रूही बताती है -एक दिन मेरे मन में ये विचार आया ,दमयंती की भी सास थी, सुनयना देवी ! उनसे जाकर पूछूं ,इस रस्म को निभाने से या किसी भी लड़की के साथ जबरदस्ती करने से क्या लाभ है ? ये रस्म किसने बनाई ? मैंने तो आज तक ऐसी किसी रस्म के विषय में नहीं सुना क्योंकि उस दमयंती ने ही बताया था कि यह रस्म उसकी सास ने ही उसे बताई थी। किन्तु मैंने उन्हें ,उस हवेली में कभी नहीं देखा। दमयंती ने उनका जिक्र तो किया किन्तु ये नहीं बताया -कि वो अब कहाँ है ?
मेरी प्रत्येक रात्रि में चार लोग आते, और मेरे शरीर को नोचते , मनचाहा व्यवहार करते और चले जाते। उनका यह सोचना गलत था कि धीरे-धीरे मैं इस घर- परिवार को और उन लोगों को स्वीकार कर लूंगी किंतु ऐसा नहीं हुआ , बल्कि मेरी उनके प्रति नफरत बढ़ती रही और एक दिन ऐसा आया, जब मुझे बहुत तेज चक्कर आये और मैं गिर पड़ी, बेहोश हो गई। कमरे के बाहर, सभी इकट्ठा थे, और आपस में मंत्रणा कर रहे थे, क्या डॉक्टर को बुलाया जाए ? मैं बहुत कमजोर हो गयी थी।
कितनी ढीठ औरत है, ज़िद से टस से मस नहीं हो रही है,देखो !इसने अपनी कैसी हालत बना ली है ,तुम लोगों से कहा था -अभी थोड़ा धैर्य रखो ! किन्तु तुम्हें तो जैसे ''खून मुँह लग गया ''जाओ !किसी डॉक्टर को ले आओ !
वे लोग डॉक्टर को लाने के लिए जाने लगे ,तब गर्वित ने मेरी तरफ देखा और बोला - डॉक्टर, इसकी ऐसी हालत देखेगी और पूछेगी-' कि इसकी ये हालत कैसे हुई , तो हम उससे क्या कहेंगे ?'हो सकता है ,ये चुपचाप उससे कुछ कह दे ! तब हवेली की इज्ज़त का क्या होगा ?
पता नहीं ,मेरी क्या हालत थी ?बेहोश थी या चक्कर के कारण मूर्छा सी आई थी ,मेरे कानों में उनकी सभी बातें पड़ रही थीं किन्तु तन से मैं विवश थी , हिल भी नहीं पा रही थी।
मम्मी !इसे जाने दो ! इसमें अब वह दम भी नहीं रहा , विवाह की बात है, तो विवाह के लिए तो और भी लड़कियां मिल जाएगीं । देखा नहीं, कैसी हो गई है ? अभी इसे देख कर तो डर लगता है, प्यार नहीं आता पुनीत ने कहा था।
न जाने,मैं कब तक बेहोश पड़ी रही ? इन्होंने मुझे डॉक्टर को भी नहीं दिखाया। मैं, उस हालत में, अपने माता-पिता से मिलने पहुंची थी, शायद मेरी चेतना निकल चुकी थी या फिर भ्र्म था, मैं उनसे शिकायत कर रही थी कि तुमने, मुझे विदा करके एक बार भी पलट कर देखने का भी प्रयास नहीं किया कि हमारी बच्ची कैसी रह रही है ? मुझसे ज्यादा आप लोगों को, इन हैवानों पर विश्वास हो गया और मेरी चेतना खोती जा रही थी। तब ,उन लोगों ने मुझे मरा हुआ समझ लिया था,ये जानने का प्रयास भी नहीं किया कि मैं जिन्दा हूँ भी या नहीं।
