अस्पताल के कमरे की दीवारें, अब खाली थीं।वो बिस्तर, जिस पर कुछ देर पहले, आर्या बैठी लिख रही थी, अब उस स्थान पर अब धूल के सिवा कुछ नहीं था। रीना नर्स की आँखों के सामने ही तो यह सब हुआ वो अपनी आँखों को मिचमिचाती है ,कहीं उसे कोई भ्र्म तो नहीं हुआ,अपनी आँखों को मलती है दुबारा बिस्तर पर देखती है ,वहां आर्या नहीं थी। यह इस तरह अचानक कहाँ गायब हो गयी ?, किसी को पता नहीं चला,आर्या कब और कैसे गायब हो गई ?
डॉक्टर आ गए और इस मरीज़ के विषय में पूछेंगे तो मैं क्या जबाब दूंगी ? घबराई हुई नर्स, उसे जगह -जगह ढूँढ़ती है ,अब वह ढूंढकर थक चुकी थी,किन्तु आर्या उसे कहीं भी दिखलाई नहीं दी ,तब उसने उसके बिस्तर की तरफ ध्यान से देखा,वहां आर्या तो नहीं ,उसकी एक चीज़ वहीँ रह गई थी —'एक सफ़ेद डायरी,' जिस पर लिखा था —“कब्र की चिट्ठियाँ'' – अंतिम पृष्ठ”
नर्स रीना ने वो डायरी उठाई,सोचा -शायद इसमें से कुछ पता चले ,फिर सोचा,कहीं इसमें उसकी कोई रिपोर्ट तो नहीं,जिज्ञासावश जैसे ही उसने पन्ना पलटा,कमरे की लाइट फिर से टिमटिमाने लगी।पहला पन्ना खाली था।दूसरे पन्ने पर लिखा था:“जो भी यह पढ़ेगा, कहानी का हिस्सा बन जाएगा।”
रीना ने हँसते हुए कहा, “क्या बकवास है ,क्या वो ये सब इस डायरी में लिखती थी ?अपने आप से ही प्र्श्न किया। ये डायरी यहाँ छोड़कर शायद किसी ने मज़ाक किया है।” तभी उसी पल, खिड़की से एक ठंडी हवा आई —और उस डायरी के पन्ने खुद-ब-खुद खुलने लगे।
उधर शहर के दूसरे कोने में,एक लेखक सम्मेलन चल रहा था — ''साहित्यिक सम्मेलन 2025”। हज़ारों लेखक, संपादक, आलोचक… सब एक हॉल में जमा थे।मंच पर मुख्य वक्ता था — डॉ. रघुवीर सिंह,
जिसने काव्या और आर्या की रहस्यमयी कहानी पर किताब लिखी थी —“क़ब्र की चिट्ठियाँ ”
उसने कहा —“कहानी खत्म हो चुकी है। ‘काव्या और आर्या का चरित्र मिथक है ’यह बस एक साहित्यिक रूपक है ,हमने इसे बहुत गंभीरता से ले लिया है।”
भीड़ में तालियाँ बजने लगीं ,मगर तभी भीड़ में से एक महिला उठ खड़ी हुई —उसके काले कपड़े थे , लंबी उंगलियाँ,और आँखों में वही हल्की नीली चमक,उसने धीमे स्वर में कहा -कहानी अच्छी और सच्ची थी डॉक्टर साहब !क्या आप ही भूल गए ?“कहानी कभी खत्म नहीं होती, वो बस लेखक बदलती है।
डॉ. रघुवीर ने उसके शब्द सुने तो चौंक गए उन्होंने सोचा ,कोई कहानी का प्रशंसक होगा ,उन्होंने पलटकर देखा —किन्तु वहाँ पर कोई नहीं था।
सम्मेलन के पश्चात ,डॉ. रघुवीर अपने होटल के कमरे में लौट आया। बिना किसी नाम के मेज़ पर एक पैकेट रखा हुआ था —उन्होंने उस पैकेट को खोला —उसके अंदर वही सफेद डायरी थी,जिस पर लाल रंग की खून जैसे स्याही से लिखा था —“कब्र की चिट्ठियाँ'' – आर्या की ओर से।”उनका दिल धड़कने लगा,और वे सोचने लगे-' मेरी कहानी का लोगों पर बहुत असर हुआ है, वे इसे सच्ची घटना समझने लगे। '' ख़ैर जो भी है ,लोगों ने मेरी इस कहानी को पढ़ा और पसंद भी किया है ,इसी प्रसन्नता में उन्होंने, उस डायरी का पहला पन्ना खोला —उसमें वही चेतावनी थी -“जो भी यह पढ़ेगा, कहानी का हिस्सा बन जाएगा।”
