Qabr ki citthiyan [part 53]

 रिद्धिमा ने अपनी डायरी का एक और पन्ना खोला।“पंडित भुवनेश ने लिखा है -कि ‘सर्वज्ञ’ का संबंध… इस हवेली की पिछली पीढ़ी से है।”

अनाया  ने तुरंत पूछा—“दादी के जमाने से?”

“नहीं,” रिद्धिमा ने धीरे से कहा -“तुम्हारी माँ— सुहासिनी— के जमाने से।”

चारों तुरंत खड़े हो गए ,अनाया के चेहरे पर दर्द और गुस्सा दोनों था।“मतलब? मेरी माँ 'सर्वज्ञ' को जानती थीं?”


रिद्धिमा ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा—“तुम्हारी माँ के मरने से एक दिन पहले… 'पंडित भुवनेश' उनसे मिले थे और वही उनके आखिरी मेहमान थे।'अनाया  के'' पैरों तले जमीन खिसक गई।“न..नहीं…”उसका गला सूखने लगा। कबीर और गौरांश दोनों समझ नहीं पाए कि उन्हें क्या कहना चाहिए ?

रिद्धिमा ने आगे कहा—“उस मुलाकात के बारे में किसी को पता नहीं था। मुझे उनकी अलमारी के पीछे रखी पुरानी रजिस्ट्री से सूचना मिली। वहाँ पंडितजी के हस्ताक्षर भी थे।”

दीप्ती ने भयभीत होकर कहा—“तो क्या… वो सुहासिनी आंटी की मौत में शामिल थे?”

“नहीं,” रिद्धिमा ने तुरंत कहा।“ये मैं बिल्कुल नहीं कह रही।पर… वे कुछ तो जानते थे और उन्होंने अपना सच छुपा लिया।”

अनाया  ने फिर से कुर्सी पकड़ ली, उसे लगा, उसकी माँ का सच अब नया रूप ले चुका है“और असली बात यह है…”

रिद्धिमा धीरे-धीरे उनके करीब आई—“पंडित भुवनेश के पास से जो अंतिम चिट्ठी मिली थी… उसका हस्ताक्षर ‘सर्वज्ञ’ नहीं था।”

चारों ने एक साथ पूछा—“तो किसका था?!”रिद्धिमा ने एक-एक शब्द पर जोर देते हुए कहा—“उस पर लिखा था— S.T.

सन्नाटा चीख उठा ,“अब ये S.T. कौन…?”दीप्ती ने पूछा।

रिद्धिमा ने कहा—“वही तो पता लगाना है लेकिन एक बात पक्की है… ये हवेली जिस राज को छुपाए बैठी है… वह सिर्फ ‘सर्वज्ञ’ का नहीं है, उसके पीछे एक और दिमाग है।”

फिर उसने अनाया की तरफ देखा—“और वो दिमाग… कहीं न कहीं तुम्हारी माँ से भी जुड़ा है।”ये बात सुनकर अनाया का दिल बैठ गया। 

हवेली के बाहर रात,भारी ,धीमी और गहरे अँधेरे से भरी हुई , किसी बूढ़े शिकारी की तरह मंडरा रही थी। लेकिन हवेली के बाहर ही अँधेरा नहीं था, अंदर…का अँधेरा उससे भी कहीं अधिक गहन था ,यहाँ तो अंधेरा इतिहास बनकर दीवारों में जड़ें जमा चुका था और आज…उन सबको उसी इतिहास के सबसे खतरनाक हिस्से का सामना करना था -' दक्षिणी हिस्सा।'

वह हिस्सा जहाँ वर्षों से धूल, डर और दहशत के अलावा, कोई कदम नहीं गया था। रिद्धिमा सबसे आगे थी।उसके हाथ में वही पुरानी लोहे की ठंडी ,भारी चाबी चमक रही थी— जैसे वह भी अतीत का कोई अपराध अपने भीतर दबाए हुए हो। अनाया उसके पीछे चल रही थी ,उसका चेहरा अब भी उदास और लटका हुआ था।अपने पिता का नाम सुनने के पश्चात् उसकी आँखों का विश्वास, किसी टूटे काँच की तरह बिखर गया था। कबीर और दीप्ती दोनों टॉर्च लेकर आगे बढ़ रहे थे,उनकी साँसें भी तेज़ थीं किन्तु नहीं जानते किसलिए ,उस हवेली की हवा या दहशत के कारण.... 

