रंजन अचानक ही ,राह में नित्या से मिलता है ,नित्या को देखकर उसके मन का दर्द, उसकी जुबां पर भी आ ही जाता है,तब कॉफी पीते हुए, नित्या बोली -मैं, शिल्पा को अच्छे से जानती हूं ,उसके मन में अपने रूप -रंग को लेकर थोड़ी कड़वाहट तो है, किन्तु वह जब पेंटिंग बनाती है, तो वह अपनी कल्पनाओं और ख्वाबों में खो जाती है। उसके मन में सकारात्मक विचार और अपना प्यार भरो ! तुम्हारे लिए यही सही होगा। वह अपने काम में व्यस्त हो जाएगी और तुम अपना काम करते रहना, उसको समय-समय पर प्रोत्साहित करते रहना। हो सकता है, तुम्हारी जिंदगी में कुछ अच्छा हो जाए।
और रही, मेरी बात..... तुमने कभी मुझे उस नजर से देखा अपने लायक समझा किन्तु ईश्वर को हमारा वो रिश्ता मंजूर नहीं था -' यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है किंतु अब भी हम किसी और रिश्ते ही सही ,एक -दूसरे से जुड़े तो हैं। अब हम अपनी-अपनी घर -गृहस्थी में, अपने परिवार में खुश रहें, हम दोनों के लिए यही बेहतर होगा।जो हो चुका उसको भूलना ही बेहतर है ,बार -बार उन पलों को स्मरण कर अपने को ही क्यों दर्द देना है ?
नित्या ने, रंजन के चेहरे के भावों को पढ़ने का प्रयत्न करते हुए कहा - मैं नहीं चाहती, कि प्रमोद जी को या फिर शिल्पा को, हमारे रिश्ते को लेकर किसी भी प्रकार की गलतफहमी हो। हमारे लिए यही उचित होगा कि उस पुराने रिश्ते को भूलकर, यह जो नया रिश्ता है ,इसको बनाए रखें ! कॉफी ख़त्म करके नित्या कुर्सी से उठ खड़ी हुई और बोली -कई बार हमारे सामने मुसीबतें आ जाती हैं, वे अनचाही मुसीबतें, जिनका हमें पहले से आभास नहीं होता लेकिन कई बार हम जानबूझकर अपनी मुसीबतें बढा लेते हैं , या पैदा कर लेते हैं। क्यों न... प्रेम से उनका सामना किया जाए ?अब मैं चलती हूँ , जो मैंने बताया है, इस पर ध्यान देना।
नित्या ने जो सलाह दी थी, उसी की सलाह के आधार पर ही रंजन, शिल्पा के लिए कैनवास और रंग ले आया था और अपनी जिंदगी को सुकून भरी बनाने का प्रयास कर रहा था। उसमें एक हद तक वह सफल भी हुआ क्योंकि वह अक्सर फोन करके नित्या से बताता रहता था कि उसकी जिंदगी में क्या चल रहा है ?
यह रिश्ता सामाजिक दृष्टि से देखा जाये तो जीजा -साली का रिश्ता कह सकते हैं ,रंजन के मन में जो भी नित्या के प्रति भाव था ,वो विवाह से पहले था ,विवाह के पश्चात नित्या का प्रयास तो यही रहा कि इस रिश्ते को सामान्य ही बना रहने दें, किन्तु शिल्पा की सोच ,अपने रिश्ते को वो सम्मान न देना ,अपनी बात पर अड़े रहना ,ऐसी अनेक बातें उसके व्यवहार में आती हैं जिनके कारण रंजन को अपना वह रिश्ता बेमानी नज़र आने लगता है और तब उसे नित्या की सादगी ,परिवार के प्रति समर्पण ,उसका रंजन को बड़े प्रेम से आदर के साथ समझाना ,रंजन को अपनी ओर आकर्षित करने से रोक नहीं पाता।
अब तो जैसे रंजन को नित्या पर जैसे पूर्ण विश्वास हो गया है ,उससे हर बात पर सलाह लेता ,या यूँ कहें, उससे बातें करने के बहाने ढूंढता ,वह स्वयं ही नहीं समझ पा रहा था उसका ये रिश्ता किस ओर जा रहा है ? किन्तु नित्या अभी भी अपनी बात पर अडिग थी और रिश्तेदार होने के नाते रंजन से बात कर लेती थी। रंजन के मन में नित्या के प्रति कोमल भावनाएं पहले भी थीं और आज भी हैं ,वह नित्या से प्यार तो पहले से करता था किन्तु अब उस पर, विश्वास भी बढ़ गया ,है।