वो मुस्कुराया और मुस्कुराकर बुदबुदाया -“साहित्यिक नाटकबाज़ी,” उसने सोचा।पर तभी, कमरे का तापमान गिरने लगा।आईना धुँधला हुआ —और उस पर उभर आया एक चेहरा,काव्या का।“मैंने कहा था न… लेखक कभी मरता नहीं।”
अगली सुबह होटल स्टाफ़ ने दरवाज़ा खटखटाया तो किसी ने दरवाजा नहीं खोला ,बहुत देर हो जाने पर वह दरवाजा तोड़ा गया —अंदर ड़ॉ ०रघुवीर की लाश थी।उनके चेहरे पर भय के अजीब भाव जमे हुए थे,
और मेज़ पर वही डायरी खुली पड़ी थी।पन्ने के नीचे लिखा था —“भाग 35 – लिखा गया रघुवीर द्वारा।”
मीडिया में खबर फैली —“‘कब्र की चिट्ठियाँ’ पढ़ने वाले लेखक की रहस्यमयी मौत।”सोशल मीडिया पर लोग मज़ाक उड़ाने लगे —“कहानी पढ़ने से मौत! वाह भई!”क्या ऐसा भी कहीं होता है ? किन्तु अगले कुछ दिनों में तीन और लेखकों की मौत हो चुकी थी —सभी के पास वही सफेद डायरी मिली।हर डायरी के अंतिम पन्ने पर वही शब्द —“कहानी खुद को लिख रही है।”
एक हफ्ते के पश्चात,रीना — वही नर्स —एक न्यूज़ चैनल पर इंटरव्यू देने पहुंची, वह डायरी को सबूत के तौर पर साथ लाई थी ।
रिपोर्टर ने रीना नर्स से पूछा —“क्या आप जानती हैं, यह डायरी कैसे आपके अस्पताल में पहुँची?”
रीना ने कहा,“वो खुद आई थी।”
“मतलब?”“एक रात जब मैं ड्यूटी पर थी,कमरे में हवा चली और डायरी टेबल पर रखी मिली।उस दिन से मैं हर रात किसी के फुसफुसाने की आवाज़ सुनती हूँ।”
“कौन?”
“आर्या…”
रिपोर्टर मुस्कुराया, “आप शायद भ्रम में हैं।”वो तो कहानी की एक पात्र है।
रीना ने ठंडी मुस्कान दी,और बोली — “अगर भ्रम है, तो पढ़ लो ! खुद देख लो।”
उसने डायरी खोली —लोगों को सच्चाई दिखाने के लिए वह डायरी खोलता है , कैमरा रिकॉर्ड कर रहा था।अचानक लाइव ब्रॉडकास्ट के बीच स्क्रीन काली हो गई।
पाँच सेकंड के पश्चात,रीना की चीख़ सुनाई दी और जब वीडियो दोबारा चला —रीना गायब थी ,सिर्फ़ डायरी खुली थी,
जिस पर नया शीर्षक लिखा था —“भाग 36 – अगली कहानी शुरू हो चुकी है।”
लोगों ने वीडियो को मज़ाक समझा ,किन्तु रातभर सोशल मीडिया पर “#क़ब्र की चिट्ठियां ” ट्रेंड करने लगा।
सैकड़ों लोगों ने लिखा —“हमने भी वह डायरी देखी।”“पन्ने अपने आप पलट रहे हैं।”“मुझे भी आर्या की आवाज़ सुनाई देती है…”
कुछ कहते -मुझे लग रहा है,जैसे उस कहानी के पात्र जीवित हो चुके हैं।
रात्रि 3:33 पर,शहर के हर उस व्यक्ति के घर में ,जिसने वो कहानी पढ़ी थी,कुछ अजीब घटने लगा।कंप्यूटर स्क्रीन अपने आप टिमटिमाने लगी,मोबाइल नोट्स में अपने आप कुछ टाइप हुआ —“अब तुम मेरे पाठक नहीं… मेरे पात्र हो।”
कहानी अब फैल चुकी थी। हर नया पाठक, एक नया पात्र बनता चला जा रहा था।हर बार जब कोई “कब्र की चिट्ठियाँ” का नाम लेता —उसकी स्क्रीन पर नीली रोशनी झिलमिलाती,और उसके बगल में एक फुसफुसाहट होती —“मैं अभी लिख रही हूँ…”
एक अंधेरे कमरे में,कंप्यूटर पर कोई टाइप कर रहा है ,स्क्रीन पर वही शब्द उभरते हैं —“Part 35 – वो जो कहानियों में रहता है।”टाइप करने वाला ठहरता है…धीरे-धीरे कैमरा घूमता है —वो चेहरा आर्या का है।पर उसकी परछाई काव्या की है।वो मुस्कुराती है और कहती है —“हर पाठक लेखक बनता है…और हर लेखक, मेरी कहानी।”