दक्षिणी हिस्से की ओर जाते-जाते हवा का तापमान अचानक से गिरने लगा, दीप्ती काँपते हुए बोली—“ये जगह बाकी हवेली से इतनी ठंडी क्यों है…?”

रिद्धिमा धीरे से बोली—“क्योंकि इस हिस्से की दीवारें…बहुत पुराने राज़ रखती हैं।”धीरे-धीरे सारे कमरे अँधेरे में डूबते गए—जैसे वे भी इस हवेली के सच से डरते हों जो सबके सामने आने वाला था 

'दक्षिणी हिस्से' का दरवाजा आख़िर वे उनके सामने थे— दक्षिणी हिस्से का दरवाज़ा काली लकड़ी से बना ,बहुत ही विशाल था ,वो इतना पुराना था कि लकड़ी पर उभरे निशान मानो किसी की उंगलियों से नहीं, बल्कि किसी की चोटों से बने हों।दरवाज़े पर एक अजीब-सी आकृति बनी थी—एक आँख…और उसके नीचे एक अनजान भाषा में नक्काशी थी :“सर्वज्ञ।”

अनाया काँप गयी —“ये तो वही शब्द हैं … जो पंडित भुवनेश… और मेरी माँ की  डायरी में…थे ”

रिद्धिमा ने कड़ी आवाज़ में कहा—“हाँ,सच मार्ग दिखाने ही वाला है।”उसने चाबी ताले में डाली लेकिन जैसे ही चाबी घूमी—दरवाज़ा हल्का-सा थरथराया,मानो…दरवाज़ा सोते से जाग गया हो।

गौरांश फुसफुसाया—“ये दरवाज़ा ऐसे क्यों हिल रहा है ? यहाँ तो हवा भी नहीं चल रही है। ”

दीप्ती ने डरकर कहा—“ऐसा लग रहा है, जैसे… कोई अंदर खड़ा हो।”

रिद्धिमा ने एक गहरी और लम्बी साँस ली ,और दरवाज़े को दोनों हाथों से धक्का दिया।दरवाज़ा धीरे-धीरे… चर्रर्र, कर्र्ररररर… कर्रररर…चर्रर्रर्र कर खुलने लगा।अँधेरे का एक घना बादल पहले ही बाहर फैला हुआ था , जैसे ही वे अंदर पहुँचे,उनका  सामना फिर से एक घने अंधकार से हुआ ,कबीर ने टॉर्च जलाई —एक लंबा, संकरा, गलियारा,उसकी दीवारें अजीब निशानों से भरी थीं—अग्नि, किसी हाथ का प्रतीक,किसी की आँख,और कई जगह एक ही शब्द:-“चयन !”“दंड !”“सर्वज्ञ !”

कबीर ने धीमे कहा—“ये प्रतीक… ये शब्द…किसी 'गुप्त समाज' जैसे लगते हैं।”

रिद्धिमा ने सिर हिलाया—“हाँ,' सर्वज्ञ 'कोई मनगढंत कथा या तांत्रिक शब्द नहीं है।”“ये… एक गुप्त मंडल था ,जिसका संबंध हवेली से शुरू होकर''राजवीर मल्होत्रा',' पंडित भुवनेश' और कई पुराने सदस्यों से था।”

दीप्ती की आँखें फैल गईं—“मतलब… सुहासिनी आंटी भी कुछ जानती थीं?”

