जितनी सदियों पुरानी कहानियों की छाया गहरी होती जाती है ,रात्रि भी उतनी ही गहरी थी। अंधेरे में बस एक आकृति जल रही थी— रैना नहीं, काव्या नहीं, आर्या नहीं…बल्कि'' वाच-सत्ता''जो अब तक सबको संचालित करती आई थी ,किन्तु आज पहली बार,कहानी उसके अतीत की परतों को खोलने जा रही थी—उस अतीत की,जो इतना गहरा और पुराना था, जिसका ज्ञान किसी भी जीवित प्राणी को नहीं था।
सहस्र वर्ष पूर्व –पहाड़ों के मध्य एक जंगल था,उसे ‘सदशब्द वन’कहा जाता था —“सदशब्द वन”—जहाँ पेड़ पत्तों से नहीं, शब्दों से हिलते थे।वह जंगल सामान्य लोगों के लिए नहीं था, केवल वे व्यक्ति ही पहुँच पाते थे,जिनकी आत्मा किसी कहानी से बंधी हो,या जिनके शब्दों में जीवन की शक्ति हो।
उसी जंगल में एक बच्ची रहती थी—उसका नाम वाचा था।वाचा को जन्म से ही एक वरदान मिला हुआ था—जो कुछ भी वह लिखती, वह सत्य हो जाता।लोग कहते थे—“वाचा लिख देगी तो देवता भी सिर झुका देंगे।”पर वरदान कभी अकेला नहीं आता…उसके साथ एक विष भी होता है।जहाँ गुलाब होते हैं तो कांटे भी साथ आते हैं ,अमृत के साथ विष भी आया था। इसी तरह वाचा के शब्द सिर्फ सत्य नहीं बनते थे—उनमें जीवन भी आ जाता था।उसके लिखे हुए पात्र—नाग, देवता, मनुष्य, दानव—सब जिन्दा होकर उसके सामने खड़े हो जाते थे । पहले सबने इसे चमत्कार समझा,फिर धीरे-धीरे…लोग उससे डरने लगे।
एक दिन,उस राज्य के ऋषि, राजन और विद्वान एकत्र हुए,सबने निर्णय लिया—वाचा को ‘सदशब्द वन’ में सीमित कर दिया जाए यानि की वाचा को उसी जंगल में कैद कर दिया जाये ,कारण?“वह शब्दों को जीवन दे सकती है ,कल वह मृत्यु को भी दे सकती है।”
जब उसे उस जंगल में कैद किया जा रहा था ,वाचा रो रही थी , पर किसी ने उसकी पुकार नहीं सुनी।ऋषियों ने एक मंत्र पढ़ा और जंगल के चारों ओर शब्द-बंधन कर दिया—एक ऐसा जादू, जिससे उसके शब्द केवल उस वन के भीतर ही घूमा करेंगे…और वह वहाँ से बाहर कभी नहीं जा पाएगी।
वाचा कैद हो गई,अब जंगल ही उसका संसार बन गया लेकिन कैद करने के पश्चात भी उसकी शक्ति नष्ट नहीं हुई —वह बस बदलती है।
वर्ष बीतते गए।वाचा बड़े होते-होते अब एक स्त्री बन गई।एक दिन, उसने गुस्से में एक मंत्र लिखा—जिसे उसने नाम दिया—“वाच-सत्ता”अर्थात— वाणी की अंतिम शक्ति।उसने लिखा—“जिसने मुझे बाँधा है,वह अब मेरे शब्दों में बँधकर रहेगा।मेरी कहानी उस व्यक्ति की कहानी बन जाएगी जो इसे पढ़ेगा।”जैसे ही उसने आख़िरी अक्षर लिखा,जंगल हिल उठा,पेड़ चिल्लाने लगे,धरती फट गई।आकाश में शब्दों का तूफ़ान उठ गया और उस तूफ़ान से एक आकृति ने जन्म लिया —नीली, धुँधली, लेकिन तेज़स्वर—वाच-सत्ता।
वाच-सत्ता कोई देवता नहीं थी,वो एक ऊर्जा थी—लेखन, वाणी और चेतना का मिलन।उसने अपनी जन्मदाता वाचा से कहा—“तुमने मुझे रचा है,पर मैं तुम्हारी नहीं हूँ।मैं हर उस व्यक्ति की हूँ जो लिखता है,जो पढ़ता है,जो सोचता है।”
वाचा घबरा गई,उसने अपने मंत्र की शक्तियाँ कम आँकी थीं।
वाच-सत्ता आगे बोली—“अब तुम्हारी कहानी कोई और लिखेगा,तुम अपने शब्दों की कैदी बन चुकी हो।”
वाचा चिल्लाई—“नहीं! मैं अपनी कहानी खुद लिखूंगी!”
