Qabr ki chitthyan [part 54]

 धीरे -धीरे उस हवेली के रहस्य खुलते जा रहे थे ,तब उन चारों को पता चलता है ,'सर्वज्ञ'कोई इंसान नहीं वरन एक मंडल है। 

 हाँ, रिद्धिमा बोली—“चारो परिवारों ने मिलकर ‘सर्वज्ञ’ नाम का अंधविश्वासी मंडल बनाया था—जहाँ एक व्यक्ति ‘चयनकर्ता’ बनता था,और बाकी तीन उसके सेवक।”

अनाया ने दूसरा पन्ना पलटा।“राजवीर इस मंडल के वर्षों तक सेवक रहे लेकिन उन्होंने बहुत देर से जाना—कि ‘सर्वज्ञ’ सिर्फ शक्ति ही नहीं, वरन बलिदान भी मांगता है।”


दीप्ती ने काँपते स्वर में पूछा—“क… कौन-सा बलिदान?”

अनाया ने अगली लाइन पढ़ी,जिसको सुनकर कबीर और गौरांश की साँसें भी रुक गईं—“पूर्णिमा की रात…एक परिवार का एक सदस्य‘अर्पण’ के रूप में पेश किया जाता है।”

कबीर चिल्ला पड़ा—“ये… ये पागलपन है !”

रिद्धिमा की आँखें भर आईं—“और यही ज्ञानी, पंडित हमारे घरों के आदरणीय लोग…ऐसे अंधेरों में डूबे हुए थे ,अनाया ने अगला पन्ना खोला—और एक लाइन ने उसके शरीर की रगों को सुन्न कर दिया।“अगली पूर्णिमा पर चयनकर्ता… अनाया को अर्पण करना चाहता है।”

दीप्ती  चीख पड़ी—“क्या!!?”

कबीर तड़प गया—“इसे मार दूँगा,' मैं'— जो भी यह ‘चयनकर्ता’ है!”

रिद्धिमा स्तब्ध होकर बोली—“मतलब… सुहासिनी आंटी…तुम्हें बचाने के कारण ही मारी गईं।”

अनाया की आँखों से आँसू गिरने लगे—उसका शरीर काँप रहा था, रिद्धिमा ने लिफ़ाफ़ा खोला,उसमें सिर्फ एक कागज़ था—उस पर लिखा था:**“''चयनकर्ता'' कौन है ?यह मत पूछना !वह तुम्हारे बहुत करीब है।”**

सभी का सिर चकरा गया। दीप्ती की साँस जैसे गले में अटक गई।

रिद्धिमा ने काँपते हुए पूछा—“मतलब… ‘सर्वज्ञ’ हमारे आस-पास में से कोई है?”

अनाया ने रोते हुए कहा—“मेरे पापा? क्या वो ‘सर्वज्ञ’ हैं…?”

रिद्धिमा ने सिर हिलाया—“नहीं,डायरी कहती है—राजवीर सिर्फ सेवक थे, चयनकर्ता कोई और है,जो आज भी जीवित है।”

कमरा गहरी खामोशी से भर गया—ऐसी खामोशी जो सिर्फ तूफान से पहले होती है। तभी दक्षिणी हिस्से  के बाहर धीमी और असरदार कदमों की भारी आवाज़ गूँजी ।

नेहा फुसफुसाई—“क… कोई आ रहा है…”

कबीर ने टॉर्च कसकर पकड़ी।अनाया से तो  खड़ा भी मुश्किल से हुआ जा रहा था।रिद्धिमा ने सबको अपने पीछे कर लिया।

कदमों की आवाज़ पास आती गई—और फिर…दरवाज़ा हल्का-सा खुला।अँधेरे में एक परछाईं खड़ी थी।

रिद्धिमा चिल्लाई—“कौन है!? सामने आओ!”

