Jahar ka ghunt peena

सुबह की हल्की धूप आंगन में बिखरी थी, चिड़ियाँ आंगन में पेड़ों पर चहचहा रही थीं किन्तु राधा पर तो जैसे इस वातावरण का कोई असर नहीं था। राधा चुपचाप तुलसी के पौधे में जल चढ़ा रही थी उसकी आँखों में न तो आँसू थे, न ही कोई चमक — बस एक गहरी खामोशी थी, जो किसी लंबे तूफ़ान के बाद की शांति जैसी लग रही थी।

  राधा के घर में आज भी वही हलचल थी — सास का ताना, देवर की बेरुखी, और पति अरविंद की ठंडी बेरहमी। उनके विवाह को पाँच साल बीत चुके हैं, अन्य लोगों की तो छोडो ! उसके हिस्से में अपने पति  का प्यार भी नहीं आया। वह प्रतिदिन शराब पीता जब उसकी आवश्यकता होती ,उसे बुलाता अपनी इच्छा पूर्ति के पश्चात ,उसने कभी राधा से यह नहीं पूछा -वो इस घर में खुश तो है ,अथवा उसे कोई परेशानी तो नहीं ,वो क्या चाहती है ?वो सब सहन करते हुए अपना “फ़र्ज''निभा रही थी। राधा, घर का सारा काम करती फिर भी कोई प्रसन्न नहीं हुआ ,एक दिन उसने देखा,आज उसकी सास खुश है ,तब उसने अपनी सास से भी, ये बात पूछने की हिम्मत जुटाई  -आखिर मेरी गलती क्या है ?जब देखो !जिसे देखो !मुझे ताने देते रहते हैं। 


तब उसकी सास बोली -मैं मानती हूँ ,तुम हमेशा अच्छा कार्य करने का प्रयास करती हो,किन्तु कभी -कभी गलती हो भी जाती है ,हमसे भी होती थी ,हम भी अपनी सास की डांट सुनते थे। यही तो' गृहस्थ जीवन' है ,एक औरत एक परिवार की सूत्रधार होकर भी कभी -कभी उसे ही ''ज़हर के घूंट भी पीने पड़ जाते हैं '',मान लो !मैं तुम्हें किसी बात के लिए डांट रही हूँ ,तो तुम्हारे भले के लिए ही कह रही हूँ ,एक बार गलती करोगी तो दुबारा संभलकर करने का प्रयास करोगी। “औरत को ही, घर की इज़्ज़त बनाए रखनी चाहिए,” उसकी सास रोज़ कहा करती थी, “चाहे ज़हर ही क्यों न पीना पड़े।” किन्तु राधा उनसे कैसे कहे ?और सब तो ठीक है किन्तु उसे अपने ही पति का व्यवहार बर्दाश्त नहीं होता ,उसके लिए तो मैं कोई इंसान नहीं ,वरन इच्छापूर्ति का साधन मात्र हूँ। सास की बात सुन  राधा हर बार की तरह मुस्कुरा देती — वही मुस्कान जो भीतर टूटे हुए इंसान की आख़िरी ढाल होती है।

एक शाम अरविंद फिर देर से घर आया था — शराब के नशे में, बदज़ुबानी और शक़ के साये के साथ। उसने राधा पर इल्ज़ाम लगाया -'कि वह किसी और से बात करती है। 

 राधा चुप रही। राधा ने उसे  समझाने की कोशिश की,अरविन्द तुम्हें कोई गलतफ़हमी हुई है ,या किसी ने मेरे विरुद्ध तुम्हारे कान भरे हैं ,'' मगर अरविंद के कानों में सिर्फ़ अपने अहंकार की गूंज थी। उस झगड़े से बचने के लिए राधा छत पर आ गयी। वो रात राधा ने छत पर ही काटी — तारों को देखते हुए, और सोचते हुए -कि क्या ये ही सब उसके भाग्य में लिखा हुआ है ? कब तक ये सब सहन करती रहेगी ?

