Khoobsurat [part 81]

रोज -रोज के तानों से ,रोज़ के क्लेश से, तंग आकर रंजन बाहर टहलने निकला ताकि थोड़ी खुली हवा में साँस ले सके। टहलते -टहलते जब वो सड़क पर आ गया, तब उसका सामना नित्या से हो गया। नित्या को देखकर उसे राहत मिलती है किन्तु साथ ही वो उससे शिकायत भी करता है ,तुमने मेरा विवाह शिल्पा से करवाकर ,न जाने कौन से जन्म का बदला लिया है ?

नित्या, शिल्पा के स्वभाव को अच्छे से जानती थी किन्तु अपने प्रति रंजन के भाव भी समझती थी ,इसी कारण उससे दूर रहने का प्रयास भी करती है ,कहीं बातों के बहाने मेरे करीब आने का प्रयास न करे ,किन्तु रंजन के चेहरे के दर्द को देखकर, नित्या सब समझ गई, वो उससे बोली -तुम अभी यहीं रुको ! मैं अभी आती हूँ ,कहते हुए वो दुकान के अंदर गई और वहां से सामान खरीदा, कुछ देर पश्चात वापस आई, रंजन तब भी वहीं पर था ,उसकी प्रतीक्षा कर रहा था। 


जितनी बार भी रंजन, नित्या को देखता,नित्या के प्रति उसका आकर्षण बढ़ता जाता। रंजन अपनी पत्नी शिल्पा की तुलना नित्या से करते हुए सोच रहा था कि इसने कितने प्यार से अपने घर को संभाला हुआ है और एक बड़े अफ़सर की पत्नी होने के बावजूद भी, साधारण ग्रहणियों की तरह खरीददारी कर रही है। प्रमोद की पसंद के सामान ले रही है, और यहां एक मेरी पत्नी है, सारा दिन ताने देती है, मुझे सुनाती रहती है।

उसने आज तक मेरी पसंद और ना पसंद जानने का प्रयास भी किया हो, कोई सवाल ही नहीं उठता है। और इस तरह बाजार में खरीददारी करना उसके लिए बेइज्जती का सवाल हो जाएगा। मैं यहां न जाने कैसे फंस गया हूं ?

दुकान से बाहर आते हुए, नित्या ,रंजन को वहीं खड़े देख मुस्कुराई और बोली -चलो !कॉफी शॉप में बैठकर बातें करते हैं ,यहाँ इस तरह खड़े होकर बातें करना उचित नहीं लगेगा।

 चलते हुए रंजन ने ,नित्या से शिकायत की -मैं तुम्हारे कारण ही ,यहाँ फंस गया,हमारे विवाह को जितने भी दिन हुए हैं ,एक दिन भी सुकून से नहीं बीता। शादी से पहले तो मैंने उसके ऐसे तेवर कभी नहीं देखे थे किन्तु अब देखता हूँ तो मुझे अपने निर्णय पर अफ़सोस होता है। मैंने सोचा था ,एक कलाकार है ,उसका नाजुक़ सा प्यारा सा दिल होगा किन्तु उसका ह्रदय तो पत्थर है, पत्थर !

  जो भी हम लोगों के साथ हुआ है , हो सकता है उसी में हमारी भलाई हो। मैं जानती थी, शिल्पा तुम्हें पसंद करती है , मैंने कभी तुम्हें, उस नजर से देखा भी नहीं था। मैं यह जानती थी कि मैं अपनी बुआ के घर में रहती हूं और मुझे कुछ दिनो के पश्चात तो यहां से जाना ही होगा। शिल्पा की जिंदगी में बहुत ही हलचल मची हुई थी और मैं चाहती थी , यदि तुम उसकी जिंदगी में आ जाते हो तो शायद, उसकी जिंदगी को एक सही मार्ग मिल जाए। बुआ जी को या शिल्पा को इस बात का पता चल जाता कि तुम मेरे लिए यहां आते हो, तो मेरा वहां रहना दुभर हो जाता , मैं इम्तिहान भी नहीं दे पाती , मुझे अपनी परीक्षा देकर वापस अपने घर आना था। उन्हें , ऐसे लड़के की तलाश थी जो उनका घर- जमाई बनकर रह सके और उनकी बेटी को संभाल सके।

अब ज़िंदगी में क्या मुसीबतें कम हैं ?जो मैं अपनी मुसीबत बढ़ा लूँ ,यदि विवाह से पहले मुझे उनके उद्देश्य के विषय में पता चल जाता तो शायद मैं इस रिश्ते के लिए आगे सोचता। तुम कहती हो वे घर -जमाई ढूंढ़ रहे हैं किन्तु कभी सोचा है ,अभी तो मैं सक्षम हूँ ,अपने पैरों पर खड़ा हूँ ,तब उसकी नजरों में मेरा कोई सम्मान नहीं है ,घर -जमाई बन गया तो..... तो तुम ही सोचो !मेरी क्या हालत होगी ?

