Khoobsurat [part 88]

रिश्ते भी ,कैसे होते हैं ? कई बार हम उन रिश्तों में उलझकर रह जाते हैं , ये अधिकतर नजदीकी रिश्ते ही होते हैं, जिनमें  व्यक्ति जीवन भर उलझा रहता है। वह समझ नहीं पाता कि कौन सही है और कौन गलत है ? इस जीवन पर रिश्तों का एक जाल सा बना हुआ है, इन रिश्तों को समझने में, इंसान की लगभग आधे से ज्यादा जिंदगी यूं ही चली जाती है।

 ऐसा ही कुछ नित्या और शिल्पा के रिश्ते में हो रहा है। नित्या को लगता है - वह सही है।  दूसरी तरफ शिल्पा को भी लगता है- कि वह सही है। तब इन रिश्तों में गलत कौन है ? क्या रंजन से उसका रिश्ता होना गलत है ? या नित्या का शिल्पा के लिए त्याग करना गलत था या फिर शिल्पा का अपने प्यार के प्रति असुरक्षित भावना का होना गलत है ? अनेक प्रश्न इंसान के मन में आते हैं और वह किसी दूसरे से पूछता रहता है ,कई बार तो वह स्वयं को भी ठीक से जबाब नहीं दे पाता है। वह समझ नहीं पाता कि वह सही है या दूसरा या फिर कौन हमारे साथ खड़ा है, कौन नहीं ?


किसी दूसरे के लिए तो....  वो रिश्तों में सोचता ही नहीं ,कि दूसरा भी सही हो सकता है किन्तु ऐसी परिस्थितियों में वो अपने को, अपनी बातों को सत्य को साबित करने में जुट जाता है। यही हालत अब शिल्पा की हो रही थी , कई बार परिस्थितियां भी ऐसी हो जाती हैं ,आदमी उनमें इतना उलझ जाता है ,सही होते हुए भी.... अपने को सही साबित नहीं कर पाता है। नित्या के मन में शिल्पा के प्रति ऐसा कोई भी भाव नहीं है और न ही वो रंजन से उसके प्यार के लिए मिलती है, फिर भी वो अपने को सही साबित नहीं कर पा रही है।'' शब्दों'' का खेल भी कुछ ऐसा ही है ,जिसके कारण कभी -कभी सही, गलत हो जाता है और गलत, सही बन जाता है। 

जब रिश्तों में गलतफ़हमियाँ बढ़ती जाती हैं ,तब कुछ भी सही नहीं हो पाता ,नित्या अपने रिश्तों को संभाले रखना चाहती है फिर भी रंजन के फोन के कारण शिल्पा की गलतफ़हमियाँ बढ़ती चली गयीं। बेटी के मोह में कल्याणी जी भी सब कुछ समझते हुए भी.... अनजान बने बैठी थीं।  बेटी के मन में सकारात्मक भाव न देखकर  ,उसके वैवाहिक जीवन में सकारात्मकता भरने के लिए उसे रंजन की अच्छाइयाँ गिनाती हैं।

उनकी बातें सुनकर शिल्पा को लगता है- 'मम्मी सही तो कह रही हैं ,शायद मेरे ही कारण हमारे रिश्ते में बोझिलता आती जा रही है ,मुझे अपने व्यवहार को बदलना होगा, मेरा पति मुझे अपनी बातें नहीं बताता है तो अवश्य ही, मुझमें कोई कमी रह गई होगी। तब अपने अंदर देखने का प्रयास करती है ,मैं कहां गलत रही ?वो मुझसे क्या अपेक्षा रखता है ?

क्या सोच रही हो? कल्याणी जी ने शिल्पा से पूछा और उसे चाय की प्याली पकड़ाते हुए बोलीं  -'' ये बात तो सही है -एक औरत ,एक महिला ,एक पत्नी ,युग चाहे कोई भी हो ,सतयुग ,त्रेता,द्वापर अथवा कलयुग !नारी चाहे पढ़ी -लिखी हो या फिर अनपढ़ ,गृहणी हो या फिर नौकरीपेशा ! वो पहले भी और आज भी अपने पति की नज़रों में अपने लिए प्यार और सम्मान ढूंढती है। ''

आज यही हालात शिल्पा के साथ हैं ,''पैसा होने के बावज़ूद भी रंजन की नज़रों में उसे अपने लिए प्यार और सम्मान महसूस नहीं होता। ''कुछ दिन इसी तरह बीता देने के पश्चात, साथ रहकर भी उनकी दूरियां कम नहीं हुई, उनकी दूरियां शारीरिक रूप से नहीं, मानसिक रूप से थी, दिल की दूरियां जिसको वे भर नहीं पा रहे थे।

तब एक दिन कल्याणी जी, अपने बच्चों के अच्छे भविष्य को देखते हुए ,उनके रिश्ते में मधुरता लाने के लिए उनसे कहती हैं -इसी शहर में एक खाली कोठी है, जो मेरी सहेली की है, आजकल वह यहां नहीं रहती है, एक साल से वो खाली है। जब तक तुम्हारा जी चाहे, तुम दोनों वहां जाकर रह सकते हो !

