Qabr ki chitthiyan [part 51]

सभी दोस्त सच्चाई का पता लगाने के लिए हवेली में जाते हैं। तब वे हवेली के तहखाने में पहुँचते हैं,  दीप्ति ने डरते हुए कहा—“यह जगह…पहले तो ऐसी नहीं थी। यहाँ… अवश्य ही कुछ बदला है।”

तभी कबीर ने टॉर्च की रौशनी घूमाते हुए एक कोना दिखाया—“उधर देखो!”

वहां उस कोने में ,एक पुराना लकड़ी का बक्सा रखा हुआ था जिसका ढक्कन आधा खुला हुआ था।

गौरांश ने आगे बढ़कर उसे खोला,उसके अंदर—कुछ पुरानी फाइलें,खून से सने कपड़े,गौरव के कागज़ात,और—एक रिकॉर्डिंग डिवाइस।


अनाया ने कहा—“ये… गौरव की चीज़ें हैं!”

गौरांश ने डिवाइस चालू किया,उसमें एक ही रिकॉर्डिंग थी।“Play” बटन दबाते ही एक लड़के की घबराई सी आवाज़ गूँजी—“अगर मैं बच गया तो सब बता दूँगा…उनके नाम,उनकी बातें,उनके चेहरे…”वह आवाज़ गौरव की थी। उसकी आवाज सुनकर सभी की आँखें भर आईं ,रिकॉर्डिंग आगे बढ़ी—“मैं भाग रहा हूँ…शेखर के साथ कोई और भी है ,वह आदमी…वह…”अचानक रिकॉर्डिंग में किसी की भारी आवाज़ सुनाई दी—“उसके हाथ से डिवाइस ले लो ! ”फिर तेज़ दौड़ने की आवाज़...... गौरव की चीख और—गनशॉट।रिकॉर्डिंग यहीं खत्म हो गई। 

कबीर ने गुस्से से कहा—“इस रिकॉर्डिंग से साफ पता चलता है कि शेखर अकेला नहीं था!”

रिद्धिमा बोली—“उसकी आवाज़ बिल्कुल साफ़ नहीं थी…पर…”सभी उसकी ओर देखने लगे।वह काँपते हुए बोली—“मैंने यह आवाज़,कहीं सुनी है,मैं…मैं पहचान सकती हूँ।”

अनाया ने पूछा—“कहाँ सुनी है?”

रिद्धिमा का चेहरा सफेद पड़ गया,“आज…हमारे साथ ही…”

गौरांश ने चौंककर पूछा—“मतलब—हमारे समूह में?”

रिद्धिमा ने धीरे से सिर हिलाया,कमरा फिर से ठंडा हो गया,तहखाने की हवा जैसे जमने लगी।अचानक तहखाने की छत पर कोई साया दिखलाई दिया।उसकी आँखें अब शांत नहीं बल्कि जलती हुई थीं।सभी डरकर पीछे हट गए लेकिन—इस बार साया दीप्ति, अनाया या कबीर की ओर नहीं बढ़ा,वह सीधे रिद्धिमा की ओर झुका और उसने बहुत धीमे स्वर में कुछ कहा—“वह… तुममें से एक है।”

रिद्धिमा की आँखें फैल गईं।“कौन? कौन है वह!?”

साया ने धीरे से उसके कंधे पर हाथ रखा,पहली बार उसका स्पर्श किसी इंसान के लिए घातक नहीं था। तुमने यह रिकार्डिंग सुनी —“तुम उसे जानती हो, तुम सुन चुकी हो, तुम याद करके बताओ ,ये आवाज़ किसकी है ?”

रिद्धिमा काँपने लगी, हाथों में रिकॉर्डिंग डिवाइस पकड़ते-पकड़ते उसकी उँगलियाँ जैसे सफेद हो गईं और तभी—ऊपर की मंज़िल में एक और तेज़ धमाका हुआ।

कबीर ने चिल्लाकर कहा—“कोई ऊपर भागा है!और जो भी है—वह तीसरा अपराधी हो सकता है !”

साया धीरे से पीछे हट गया और हवेली की दीवार पर एक नए शब्द उभरने लगे —“भागने दो !उसे परछाई पकड़ लेगी।”और वह धीरे-धीरे धुएँ की तरह गायब हो गया। जब वे सब वापस ऊपर आए तो हवेली का माहौल और भी भारी था।

सीढ़ियाँ टूटी पड़ी थीं,मानो किसी ने उन्हें जोर-जबरदस्ती से तोडा हो।

अनाया ने कहा—“इसका मतलब…वह व्यक्ति अभी भी यहीं है।”

कबीर ने दीवार पर बने आखिरी शब्द पढ़े—“उसकी चाल,तुम्हारे बीच ही है।”

गौरांश ने गहरी साँस ली—“और अब…हमें उस तीसरे आदमी को ढूँढना ही होगा…”

रिद्धिमा फुसफुसाई—“उसकी आवाज़…मैं पहचानती हूँ…मैं उसे कई बार सुन चुकी हूँ…”सभी ने उसकी ओर देखा।

कबीर—“कौन है ? वो !”

