Qabr ki chitthiyan [part 55]

राजवीर धीरे से मुस्कुराया, उसकी आँखें लाल होने लगीं —मानो उसके भीतर दो लोग हों “क्योंकि मंडल को खत्म करने के लिए 'वाहक' का खून चाहिए और मैंने अपना खून दिया —पर वह पर्याप्त नहीं है ”

वह रिद्धिमा ,दीप्ती और कबीर के मध्य चुपचाप आ गया,  अंतिम फैसला सुनाते हुए उसने कहा -“अब या तो मंडल तुम्हें चुनेगा —या तुम मंडल को खत्म करोगे।”

और तभी —पीछे से आकर किसी ने चाकू उसके सीने में घोंप दिया।रिद्धिमा, कबीर , सब चीख उठे।क्योंकि जब उन्होंने देखा ,अनाया चाकू पकड़े हुए खड़ी थी—वही अनाया , जो अब तक शांत थी ,उसकी आँखें रो रही थीं, लेकिन हाथ काँप नहीं रहा था,उसके अंदर गुस्सा भरा हुआ था “तुम्हीं ने मेरी माँ की जान ली थी!”वह चिल्लाई।


राजवीर पीछे गिरा,पर उसके होंठों पर एक शांत मुस्कान थी किन्तु फिर भी उसने अनाया का संदेह दूर करना चाहा ,वह बोला—“मैंने नहीं…चयनकर्ता ने और उसने अंतिम साँस लेते हुए ,खून से फर्श पर सिर्फ़ एक नाम लिखा—“गौरांश।”

हवेली ने जैसे सांस रोक ली,तिजोरी खुद बंद हो गई ,मोम की राख हवा में जम गई, अनाया  गिर पड़ी ।

रिद्धिमा चीखती रह गई, कबीर और दीप्ती स्तब्ध खड़े रह गए और अनाया के हाथ के चाकू से ख़ून टपकता रहा —पर अब उसकी आँखें खाली हो चुकी थीं,उनमें अब पुतलियां नज़र नहीं आ रहीं थीं। 

हवेली की गूँज…अभी भी उन्हीं शब्दों को दोहरा रही थी—“अनाया !”ना हवा हिली,ना कोई कदम ड़गमगाया पर उस नाम ने ही कमरे का तापमान  गिरा दिया।

उसे देखकर दीप्ति के चेहरे का रंग उड़ गया ,कबीर पीछे हट गया,गौरांश की धड़कने तेज़ हो गई ,किन्तु अनाया ,उसके चेहरें पर कोई घबराहट नहीं थी ,जैसे यह नाम पुकारा जाना उसके लिए कोई नई बात नहीं थी ।

रिद्धिमा चीखी—“साया'' ने जो अब तक न जाने कहाँ था ?'अनाया' का नाम लिया है! इसका मतलब—”

गौरांश ने हाँफ़ते हुए कहा—“मतलब उसे अनाया में, अपनी मौत की गंध मिली है।”अनाया धीरे से मुस्कुराई।

इतनी खामोशी कि हवेली का डर भी उसके सामने जैसे झुक गया।“तुम सब सोच रहे हो, कि मैंने किसी को मारा…”अचानक धीमी , मगर चीर देने वाली आवाज में अनाया ने पूछा।“लेकिन असल सच यह है—कि मैं यहाँ किसी की मौत के लिए नहीं…बल्कि अपनी खुद की मौत का बदला लेने आई हूँ।”

यह सुनकर सभी के रौंगटे खड़े हो गए ,कमरा भी जैसे जम गया ,कबीर की साँसें रुक गईं—“क्… क्या मतलब अपनी मौत?”

अनाया उसके और पास आई ,उसकी आँखें और गहरी हो गईं—बिल्कुल कुएँ जितनी।“मैं भी उसी रात मरी थी।”यह बात सुनकर वहां मौत जैसा सन्नाटा छा गया, दीप्ति के होंठ सूख गए, रिद्धिमा पीछे हटने लगी।

किन्तु अनाया ने कहा—“शरीर बच गया…लेकिन आत्मा अभी भी उसी रात से कमरे में बंद है ,”उसने गर्दन उठाई, सीधे खिड़की के बाहर खड़े साए की ओर देखा।“और ये—”उसने उँगली उठाई, बिल्कुल स्थिर आवाज़ में—“ये मुझे पहचानता है ,क्योंकि हम दोनों एक ही रात, एक ही सच के गवाह थे।”तभी आहिस्ता से दरवाजा खुला। कोई हवा नहीं,कोई इंसान नहीं,सिर्फ एक ठंडा अंधेरा, जो भीतर फिसलता चला आया।

साया कमरे में नहीं घुसा—वह बस चौखट पर खड़ा ही रहा किन्तु उसकी मौजूदगी ने जैसे हर दीवार की नस काट दी।

गौरांश बहुत मुश्किल से बोला—“तुम उस रात वहाँ थीं!?”