क्यों ,वहां क्यों जाना है ? रंजन ने पूछा। 

क्यों, क्या ? अरे भई !तुम दोनों की अपनी भी जिंदगी है, यह तो नादान है, तुम्हें यहां ले आई किंतु हम तो नादान नहीं हैं , हम तो समझ सकते हैं, कि हमारे बच्चों को एकांत चाहिए। हम लोगों के साथ रहकर तुम इतना घुल मिल नहीं पाते हो , इससे ज्यादा तो तुम, विवाह से पहले यहां आते थे, तब भी अच्छे से  हंसते , बोलते थे अब तो न जाने तुम दोनों को क्या हो गया है ? खुश दिखलाई नहीं पड़ते ,अभी तो तुम्हारे विवाह को ज़्यादा समय भी नहीं हुआ है। 

नए जोड़े में जो ख़ुशी और व्यवहार हमें दिखना चाहिए ,वो नजर नहीं आता। क्या कोई परेशानी है ?

नहीं ,हमें क्या परेशानी हो सकती है ?सब ठीक तो है ,रंजन बोला। 

तुम्हारे व्यवहार में काफी परिवर्तन आया है, मुझे लगता है तुम यहां पर अपने को, बंधन में पाते होंगे ,मेरा मतलब है ,अपने घर जैसा अपनापन महसूस नहीं होता होगा। हो सकता है, कि मुझे गलत लग रहा हो ,तुम्हारे बीच ऐसा कुछ न हो ,तुरंत ही बात को संभालती भी हैं लेकिन मैं चाहती हूं तुम अपने गृहस्थ जीवन की, खुशी-खुशी अलग से शुरुआत करो !

अब तो मेरा कोई काम भी नहीं है,मेरी नौकरी नहीं है , मैं वहां सारा दिन क्या करूंगा ?अचानक सिर पर आये खर्चे की सोचकर रंजन मन ही मन घबरा गया। 

करना क्या है, एक दूसरे को समय देना है ? और तुम व्यापार में माहिर हो , यह पेंटिंग भी बनाती है, मिलकर अपने गृहस्थ जीवन की फिर से एक नई शुरुआत करो ! पिछली सभी बातों को भूल जाओ ! यह बात कहने का उनका उद्देश्य नित्या के लिए था।

 कल्याणी जी के कहने पर, दोनों ने एक दूसरे को देखा और शिल्पा रंजन से बोली -मम्मी ! ठीक ही तो कह रही हैं , तुम भी अलग रहना चाहते थे। हम क्या इस शहर से दूर जा रहे हैं? इसी शहर में ही तो हैं, कोई बात होगी तो कभी-कभी मिलने आ जाया करेंगे।

 चलते हैं , रंजन उठकर अपने कमरे में जाने लगा, उसके पीछे-पीछे शिल्पा भी थी। रंजन अपने बिस्तर पर लेट गया उसने कोई जवाब नहीं दिया। पता नहीं, उसके मन में क्या चल रहा था ? किंतु शिल्पा के लिए यह अच्छी बात थी, वह इस वातावरण से थक चुकी थी, कुछ अलग ही, वातावरण में जाना चाहती थी और सबसे बड़ी बात तो यह है इस बात की खबर में नित्या को भी नहीं होगी कि वे लोग कहां रह रहे हैं ? उससे भी पीछा छूटेगा।  

क्या सोच रहे हो ? रंजन ने एक नजर शिल्पा की तरफ देखा और चुपचाप लेटा रहा। अच्छा बताओ ! अब तुमने क्या सोचा ? शिल्पा ने उसके विचार जानना चाहे वो बार-बार उसे कुरेद रही थी , ताकि उसे पता चल सके कि उसके मन में क्या चल रहा है ? क्या तुम जाना नहीं चाहते हो ?शिल्पा ने जानना चाहा,यदि तुम कुछ नहीं कहोगे तो मुझे कैसे पता चलेगा ?कि तुम्हारे मन में क्या है ?रंजन की चुप्पी से परेशां होकर शिल्पा ने कहा। 



laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post