उस रात्रि जोरों की बारिश थी, मुझे उठाकर वे लोग, आंगन में डाल देते हैं , रातों-रात किसी को मेरी मौत की खबर भी न हो, इसीलिए मेरा ''दाह संस्कार'' करने का प्रयास करते हैं। एक तरह से देखा जाए तो मुझे जिंदा ही जला रहे थे, क्योंकि अब उनका मुझसे मन भर चुका था। जब उन लोगों ने मेरे तन को अग्नि के हवाले किया, तब मेरी चेतना लौटी ,जब चिता की अग्नि की ज्वाला मुझसे सहन नहीं हुई ,तब मैं उठ बैठी।
मुझे इस तरह अपनी चिता पर बैठे देखकर, ये लोग घबरा गए, और मुझे चिता पर जलते हुए छोड़कर भाग खड़े हुए, किसी ने भी यह जानने का प्रयास नहीं किया कि मैं जिन्दा हूँ और न ही मुझे, बचाने का प्रयास किया। मैं उस अग्नि से बचने का प्रयास कर रही थी, मेरे बदन पर अग्नि अपना प्रभाव दिखा रही थी, उस प्रचंड ज्वाला से बचने के लिए मैं चिता से कूदकर भागी ,यह तो अच्छा हुआ उस रात्रि बरसात हो रही थी ,बरसात के कारण, मुझे थोड़ी राहत भी मिली और उन लोगों से छुटकारा भी, मैं वहां से भाग जाना चाहती थी ,किन्तु नहीं जानती थी कि मैं कहाँ हूँ किन्तु जैसे ही उस श्मशान से बाहर सड़क पर आई, पापा की गाड़ी से टकराई और उसके पश्चात क्या हुआ ?पापा !सब जानते हैं।
कुछ देर के लिए वहां मौन छा गया। शिखा की कहानी सुनकर दोनों पति-पत्नी रो रहे थे, इसके साथ कितना अत्याचार और अनाचार हुआ था और कोई कहने सुनने वाला भी नहीं था। यह कौन सी प्रथा है जिसमें चार पतियों की पत्नी बनना होता है।
अभी वे लोग आपस में अपने विचारों को साझा कर रहे थे ,तभी उन्हें पारो की आवाज सुनाई देती है। आज उन्हें इस समय पार्वती यानि पारो का आना अच्छा नहीं लगा ,तब तारा जी बोलीं -चलो सभी अपने -अपने कार्यों में इस तरह व्यस्त हो जाओ !जैसे कुछ हुआ ही न हो क्योंकि अभी भी वे रूही के दर्द को जी रहे थे। अपने को संयत नहीं कर पा रहे थे। रूही अपने कमरे की तरफ बढ़ने लगी।
तभी पारो वहां पहुंचकर बोली -हैलो ! कैसे हो ?आप लोग ! कहते हुए वह अपनी मौसी के समीप आई किन्तु तारा जी पारो को अपने सामने देखकर जबरन ही मुस्कुराने का प्रयास करती है किन्तु चेहरे के भाव वे छुपाने में नाकामयाब रहीं।
तब पारो ने अपनी मौसी से पूछा -मौसी जी! क्या हुआ ? कुछ बात है,क्या ? उसके इतना पूछने पर ऊपर अपने कमरे में जाते हुए रूही कुछ क्षणों के लिए रुकी किन्तु उसके मन का दर्द गहरा था। जब से उसकी स्मृतियाँ वापस लौटी हैं ,तबसे उसका दर्द उसे रह- रहकर साल रहा है,उसे लग रहा है ,जैसे अभी -अभी वह उस दर्द से गुजरी है। मन निराशाओं के अंधकार में डूबता जा रहा था ,जो होना था हो चुका ,अब क्या किया जा सकता है ?
कुछ नहीं ,कहते हुए तारा जी ने उससे पूछा -कॉफी पीयेगी या खाना खायेगी कहकर रसोई की तरफ जाने लगीं।
पारो ने अपने मौसाजी की तरफ देखा ,वो चुपचाप बैठे समाचार -पत्र पढ़ रहे थे ,रूही भी, मेरे आने पर भी रुकी नहीं ,अपने कमरे में चली गयी। वो इतना तो समझ गयी थी कि इस घर में अवश्य ही कुछ तो हुआ है या फिर मेरे आने पर ही ऐसा व्यवहार कर रहे हैं।