अनाया ने धीरे से सिर झुकाया … दृढ़ स्वर में बोली -“हाँ,मैंने वहां सब देखा था—गौरव को मारने की असफल कोशिश,रिद्धिमा के पिता की मौत,और वो लोग…जो सच को मिटाने के लिए खून तक बहा देते थे।”

 तुमने हमें कभी बताया नहीं?”कबीर की आवाज़ काँप रही थी ।

अनाया के शब्द टूट रहे थे ,वह बोली-“मुझे भूलने पर मजबूर किया गया था।”

सब दिमाग सुन्न हो गया ,रिद्धिमा का हृदय धड़कने लगा—“किसने? किसने तुम्हें सब भुलाने पर मज़बूर किया ?”

अनाया ने कहा—“जिसने मुझे जिंदा छोड़ा था—वही सबसे बड़ा गुनाहगार है।”

कमरे में जैसे कोई शब्द गिरा और हर किसी के मन में एक ही शक उठा,यह मरने के पश्चात भी, अपने को जिन्दा कह रही है ?

 गौरांश ने लाइट तेज की और बिखरे खून-लिखित पन्नों पर नजर दौड़ाई ,उन पन्नों में एक खास वाक्य चमक रहा था—मानो खुद स्याही जीवित हो उठी हो :“जिसे बचा लिया गया , वही आज सबसे खतरनाक है।”सबकी नज़रें एक -दूसरे की तरफ घूमीं— क्रम से…कबीर → दीप्ति → रिद्धिमा → गौरांश…और फिर—अनाया।अब तो लग रहा था ,किस पर विश्वास करें ,किस पर नहीं ?

दीप्ति की साँसे रुक गईं—“मतलब अनाया ही…!”

तभी अनाया ने ठंडे स्वर में कहा—“मैंने किसी को नहीं मारा।मैं तो बस एक सबूत हूँ—और सबूत हमेशा सबसे पहले मिटाया जाता है,”साया धीरे से आगे झुका।

उसके होंठ नहीं हिले, पर उसकी आवाज़ दीवारों से टकराकर आई—“सच की आखिरी कुंजी… उसे मिली थी।”

अनाया काँप गई,सब डर गए, तभी उसने अपनी मुट्ठी खोली—और उसके हाथ में एक छोटा सा जंग लगा लॉकेट चमका।लॉकेट जिसमें दो फोटो थीं—एक गौरव की और एक उस साये वाले आदमी की।

कबीर उस लॉकेट को देखकर दंग रह गया ,बोला  —“ये लॉकेट… इन्हें जोड़ता है!?”

अनाया ने कहा—“गौरव और रिद्धिमा के पिता—दोनों भाई थे।”रिद्धिमा का दिल फट पड़ा,आश्चर्य से उसकी आँखें फैल गईं, हाथ काँपे—“मतलब… गौरव मेरे पिता का भाई था!?”

गौरांश बोला—“और इसलिए उस रात… सिर्फ हत्या ही नहीं हुई थी—बल्कि  परिवार की सच्चाई उजागर करने वाली रात थी।”

अनाया ने गहरी सांस ली और उसने बताना आरम्भ किया —“गौरव उस लॉकेट को लेकर भाग रहा था,क्योंकि यह लॉकेट साबित करता था कि हवेली की संपत्ति दोनो भाइयों की थी,पर लालच… हमेशा खून से गहरा होता है।”

दीप्ति धीरे से बोली—“तो असली दुश्मन वो लोग थे, जो इस हवेली और धन पर कब्जा करना चाहते थे…”

अनाया ने सिर हाँ में हिलाया पर, फिर उसकी आँखें उठीं—सीधे एक इंसान पर टिककर और यह वह नाम था, जिसे किसी ने सोचा भी नहीं था,वो  साया जो अब तक दहलीज़ पर था ,एक कदम और अंदर आया।

उसके आगमन से अंदर का तापमान गिरा—दीवारों पर धुंध जम गई,फर्श पर धूल दिखने लगी मोमबत्तियों की लौ लंबी होकर नीली पड़ गई।

अनाया ने धीरे से उंगली उठाई—बिना एक पल हिचकिचाए वो बोली—“गौरांश—सबसे ज्यादा फायदा तुम्हें होता।”कमरा एकदम जैसे सुन्न हो गया। 

गौरांश की नसें तन गईं और अपना बचाव करते हुए बोला —“अनाया! क्या तुम पागल हो!?”“पागल?”

अनाया ने तीखी आँखों से कहा—“या वो… जो तुम इतनी सफाई से बने रहे?”

कबीर दहाड़ा—“लेकिन उसने हमें बचाया है!”

अनाया ने ठंडी हँसी दी—“या यह सिर्फ उसका तरीका था,हमारे बीच बने रहने का—शक से दूर रहने का?और उसी क्षण—साया गौरांश के सामने आ खड़ा हुआ।

गौरांश पीछे हटने लगा,उसके माथे पर पसीना चमक उठा।

रिद्धिमा रो पड़ी—“गौरांश…आख़िर तुमने क्या किया था!?”

गौरांश चिल्लाया—“मैंने किसी को नहीं मारा!!पर मैं यह जानता हूँ कि—असली कातिल अभी यहीं है।”

सभी के सिर घूमे,शक हवा की तरह घूमता हुआ हर किसी के चेहरे पर उतरा।साया गरजा—“सच एक नहीं… दो है।”कमरे की सारी रोशनी बुझ गई।अँधेरा पूरे कमरे को  निगल गया।सिर्फ दो चीज़ें जीवित रहीं—साया की लाल आँखें और अनाया की तेज़ साँसें।



laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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