आज घड़ी फिर से 3:33 AM पर अटक गयी थी।शहर के सभी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जैसे किसी अदृश्य हाथों के नियंत्रण में आ गए थे। दूर कहीं, किसी बच्चे के रोने की हल्की आवाज़ हवा में तैर रही थी —शहर में अज़ीब सी दहशत भरी थी किन्तु फिर भी लोग'' क़ब्र की चिट्ठियों ''का वर्णन किये बग़ैर नहीं रह पा रहे थे जो कुछ कह नहीं रहे थे ,तब भी उनके मस्तिष्क में यह शब्द जैसे अटक सा गया था। दूर कहीं एक कमरे के बीचों-बीच एक पुरानी डायरी खुली पड़ी थी,जिसका शीर्षक अब बदल चुका था —“कब्र की चिट्ठियाँ'' – अंतिम पाठक के लिए”
रवि, एक स्वतंत्र पत्रकार है ,उसने हाल ही में इंटरनेट पर वायरल हुई इस “श्रापित किताब” 'क़ब्र की चिट्ठियां ''पर एक' लेख' लिखने का ठान लिया था। उसका मानना था कि यह सब बस एक'' मनोवैज्ञानिक तेजी से फैलनेवाला प्रयोग'' है ,यह कहानी काल्पनिक है ,इसका वास्तविकता से कोई संबंध नहीं है, काव्या -आर्या कोई असली ताक़त नहीं है ,यह लोगों में भ्र्म फैला दिया गया है,ताकि इस किताब को अधिक से अधिक लोग पढ़ें ,और जब लोग इस कहानी को पढ़ते हैं तो उससे अपना जुड़ाव महसूस करते हैं ,उसी के तहत उन्हें लगता है ,जैसे- कोई उनके आस -पास है अथवा कोई उनके कान में फुसफुसा रहा है।
मन ही मन लोगों की सोच पर वो हँसता हुआ बोला —“डर भी अब डिजिटल हो गया है!”लेकिन जैसे ही उसने डायरी का पहला पन्ना खोला -कमरे की हवा बदल गई ,कमरे का तापमान गिरने लगा। तब भी उसने उस डायरी को खोला और पढ़ा —“हर कहानी एक पाठक की तलाश में रहती है…ताकि वह जीवित रह सके।”
रवि ने मुस्कुराकर कैमरा ऑन किया,वो वीडियो रिकॉर्ड करने लगा,“दोस्तों ! यही वो किताब है ! जिसे लोग कहते हैं -इसके पढ़ने से लोग मरने लगे हैं।अब देखते हैं, इसमें ऐसा क्या है।”कहते हुए ,उसने दूसरा पन्ना खोला —“अगर तुम यह पढ़ रहे हो, तो मैं तुम्हें देख रही हूँ।”
रवि ने कैमरे की स्क्रीन पर ध्यान दिया —उसे लगा ,जैसे पीछे कुछ हिला था। किसी ने उस कैमरे के काले शीशे में उँगली फिराई हो।
उसने पलटकर देखा —उसे कुछ नहीं दिखलाई दिया ,किन्तु जब उसने कैमरे में देखा , एक परछाई उसके पीछे खड़ी थी।
उसने वीडियो रोक दिया,अब उसका दिल धड़कने लगा।उसके मन ने चेतावनी दी -कहीं यह सच न हो ,किन्तु उसकी ज़िद ने उस चेतावनी को धकेला ,और आगे आ उसे समझाया ''यह मात्र संयोग है,” उसने खुद से कहा। पर जब उसने कैमरा बंद किया,तो लेंस पर लिखा मिला —“Part 36 – तुम्हारा अध्याय।”
रवि ने डायरी बंद कर दी,लाइट्स जलाईं — और हैरान रह गया। दीवारों पर भी वही वाक्य उभर आया था
जैसे किसी ने अंदर से लिखा हो:“कहानी खत्म नहीं होती, जब तक कोई पढ़ता रहे।”
उसने दीवार छुई —उसमें नमी नहीं थी, बल्कि स्याही थी और वो स्याही उसके हाथ पर चिपक गई।अगले ही पल, उसके हाथ पर अक्षर बनने लगे —“आर्या जीवित है।”
रवि काँप गया,फिर भी उसने साहस से काम लिया ,वो बड़बड़ाया — “यह तो बस नाम है, एक कल्पना!”
