हवा में, एक बार फिर वही पुरानी दहशत थी—मानो हवेली खुद अपनी साँस रोके खड़ी हो। रात के साढ़े रात्रि के बारह बज रहे थे, बाहर तूफ़ान उफान पर था, और अंदर… हर कदम एक नए रहस्य की ओर खिंचता जा रहा था। अनाया, दीप्ति, और कबीर अब हवेली के बिल्कुल मध्य में पहुँच चुके थे—पुरानी कब्रगाह के ठीक ऊपर बने उस गुप्त तहखाने में, जहाँ रोशनी पहुँचते ही हर चीज़ अपना साया लम्बा कर लेती थी।
वहाँ पर एक पुराना लोहे का बक्सा,दूर कोने में रखा था, जिस पर अँधेरे की परत ऐसी लग रही थी जैसे उस पर सूखा खून जमा हो ,उन्होंने उस बक्से को खोलकर देखा।उन्हें आश्चर्य हुआ ,उसमें बक्से में ज्यादा कुछ नहीं था ,उन्हें सिर्फ गौरव की अधूरी डायरी मिली किन्तु सबसे अधिक आश्चर्चकित कर देने वाली बात यह थी …डायरी का आखिरी पन्ना किसी ने कुछ दिनों पहले ही लिखा था।नीले रंग की ताज़ा स्याही से ,जबकि गौरव तो 18 साल पहले ही मारा जा चुका था।
ये किसने लिखा?क्यों लिखा होगा ?और… किसके बुरे स्वप्न की शुरुआत होने वाली थी?कबीर ने डायरी हाथ में पकड़कर काँपती आवाज़ में पढ़ा—“जो सच, मैंने कब्र में दबाया था,वह कोई और जिंदा रखे हुए है।मेरी मौत एक हादसा नहीं थी और जो मुझे मार सकते हैं… वे अभी भी ज़िंदा हैं।”अनाया ने उसकी ओर झटके से देखा।
“यह… यह तो किसी चेतावनी जैसा है,” उसने धीमे से, घबराते हुए कहा।
“लेकिन गौरव के मरने के इतने साल बाद ये पन्ना ताज़ा कैसे?” दीप्ति फुसफुसाई।
कबीर की आँखों में अचानक भय उतर आया—“ये डायरी… किसी ने इधर ,हाल ही में खोली है और शायद हम यहाँ अकेले नहीं हैं।”उन तीनों की साँस अटक गई।दीप्ति ने टॉर्च का फोकस घुमाया ,इतनी छायाओं की लकीरों के बीच… कुछ हल्का सा हिला।
“कौन हो सकता है ?” अनाया ने दबी आवाज़ में पूछा।कबीर ने जैसे किसी अदृश्य आहट को महसूस किया और फिर—“ठक… ठक…”ऊपर लकड़ी के फर्श पर धीमी और भारी किसी के कदमों की आहट सुनाई दे रही थी ।उन्होंने महसूस किया ये किसी ऐसे आदमी की चाल है …जो जानता था कि वह अँधेरे की ताकत है ,अनाया के ह्रदय की धड़कनें गले तक आ गईं।
“यह कोई भी हो सकता है…” कबीर ने धीमे स्वर में कहा, “मुझे लगता है, वो अकेला नहीं है। मैं—मैंने दो कदम सुने थे।”
दीप्ति ने फुसफुसाकर कहा—“मुझे लगता है ,कोई हमारी हर बात सुन रहा है .अचानक दीवार के एक हिस्से पर कबीर की नज़र पड़ी। वह स्थान कुछ अलग लग रहा था ,उसने वहां की मिट्टी और काई हटाई ,उसके हटते ही पत्थर पर उकेरी हुई कुछ रेखाएँ उन्हें दिखीं। वो रेखाएँ… जो धीरे-धीरे एक बड़ी हवेली का नक़्शा बना रहीं थीं। अनाया ने उस कमरे में एक स्थान पर मोमबत्ती रखी देखी ,अनाया ने तेज़ी से उस मोमबत्ती उठाकर जलाया और उस स्थान पर ले गयी। उस रोशनी में उन्हें जो दिखलाई दिया ,वे सभी चौंक गए -“ये—तो हवेली का पूरा नक्शा है… और यह चिन्ह?”नक़्शे के ठीक बीच एक त्रिकोण के अंदर बंद नाम लिखा था—“V.R.”
दीप्ति की आँखें आश्चर्य से फैल गईं।“विष्णु रावत'' अचानक बोल उठी ।“हवेली के मालिक… और रिद्धिमा के पिता।”
कबीर ने धीमे से पूछा —“ये वही आदमी है जो गौरव की मौत के बाद, रातों-रात गायब हो गया था।”
नक्शे के नीचे एक और पंक्ति उकेरी हुई थी—“जो दफ़न हुआ, वह दोबारा उठेगा और जो ऊपर बैठे हैं… वे गिरेंगे।”अनाया ने अचानक महसूस किया—कुछ गड़बड़ है।
“दीप्ति…”उसे एकदम से याद आया—“रिद्धिमा कहाँ है? वह हमारे बाहर जाते समय, हमारे साथ ही थी!”
कबीर ने दीवार के कोनो में टॉर्च घुमाई, शायद रिद्धिमा इधर -उधर हो किन्तु वहां अँधेरे के सिवा कुछ नहीं था और एक अजीब सायानुमा परछाई उन्हें महसूस हो रही थी …जो टॉर्च की रौशनी पड़ते ही गायब हो जाती।
दीप्ति ने घबराहट में कहा—“कहीं उसे, वही लोग तो नहीं ले गए, जिन्हें इस डायरी के विषय में पता था ?”
