनों के मध्य क्या हुआ होगा ? सभी अटकलें लगा रहे हैं। यह एक दर्दनाक घटना थी,इस शहर की सनसनी खबर बन गयी थी। यह बात नित्या को भी पता चली, वो तो जैसे सदमे में आ गयी,साथ ही ड़र भी लगा ,कहीं मेरे ही कारण तो यह सब नहीं हो गया। 

 उससे, आख़िरी बार रंजन ने बीस दिन पहले ही तो फोन किया था ,वह शिकायत कर रहा था -आजकल तुम मेरा फोन क्यों नहीं उठा रही हो ?

तब नित्या ने कहा था -तुम मुझे फोन करते हो, यह बात तुम्हारी पत्नी को पसंद नहीं तो फिर क्यों फोन कर रहे हो ?

नित्या ! यह तुम क्या कह रही हो ? वो तो जानती भी नहीं है। 

इसीलिए तो कह रही हूँ ,रिश्तों को क्यों ?गलतफ़हमी की भट्टी में झोंकना चाहते हो ?इससे कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है और तुम कौन सी गलतफ़हमी में जी रहे हो ?नित्या सब जानती है ,तुम्हारे कारण उसने मुझे भी चार बातें सुनाई हैं , मैं मानती हूँ ,हम अब रिश्तेदार हो गए हैं किन्तु अब तुम्हारा मुझे बार -बार फोन करना उचित नहीं है ,जिसमें कि यह बात तुम्हारी बीवी को पसंद नहीं। 

यह क्या बार -बार तुम्हारी बीवी ,तुम्हारी बीवी लगा रखी है ,वो तुम्हारी बहन भी तो है। 

अब वो इस रिश्ते से नहीं बात करती अब वो ,तुम्हारी बीवी होने के नाते मुझसे बात करती है। जब वो ही मुझसे कोई संबंध नहीं रखना चाहती तो हमारे रिश्ते का ही क्या महत्व रह जायेगा ? मैं मानती हूँ ,मेरी ये बात तुम्हें बुरी लगेगी ,लेकिन मेरे कारण या इस फोन के कारण, तुम्हारे रिश्तों में दरार आये,मैं ये नहीं चाहती ? अब से तुम मुझे फोन मत करना। 

नित्या ! तुम गलत समझ रही हो ,तुम्हारे कारण हमारे रिश्ते में कोई दरार नहीं है ,वो तो शिल्पा का व्यवहार..... ही 

रंजन की बात को काटते हुए नित्या बोली -अब तुम्हारी तुम जानो !कहकर उसने फोन रख दिया। वह तो ये भी नहीं जानती थी कि अब ये लोग बुआजी के घर में नहीं रहते ,वो तो समाचार -पत्र में पढ़कर प्रमोद ने ही उसे बताया था - 'तुम्हारी बहन गायब है और रंजन की हत्या हो गयी है ,पता नहीं ,इन दोनों के रिश्ते में क्या चल रहा है ?'  

इन्हीं रिश्तों के जाल में उलझते हुए ,न चाहते हुए भी नित्या, बुआजी का हालचाल पूछने आ ही गयी ,वो इतना तो जानती ही थी कि बुआजी के घर जाने पर उसे उनकी नाराज़गी झेलनी पड़ेगी। तब भी वो जानना भी चाहती थी ,आखिर ऐसा क्या हुआ था ? जो वो लोग यहाँ न रहकर अलग रह रहे थे ,इस हादसे का क्या कारण रहा होगा ?हालात ही कुछ ऐसे हैं ,किसी से कुछ पूछ तो नहीं सकती थी किन्तु इस दुःख में उनके साथ खड़ी तो हो सकती थी ,जैसे ही नित्या ने बुआ की कोठी में कदम रखा उसे देखकर कल्याणी जी बिफ़र गयीं और सपाट शब्दों में बोलीं -तुम यहाँ क्यों आई हो ?

उनकी बातों पर ध्यान न देकर नित्या आगे बढ़ी और बोली -बुआजी ! यह सब कैसे हुआ ? पता चलते ही,मैं  आ गयी। 

क्यों ?क्या तुम्हें किसी ने बुलाया था?

बुआजी !आप ये क्या कह रहीं हैं ?मैं जानती हूँ ,आप पर बहुत बड़ी विपदा आई है किन्तु..... 

 मुझे कुछ नहीं सुनना, तू यहां से चली जा ! मुझे तेरी किसी भी हमदर्दी की कोई जरूरत नहीं है, कल्याणी जी लगभग चिल्लाते हुए बोलीं। 

उनके इस तरह कहने से,उनके बदले व्यवहार से नित्या, हक्की -बक्की रह गई ,वो क्या जानती थी ? बेटी के कारण ,उसके लिए, उनके मन में भी गुस्सा भरा है। वो तो अच्छा हुआ प्रमोद जी साथ नहीं आये वरना उनको कितना बुरा लगता ? कल्याणी जी ,का जी चाहा उसका हाथ पकड़कर उसे यहाँ भगा दें किन्तु तभी कुछ और लोगों ने उस कोठी में प्रवेश किया,तब नित्या को नजरअंदाज कर वो वहां से चली गयीं। 


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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