“हाँ,”रिद्धिमा की आवाज़ पत्थर जैसी कठोर थी “और शायद इसी वजह से वो मारी भी गईं।”

अनाया ने घुटी हुई आवाज़ में कहा—“मतलब… माँ को इसलिए…?कुछ शब्द उसके गले में ही अटककर रह गए। ”

रिद्धिमा ने धीमी, दुखभरी आवाज़ में कहा—“अनाया … मैं, अब सिर्फ शक ही नहीं कर रही थी …अब हमें सच का सामना करना पड़ेगा। टॉर्च की रोशनी जब आगे गई,तो एक बड़ा, गोलाकार घेरा दिखलाई दिया।घेरा किसी सफ़ेद चूने से नहीं…बल्कि जली हुई मोमबत्तियों की राख से बनाया गया था।

उस घेरे के मध्य—एक छोटी-सी पीतल की तिजोरी पड़ी थी,उस तिजोरी के ऊपर खून जैसे लाल रंग से लिखा था—“सिर्फ इसे वही  खोलेगा, जिसका अतीत इस हवेली से जुड़ा है।”

दीप्ती ने डरकर कहा—“इसका मतलब क्या हुआ?”

रिद्धिमा ने धीरे से अनाया की ओर देखा, अनाया पीछे हट गयी—“नहीं… मैं… मैं इसे बिल्कुल नहीं छुऊँगी  ।”

अनाया !”रिद्धिमा की आवाज़ तेज होने के साथ उसमें पहली बार विनती घुली थी।“अगर सच तुम्हारे परिवार से जुड़ा है…तो यह तिजोरी तुम्हारे लिए ही है।”

गौरांश ने उसके कंधे पर हाथ रखा—“ अनाया … चाहे कितना भी डर लगे…तुझमें हिम्मत है।”

दीप्ती  ने धीमी आवाज़ में कहा—“तेरी माँ सच छुपाकर नहीं गई थीं…तू वही सच पढ़ने के लिए आज यहाँ है।”

कुछ सेकंड सिर्फ वहां हवा की धीमी गूँज सुनाई दे रही थी फिर—अनाया आगे बढ़ी ,उसने काँपते हाथों से तिजोरी छुई।

उस क्षण—तिजोरी अचानक हल्की सी  चमकने लगी और खुद-ब-खुद खुल गई,तिजोरी की रोशनी कम थी, लेकिन उसमें रखी चीज़ें स्पष्ट  दिखलाई दे रहीं  थीं:-

1. सुहासिनी मल्होत्रा की डायरी।

2. एक पुरानी, खून-सनी तस्वीर।

**3. एक बंद लिफ़ाफ़ा— जिस पर लिखा था:-अनाया  के लिए सच जानने का समय।”**

अनाया  ने काँपते हाथों से डायरी उठाई,उसका दिल धड़क रहा था, दीप्ती ने धीरे से उसे साहस दिया।

रिद्धिमा ने धीरे से कहा—“पहले डायरी देखो !”

अनाया ने डायरी का पहला पन्ना खोला—“यदि यह डायरी तुम तक पहुँचे,तो समझना, कि मैं अब इस संसार में नहीं हूँ।”

“सर्वज्ञ… एक मंडल नहीं, एक ‘विकृत श्रद्धा’ है,जो हवेली के चार परिवारों ने बनाई थी—मल्होत्रा, भट्ट, तिवारी, राजपूत।”

कबीर स्तब्ध रह गया—“भट्ट? मतलब हमारे परिवार का नाम भी है ?”

रिद्धिमा ने जोर से सिर हिलाया—“हाँ! और राजपूत परिवार…रिद्धिमा के परिवार की वजह से आज भी यह हवेली श्रापित है।”

दीप्ती कांपते स्वर में बोली—“मतलब हम सभी के पूर्वज…?”

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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