रिद्धिमा धीरे-धीरे,हर चेहरे को देखने लगी—एक-एक कर…दीप्ति…कबीर…अनाया…गौरांश…उसकी साँस रुक गई ,उसने काँपते हुए,एक चेहरे की ओर उंगली उठाई—और बोली—“तुम…तुम ही वह तीसरे आदमी हो।”कमरा सन्नाटे से भर गया।

हवेली  की उस रात में, ठंड कुछ ज़्यादा ही बढ़ गई थी। कमरे की दीवारों पर पड़ी धुंधली रोशनी इशारा कर रही थी कि आगे कुछ बहुत बड़ा होने वाला है। रिद्धिमा की आँखों में एक ऐसी चमक थी, जिसे देखकर लगता था कि वो किसी गहरे निष्कर्ष तक पहुँच चुकी है और वो निष्कर्ष… सबकी साँस रोक देने वाला था।

कबीर , गौरांश ,अनाया और दीप्ती उसके सामने बैठे थे, सभी के चेहरों पर बेचैनी स्पष्ट  दिखलाई दे रही थी, उस पथरीले ठंडा कमरे में सन्नाटा उतना ही घना हो चुका था कि कोई सांस भी ले तो उसकी आवाज दीवारों से टकराकर बाहर लौट आए । बाहर हवा खिड़कियों से टकरा रही थी, जैसे वह भी जानना चाहती हो कि रिद्धिमा आखिर किसका नाम लेने वाली है ? ख़ासकर कबीर के चेहरे पर, वह समझ नहीं पा रहा था कि रिद्धिमा आखिर अपने ‘संदिग्ध’ के रूप में किसका नाम लेने वाली है ?

रिद्धिमा ने धीमे स्वर में कहा—“मुझे पता चल चुका है… कि चिट्ठियाँ किसके इशारे पर आती थीं।”

चारों का दिल धक् से रह गया। सन्नाटा और फिर नाम…करीब दस सेकंड तक रिद्धिमा कुछ नहीं बोली। सिर्फ उनकी आँखों में आँखें डालकर देखती रही, जैसे उन सबके अंदर झाँक रही हो। रिद्धिमा की उँगली अभी भी उठी थी—ठीक उसी दिशा में, जहाँ खड़ा शख़्स यह मानकर खड़ा था कि दुनिया उसे कभी शक की नज़रों से नहीं देखेगी। दीप्ति,अनाया गौरांश और कबीर चारों उसकी उँगली की दिशा में देखने लगे।और फिर—रिद्धिमा ने एक झटके से कहा—**“जिस इंसान पर मुझे शक है… वो है—अनाया  के पिता— राजवीर मल्होत्रा।”**

कमरा धड़ाम से टूटती हुई, चुप्पी से भर गया। अनाया  की आँखें चौड़ी हो गईं, उसका गला सूख गया।“क…क्या कहा, तुमने?” उसके होंठ काँप गए।

कबीर अविश्वास में खड़ा रह गया, दीप्ती  ने अपना हाथ मुँह पर रख लिया— मानो,उसे  किसी भयावह भविष्य का आभास हो चुका हो लेकिन रिद्धिमा की निगाहें नहीं डगमगाई। 

अनाया की साँसें तेज़ हो गईं,“मेरे— पिता? तुम पागल हो गई हो? वो तो इस हवेली से दूर रहते हैं… और चिट्ठियों का उनसे क्या लेना–देना?”

रिद्धिमा ने शांत स्वर में कहा—“मैंने बिना सबूत किसी पर उंगली नहीं उठाई, अनाया !”

उसने अपने हाथ में पकड़ा पुराना कागज़ आगे बढ़ाया—वह एक चिट्ठी थी।अनाया उस चिट्ठी के एक -एक  अक्षर से परिचित थी…अनाया का दिल बैठ गया।

रिद्धिमा बोली—“ये वही 'हस्तलेख' है… जो तुम्हारे पिता अपने व्यवसायिक कागज़ात में इस्तेमाल करते हैं। और ये चिट्ठी… आठ साल पहले हवेली के ‘दक्षिणी हिस्से’ से निकल कर आयी थी।”

अनाया  के मानो '' पैरों तले की जमीन खिसक गई।“न…नहीं… ये झूठ है , ये मिलती-जुलती लिखावट भी तो हो सकती है…”

“अगर सिर्फ लिखावट होती, तो शायद मैं भी मान लेती।” रिद्धिमा ने उसकी बात काटते हुए कहा।“पर ये देखो !”उसने चिट्ठी पलटी—पीछे छोटे-से कोने में लाल स्याही से लिखा था:- R.M.

दीप्ती का शरीर उस सच्चाई को देखकर झनझना गया और उसके मुख से निकला -“राजवीर मल्होत्रा…?”

रिद्धिमा की आवाज़ कठोर हो चुकी थी—“हाँ , वह सिर्फ तुम्हारे पिता ही नहीं… इस हवेली के सबसे पुराने और छिपे हुए ‘सच’ का हिस्सा भी हैं।”

 अनाया धीरे-धीरे पीछे हटने लगी ,उसकी आँखें भर आई थीं।

“नहीं… पापा ऐसा नहीं कर सकते। वो… वो माँ से बहुत प्यार करते थे, उन्होंने कभी किसी को नुकसान नहीं पहुँचाया—”

रिद्धिमा ने उसकी ओर बढ़कर कहा—“प्यार ! हाँ ये सच हो सकता है ,नुकसान ! शायद नहीं किया हो लेकिन… सच तो छुपाया है ? अनाया  तुम्हारे पिता इस हवेली के उस हिस्से में क्यों जाते थे, जो 40 साल से बंद पड़ा हुआ है?”

 अनाया इस आंधी के सामने वह खुद को संभाल नहीं पा रही थी  ,वह बोली -वहां तो' पंडित भुवनेश' जाते थे ,उनका इस सबसे बहुत गहरा संबंध है। 

कबीर और गौरांश एक साथ चौंक पड़े क्या ?? पंडित भुवनेश !

 दीप्ति ने हड़बड़ा कर पूछा- वह तो हमारे फैमिली के पुराने पंडित हैं, वह अपराधी कैसे हो सकते हैं?

 



laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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