कुछ दिनों तक बहुत अच्छा चला ,किन्तु अब शिल्पा को एक और नई परेशानी ने घेर लिया ,वो कहती -मैं अपनी चित्रकारी पर ठीक से ध्यान नहीं दे पा रही हूँ। घर सम्भालूं या ये सब करूं ?एक तरह से देखा जाये ,उसकी अपनी परेशानियां थीं ,उसने कभी घर के काम किये नहीं थे ,अपने घर को संभालने का प्रयास तो करती किन्तु जल्द ही घबरा जाती। पापा के घर से एक नौकर आ भी गया ,तो यह बात रंजन को अच्छी नहीं लगी ,दो कमरों के मकान में किसी तीसरे का रहना रंजन को,अंदर ही अंदर गुस्सा दिलवाता। वो अकेले घर में शिल्पा के साथ ही दिन बिताना चाहता था और चाहता था जैसे नित्या अपने पति का ख्याल रखती है वैसे ही शिल्पा भी करे किन्तु वो तो नौकर की तरह ही ,उससे भी व्यवहार करती शायद उसे पति से कैसा व्यवहार किया जाता है ,जानती ही नहीं ,या फिर समझना ही नहीं चाहती थी ।
इस बात का समाधान भी नित्या ने ही किया ,उसने सुझाव दिया -'क्यों मुसीबतें ओटते हो ,ससुराल में जाकर रहोगे तो..... पत्नी भी खुश !ससुरालवाले भी खुश !दामाद को सम्मान मिलेगा। किराये के छोटे मकान से बचे रहोगे।सब सामान तैयार मिलेगा ,बुआजी !भी शायद अपनी बेटी को समझाएं।रंजन ने बहुत सोचा ,और फिर ससुराल में रहने का ही निर्णय ले लिया, हालाँकि पहले वो, इस बात के पक्ष में नहीं था किन्तु जब नित्या ने समझाया तो उसकी समझ में यह बात आ गयी।
एक दिन रंजन, शिल्पा से बोला -चलो !तुम्हारे घर में ही रहने चलते हैं।
इस तरह रंजन को कहते सुनकर शिल्पा ने पूछा -मैं इतने दिनों से कह रही थी ,किन्तु तुमने मेरा कहना नहीं माना ,और आज अचानक ही कैसे तैयार हो गए ?
मैंने सोचा ,तुम्हें परेशानी हो रही होगी ,इसीलिए आज सोचा ,जगह ही बदलकर देख लेते हैं।
क्या तुम पहले से नहीं जानते थे कि मुझे यहाँ कितनी परेशान हो रही है ?और आज अचानक कैसे विचार आ गया ?
शिल्पा की बात सुनकर एक बार को तो रंजन बोला - हाँ सोचा तो यही था कि हम दोनों यहीं साथ -साथ रहकर अपनी दुनिया बसायेंगे किन्तु अब लगता है ,तुम वहीं रहकर ज्यादा खुश रह पाओगी।
रंजन की बात सुनकर शिल्पा खुश होते हुए बोली -काश !कि तुम मेरी परेशानी पहले से समझ जाते तो तुम्हें मेरा इतना क्रोध झेलना नहीं पड़ता ,वैसे तुम्हें वहां रहने में कोई परेशानी नहीं होगी। मम्मी ,सब संभाल लेंगी।
मेरी बीवी तुम हो ,मुझे संभालने का काम तुम्हारा है ,तुम्हारी मम्मी का नहीं।
तुम समझे नहीं ,मेरे कहने का मतलब है ,हमें वहां स्पेस भी मिलेगा और कोई परेशानी नहीं होगी।
उम्मीद तो यही है ,रंजन बुदबुदाया ,मन ही मन सोचा ,न जाने ये ज़िंदगी मुझे कहाँ ले जाने वाली है ?देखते हैं ,क्या होता है ?
अपने घर पहुंच कर शिल्पा बहुत खुश थी , अब उसे लगने लगा था कि रंजन उससे बहुत प्यार करता है, उसकी सुख -सुविधाओं का ख्याल रखता है, हालांकि रंजन, नित्या के कहने पर अपनी गृहस्थी की गाड़ी को घसीट रहा था। वह शिल्पा के साथ रह तो रहा था, किंतु औपचारिक तरीके से, अपने घर पहुंचते ही, धीरे-धीरे शिल्पा भी, रंजन के प्रति लापरवाह हो गई उसे लगता था, अब मम्मी सब संभाल लेंगी। रंजन का जो भी काम है सब नौकर कर दिया करेंगे। वह अपनी पेंटिंग्स पर ध्यान देने लगी।
.jpg)