अनाया ने गहरी साँस ली—“नहीं…रिद्धिमा, वह नहीं है, जो हमें दिखलाई देती है ।”ऊपर से अचानक एक तेज़ चीख सुनाई दी।कबीर पागलों की तरह सीढ़ियों की तरफ भागा और आवाज लगाई —“रिद्धिमा!!”
अनाया और दीप्ति उसके पीछे दौड़ीं,ऊपर पहुँचकर उन्होंने जो देखा…उससे सबकी रूह काँप गई।रिद्धिमा कमरे के बीच खड़ी थी।उसके चेहरे पर खून की धार बह रही थी लेकिन वह घायल नहीं थी।खून… उसका नहीं था किन्तु उसके हाथ में किसी का पुराना टूटा हुआ मोबाइल था।
उसे देखकर कबीर हक्का-बक्का रह गया , उस रक्त की ओर इशारा करते हुए पूछा—“ये… किसका है?”रिद्धिमा धीरे-धीरे मुड़ी, उसकी मुस्कान में अजीब ठंडक थी।“ये उसी का है, जिसने गौरव को मारा।अब वो हवेली में है।”कबीर थरथरा गया।“तो—तो तुम यह सब कबसे जानती थीं?”
रिद्धिमा ने टॉर्च की रोशनी अपनी आँखों पर डाली—“मैं इस हवेली की बेटी नहीं हूँ,मैं इस हवेली के एक भूत की आखिरी गवाह हूँ।”अनाया, दीप्ति… सब एक पल को ठिठक गए।बाहर का तूफान… अचानक शांत हो गया ,मानो किसी ने उसकी साँस रोक ली हो।हर ओर एक डरावना अस्वाभाविक सन्नाटा !
दीप्ति फुसफुसाई—“तूफान ऐसे इतनी आसानी से नहीं थमता…”अनाया ने खिड़की से बाहर झाँका तो देख कर काँप गई—हवेली के सामने जंगल में, अंधेरे में कोई खड़ा था।एक आदमी,जो टकटकी लगाए हवेली की ओर ही देख रहा था।
कबीर नीचे उतरने ही वाला था कि रिद्धिमा ने उसे पकड़ लिया—“अगर तुम नीचे गए… तो ज़िंदा नहीं लौटोगे।”
कबीर ने उसे झटकते हुए कहा—“तुम कौन होती हो ?मुझे रोकने वाली! और तुमने हमें सच क्यों नहीं बताया ?”
रिद्धिमा ने धीरे से कहा—“क्योंकि सच…तुम्हें, तुम्हारे पिता से नफ़रत करवा देता।”
कबीर एकदम से जैसे जम गया,“मेरे पिता…?उनका इस सब से क्या लेना देना?”
रिद्धिमा की आँखों में नमी उभर आई।“तुम्हारे पिता…गौरव की मौत की रात वहीं थे।”अनाया और दीप्ति स्तब्ध रह गईं।
कबीर का गुस्सा फट पड़ा—“तुम झूठ बोल रही हो!”रिद्धिमा ने हाथ आगे बढ़ाकर वह टूटा मोबाइल दिया।
कबीर ने मोबाइल लिया,उसकी स्क्रीन टूटी थी, लेकिन एक वीडियो फ़ाइल सेव थी।
नाम—‘रात-10:32’कबीर ने प्ले किया।स्क्रीन पर एक धुंधला दृश्य दिखा—हवेली का पिछला आँगन, एक लड़का भाग रहा था,वह और कोई नहीं … गौरव था और उसके पीछे दो आदमी जिनको पहचानना मुश्किल था ,लेकिन उनमें से एक की आवाज़ साफ़ आई—“गौरव ! तूने बहुत आगे बढ़ना चाहा!”कबीर ने वह आवाज़ सुनी…और उसकी रूह काँप उठी।यह उसके पिता की आवाज़ थी।मोबाइल कबीर के हाथ से छूटकर फर्श पर गिरा।
अनाया धीरे-धीरे कबीर के पास आई।“कबीर… अब शांत हो जाओ।हो सकता है—”
“नहीं!!”वह चीख पड़ा।“मेरे पिता ऐसा कर ही नहीं सकते!ये कोई 'साज़िश' है!”
रिद्धिमा ने गहरी साँस ली।“साज़िश… हाँ है,लेकिन तुम्हारे पिता के चारों ओर..... ”
दीप्ति धीरे से बोली—“मतलब?”
“मतलब…गौरव को मारने वाले सिर्फ दो लोग नहीं थे,बल्कि पूरा एक गुट था और उस गुट का नेता—”रिद्धिमा की बात पूरी होने से पहले ही—ऊपर की मंज़िल से ऐसा धमाका हुआ, जैसे कोई भारी चीज़ टूटी हो। अनाया टॉर्च लेकर आगे बढ़ी और बोली -“ये आवाज़… ऊपर वाली बंद कोठरी से आई है।”
वही कोठरी…जहाँ कभी किसी को जाने की इजाज़त नहीं थी।जिसपर ताला तो था, पर ताला अपनी जगह पर नहीं था—जैसे किसी ने उसे भीतर से तोड़ा हो।कबीर, टूटे मन से भी, सबसे आगे चल पड़ा।
रिद्धिमा ने हाँफते हुए कहा—“कबीर…! रुक जाओ ! वो कमरा—”