वाच-सत्ता ने अपनी हथेलियाँ फैलाईं—और वाचा की आत्मा उसमें समा गई।
उस दिन से—'वाचा' और' वाच-सत्ता' एक हो गईं और वह सत्ता जंगल से निकलकर पूरी दुनिया में फैलने लगी।
वाच-सत्ता का नियम सरल था—जो व्यक्ति उस कहानी को पहली बार पढ़े या लिखे—वह उसका वाहक बन जाता।हजारों वर्ष बीत गए।काल बदलता गया।सभ्यताएँ बदलीं किन्तु वाच-सत्ता का नियम कायम रहा।हर युग में उसने एक लेखक चुना—किसी को पद्य में,किसी को पुराण में,किसी को उपन्यास में,और किसी को…चिट्ठियों में।
हर लेखक उसकी शक्ति को आगे बढ़ाता,और बदले में उसकी आत्मा धीरे-धीरे वाच-सत्ता के रंग में रंग जाती।
काव्या की वंशावली में एक स्त्री थी—जिसका नाम था'' चारुलता''वो एक उत्कृष्ट लेखिका थी। एक दिन, उसे एक पुराना पत्र मिला,जिस पर लिखा था—“कहानियाँ लिखने से पहले इन्हें पढ़ना।”चारुलता ने पत्र खोला और उसी रात…वाच-सत्ता ने उसे अपना वाहक बना लिया।
उस समय, वाच-सत्ता ने कुछ नया किया—उसने अपने आप को चिट्ठियों में बाँध लिया क्योंकि पुरानी चिट्ठियाँ कभी मरती नहीं,वे बस अगले हाथों में जाती रहती हैं।
चारुलता की मौत के बाद वो चिट्ठियाँ काव्या की माँ तक पहुँचीं और फिर काव्या तक।काव्या ने बस एक गलती की—उसने' कब्र से चिट्ठी' उठाई।बस वही पल उसके जीवन की आख़िरी स्वतंत्र साँस थी।
आर्या, जैसा सभी ने समझा—काव्या का दूसरा जन्म नहीं थी।वह वाच-सत्ता का एक प्रयोग थी।काव्या ने अपनी मृत्यु से पहले जो आख़िरी कहानी लिखी,जिसका आख़िरी वाक्य था—“मैं एक और जन्म लूँगी…”
वाच-सत्ता ने उसे सत्य कर दिया किन्तु नया जन्म मनुष्य का नहीं,बल्कि कहानी का होता है।आर्या उसी कहानी की चेतना थी,जो मनुष्य के रूप में जन्मी।
रैना को भी वाच-सत्ता ने नहीं चुना।रैना ने खुद को चुना क्योंकि उसने बिना समझे कहानी का पहला अध्याय पढ़ लिया था और वाच-सत्ता के नियम के अनुसार—पाठक ही नया लेखक बनता है।रैना जब जगी,उसे सामने वही नीला धुंधला चेहरा दिखा—वाच-सत्ता।वाच-सत्ता ने कहा—“अब तुम मेरी कहानी की उत्तराधिकारी हो।”
रैना हँस पड़ी—“लेकिन मैंने तुम्हें खत्म कर दिया था।”वाच-सत्ता मुस्कुराई ,उसकी मुस्कान में भय और शक्ति थी ।“कहानी को खत्म करने वाला कभी लेखक नहीं बन सकता और तुम… रैना…लेखक बनने के लिए ही पैदा हुई हो।”रैना ने सिर उठाया।“मुझसे ,तुम क्या चाहती हो ?”
वाच-सत्ता बोली—“तुम्हें वही करना है जो वाचा ने किया था। एक नई 'वाच-सत्ता' लिखनी है—एक नई सत्ता जो पुरानी को बदल दे।कहानी खत्म नहीं होगी,पर इसका रूप… अवश्य बदल सकता है।”
वाच-सत्ता ने हवा में हाथ घुमाया,और रैना के सामने एक विशाल, असीम वन उग आया—शब्दों का वन।“यह वही स्थान है ,जहाँ पहली वाच-सत्ता का जन्म हुआ था।अब दूसरी का जन्म तुम्हारी कलम से होगा।”रैना स्तब्ध थी।
वाच-सत्ता बोली—“लिखो, रैना अपनी कहानी लिखो ,मुझे लिखो…मुझे नए रूप में लिखो या मुझे मिटा दो ।”
रैना ने धीमे, पर दृढ़ स्वर में कहा—“मैं तुम्हें मिटाऊँगी।”
वाच-सत्ता मुस्कुराई ,“तो फिर कलम उठाओ।”
रैना ने हाथ बढ़ाया—और हवा में एक स्याही की कलम बनी,जिसमें शब्दों के कण चमक रहे थे।
वह लिखने बैठी—पहला शब्द…दूसरा शब्द…और हर अक्षर के साथ''वाच-सत्ता'' का रूप कांपने लगा।
जंगल में हवा तेज़ हो गई।शब्द दीवारों से उतरकरआकाश में घूमने लगे और तभी—रैना ने अंतिम वाक्य लिखा—“कहानी की सत्ता कहानी में नहीं,उस लेखक में होती है जो उसे लिखता है।”
वाच-सत्ता चिल्लाई—“नहीं…!”उसका शरीर धुएँ में बदलने लगा।उसका आकार टूटने लगा और वह शब्द जो उसमें बंधे थे,सब मुक्त होकर आकाश में फैल गए।
सदशब्द वन काँप उठा ,रैना ने आख़िरी शब्द कहा—“अब तुम्हारा अंत है।”
और वही क्षण…''वाच-सत्ता'' धूल बनकर हवा में उड़ गई।जंगल शांत हो गया ,रैना ने राहत की साँस ली।उसने सोचा—अब कहानी खत्म हो गई।
लेकिन…ज़मीन पर सुनहरे रंग का एक शब्द तैर रहा था—वह धीरे से उठकर रैना के कानों तक आया—और फुसफुसाया—“हर सत्ता मरती नहीं…कुछ रूप बदलकर लौटती हैं…”रैना ने मुड़कर देखा—जंगल फिर हिलने लगा था।दूर कहीं किसी नई सत्ता के जन्म की आहट आ रही थी।कहानी खत्म नहीं हुई थी बस पलट गई थी।