पर तभी, उसके लैपटॉप की स्क्रीन अपने आप ऑन हुई। फ़ाइल खुली:- Chitthiyan_35.docx
उसमें अंदर लिखा था —“रवि नाम का एक पत्रकार, जो यह सोचता है कि यह कहानी एक कल्पना है ,झूठ है…”वो उसे पढ़ता गया,और हर पंक्ति उसके साथ घटत होती गई और टाइप होती रही —“उसके पीछे कोई खड़ा है।”वो पलटा —और वहाँ वाक़ई कोई था।
लंबे बालों वाली एक औरत —सफ़ेद, अधजली साड़ी में,चेहरा राख-सा धुँधला,और आँखें वही नीली,उसने कहा -“क्यों लिखना चाहते हो ? जब सच्चाई तुम्हारे सामने है ,तुम्हें उसे पढ़ना चाहिए?”
रवि पीछे हटा — “तुम कौन हो?”“मैं वही हूँ, जो तुम पढ़ रहे हो।”
“आर्या?”अचानक से वो चीखा
“नहीं,अब मैं कहानी हूँ।”उसने सहजता से जबाब दिया। उसने हाथ बढ़ाया,डायरी खुद-ब-खुद उड़कर उसकी ओर आई।
रवि ने देखा — पन्नों पर उसका नाम लिखा गया था।हर पन्ने में —“रवि, पत्रकार – मरता है।”वो चीखने ही वाला था कि डायरी उसके मुँह पर लगी,और स्याही उसके भीतर समा गई।
अगली सुबह,रवि के यूट्यूब चैनल पर एक वीडियो अपलोड हुआ —शीर्षक था “कब्र की चिट्ठियाँ ''–का सच सामने है!”
लाखों लोगों ने उसे देखा किन्तु वीडियो में रवि की आवाज़ नहीं थी —बस नीली आँखों वाली एक महिला कह रही थी:“हर दर्शक एक पाठक है,और हर पाठक अब मेरी कहानी का पात्र।”
कुछ घंटे बाद,हज़ारों दर्शकों ने महसूस किया, कि उनके फोन की स्क्रीन पर वही वाक्य उभर आया —
“कहानी अब तुम्हारे साथ है।”
अदृश्य लेखन से इंटरनेट भर गया। जब भी कोई अपना लैपटॉप खोलता ,तब वे लोग अपने लैपटॉप में वही पंक्तियाँ पाते —“कब्र की चिट्ठियाँ – Part 36।”
पर किसी ने वो हिस्सा कभी पूरा नहीं देखा ,जो भी खोलता,उसका सिस्टम अपने आप बंद हो जाता,या उसके कैमरे से कोई परछाई दिखती।
एक सप्ताह के पश्चात,सरकारी एजेंसियाँ सक्रिय हुईं।साइबर-टीम ने उस मूल फ़ाइल का पता लगाया,जो यह सब फैला रही थी।डेटा-सर्वर ब्लैक हिल के नीचे था —वही पुराना दीनदयाल ! टीम की प्रमुख अधिकारिणी'' नलिनी देशमुख ''ने सिस्टम खोलने की कोशिश की।स्क्रीन पर बस एक संदेश आया:“तुम्हें नहीं खोलना चाहिए था, नलिनी।”
उसने चौंककर स्क्रीन को देखा —वहां उसका नाम कैसे?ये बात कौन जानता है ,कि मैं इस टीम का संचालन कर रही हूँ ?
अगले ही पल,सिस्टम अपने आप कोड लिखने लगा —“ भाग 36 – 'नलिनी देशमुख' प्रवेश करती है।”
“क्या बकवास है!” उसने गुस्से से कहा ,लेकिन तभी स्क्रीन पर वही नीली आँखें उभर आईं।
“स्वागत है,आपका … अंतिम पाठक !”और ब्लैक हिल का सर्वर रूम अंधकार में डूब गया।
कुछ दिनों बाद एक नई फ़ाइल उभरी —चिट्ठियां _Final.pdf
जिसके लेखक नाम था — ''आर्या -काव्या द्वारा संग्रहित ''
और अंतिम पंक्ति में लिखा था:“कब्र की चिट्ठियाँ अब किसी एक की नहीं।यह हर उस मन की है जो पढ़ना चाहता है। सावधान रहो !—अगला पन्ना तुम्हारा भी हो सकता है।”
कमरे के अंधेरे में कोई टाइप कर रहा है ,कर्सर झिलमिलाता है —“Part 36 – अंतिम पाठक (समाप्त)”
वह टाइप करने वाला ठहरता है,धीरे-धीरे सिर उठाता है।चेहरा आधा रोशनी में, आधा साया।
तो वो तुम हो।
