Qabr ki chitthiyan [part 34]

काव्या और आर्या अब एक हो चुकी थीं किन्तु एक होने का मतलब ,शांति ही नहीं होता। सवेरा होने से, पहले की वो घड़ी थी, जब अंधेरा सबसे भारी होता है।''ब्लैक हिल मैनर'' अब राख हो चुका था —लेकिन उस राख में से भी एक परछाई उठती दिखलाई दे रही थी ,ऐसा प्रतीत हो रहा था ,जैसे उस परछाई में आर्या का चेहरा हो किन्तु आँखों में काव्या की आँखों जैसी चमक थी ।


धीरे-धीरे आर्या ने, अपनी आँखें खोलीं। चारों ओर सन्नाटा छाया था, मगर उसके भीतर — एक कोलाहल !मचा था ,एक इंसान दिखलाई दे रहा था ,किन्तु दो आवाज़ें एक साथ बोल रही थीं,एक शांत, स्थिर — आर्या की ,दूसरी तेज़, बेचैन — काव्या की।

“तुम्हें कहानी पूरी करनी ही होगी…”“कहानी नहीं, बदला भी लेना होगा…”

आर्या ने अपना सिर पकड़ लिया,वो स्वयं ही नहीं समझ पा रही थी — कौन बोल रही है?वो खुद, या कोई उसके अंदर समाया है ?

अचानक, उसकी नज़र दीवार पर पड़ी —जहाँ राख के मध्य किसी ने उँगली से लिखा था:“ब्लैक हिल का श्राप'' तुम्हारे भीतर जाग गया है।” आर्या का दिल ज़ोर-जोर  से धड़कने लगा -वह आश्चर्य  बुदबुदाई - श्राप  ! काव्या की कहानी में भी तो “ब्लैक हिल का श्राप” नाम का एक अध्याय था —पर वो कभी पूरा नहीं लिखा गया था।

दीनदयाल  ने उस कहानी का ज़िक्र करते हुए कहा था -“काव्या ने उस श्राप के बारे में लिखा था कि जो भी सच्चाई को लिखने की कोशिश करेगा,वो खुद उस सच्चाई का हिस्सा बन जाएगा।”क्या यही उसके साथ हुआ था?

आर्या ने ''ब्लैक हिल मैनर'' से बाहर कदम रखा।उस पर्वत के नीचे धुंध छाई थी,और कहीं दूर....  शहर की रोशनी बुझी हुई सी लग रही थी।जैसे समय ही ठहर गया हो।आर्या ने अपना मोबाइल निकाला — कोई नेटवर्क नहीं।उसकी घड़ी भी रुकी हुई थी — ठीक 3:33 AM पर,आर्या  हल्के से बुदबुदाई ,“तीन तिहाई… यह वही समय है, जब काव्या मरी थी।”

वो काँप गई ,उसे हवा में अब वो लोरी सुनाई दे रही थी -जो कभी काव्या अपनी कहानी लिखते समय गुनगुनाया करती थी —उसके स्वर धीमे थे, उसके शब्द डरावने लग रहे थे और उसके भाव सम्मोहित करने वाले थे ।“ डरावने होते हुए भी ,शब्द अगर जाग्रत लग रहे थे ,उनका असर हो जाएँ, तो इंसान सो जाता है…”

आर्या ने महसूस किया कि उसके हाथों पर स्याही फिर से उभरने लगी है। उसने पहले अक्षर बनाये  — फिर पूरे शब्द !वो नहीं जानती थी ,कि वो क्या लिख रही है ?अनजाने में कुछ तो लिख रही थी —लेकिन उसे ऐसा लग रहा था,जैसे उससे ज़बरन ही कोई लिखवा रहा है किन्तु नहीं जानती ,कौन ?उसने नीचे देखा —उसकी हथेली पर लिखा था -“ दीनदयाल झूठा है, वो सच नहीं चाहता।”

वो सिहर गई,क्या यह काव्या का संदेश था?या फिर श्राप की चाल? क्या यह सब मुझसे काव्या ने लिखवाया है या फिर.....  