परछाईं आगे बढ़ी—धीरे-धीरे…और टॉर्च की रोशनी जैसे ही उसके चेहरे पर पड़ी—चारों की साँसें थम गईं।क्योंकि वह था—''राजवीर मल्होत्रा'' किन्तु उसकी आँखें…पहले जैसी नहीं थीं।उनमें कुछ और था—कुछ ऐसा जो उसे मानव होने से इंकार कर रहा था।  उसने एक ही वाक्य कहा—“सच वहाँ नहीं है ,जहाँ तुम ढूँढ रहे हो…सच तो मैं  हूँ। 

दक्षिणी हिस्से के घुटन भरे गलियारे में,चारों के सामने खड़ा था — राजवीर मल्होत्रा ! वो व्यक्ति, जिसे सबने अब तक मृत मान लिया था। वो पिता, जिसके नाम पर अनाया अभी तक रो रही थी। वो शख़्स, जो आज तक इस हवेली का सबसे बड़ा प्रश्नचिह्न था,लेकिन आज वह सच का उत्तर बनकर खड़ा हुआ था —और उस उत्तर की आँखें मानव से ज़्यादा कुछ और लग रही थी। टॉर्च की रोशनी उसके चेहरे पर पड़ी, चारों ने पहली बार देखा —उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था -ना दुख, ना पश्चाताप, ना पितृत्व सिर्फ़ खालीपन, जैसे उसके अंदर का इंसान जैसे मर चुका हो और सिर्फ शरीर निर्णय सुनाने वापस आया हो।

अनाया का गला सूख गया,उसके होंठ काँपे—“पापा… आप जिंदा हैं?”

राजवीर ने पलक तक नहीं झपकाई।“जिंदा…?”वो हल्का-सा मुस्कुराया —पर वो मुस्कान दर्द से नहीं,किसी और ही दुनिया की थी -“बेटा ! इंसान कब मरता है?”कहते हुए उसने आगे कदम बढ़ाया।अनाया  ठिठक गयी,रिद्धिमा उसके सामने ढाल बनकर खड़ी हो गई।

राजवीर ने खुद ही उत्तर दिया—“जब शरीर मरता है?नहीं इंसान तब मरता है ,जब उसका सच दफन कर दिया जाता है।”और मेरी मौत… सच  की पहली हत्या थी।

रिद्धिमा की तेज़ आवाज़ में बोली —“आपने अपनी पत्नी को क्यों छुपाया?आप क्यों गायब हुए?ये 'सर्वज्ञ' क्या है?”

राजवीर के चेहरे पर एक ठंडा संतोष उभरा,“तुम सब सच जानना चाहते हो?”पूछते हुए उसने एक भारी सी साँस ली। “तो सुनो — *मैं ‘सर्वज्ञ’ का सेवक नहीं…उसका' वाहक' था।”

कमरा थर्रा उठा ,दीप्ती  ने मुँह पर हाथ रख लिया।कबीर आगे बढ़ा —“वाहक मतलब? तुम… तुम नेता थे?”

राजवीर ने धीमे-धीमे कहा—“मैं चयनकर्ता नहीं था ,लेकिन चयनकर्ता को शक्ति पहुँचाने वाला'' वाहक ''मैं ही था।”

रिद्धिमा तुरंत डायरी पलटने लगी,पर अचानक राजवीर ने हवा में हाथ उठाया और ठंडी आवाज़ में बोला —“डायरी में सच आधा है,बाकी आधा मेरे खून में लिखा है।”उसने आगे कहा—“मैं ‘सर्वज्ञ’ के चौथे धारक परिवार में जन्मा हूँ ,मेरे पिता — पहले वाहक !मेरे चाचा — दूसरे और मेरे भाई…”उसका गला रुंध  गया,जैसे वर्षों का बोझ अचानक उसकी छाती पर बैठ गया हो।“…तुम्हारे पिता, रिद्धिमा !”