 तुम त्याग की मूर्ति बनती रहीं , किंतु एक तरह से देखा जाये तो तुमने भी,  मेरा इस्तेमाल किया , तुम पहले  से ही जानती थीं, वह कैसे स्वभाव की है ? फिर भी तुमने मुझे वहां फंसा दिया। मुझे तुम जैसी ही पत्नी चाहिए थी, उस घमंडी लड़की की तरह नहीं। माना कि तुम, मुझसे विवाह नहीं करना चाहती थीं किन्तु मुझे आगाह तो कर सकती थीं और अब जब हम साथ रह रहे हैं,वह सब भूल चुकी है उसे तो बस एक रट लगी रहती है -' तुम मेरे घर में आकर रहो ! यह छोटा घर मुझे पसंद नहीं है, मुझे इतने छोटे घर में रहने की आदत नहीं है। हम इतनी कम तनख्वाह में, कैसे बचत कर सकते हैं ? मेरे पिता के पास चलकर रहोगे, तो दोनों का खर्चा चल जाएगा और वह कोठी हमारे लिए ही तो है।''

तब इसमें बुराई क्या है ? अचानक नित्या बोली -तुम उससे खुश नहीं हो ,उसे तो खुश रख सकते हो। 

क्या मतलब ?कुछ भी न समझते हुए रंजन ने पूछा। 

मतलब यह है ,तुम लोगों का झगड़ा बुआजी के घर में आकर रहने का है ,तो वहां रहने में क्या बुराई है ?एक बार उसका कहना मानकर ही देख लो ! क्यों झगड़ा बढ़ाना चाहते हो ? 

झगड़ा मैं, बढ़ा रहा हूँ ,हैरत से रंजन ने पूछा ,तुम तो उसके मामा की बेटी हो, उसकी रिश्तेदार हो ,तुम तो उसका पक्ष ही लोगी ,नाराज होते हुए रंजन ने कहा। 

नहीं ,ऐसा नहीं है ,मेरे कहने का तात्पर्य यह है यदि इसी बात पर झगड़े हो रहे हैं ,तो इस बात की जड़ को ही ख़त्म कर दो !

 मैं जानता हूं ,ये झगड़े कभी समाप्त नहीं होंगे ,क्योंकि आज उसकी ये मांग है ,कल को कुछ और कहने लगेगी। यदि मैं वहां चला गया, तो अपना आत्मसम्मान भी खो दूंगा। मानसिक रूप से बहुत परेशान हो चुका हूं। उससे प्यार करने का तो प्रश्न ही नहीं उठता , मैं पहले भी तुम्हें ही प्यार करता था और आज करता हूँ।

रंजन की बातें सुनकर नित्या ने अपनी नजरें झुका लीं ,अब ये सब बातें कहने और करने का समय नहीं है ,हम दोनों के रिश्ते के लिए ,उचित भी नहीं है। मुझे लगता है ,तुम दोनों ने अपनी परेशानियां स्वयं ही बढाई हुई हैं ,'एक -दूसरे की खुशियों में ही अपनी खुशियां तलाश करो !' तुम अपनी गृहस्थी को संभालो ! क्यों ना शिल्पा को उसके काम में, उलझा दो !

क्या मतलब मैं कुछ समझा नहीं , वह बहुत अच्छी पेंटर है, और बड़ी कलाकार बनना चाहती है।इससे उसे ख़ुशी भी मिलती है।  इधर-उधर खुशियां तलाशने से तो अच्छा है। जो चीज तुम्हें मिली है, उधर ही अपनी खुशियां ढूंढ लो ! बिगड़ी हुई परिस्थितियों को संभाल सकते हो ! दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं है, यदि चीज बिगड़ रही है , तो उन्हें संभाला भी जा सकता है। तब तक कॉफी वाला दो कप कॉफी रखकर चला गया।  

 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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