वो तेज़ी से पहाड़ी से नीचे उतरने लगी और डॉक्टर दीनदयाल के लैब तक पहुंच गई , दरवाज़ा अंदर से बंद था, किन्तु लैब के भीतर हल्की नीली रोशनी झिलमिला रही थी। पहले उसने दरवाज़ा खटखटाया किन्तु किसी ने भी दरवाज़ा नहीं खोला ,तब उसने वह दरवाज़ा  तोड़ दिया  —अंदर जाकर जो उसने देखा, उसके'' पैरों तले की ज़मीन ख़िसक गयी ।

एक काँच के बक्से के अंदर काव्या का शव  रखा हुआ था —ठीक उसी हालत में, जैसे किसी ने उसे जीवित ममी बनाकर छोड़ दिया हो और उसके पास वही पुराना रजिस्टर रखा हुआ था,जिसके पन्ने अपने आप हिल रहे थे।

तभी  पीछे से दीनदयाल आकर बोला —“मुझे पता था, तुम आओगी।”

आर्या ने पलटकर देखा —उसका चेहरा पीला था और आँखें लाल !“तुमने यह क्या किया?”आर्या ने पूछा। 

दीनदयाल ने ठंडे स्वर में कहा -“मैंने उसे बचाने की कोशिश की थी,लेकिन वो खुद को कहानी में बाँध चुकी थी ,अब वही तुम्हें भी बाँध रही है।”

आर्या चिल्लाई —“झूठ! तुम ही थे जिसने उस पर प्रयोग किया, जिसने काव्या की आत्मा को कागज़ में क़ैद कर लिया !”

दीनदयाल  मुस्कुराया और बोला - तुम उसी का परिणाम हो।”वो धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ा “काव्या मरी नहीं थी, आर्या !उसने खुद को दो हिस्सों में बाँट दिया था —एक आत्मा और  एक शब्द ! तुम वही शब्द हो।”

आर्या पीछे हट गई,पर उसके कदम खुद रुक गए ,उसे लगा जैसे उसे कोई पुकार रहा है ,किन्तु वो आवाज़ स्वयं उसके भीतर से आ रही थी ,ऐसा लग रहा था ,जैसे -वो आवाज़ उसकी स्वयं की नहीं ,काव्या की आवाज़ है  —“मत भागो, आर्या ! उसने हमें तोड़ा था, अब हम उसे खत्म करेंगे।”

आर्या की आँखें अचानक काली हो गईं ,कमरे की लाइट्स झपकने लगीं। रजिस्टर हवा में उठ गया —उसके पन्ने जलने लगे, और राख बनकर दीनदयाल  के इर्द -गिर्द  घूमने लगे।

दीनदयाल चिल्लाया — “नहीं ! यह मत करना!”पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी।आर्या ने हाथ उठाया —और उसके हाथों से एक चिंगारी निकली ,और पूरा लैब एक नीली लपट में समा गया।

कुछ घंटों के बाद,शहर के अख़बार में एक खबर छपी —“ब्लैक हिल रिसर्च लैब'' में रहस्यमयी विस्फोट —डॉ. दीनदयाल लापता और एक महिला जीवित मिली।”

वो महिला और कोई नहीं , — आर्या ही थी ,लेकिन अस्पताल में जब डॉक्टरों ने उसका नाम पूछा,तो उसने कहा —“मैं काव्या हूँ।”

डॉक्टरों ने उसे मानसिक भ्रम बताया ,पर जब उन्होंने उसका ब्लड टेस्ट किया —रिपोर्ट में एक अजीब बात सामने आई —उसके DNA में दो अलग-अलग पहचानें थीं।एक इंसानी, एक अज्ञात।

अस्पताल की नर्स ने बताया —“वो रात को उठकर कुछ लिखती रहती है,हर बार एक ही पंक्ति दोहराती रहती है —‘लेखक कभी मरता नहीं।’”

एक रात, नर्स ने देखा —आर्या उठी, वो पहले की तरह ही कागज़ पर कुछ लिख रही थी।
नर्स उसके क़रीब  गई —काव्या/आर्या ने सिर उठाया, और मुस्कुराई और बोली -“अब मेरी कहानी पूरी हो गई है।”

नर्स ने नीचे देखा —कागज़ पर लिखा था:“अब जो पढ़ेगा, वो अगली कहानी बनेगा।”

और तभी, बिजली चली गई ,जब लाइट वापस आई —बिस्तर खाली था ,सिर्फ़ वो कागज़ हवा में उड़ रहा था। 

बौखलाई सी नर्स ने इधर -उधर देखा ,आख़िर यह लड़की कहाँ गयी ? ज़मीन निगल गयी या आसमान ! वो नर्स डर रही थी ,मुझसे इस मरीज़ के विषय में पूछा जायेगा ,तो वो क्या जबाब देगी ?

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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