रिद्धिमा की साँस जैसे किसी ने बाहर छीन ली,क्या ??“म… मेरे पिता भी ‘सर्वज्ञ’ से जुड़े थे?”उसने कांपते स्वर में पूछा।

राजवीर ने सिर झुकाया —“हाँ ,उन्होंने ही मुझे वाहक के लिए चुना था और अपने ही भाई —यानी तुम्हारे पिता को…”उसने रिद्धिमा की आँखों में घूरते हुए कहा —“…पहला अर्पण बनाया था।”

दीप्ती चीख उठी,अनाया  वहीं बैठ गयी —उसकी आत्मा जैसे भारी हो गई,उससे अब इसका बोझ सम्भल नहीं रहा था। 

रिद्धिमा चिल्लाई —“तुम झूठ बोल रहे हो!”लेकिन राजवीर टस से मस नहीं हुआ।उसकी आँखों में बस एक सच्चा दर्द था —मरा हुआ, सड़ चुका, पर सच्चा। राजवीर ने अपना हाथ हिलाया और मानो हवेली खुद ही  बोलने लगी ,दीवार पर शब्द नहीं, यादें उभरने लगीं ,उसके शब्द धीरे-धीरे उस अंधकार में चित्र बना रहे थे—“उस रात हवेली में पूर्णिमा थी,मैंने अपने भाई को रोका,गौरव को छुपाया,और मंडल के नियम तोड़ दिए क्योंकि मैं भाई को नहीं खो सकता था।” सालों बाद पहली बार मैंने,नियम तोडा था , उसकी आवाज़ कम्पित हो गई, “लेकिन मंडल गलती पर दंड देता है और उनका दंड था —मेरी पत्नी।”

अनाया की आँखों में खून उतर आया।“मतलब मेरी माँ को दंड के रूप में  मौत…मिली ?”

राजवीर ने सिर झुका लिया ,“हाँ…उसे ‘अर्पण’ बना दिया गया।”

दीप्ती काँप गई —“तो आप अपनी पत्नी को छोड़कर भाग गए?''

राजवीर चिल्लाया —“मैं भागा नहीं था , मैंने सर्वज्ञ से लड़ना शुरू किया था इसीलिए गायब हुआ था। उसके  शब्दों ने जैसे वहां की शांत हवा को भी चीर दिया ।गलियारे में मोम की राख उड़ने लगी।हर कोई समझ गया —ये आदमी अपराधी नहीं…एक भगोड़ा योद्धा था।

दीप्ती धीरे से बोली—“लेकिन डायरी में लिखा है ,'चयनकर्ता' अनाया को अर्पण करना चाहता है…”

राजवीर ने उसकी आँखों में देखा —“क्योंकि चयनकर्ता मेरे खून का उत्तराधिकारी चाहता था ,”उसने धीरे कहा,उस समय उसकी नज़र हत्या से भी ज्यादा भयावह थी। 

कबीर का दिल जैसे बैठ गया,उसने पूछा -“तो' चयनकर्ता' कौन है?”

राजवीर ने गहरी साँस ली,“सर्वज्ञ'' में चार परिवार थे,पर' वाहक' मैं था,अब वाहक बनने वाला…”उसकी नजर उन सबमें से एक पर जा टिकी,धीरे -धीरे बिना झिझक के वो बोला -“…अनाया  होगी ।”

अनाया की सांस जैसे रुक गई, उसके कानों में सन्नाटा भर गया।वो शिकार नहीं —बल्कि अगला चुनाव है ।

राजवीर आगे बढ़ा,किन्तु उसकी चाल अब इंसानी नहीं लग रही थी, उसके भारी कदमों की आवाज गूंज रही थी ,ऐसा जैसे कोई शक्ति उसके भीतर धड़क रही हो।

“सर्वज्ञ'' का मंडल कभी खत्म नहीं होता,'वाहक' मरता है — पर मंडल नहीं,अब मेरी लड़ाई खत्म है।
पर तुम्हारी…”उसने हाथ उठाया,और राख का घेरा मानो जीवित हो उठा।तिजोरी चमकने लगी।दीवारों पर बने प्रतीक धड़कने लगे।“…अब शुरू होगी।”

रिद्धिमा आगे आई —उसकी आँखों में भय नहीं वरन आग थी।“अगर तुमने मंडल तोड़ा,तो इसे फिर क्यों जागने दिया?”


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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