 सुबह जब सूरज निकला, तो उसने तय कर लिया था — अब वो किसी के बेबुनियाद इल्जाम नहीं सहेगी ,किसी की जली -कटी भी नहीं सुनेगी।''कब तक ज़हर के घूंट पीती रहेगी ''?उसके इस त्याग का कोई अच्छा परिणाम नहीं आ रहा ,उल्टे इन लोगों की हिम्मत और बढ़ती जा रही है। 

अगले दिन राधा ने बदली हुई शांति के साथ सबका स्वागत किया। इससे पहले भी, वह हर दिन उठती रही है ,एक नई उम्मीद और ख़ुशी की तलाश में किन्तु प्रतिदिन उसे निराशा ही हाथ लगती। अब उसने उम्मीदें करनी ही छोड़ दीं ,उसकी ज़िंदगी कभी बदलने वाली नहीं है ,निराशा ने उसे घेर लिया था। रात्रि की सम्पूर्ण बातें भूलाकर उसने घर का सारा काम किया, अरविंद की पसंद का खाना बनाया, और पहली बार उसे मुस्कुराकर थाली परोसी। अरविंद ,हैरान था, “क्या बात है, आज इतनी खुश क्यों हो?”क्या तुम्हारा यार आने वाला है ?

 सूनी नजरों से राधा ने उसे देखा , राधा ने बस इतना कहा - “कभी-कभी औरत को शांति पाने के लिए बहुत बड़ा कदम उठाना पड़ता है।”  रात के खाने के बाद, राधा को बेचैनी महसूस होने लगी — साँसें रुकने लगीं, चेहरा पीला पड़ गया। सब भागदौड़ में थे, पर अरविन्द अभी भी सो रहा था ,उस पर जैसे राधा की परेशानी से कोई फ़र्क पड़ता ? घरवालों के कहने पर वह उठा और जग में से पानी लेकर पीने लगा , कुछ देर पश्चात अरविन्द की हालत भी बिगड़ने लगी ,दोनों को अस्पताल ले जाया गया। वहां जाकर पता चला दोनों ने ज़हर पीया है।

अब तो यह पुलिस केस बन गया ,पुलिस के आने पर राधा ने बिना डर, बिना घबराहट के बिगड़ती हालत में भी उसने कहा - “मैंने उसे ज़हर नहीं दिया, उसने खुद पिया है ... बस इस बार मैंने उसके झूठ, उसके तानों, उसके अत्याचार को अपने अंदर नहीं उतारा। उसके ज़हर को उसी के जग़ के पानी में डाल दिया। 

ये ज़हर तो कुछ भी नहीं ,मैंने तो इसके ज़हर का घूंट हर रोज़ पिया है , आज बस मैंने उसे थोड़ा सा लौटा दिया।” पुलिस ने पूछा -तुमने कितनी बड़ी गलती की है ,तुम्हें मालूम है ,हत्या करना और आत्महत्या करना दोनों ही अपराध हैं, “क्या तुम्हें इस बात का पछतावा है?” 

 राधा ने शांत स्वर में कहा, “पछतावा उन्हें होता है जिन्होंने पहली बार गलती की हो। मैं तो रोज़ ही मरती रही हूँ, आज बस जीने की हिम्मत की है।”ऐसे जीवन से क्या लाभ ?जिसमें प्रतिदिन ''ज़हर के घूंट पीती रही'' ,सास -ननद से तो लड़ा जा सकता है किन्तु जिसके सहारे अपने पिता का घर छोड़कर आई ,उसने ही कभी इज्जत नहीं की ,कभी मुझे इंसान ही नहीं समझा। मैं जानती थी ,ये पानी पियेगा इसीलिए इसका दिया ज़हर थोड़ा सा आज इसे भी पिला दिया ,इसे भी तो मालूम हो ,इस ज़हर का क्या असर होता है ? कहकर राधा ने मुस्कुराने का प्रयास किया और मुक़्त हो गयी ,आज वह पहली बार गहरी नींद में सो रही थी। 

 अरविन्द भी ज़िंदगी -मौत से खेल रहा था किन्तु उसे शीघ्र ही अस्पताल ले आये थे ,वह ठीक हो गया किन्तु राधा के बयान के आधार पर उसको सज़ा मिली। अब उसे एहसास हो रहा था ,एक बार ज़हर पीने से ख़तरनाक बार -बार ''ज़हर के घूंट पीना है। ''इस ज़हर को पीकर तो वो हमेशा के लिए मुक्त हो गयी।  

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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